Kriya Yoga sadhna प्राचीन क्रिया योग साधना और रहस्य ph. 85280 57364
आज हम क्रिया योग Kriya Yoga के सम्बन्धी जानकारी प्रदान करेंगे इस पोस्ट क्रिया योग Kriya Yoga का प्रयोग और मंत्र भी प्रदान किया जाएगा आप इस पोस्ट को पूरा पढ़े अन्तर्मन तथा बाह्यमन को बोड़ कर मानव को ध्यान, धारणा और समाधि की ओर ले जाने वाला है यह क्रिया योग Kriya Yoga सिद्धि प्रयोग क्रिया योग Kriya Yoga में व्यक्ति के लिए किसी प्रकार का कोई भेद बाधक नहीं होता है, किन्तु इसके लिए योग्य गुरु का मार्गदर्शन नितान्त आवश्यक है। वैसे तो क्रिया योग Kriya Yoga के लिए नियम, आसन, प्राणायाम आदि आवश्यक है, लेकिन मंत्रात्मक साधना से इसमें अनुकूलता की सम्भावनाएं निश्चय ही बढ़ जाती हैं।
मानव शरीर इतना रहस्यमय है कि हजारों वर्षों से वैज्ञानिक, चिकित्सक, योगी व साधक इसके रहस्य को समझने का प्रयत्न कर रहे हैं और प्रत्येक बार यही अनुभव होता है कि अभी बहुत कुछ जानना है फिर भी मानव का यह प्रयत्न रहा है कि यह अधिक से अधिक इस बारे में ज्ञान अर्जित करे और अपने ज्ञान का अनुभव आने वाली पीढ़ी को दे। गहराई से विचार करने पर स्पष्ट होता है, कि मानव मन दो हिस्सों में विभक्त है- अन्तर्मन एवं बाह्यमन। हम इसे अन्तश्चेतना तथा बहिश्चेतना भी कह सकते हैं। इसमें अन्तश्चेतना सर्वदा सक्रिय शुद्ध एवं निर्मल बनी रहती है।
मानव जो भी दैनिक कार्य व्यवहार अपनाता है. उसकी प्रेरणा में बहिश्चेतना की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, अन्तश्चेतना की नहीं, क्योंकि अन्तश्चेतना मानव को विशुद्ध मानव और उसमें देवत्व बनाए रखने में सहायक होती है। क्रिया योग Kriya Yoga में व्यक्ति अपनी बहिश्चेतना का सम्पर्क अन्तश्चेतना से करता है और अन्तश्चेतना प्रायः सभी विकारों से मुक्त रहती है। उस पर न तो किसी प्रकार के विकारों का प्रभाव पड़ता है और न ही वह बहकावों में आती है, क्योंकि उसमें पूर्ण देवत्व का भाव होता है। यह अन्तश्चेतना ही मानव को सही अर्थों में मानव बनाए रखती है और देवत्व की ओर अग्रहार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
इसलिए बहिश्चेतना को अन्तश्चेतना से जोड़ने की क्रिया महत्वपूर्ण होती हैं और मानव को विकारों से मुक्त कटाने का यह एक सुन्दरतम प्रयास है। जब अन्तर्मन और ब्राह्ममन परस्पर जुड़ जाते है. तो इन दोनों मन को जोड़ने की क्रिया ही, क्रिया योग Kriya Yoga कहलाती है। इस दशा में अर्थात् दोनों मन जुड़ने की प्रक्रिया में व्यक्ति एक दिव्य प्रकाश की अनुभूति अपन अन्दर महसूस करने लगता है, जिससे उसके तनाव समाप्त होने लगते हैं। उसे आनन्द की अनुभूति होने लगती है और वह समझा लेता है, कि वास्तविक सुख हमारे अन्दर मौजूद है, जिसे कहीं बाहर से नहीं लाना पड़ता है।
क्रिया योग Kriya Yoga के मुख्य रूप से तीन आधार है – ध्यान, धारणा और समाधि इसमें ध्यान ऐसी प्रक्रिया है. जो व्यक्ति को निरन्तर चैतन्यता, मानसिक विश्राम और गति प्रदान करती है।
1 ‘ध्यान‘ का तात्पर्य यह है, कि मानो जल शान्त हो और हम उसकी तलहटी में देख सकें वास्तव में ध्यान अपने अन्दर की समस्त बेचैनी छटपटाहट, व्यग्रता और तनाव को समाप्त करने की प्रक्रिया है। ध्यान योग की दशा में जब साधक अपने अन्तर्मन ने उतरता है, तो प्रारम्भ में एक प्रकाश का बिन्दु दिखाई देता है और धीरे-धीरे इस प्रकाश का घेरा बढ़ता जाता है आरम्भ में यह बिन्दु छोटा सा एवं नीली आभा लिए तुभ्य बढ़ने के क्रम में प्रकाश का परा लगता है और आगे बढ़ने पर उसे कई रम या जाती दिखने लगते हैं।
यह ध्यान योग में प्रगति का है। ध्यान में और अधिक एकाग्रता आने पर रंग भी दिखाई देना बंद हो जाते हैं और सफेद तेज प्रकाश दृष्टिगोचर होने लगता है। इस प्रकाश का दृष्टिगोचर होना की तृतीय नेत्र खुलने की स्थिति है. जिससे साधक को स्वयं का तथा अन्य किसी का भी भविष्य वर्तमान स्पष्ट होने लगता है।
2 धारणा ध्यान से आगे की जो स्थिति है वह है ‘धारणा’ ‘धारणा’ का अर्थ है, अपने आप में लीन हो जाना। इस अवस्था में पहुंच कर व्यक्ति संसार में केवल साक्षी नाव से रहता है अर्थात् सासारिक माया-मोह उस पर व्याप्त नहीं होते हैं और उसमें दृष्टा भाव उत्पन्न हो जाता है और यह परमहंस की स्थिति में आ जाता धारण के पश्चात की जो अवस्था होती है वह ‘समाधि’ की होती है। ‘
3 समाधि‘ का तात्पर्य यह है, कि अपने को विस्मृत कर देना, स्वय को पूर्णता तक पहुंचा देना, पूरे ब्रह्माण्ड में स्वयं को एकाकार कर देना, समस्त ब्रह्माण्ड में सशरीर विचरण करने की क्षमता अर्जित कर लेना और प्रकृति के कार्यों में हस्तक्षेप करके उसको अपने अनुकूल बना देना |
समाधि अवस्था प्राप्त करने पश्चात् व्यक्ति पुनः जन्म नहीं लेता, वह तो फिर अवतरित हो सकता है। ऐसी अवस्था में उसका चेहरा अपने आप में देदीप्यमान हो जाता है और वह पूर्णता प्राप्त कर लेता है। क्रिया योग Kriya Yoga वास्तव में अपने शरीर के मल का निवारण कर, ऐसा विव्यतम बनाने का एक सुन्दर एवं विशिष्ट प्रयास है, जिससे उसमें ईश्वरत्व | स्पष्ट हो जाता है। क्रिया योग Kriya Yoga की उच्चतम अवस्था निर्विकल्प समाधि की होती है, जिसे निर्विचार मन की प्राप्ति तक ले जाया जा सकता है। निर्विचार मन बनाकर व्यक्ति स्वतः ही अपना उपचार कट सकता है।
विदेशों में तकनीक को ‘मॉटोहीलिंग’ कहते हैं। हमारे देश में प्राय: इसे योग निद्रा की संज्ञा दी जाती. है। क्रिया योग Kriya Yoga की स्थिति निर्मित होने के लिए इतने अधिक प्राणायाम व यौगिक क्रियान्ि कर पाना प्रत्येक साधक के लिए सम्भव ना होता है इसकी भूमि में कई कारण होते हैं. जैसे उचित मार्गदर्श का अभाव। यौगिक क्रियाएं बिना प्रयोगात्मक मार्गदर्शन के करना उचित नहीं रहता है प्रयोगात्मक दैनिक प्रशिक्षण आज के व्यस्ततम युग में हर साधक के लिए उपलब्ध नही हो पाता है, क्योंकि आज के युग में धौगिक प्रशिक्षण केन्द्रों का नितान्त अभाव ही है।
क्रिया योग Kriya Yoga के लिए साधनात्मक मार्ग एक सवल एवं व्यवस्थित मार्ग के रूप में अपनाया जा सकता है। इसमें ज्यादा कठिन एवं यौगिक क्रियाएं, व्यायाम, आसन अथवा हठ योग की क्रियाओं की आवश्यकता नहीं होती है, अपितु अपने दैनिक कार्य को सम्पादित करते हुए प्रतिदिन कुछ समय नित्य मंत्र जप कर अपने लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं। इस प्रयोग में आपको नित्य एकटक होकर यत्र पर देखते हुए जप करना है. इससे ध्यान की स्थिति प्रारम्भ होती है। प्रारम्भ में घर की समस्याएं आफिस की।
उलझने स्वतः ही कम हो जाएगी और आपको स्पष्ट मार्ग मिलने लगेगा। यत्र विज्ञान इस प्रयोग को सम्पन्न करने पर निर्दिचार मस्तिष्क की अवस्था आने लगती है, क्योंकि हमारे मस्तिष्क में एक सेकण्ड में लाखो विचार आकर चले जाते हैं, हम भविष्य के बाने-बाने इन विचारों से जोड़ते रहते हैं और इनका दुष्प्रभाव यह होता है, कि मस्तिष्क जो भी उच्चकोटि कि योगी व साधक होते हैं, वे अपने को प्राप्त करने के लिए अन्तश्चेतना का विकास करने में रेलवे रहते हैं और इसके विकास से वे अपने लक्ष्य तिक पहुंचने का सामर्थ्य अर्जित कर लेते हैं।
हमारा चेतन मन बुद्धि से प्रभावित होकर अधिक क्रियाशील हो जाता है, जबकि अवचेतन मन उपेक्षित सा रह जाता है और इसका दुष्प्रभाव यह होता है, कि यदि जीवन में एकाएक विपरीत परिस्थिति आ जाये, तो अवचेतन मन साथ नहीं देता है और नर्वस ब्रेकडाउन की स्थिति तक बन जाती है। इसका एकमात्र व सरल निदाल ही हैं निर्विचार मस्तिष्क । |
के कोमल तन्दुओं पर अधिक दबाव पड़ता है और व्यक्ति मानसिक पंगु हो जाता है और उसके मस्तिष्क का विकास नहीं हो पाता है। 2 3. विचार शून्य की स्थिति में व्यक्ति अपने लघु देह व लघु परिवेश से कटकर समस्त ब्रह्माण्ड का एक अंश बनने की प्रक्रिया में होता है और तब उसे भावना रखनी चाहिए में असीमित शक्ति के रूप में एक पुंजीभूत रूप ने, समस्त ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी व्याप्त है, उसमें विस्तारित हो रहा हूं। यह मात्र कल्पना का विषय नहीं है वरन इस समस्त ब्रह्माण्ड में ईश्वर तत्व का जो विस्तार है और जिसके द्वारा ही तरंगों का संचरण सम्भव हो पाता है, उसके द्वारा व्यक्ति अपनी मानसिक तरंगों का विस्तार कर बैठे सकता है।
एक स्थान पर बैठ कर ही सैकड़ों मील दूर व्यक्ति को आज्ञा दी जा सकती है। 4. 5. 6. सूक्ष्म शरीर के माध्यम से सैकड़ों मील टूट जाया जा सकता है। दूरस्थ स्थानों का वार्तालाप सुना जा सकता है तथा इसी प्रकार के कार्य जो अचटज मटे प्रतीत होते हैं, मानसिक क्षमता के विस्तार से सम्भव है। किया योग सिद्धि का एक विशिष्ट प्रयोग दिया जा रहा है, जो साधक अपने जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त करना चाहें, में इस तरह के प्रयोग को सम्पन्न कर आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करने का सुन्दर सौभाग्य प्राप्त कर सकते हैं।

क्रिया योग साधना प्रयोग विधि 1. इस प्रयोग को या किसी भी रविवार को कर सकते हैं। 4. सुगन्धित अगरबत्ती व घी का दीपक प्रज्ज्वलित कर दें और दैनिक साधना विधि पुस्तक के अनुसार गुरु पूजन तथा यंत्र का पूजन करे। इसके पश्चात् क्रिया सिद्धि माला से ही गुरु मंत्र की एक माला मंत्र जप करें, फिर निम्न मंत्र की 11 माला मंत्र जप 5 दिन तक करें मंत्र साधक प्रातः स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ सफेद वस्त्र धारण करें तथा सफेद सूती आसन पर उत्तर दिशा की ओर मुह कर बैठें।
सर्वप्रथम अपने सामने बाजोट पर वस्त्र बिछाकर उस पर किसी तांबे के पात्र में क्रिया योग Kriya Yoga यंत्र स्थापित करें। उसके सम्मुख किया सिद्धि माला स्थापित कर दें।
क्रिया योग साधना मंत्र
॥ ॐ ह्रीं ह्रीं ऐं क्रिया सिद्धिं ॐ ॥ OM HREEM HREEM AYEIM KRIYA SIDDHIM OM 7.
. प्रतिदिन मंत्र जप के पश्चात् पद्मासन या सिद्धासन में बैठे हुए मेरुदण्ड सीधा रखें और ध्यान नासिकाय पर कर यह अनुभव करें, कि मैं निरन्तर विराट पुरुष को अपने चारों ओर देख रहा हूं. मुझमें तेजस्विता, श्रेष्ठता और दिव्यता बढ़ती जा रही है, उनके संरक्षण में मैं अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता जा रहा हूँ। मैं प्रसन्नचित्त हूँ मेरा रोम-रोम प्रसन्नता और संतोष से खिल रहा है, क्योंकि मेरी बुद्धि में सात्विकता सेजस्विता दिव्यता और समर्थ्यता है। इस तरह उक्त भावना का मनन धीरे-धीरे पांच था दस मिनट तक करें, ताकि इन विचारों की स्थायी छाप मन पर पड़ती रहे। इसके पश्चात् गुरुदेव जी को प्रणाम कर नित्य प्रयोग सम्पन्न करें।
पांच दिन के पश्चात यत्र तथा माला किसी नदी में प्रवाहित कर दें। पांच दिन के पश्चात नित्य प्रातः 4 बजे से 6 बजे के बीच मे कभी भी 10 मिनट तक उपरोक्त क्रम संख्या
6 को अनुसरण तीन माह तक करें। विशेष-साधना प्रारम्भ करने से पूर्व नित्यक्रम में नेति व यस्ती आदि क्रियाएं और हल्का सा व्यायाम कर लें, तो ज्यादा उचित है। प्रयोग सम्पन्न करने के उपरान्त हल्का फलाहार या दूध अपनी सुविधानुसार ग्रहण कर लें, तत्पश्चात् ही अपने दैनिक कार्य को कसी भी सम्पादित करें।
सुगन्धित अगरबत्ती व घी का दीपक प्रज्ज्वलित कर दें और दैनिक साधना विधि पुस्तक के अनुसार गुरु पूजन तथा यंत्र का पूजन करे।
5. इसके पश्चात् क्रिया सिद्धि माला से ही गुरु मंत्र की एक माला मंत्र जप करें, फिर निम्न मंत्र की 11 माला मंत्र जप 5 दिन तक करें – मंत्र
6. साधक प्रातः स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ सफेद वस्त्र धारण करें तथा सफेद सूती आसन पर उत्तर दिशा की ओर मुह कर बैठें। सर्वप्रथम अपने सामने बाजोट पर वस्त्र बिछाकर उस पर किसी तांबे के पात्र में क्रिया योग Kriya Yoga यंत्र स्थापित करें। उसके सम्मुख किया सिद्धि माला स्थापित कर दें। ।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ऐं क्रिया सिद्धिं ॐ ॥ OM HREEM HREEM AYEIM KRIYA SIDDHIM OM
7. इस तरह उक्त भावना का मनन धीरे-धीरे पांच था दस मिनट तक करें, ताकि इन विचारों की स्थायी छाम मन पर पड़ती रहे। इसके पश्चात् गुरुदेव जी को प्रणाम कर नित्य प्रयोग सम्पन्न करें। पांच दिन के पश्चात यत्र तथा माला किसी नदी में प्रवाहित कर दें। पांच दिन के पश्चात नित्य प्रातः 4 बजे से 6 बजे के बीच मे कभी भी 10 मिनट तक उपरोक्त क्रम संख्या 6 को अनुसरण तीन माह तक करें।
विशेष साधना प्रारम्भ करने से पूर्व नित्य क्रम में नेति व यस्ती आदि क्रियाएं और हल्का सा व्यायाम कर लें, तो ज्यादा उचित है। प्रयोग सम्पन्न करने के उपरान्त हल्का फलाहार या दूध अपनी सुविधानुसार ग्रहण कर लें, तत्पश्चात् ही अपने दैनिक कार्य को सम्पादित करें।
प्रतिदिन मंत्र जप के पश्चात् पद्मासन या सिद्धासन में बैठे हुए मेरुदण्ड सीधा रखें और ध्यान नासिकाश पर कर यह अनुभव करें, कि मैं निरन्तर विराट पुरुष को अपने चारों ओर देख रहा हूं. मुझमें तेजस्विता, श्रेष्ठता और दिव्यता बढ़ती जा रही है, उनके संरक्षण में मैं अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता जा रहा हूँ। मैं प्रसन्नचित्त हूं. मेरा रोम-रोम प्रसन्नता और संतोष से खिल रहा है, क्योंकि मेरी बुद्धि में सात्विकता, तेजस्विता, दिव्यता और समर्थ्यता है।