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शिव पंचाक्षर मंत्र महिमा shiv panchakshar mantra mahima

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शिव पंचाक्षर मंत्र महिमा  shiv panchakshar mantra  mahima
शिव पंचाक्षर मंत्र महिमा shiv panchakshar mantra mahima

शिव पंचाक्षर मंत्र महिमा shiv panchakshar mantra mahima

 

 

 

शिव पंचाक्षर मंत्र महिमा shiv panchakshar mantra mahima
शिव पंचाक्षर मंत्र महिमा shiv panchakshar mantra mahima

शिव पंचाक्षर मंत्र महिमा shiv panchakshar mantra mahima शिव पंचाक्षर मंत्र की महिमा हमारे पुराणो मे कही गई । कलयुग शिव पंचाक्षर मंत्र का महत्व अन्य मंत्रो से ज्यादा बताया गया है । शिव मंत्र यथार्थ महत्व समझ कर श्रद्धा और भक्ति से जप करने वाले साधक का मुख देखने मात्र से ही तीर्थ दर्शन का फल प्राप्त होता है ।सकाम और निष्काम शिव मंत्रो जप करने वाले साधक को साधना का फल अवश्य प्राप्त होता है । पंचाक्षरी मंत्र का जप करने से शिव और शिवा (पार्वती )जी की कृपा प्राप्त होती है । ईस मंत्र जप करने से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है यदि ईस मंत्र का जो एक करोड़ मंत्र जप अनुष्ठान करता है उस को भगवान शिव का साक्षात् दर्शन प्राप्त होता है वह अभीष्ट सिद्धीया सहजता से प्राप्त कर लेता है भगवान सदाशिव का रूप हो जाता है ।

ईस सम्बन्ध मे एक शिव पुराण मे एक कथा आती है जो ईस प्रकार है। shiv panchakshar mantra mahima

 

ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद ! पंचाक्षरी मंत्र परम श्रेष्ठ मंत्र है इसकी महिमा अनंत है इस मंत्र का जाप करने से सभी सिद्धियां प्राप्त होती है तथा सहस्त्र पाप नष्ट हो जाते हैं वेदों ने भी इस मंत्र द्वारा सिद्धि प्राप्त की है सच्चिदानंद स्वरुप भगवान सदाशिव मंत्र में सदैव अक्षर रूप मे रहते हैं जो मनुष्य संसार सुख में लिप्त होकर अपने जीवन को नष्ट कर रहे हैं उनके कल्याण के हेतु भगवान सदाशिव इस मंत्र को प्रकट किया है
यह पंचाक्षरी मंत्र पापो के समुद्र को बड़वागिन के समान तथा दोषों को नष्ट करने में अग्नि के समान । सभी मनुष्य ईस के अधिकारी है ।
हे नारद ! ब्राह्मण से बढ़कर सद्गुरु अन्य कोई नहीं है क्योंकि अन्य सभी वर्ण ब्राह्मण के शिष्य कहलाते हैं ग्रहसथ मनुष्य को उचित है के नीच वर्ण वाले को अपना गुरु कभी ना बनावे अन्यथा उसे बडा पाप लगता है पंचाक्षरी मंत्र की महिमा के संबंध में हम तुम्हें एक इतिहास बनाते हैं जो अत्यंत पवित्र तथा पापों को नष्ट करने वाला है  shiv panchakshar mantra mahima

हे नारद यदुवंशी के दाशाहर नाम का एक अत्यंत प्रतापी राजा हुआ है वह सभी शास्त्रों में पंडित महान योद्धा परमवीर संतोषी शत्रु विजय सुंदर शीलवान युद्ध में चतुर तथा शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला था उसने काशी के राजा की पुत्री कलावती के साथ विवाह किया वह सत्यवती परम सुंदरी तथा पतिव्रता थी एक दिन राजा दाशाहर ने अंतः पुर में पहुंचकर अनेक प्रकार के वस्त्र आभूषणों से अलंकृत अपनी पत्नी के साथ मैथून करना चाहा कलावती ने उसे ऐसा करने से मना किया shiv panchakshar mantra mahima

यह देखकर राजा ने उसे पूरा करने बल पूर्वक भोग करने की इच्छा प्रकट की । तब कलावती ने कहा आप मुझे स्पर्श न करे आप धर्म अधर्म को जानने वाले हैं इसके अतिरिक्त यह बात भी है कि यदि शीघ्रता में कोई कार्य किया जाता है तो उसका परिणाम अच्छा नहीं होता है मैं इस समय व्रत धारण किए हुए हे राजन वेदों का कथन है कि छः प्रकार की स्त्रियाँ के साथ भोग नही करना चहिए ईस प्रकार की स्त्रियों के साथ भोग करना उचित नहीं है पहली और स्त्री से जो पति से प्रेम नहीं करती हो दूसरे उससे जो रोगिणी होती है तीसरी वह जो गर्भवती होती चौथी वह जो व्रत अथवा नियम संयम को दान किए हुए हो पांचवीं वह जो कामदेव से रहित हो अर्थात ने नुपिसका का हो छठी वह जो मासिक धर्म में हो अस्तु मैं इस समय व्रत में हूं तो आप मेरा व्रत भंग करने वाला कार्य न करें shiv panchakshar mantra mahima

इस प्रकार कलावती ने राजा को बहुत कुछ समझाया परंतु काम वशीभूत होने के कारण राजा कलावती की बातो पर विशेष ध्यान न दिया तथा उसके साथ बलपूर्वक भोग करने लगा संसार में ऐसा कौन सा प्राणी है जो कामदेव पर विजय प्राप्त कर सके अस्तु भोग करने के उपरांत राजा के हृदय में अकस्मात जलने लगा तब वह घबरा कर अपनी रानी से इस प्रकार बोला है मुझे भोग करने अधिक इच्छा थी परंतु यह देख कर आश्चर्य हो रहा है तुम ऐसी कोमलागी होते हुए भी कठोर क्यों कर रही हो तुम्हारा संपूर्ण शरीर अग्नि के समान परजिलत हो रहा है जैस समय मैं तुंहें अपने हृदय से लगाता हूं उस समय मेरा संपूर्ण शरीर जलने लगता है shiv panchakshar mantra mahima

हे नारद राजा के मुख से यह वचन सुनकर रानी ने हसते हुए उतर दिया हे स्वामी मैं इसका कारण बताती हूं जब मैं छोटी थी तब हमारे घर मे दुर्वासा ऋषि पधारे उन्होंने मुझे पंचाक्षरी मंत्र और अन्य मंत्रों का उपदेश किया जिससे मेरा शरीर निष्पाप हो गया आप अपने राज्य में व्यभिचारिणी मध्यपान करने वाली स्त्रीओ के साथ भोग किया । अपना न तो रोज स्नान कर शिव भक्तों का स्वरूप धारण कर शिव पूजन और शिव पंचाक्षर मंत्र जप नही करते हैं यही के कारण है।

रानी के मुख से यह आश्चर्यजनक बचन सुनकर राजा ने कहा तुम मुझे भी वह मंत्र बता दो जिसका तप करने से संपूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं यथोचित भोग * किए बिना मुझे प्रसन्नता नहीं मिल सकेगी अस्तु मुझे यह सुख प्रदान करने के अतिरिक्त उचित है कि तुम मुझे भी निष्पाप बना देने का पर्यन्त करो यह सुनकर रानी ने उत्तर दिया है राजन मैं आपकी पत्नी पत्नी तथा स्त्री हुई अतः आप को चाहिए के आप अपने पुरोहित गर्ग मुनि से मंत्र दीक्षा ले shiv panchakshar mantra mahima

यह सुनकर राजा अपनी रानी को के साथ गर्ग मुनि के सेवा में पहुंचे और दंडवत करने के उपरांत इस प्रकार प्रार्थना करने लगा हे प्रभु आप मुझे मंत्र का उपदेश दे करें कृतार्थ करे राजा की प्रार्थना सुनकर गर्ग मुनि उन दोनों को साथ लेकर यमुना के तट पर उचित कार्य करने के उपरांत उन्होंने राजा को पंचाक्षरी मंत्र का उपदेश किया shiv panchakshar mantra mahima

हे नारद मंत्र का उपदेश प्राप्त करते ही राजा के मुख संपूर्ण पाप अपने आप निकलने लगे तब राजा ने गर्ग जी से प्रार्थना करते हुए यह पूछा हे प्रभु आप मुझे इस चरित्र का कारन बताइए मेरे मुख से अग्नि क्यों निकली गर्ग जी ने उत्तर दिया है राजन तुम्हें बड़े-बड़े पाप करते हुए सैकड़ों वर्ष व्यतीत हो गए जब तुम्हारा पुण्य और पाप बराबर हुए तब तुमने इस जन्म में मनुष्य शरीर को प्राप्त किया अब शिव जी का मंत्र ग्रहण करने के कारन सभी छोटे बड़े पाप जलते हुए पत्थरों के समान मुख से बाहर निकल पड़े हैं अस्तु अब तुम निष्पाप हो गए हो

हे नारद राजा को यह बताने के उपरान्त गर्ग मुनि ने पंचाक्षरी मंत्र की महिमा वर्णन करते हुए पुणः इस प्रकार बोले हे राजन् यह मंत्र अन्य सभी मंत्रों का सम्राट है तथा शिवजी का परम प्रिय है यह सभी मनोरथ को सिद्ध करने वाला तथा दोनों लोकों के पापों को नष्ट करने वाला है । शिव जी ईस मंत्र मे अक्षर रूप मे विराजमान रहते है
शिव जी एस मंत्र में अक्षर रुप में विराजमान हैं यह मंत्र उनके मुख वचन के समान है और इसमें कोई संदेह नहीं है यह पंचाक्षरी मंत्र का जाप करने से शिव जी की प्राप्ति अवश्य होती है shiv panchakshar mantra mahima

इतनी बता सुनकर ब्रह्मा जी ने कहाहे नारद पंचाक्षरी मंत्र की महिमा का वर्णन कर गर्ग मुनि प्रेम मे मगन हो गए राजा रानी भी आनंद रुपी समुंद्र में डूबने लगे ।जब गर्ग जी की चेतनता प्राप्त हुई वो राजा देखा बोले राजन अब तुम पापों से राहित हो चुके हो अब तू अपनी राजधानी को लौट जाओ वहां पर अपनी पत्नी के साथ अनंद के भोग करो। तब राजा अपने घर लौट आया तदुपरांत जब राजा अपनी रानी के साथ मैथुन किया तो रानी को शरीर चंदन के समान की शीतल प्रतीत हुआ इस कथा को जो मनुष्य सुनता है पड़ता है अथवा दूसरों को सुनाता है उसको अत्यंत कल्याण होता है  shiv panchakshar mantra mahima

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