Lakshmi Sadhna आपार धन प्रदायक लक्ष्मी साधना Ph.8528057364

 

Lakshmi Sadhna आपार धन प्रदायक लक्ष्मी साधना Ph.8528057364 सृष्टि के रचयिता विष्णु की नींव  , जिनकी साधना पूर्ण हो चुकी  है,  जीवन  के दोनों पक्षों की पूर्णता – आध्यात्मिक और भौतिक जीवन।  भगवती लक्ष्मी  ब्रह्मांड के   रचयिता  विष्णु की मूल शक्ति और त्रिगुणात्मक रूप में भगवती महालक्ष्मी के रूप में पूरी दुनिया  के  कारण  पूजनीय  हैं।  आधार है भगवती लक्ष्मी, जो क्षीरसागर से उत्पन्न होकर पूरी दुनिया का पोषण करती हैं, जीवन  में सभी सुख, सौभाग्य, आनंद और पूर्णता  प्रदान करती  हैं।   ऐसी महादेवी हैं, जिनकी पूजा करने के लिए दुनिया का हर व्यक्ति  उत्सुक  रहता है  ।

यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि भगवती लक्ष्मी की पूजा,  पूजा दुनिया के हर देश में की जाती  है, चाहे वह एक अलग नाम से हो, एक अलग रूप में हो। यह कर्म  के  एक अलग तरीके से हो सकता है  , लेकिन लक्ष्मी की आस्था  पूरी दुनिया में है, क्योंकि लक्ष्मी के बिना जीवन का मूल सत्य समाप्त हो जाता है।  जीवन के दो पहलू हैं, आध्यात्मिक और शारीरिक  लक्ष्मी आध्यात्मिक जीवन का आधार भी है, क्योंकि  अध्यात्म जीवित रहे तो मानवता  भी जीवित रहेगी।  लक्ष्मी इसकी जड़ हैं।

 

ठीक इसी प्रकार से सम्पूर्ण भौतिक सम्पदा की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी ही हैं। यह अलग बात है, कि आज विश्व में अधिकांश व्यक्ति आर्थिक समस्याओं से घिरे हैं, जिनके पास भौतिक जीवन में उपयोग आने वाली वस्तुओं का अभाव ही रहता है, पर इसका कारण क्या है, मनुष्य को अपनी अज्ञानता त्याग कर इसके मूल में जाना ही पड़ेगा। यह बात तो निर्विवाद सत्य है, किमात्र परिश्रम से जीवन में पूर्णता और सम्पूर्णता नहीं आ सकती। एक कार्यशील व्यक्ति दिन भर परिश्रम कर शाम को सौ-दो सौ ही कमा सकता है और इतने धन से उसके जीवन के अभाव समाप्त नहीं होते हैं, क्योंकि परिश्रम धन प्राप्ति का केवल एक भाग है।

धन की प्राप्ति तो देवी- कृपा या भगवती महालक्ष्मी की साधना से ही पूर्णतया सम्भव है। परन्तु जो व्यक्ति अहंकार से ग्रसित है, जो व्यक्ति नास्तिक है, जो व्यक्ति देवताओं की साधना को, आराधना को, सिद्धियों को, मंत्रों को नहीं पहचानते या उन पर विश्वास नहीं करते, वे जीवन में बहुत बड़े अभाव पाल-पोस रहे होते हैं, उनके जीवन में सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं होता, निर्धनता उनके चारों ओर मंडराती रहती है, जीवन की समस्याएं उसके सामने मुंह उठाए खड़ी रहती हैं ऐसा व्यक्ति चाहे अपने- आप को कितना ही संतोषी कह कर कर्महीन, भाग्यहीन हो जाता है, पर यह ध्रुव सत्य है कि वह अपने जीवन में उस आनन्द और मधुरता को, उस सम्पूर्णता और वैभव को प्राप्त नहीं कर सकता, जो देवी कृपा या भगवती लक्ष्मी की कृपा से प्राप्त होता है। कुछ व्यक्ति जो जीवन में धन सम्पदा से युक्त होते हैं और वे ये समझ बैठें कि लक्ष्मी तो उनके पास आनी ही है, वे भूल कर रहे हैं।

यह लक्ष्मी तो निश्चय ही उनके द्वारा पूर्व जन्म में किए गए साधना और सुकृत कार्यों से ही प्राप्त हुई है। साधना वह क्रिया है जिसके माध्यम से मनुष्य देवताओं को भी विवश कर सकता है, कि वे सम्पूर्णता से उसके साथ रहें, उसकी सहायता करें, उसके जीवन में जो न्यूनता है वह पूर्ण हो इसीलिए श्रीमद्भगवदगीता में लिखा है, कि देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः । परस्परं भावयन्तः प्रेयः परमवाप्स्यथ ॥ (३,११) हे मनुष्य तुम साधन यज्ञ, पूजन, ध्यान द्वारा देवताओं को उन्नत करो और वे देवता तुम लोगों को उन्नत करें, इस प्रकार से निःस्वार्थ भाव से एक दूसरे को उन्नत करते हुए तुम पूर्णत्व प्राप्त कर सकोगे

प्रत्येक व्यक्ति वह चाहे गृहस्थ जीवन में हो, भौतिक जीवन में हो, संन्यासी हो, योगी हो, चाहे हिमालय में विचरण करने वाला हो, लक्ष्मी की कृपा का अवलम्बन तो उसको लेना ही पड़ता है। जो व्यक्ति इस कटु सत्य को समझ लेता है, जो इस बात को समझ लेता है, कि जीवन का आधारभूत सत्य भौतिक सम्पदा के माध्यम से ही जीवन में पूर्णता और निश्चिन्तता आ सकती है, वह लक्ष्मी की आराधना, लक्ष्मी का अर्चन और लक्ष्मी की कृपा का अभिलाषी जरूर होता है।

 मैं यह नहीं कहता, कि कुंकुंम, अक्षत् से पूजा की जाए: मैं यह भी नहीं कहता, कि आरती उतारी जाए. . ये तो पूजा के प्रकार हैं। साधना तो इससे बहुत ऊंचाई पर है, जहां मंत्र जप के माध्यम से हम देवताओं को भी इस बात के लिए विवश कर देते हैं, कि वे अपनी सम्पूर्णता के साथ व्यक्ति के साथ रहें, उसकी सहायता करें, उसके जीवन के जो अभाव हैं, जो परेशानियां हैं, जो अड़चनें हैं, जो बाधाएं हैं उन्हें दूर करें, जिससे उसका जीवन ज्यादा सुखमय, ज्यादा मधुर, ज्यादा आनन्ददायक हो सके।

इसमें कोई दो राय नहीं, कि जीवन में महाकाली और सरस्वती की साधना भी जरूरी है, क्योंकि काली की साधना से जहां जीवन निष्कंटक और शत्रु रहित बनता है, वहीं महा सरस्वती साधना के माध्यम से उसे बोलने की शक्ति प्राप्त होती है, उसका व्यक्तित्व निखरता है, वह समाज में सम्माननीय और पूजनीय बनता है। मगर यह सब तब हो सकता है, जब धन का आधार हो- बस्वास्ति वित्तं नरः कुलीन, सः पण्डितः स श्रुतवान् गुणज्ञः । स एवं वक्ता स च दर्शनीयः, सर्व गुणाः मावन्ते ॥

‘भृर्तहरी ‘ चाहे हम रुद्र की साधना करें और चाहे हम ब्रह्मा की साधना करें, चाहे हम  इन्द्र, मरुद्गण, यम या कुबेर की साधना करें, किन्तु वैभव और धन की अधिष्ठात्री देवी तो भगवती लक्ष्मी ही हैं, मात्र लक्ष्मी की साधना के माध्यम से ही व्यक्ति अपने अभावों को दूर कर सकता है। ६६ जिसके पास लक्ष्मी की कृपा है ‘यस्यास्ति वित्तं समाज उसको समझदार समझता है, प्रतिष्ठित समझता है, ऊंचे खानदान का समझता है, उसे पण्डित कहते हैं, उसे गुणज्ञ कहते हैं. लोग उससे सलाह लेते हैं, उसके पास बैठते हैं, उससे मित्रता करने का प्रयत्न करते हैं।

जिसके पास लक्ष्मी की कृपा होती है, वह अपने आप अच्छा वक्ता बन जाता है सः एव बक्ता, स च माननीयः….. समाज में लोग उसका सम्मान करते हैं, उसके पास बैठने, उससे मित्रता करने को प्रयत्नशील होते हैं। मृर्तहरी ऋषि कह रहे हैं- ‘सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ते’ ये सब गुण मनुष्य के नहीं है, ये तो भगवती लक्ष्मी की कृपा के गुण हैं, जो साधक को प्राप्त हैं। प्रश्न उठता है, कि क्या प्रत्येक मनुष्य के लिए लक्ष्मी की साधना आवश्यक है? हमारे जीवन में अन्न की नितांत आवश्यकता है, जल की नितांत आवश्यकता है, प्राणवायु लेने की नितांत आवश्यकता है, किन्तु केवल इन तीनों से मनुष्य जीवन सुमधुर नहीं बन सकता है, जीवन में श्रेष्ठता प्राप्त करने के लिए लक्ष्मी की साधना भी नितान्त आवश्यक है। जो इस सत्य को नहीं समझ सकते, वे जीवन में कुछ भी नहीं समझ सकते।

जो व्यक्ति जितना जल्दी इस तथ्य को समझ लेता है, वह इस बात को भी समझ लेता है, किजीवन में पूर्णता प्राप्त करने के लिए लक्ष्मी की आराधना, लक्ष्मी का सहयोग आवश्यक है और ऐसा ही व्यक्ति जीवन में सही अर्थों में पूर्णता की ओर अग्रसर हो सकता है। यह जरूरी नहीं है, कि कोई योगी, साधु, संन्यासी या साधक ही लक्ष्मी की साधना करे, लक्ष्मी की साधना तो कोई भी कर सकता है, चाहे पुरुष हो, चाहे स्त्री हो, चाहे बालक हो, चाहे वृद्ध हो, चाहे अमीर हो, चाहे गरीब हो कोई भी लक्ष्मी की साधना से ही जीवन में पूर्णता, सौभाग्य, सुख और सम्पन्नता प्राप्त कर सकता है।

चाहे हम रूद्र की साधना करें और चाहे हम ब्रह्मा की साधना करें, चाहे हम इन्द्र, मरुद्गण, यम और कुबेर की साधना करें, किन्तु वैभव और धन की अधिष्ठात्री देवी तो भगवती लक्ष्मी ही हैं, मात्र लक्ष्मी की साधना के माध्यम से ही व्यक्ति अपने अभावों को दूर कर सकता है, पूर्वनों की गरीबी और निर्धनता को अपने जीवन से हटा सकता है, नीवनको आनन्ददायक बना सकता है, सम्पन्नता और वैभव का योग कर सकता है… और यदि लक्ष्मी की कृपा हो गई, तो वह सुकृत कार्य कर सकता है, मंदिर, धर्मशाला, तालाब, अस्पताल का करा सकता है और समाज सेवा के माध्यम से हजारों-लाखों लोगों का कल्याण कर सकता है।

भगवती लक्ष्मी की साधना से नहां व्यक्ति स्वयं अपने जीवन को श्रेष्ठ बना कर पूर्णता प्राप्त कर सकता है, वहीं समाज के बहुत बड़े वर्ग को सुख और सौभाग्य, आनन्द और मधुरता प्रदान करने का माध्यम बन सकता है। मनुष्य जीवन में लक्ष्मी की कौन सी विशेष साधनाएं करे, जिससे उसके जीवन में लक्ष्मी का वास हो सके और दरिद्रता रूपी मैल को बाहर निकाल कर जीवन कान्तिमय बना सके, इसी क्रम में कुछ लघु प्रयोग दिए जा रहे हैं, जिनके बारे में आप कह सकते हैं देखन में छोटे लगें, पर कार्य करें गम्भीर’-

 

शत अष्टोत्तरी महालक्ष्मी यंत्रः विशेष नियम साधना प्रारम्भ करने से पूर्व लक्ष्मी से सम्बन्धित कुछ विशिष्ट तथ्य जान लेने चाहिए-

१. महालक्ष्मी की साधना, मंत्र जप अथवा अनुष्ठान को अथवा किसी भी मास के शुक्ल पक्ष के किसी बुधवार से प्रारम्भ करें, तो ज्यादा उचित रहता है।

२. साधना प्रारम्भ करने से पूर्व यदि व्यक्ति महालक्ष्मी ‘दीक्षा’ प्राप्त कर ले, तो सफलता निश्चित हो प्राप्त होती है।

३. किसी भी प्रकार की भगवती महालक्ष्मी से सम्बन्धित साधना सम्पन्न करने के लिए ‘शत अष्टोत्तरी महालक्ष्मी यंत्र’ को स्थापित करने और उसके सामने साधना, उपासना या अनुष्ठान सम्पन्न करने से निश्चय ही सफलता प्राप्त होती है, क्योंकि यह यंत्र अपने आप में अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है, इसमें सहस्र लक्ष्मियों की स्थापना और उनका कीलन होता है, जिससे कि साधक के घर में स्थायित्व प्रदान करती हुई लक्ष्मी स्थापित होती है। यहां दिए तीन प्रयोगों की सामग्रियां इसी पद्धति से निर्मित हैं।

४. साधक साधना में कमल या गुलाब के पुष्प का प्रयोग पूजन के समय अवश्य करें।

५. ‘कमलगट्टे की माला से मंत्र जप करना ही ज्यादा उचित माना गया है।

६. इस प्रकार की साधना व्यक्ति अपने घर में या व्यापार स्थान में अकेले या पत्नी के साथ सम्पन्न कर सकता है। लक्ष्मी से सम्बन्धित तीन प्रयोग जो ऊपर वर्णित शत अष्टोत्तरी यंत्र पर ही आधारित है, स्पष्ट किए जा रहे हैं-


 

१. शीघ्र धन प्राप्ति प्रयोग यह प्रयोग तांत्रोक्त नारियल पर आधारित है धनदायक प्रयोग है। लाल रंग के वस्व पर तांत्रोक्त नारियल’ के साथशतष्टोत्तरी महालक्ष्मी महायंत्र स्थापित करें, उसका संक्षिप्त पूजन कर निम्न ‘5 या देवि सर्वभूतेषु महालक्ष्मी रूपेण संस्थिता || मंत्र का जप कमल गट्टे की माला से ५ (पांच) माला करें-ॐ ह्रीं श्रीं ऐश्वर्य महालक्ष्मी आजच्छ ॐ नमः ॥ Om Hreem Shreem Eishvarya Mahaalakshmi Aangachchh Om Namah मंत्र जप समाप्त कर अगले दिन समस्त सामग्री नदी में विसर्जित कर दें।

२. मनोरथ पूर्ति प्रयोग ‘ऐश्वर्य महालक्ष्मी’ पर आधारित यह प्रयोग मनोरथ पूर्ति में सहायक है। साधक स्नानादि से निवृत्त होकर पीले वस्त्र धारण करें और किसी पात्र में ‘श्रीं’ बीज मंत्र कुंकुंम से लिखें, उस पर एक पुष्प रखें तथा पुष्प पर “शत अष्टोत्तरी महालक्ष्मी यंत्र स्थापित करें, गुरु का ध्यान कर निम्न मंत्र का ‘कमलगट्टे की 5 माला से ११ (ग्यारह) माला जप करें- ॥ ॐ श्रीं वांछितं साधय ऐश्वर्च देहि ही महालक्षम् ॐ नमः ॥ Om Shreem Vaanchhitam Saadhay Eishvaryam Dehi Hreem Mahaalakabmyei Om Namah जप समाप्त कर एक दिन बाद समस्त सामग्री को किसी नदी में विसर्जित करें। 

३. आकस्मिक धन लाभ प्रयोग यह प्रयोग आकस्मिकधन लाभ का प्रयोग है, जिसे कोई भी व्यक्ति सम्पन्न कर सकता है। किसी पात्र में “शत अष्टोत्तरी महालक्ष्मी  यंत्र स्थापित करें। अन, कुंकुम तथा पुष्प अर्पित कर यंत्र का पूजन करें। इस साधना में कमल गट्टे की माला की जगह प्रत्येक मंत्र का उच्चारण करते समय ‘कमल गट्टे के बीज’ यंत्र पर अर्पित करें। इस तरह मंत्र का उच्चारण करते हुए १०८ बीज अर्पित करते हैं। ॥ ॐ ह्रीं ह्रीं धनं देहि दापय ॐ नमः ॥ Om Hreem Hreem Dhanam Dehl Daapay Om Namah प्रयोग के बाद यंत्र को लाल वस्त्र में लपेटकर पूजन स्थान में रख दें तथा कमल गट्टे के बीजों को नदी में प्रवाहित कर दें। इस यंत्र पर आप पांच बार ही प्रयोग सम्पन्न कर सकते हैं, किन्तु यह ध्यान रखें कि मंत्र जप के लिए हर बार नए कमल गट्टे के बीज लेने होंगे जो ‘श्री सूक्त के द्वारा चैतन्य किए गए हो। उसके पश्चात यंत्र नदी में विसर्जित कर दें। 

इन तीनों प्रयोगों को आप एक ही दिन में प्रातः, मध्यात, सायं अथवा रात्रि अलग-अलग समय में भी सम्पन्न कर सकते हैं या किसी भी एक प्रयोग के बाद दस पन्द्रह मिनट का अन्तराल देकर दूसरे प्रयोग को प्रारम्भ कर सकते हैं। इन तीनों प्रयोगों के लिए निर्धारित दिवस है  या किसी भी शुक्ल पक्ष का बुधवार।