Saturday, July 12, 2025
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मणिपूर चक्र सम्पूर्ण जानकारी और रहस्य Manipura Chakra ph. 85280 57364 

मणिपूर चक्र सम्पूर्ण जानकारी और रहस्य Manipura Chakra ph. 85280 57364 

मणिपूर चक्र सम्पूर्ण जानकारी और रहस्य Manipura Chakra ph. 85280 57364 
मणिपूर चक्र सम्पूर्ण जानकारी और रहस्य Manipura Chakra ph. 85280 57364

मणिपूर चक्र सम्पूर्ण जानकारी और रहस्य Manipura Chakra ph. 85280 57364 मणिपूरक चक्र इसे मणिपुर चक्र भी कहा गया है। यह भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। नाभि मूल में इसका स्थान है। अतः पवन संस्थान व शौर्य संस्थान से इसका सीधा सम्बन्ध है। व्यक्ति के अहं, प्रभुत्व व धाक जमाने की भावना, नाम कमाने की इच्छा, सर्वश्रेष्ठ बनने की ललक तथा शक्ति अर्जन के प्रयास इसी चक्र के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं। ऊपर मणिपूरक चक्र इसके अलावा संघर्ष, प्रायश्चित्त, नि:स्वार्थ सेवा, धर्म, सत्संग या कुसंग (संगति), निष्ठा, दृढ़ता आदि भी इसी चक्र से प्रभावित होते हैं। संगति का अर्थ है-संग-संग 33या साथ-साथ गति करना।

  • मणिपुर चक्र Manipura Chakra  के देवता
  • मणिपुर चक्र Manipura Chakra का मंत्र 
  • मणिपुर चक्र Manipura Chakra साधना
  • मणिपुर चक्र Manipura Chakra विचार
  • मणिपुर चक्र  Manipura Chakra में किस तत्व वास है 
 

अत: संगति सदैव संतुलन उत्पन्न करने वाली होती है। यह विषमता को समाप्त कर समता को उत्पन्न करती है। अत: कर्म व धर्म में संतुलन उत्पन्न करना इसी चक्र के प्रताप से सम्भव होता है। प्रकृति व धर्म का संतुलन जब स्वभाव व कर्म से हो जाता है, तो साधक नैसर्गिक लोक में पदार्पण कर सकता है। अतः मणिपूरक चक्र अध्यात्म का प्रवेश द्वार कहा जा सकता है। नाभि शरीर का केन्द्र है। गर्भावस्था में नाभि द्वारा ही शिशु का पोषण व विकास होता है। नाभि से ही भ्रूण विकसित होता है। गुरुत्वाकर्षण बल के प्रति संतुलन बनाने का कार्य नाभि ही करती है। आघात पहुंचने या असंतुलित हो जाने से नाभि उतर जाती है। ऊपरी शरीर व निचले शरीर का संतुलन नाभि पर ही रहता है।

रॉकेट को जिस प्रकार अंतरिक्ष में जाते समय गुरुत्वाकर्षण सीमा का अतिक्रमण करते समय विशिष्ट बल की आवश्यकता पड़ती है, उसी प्रकार कुण्डलिनी शक्ति को भी ऊपरी चक्रों पर जाने के लिए मणिपूरक चक्र का बेधन करने में विशेष बल लगाना पड़ता है। (इस विषय में आगे विस्तार से पढ़ेंगे)। इसलिए इसे आध्यात्मिक प्रवेश द्वार कहा गया है, इसीलिए नाभि में अमृतकुंड होना भी कहा जाता है। इसके अलावा योग में अत्यंत महत्त्वपूर्ण रुद्रग्रंथि का निवास भी यहीं है (चक्र प्रकरण के बाद इसकी चर्चा होगी)। अतः यह निर्विवाद सिद्ध होता है कि संगति या संतुलन नाभि में ही स्थित होने से मणिपूरक चक्र के प्रभाव में आता है। मणिपूरक चक्र से प्रभावित मनुष्य रात्रि में 6 से 8 घंटे सोने वाला होता है।

 

इस चक्र में ध्यान लगाने से स्वास्थ्य व दीर्घायु की प्राप्ति होती है, अपने शरीर व ग्रन्थियों का भौतिक ज्ञान होता है तथा पाचन सम्बन्धी दोषों व विकारों का निवारण होता है तथा साधक में तेज उत्पन्न होता है। क्योंकि ‘अग्नि’ तत्त्व का यह चक्र प्रतिनिधित्व करता है। पंचमहाभूतों में ‘अग्नि’ का मुख्य आधार होने के कारण मणिपूर चक्र की ज्ञानेन्द्रिय नेत्र व कर्मेन्द्रिय पैर हैं। रूप या तेज इसका प्रधान गुण या ज्ञान है, जो अग्नितत्त्व की तन्मात्रा है।

खान-पान के रस को पूरे शरीर में समान रूप से वितरित करने वाला समान वायु है, जिसका इस चक्र में मुख्य निवास है। यह चक्र त्रिकोणाकार है। जो रक्तवर्ण का है। नीले हरे रंग से प्रकाशित दस कमलदलों (पंखुड़ियों) से यह घिरा हुआ है। इन पंखुड़ियों पर डं, ढं, णं, तं, थं, दं, धं, नं, पं, वं, फं वर्ण (अक्षर) हैं जो इस चक्र की कमल दल ध्वनियों के सूचक हैं। इसकी बीज ध्वनि ‘रं’ हैं, क्योंकि ‘रं’ इसका तत्त्व बीज है। इस चक्र की बीज गति मेष/मेढ़े के समान उछलकर चलने की है अत: मेढ़ा इस चक्र का बीज वाहन है। (अग्नि का वाहन भी मेढ़ा कहा गया है और अग्नि का बीज मंत्र भी ‘रं’ ही होता है)। अग्नि तत्त्व और समानवायु का यह मुख्य स्थान है। इस चक्र का लोक स्वः है। इसका यन्त्ररूप अधोमुखी त्रिकोण है, जो लाल रंग का है। इसका बीज वर्ण स्वर्णिम रक्त है।

इस चक्र के अधिपति देवता रुद्र शिव हैं, जो अपनी चर्तुभुजा शक्ति ‘लाकिनी’ के साथ हैं। इस चक्र पर ध्यान लगाते समय प्रयुक्त होने वाली कर मुद्रा में मध्यमा उंगली व अंगूठे के सिरों को परस्पर दबाया जाता है। मध्यमा व अंगूठे के सिरों को दबाने से शरीर में उष्मा उत्पन्न होती है। इसके बीज मंत्र ‘रं’ की यदि शुद्धोच्चारण के साथ बारम्बार पुनरावृत्ति की जाती है तो उस ध्वनि की तरंगों के प्रभाव से रस को आत्मसात् करने की शक्ति व पाचन शक्ति बढ़ती है क्योंकि इससे जठराग्नि प्रदीप्त होती है। इसके अलावा ऊर्जा भी बढ़ती है जो आयु व सामर्थ्य को बढ़ाती है। प्रायः मणिपूरक चक्र से प्रभावित व्यक्ति क्रोधी होते हैं क्योंकि अग्नि का स्वभाव ही ऊष्ण है।

यही कारण है कि कई स्थानों पर इसे ‘सूर्य चक्र’ भी कहा गया है। इस चक्र का बीज वाहन मेढ़ा सर्वथा उपयुक्त है। क्योंकि मेढ़ा स्वाभिमानी, बलवान, अहं में चूर और रणोन्मत्त होता है। यह उछलकर सीधा सिर से आक्रमण करता है और मेढ़ा अग्नि का वाहन भी है। जोश और अहं मेढ़े में शक्ति के साथ मौजूद होता है। यद्यपि यही गुण वृषभ या सांड में भी है, किन्तु उसमें वह फुर्ती और उछलकर चलने/लड़ने का स्वभाव नहीं है जो इस चक्र की बीजगति को इंगित कर सके अत: इसका बीज-वाहन मेढ़ा सर्वथा उचित ही है। प्रायः अग्नि का सूचक लाल रंग माना गया है। यहां मणिपूरक चक्र के कमल दलों का रंग नीला कहा गया है। (यद्यपि यन्त्र रूप त्रिकोण लाल रंग वाला ही है।)

यहां पाठकों को एक विरोधाभास प्रतीत हो सकता है, क्योंकि नीला व लाल परस्पर विरोधी रंग हैं और अग्नि का पर्याय मुख्यतः लाल रंग माना गया है। अतः पाठकों को यह स्पष्ट करना ज़रूरी समझता हूं कि अग्नि का रंग वास्तव में नीला है। कभी भी अग्नि को ध्यान से देखें (माचिस या मोमबत्ती की लौ को ही सही), मध्य में नीला फिर काला सा सिलेटी, फिर लाल, संतरी और पीला रंग क्रमश: बाहर की ओर दिखाई देते हैं।

यह रंग भेद अग्नि की जिह्वाओं तथा उसकी ऊष्णता के स्तर को ही दिखाते हैं। जैसा कि पुराणों व उपनिषदों में अग्नि की सात जिह्वाओं/लपटों का वर्णन भी है- काली कराली च मनोजवा च सुलोहिता या च सधूम्रवर्णा। स्फुलिंगिनी विश्वरुचि च देवी लेलायमाना इति सप्त जिह्वा ॥ –(मुण्डकोपनिषद्) अर्थात्-काली, कराली, मनोजवा, सुलोहिता, धूम्रवर्णा, स्फुलिंगिनी एवं विश्वरुचि-अग्निदेव की ये 7 जिह्वाएं हैं। इससे सिद्ध होता है कि अग्नि का लाल रंग उसकी सुलोहिता नामक जिह्वा और स्लेटी काला रंग उसकी धूम्रवर्णा नाम की जिह्वा के कारण है। पीला रंग तो तेज, ऊष्णता व प्रकाश के कारण है किन्तु अग्नि का रंग वैसे नीला ही है क्योंकि मूल में सदा नीली आभा विद्यमान रहती है।

यहां पाठक सूर्य और शुक्र के सम्बन्ध में वैज्ञानिक अन्वेषणों के निष्कर्ष भी देखें। सूर्य लाल है जो तीव्र प्रकाश की अवस्था में पीला मालूम होता है। जबकि शुक्र का रंग नीला है। वैज्ञानिक अन्वेषणों के आधार पर हम जानते हैं कि शुक्र सूर्य. से कई हज़ार गुना अधिक गरम है और वैज्ञानिकों ने उसके धरातल की भीषण व प्रचण्ड गरमी के आधार पर उसे ‘जीता जागता नरक’ कहा है। (इस विशेषता के आधार पर इस तथ्य को भी कसिए कि शुक्र को दानवों का गुरु कहा गया है।) मणिपूरक चक्र की विशेष साधना-निर्मोहता, शांति, वैराग्य, समता, तन्मयता, आनन्द, धृति, निश्चलता तथा उदासीनता (न्यूट्रल होना/निर्लिप्त होना) को बढ़ाने वाली कही गई है। मणिपूर चक्र का सम्बन्धित लोक ‘स्वः’ यानि स्वर्गलोक है जो अन्य ऊपर के लोकों में सबसे निचला है अतः इसको आध्यात्मिक प्रवेशद्वार कहना ठीक ही है।

 

मणिपुर चक्र Manipura Chakra  के देवता

स चक्र के अधिपति देवता रुद्र शिव हैं, जो अपनी चर्तुभुजा शक्ति ‘लाकिनी’ के साथ हैं। इस चक्र पर ध्यान लगाते समय प्रयुक्त होने वाली कर मुद्रा में मध्यमा उंगली व अंगूठे के सिरों को परस्पर दबाया जाता है। मध्यमा व अंगूठे के सिरों को दबाने से शरीर में उष्मा उत्पन्न होती है।

मणिपुर चक्र Manipura Chakra विचार

इस चक्र में ध्यान लगाने से स्वास्थ्य व दीर्घायु की प्राप्ति होती है, अपने शरीर व ग्रन्थियों का भौतिक ज्ञान होता है तथा पाचन सम्बन्धी दोषों व विकारों का निवारण होता है तथा साधक में तेज उत्पन्न होता है। क्योंकि ‘अग्नि’ तत्त्व का यह चक्र प्रतिनिधित्व करता है। पंचमहाभूतों में ‘अग्नि’ का मुख्य आधार होने के कारण मणिपूर चक्र की ज्ञानेन्द्रिय नेत्र व कर्मेन्द्रिय पैर हैं। रूप या तेज इसका प्रधान गुण या ज्ञान है, जो अग्नितत्त्व की तन्मात्रा है।
 

मणिपुर चक्र  Manipura Chakra में किस तत्व वास है 

इस चक्र में ध्यान लगाने से स्वास्थ्य व दीर्घायु की प्राप्ति होती है, अपने शरीर व ग्रन्थियों का भौतिक ज्ञान होता है तथा पाचन सम्बन्धी दोषों व विकारों का निवारण होता है तथा साधक में तेज उत्पन्न होता है। क्योंकि ‘अग्नि’ तत्त्व का यह चक्र प्रतिनिधित्व करता है। पंचमहाभूतों में ‘अग्नि’ का मुख्य आधार होने के कारण मणिपूर चक्र की ज्ञानेन्द्रिय नेत्र व कर्मेन्द्रिय पैर हैं। रूप या तेज इसका प्रधान गुण या ज्ञान है, जो अग्नितत्त्व की तन्मात्रा है।

मणिपुर चक्र Manipura Chakra का मंत्र 

इसके बीज मंत्र ‘रं’ की यदि शुद्धोच्चारण के साथ बारम्बार पुनरावृत्ति की जाती है तो उस ध्वनि की तरंगों के प्रभाव से रस को आत्मसात् करने की शक्ति व पाचन शक्ति बढ़ती है क्योंकि इससे जठराग्नि प्रदीप्त होती है। इसके अलावा ऊर्जा भी बढ़ती है जो आयु व सामर्थ्य को बढ़ाती है। प्रायः मणिपूरक चक्र से प्रभावित व्यक्ति क्रोधी होते हैं क्योंकि अग्नि का स्वभाव ही ऊष्ण है।

मणिपुर चक्र Manipura Chakra के लाभ

इस चक्र में ध्यान लगाने से स्वास्थ्य व दीर्घायु की प्राप्ति होती है, अपने शरीर व ग्रन्थियों का भौतिक ज्ञान होता है तथा पाचन सम्बन्धी दोषों व विकारों का निवारण होता है तथा साधक में तेज उत्पन्न होता है।

मणिपुर चक्र Manipura Chakra का रंग

मणिपूरक चक्र के कमल दलों का रंग नीला कहा गया है। (यद्यपि यन्त्र रूप त्रिकोण लाल रंग वाला ही है।)
यहां पाठकों को एक विरोधाभास प्रतीत हो सकता है, क्योंकि नीला व लाल परस्पर विरोधी रंग हैं और अग्नि का पर्याय मुख्यतः लाल रंग माना गया है। अतः पाठकों को यह स्पष्ट करना ज़रूरी समझता हूं कि अग्नि का रंग वास्तव में नीला है। कभी भी अग्नि को ध्यान से देखें (माचिस या मोमबत्ती की लौ को ही सही), मध्य में नीला फिर काला सा सिलेटी, फिर लाल, संतरी और पीला रंग क्रमश: बाहर की ओर दिखाई देते हैं।

Rodhar nath
Rodhar nathhttp://gurumantrasadhna.com
My name is Rudra Nath, I am a Nath Yogi, I have done deep research on Tantra. I have learned this knowledge by living near saints and experienced people. None of my knowledge is bookish, I have learned it by experiencing myself. I have benefited from that knowledge in my life, I want this knowledge to reach the masses.
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