Bajrang Baan बजरंग बाण Bajrang Baan पाठ की साधना ph.85280 57364
Bajrang Baan बजरंग बाण Bajrang Baan पाठ की साधना बजरंग बली श्री हनुमान की कृपा से सभी जन कभी न कभी परेशान होते ही हैं। श्री हनुमान अपने भक्तपर,अपने साधक पर जितनी सरलता से कृपा दृष्टि करते हैं, उतनी ही सरल है उनकी साधना विधि भी कोई भी साधक सिर्फ हनुमान पाठ कर ले अथवा यर्दि थोड़ा ज्यादा कठिनाई का समय आए, तो बजरंगबाण का नियमानुसार पाठ करे, तो शीघ्र ही समस्या का समाधान प्राप्त होने लगता है।
यादि बजरंग बाण Bajrang Baan Bajrang Baan का नियमानुसार जप किया जाए और प्रद्धापूर्वक बजरंग बली की उपासना की जाए, तो मन को शांति तो प्राप्त होती बा है, इन्द्र इच्छा शक्ति भी अप्रत्याशित गति से बढ़ती है, और दृढ़ इच्छा शक्ति से कठिनतम् कार्य भी आसान हो जाते हैं, यह मेरा अटल विश्वास है, क्योंकि इससे मैंने अनेक लोगों को लाभ प्राप्त करते देखा है। सर्व प्रथम बजरंगबाण Bajrang Baan की विधि व सम्बन्धित जप प्रस्तुत है तथा इसके बाद बजरंग बाण Bajrang Baan दिया जा रहा है। –
- Bajrang Baan बजरंग बाण Bajrang Baan पाठ की साधना
- बजरंग बाण Bajrang Baan के चमत्कार और बजरंग बाण Bajrang Baan पाठ के लाभ
- बजरंग बाण Bajrang Baan मंत्र
- हनुमान चालीसा
- बजरंग बाण Bajrang Baan हिंदी में विस्तार से अर्थ सहित
- बजरंग बाण Bajrang Baan पीडीएफ
- बजरंग बाण Bajrang Baan हिंदी में विस्तार से अर्थ सहित
Bajrang Baan बजरंग बाण Bajrang Baan साधना विधि
Bajrang Baan बजरंग बाण Bajrang Baan साधना विधि – अपने पूजा कक्ष में हनुमानजी की मूर्ति अथवा चित्ररखें फिर स्नान के बाद चंदन, पुश्य, धूप अगरबती, नैवेद्य आदि से मेरा अनुभव तो या कहता है, कि तीन दिनों पश्चात् टी पूजन करें, इसके बाद श्री हनुमानजी को श्रद्धापूर्वक प्रणाम करते ऐसा लगने लगता है, मानों अन्तर्मन में अद्भुत शक्ति का सञ्चार हुए
निम्न स्तुति करें- होने लगा है। द इच्छा शक्ति बढ़ने लगती है। अतुलित बलधामं हेम शेलार दे। दसवें न्यारहवें दिन से भय, शोक जैसी मन: स्थितियां बबुजवन कृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।। समान होने लगती है, गन सेवा भाव और आनन्नातिरेक से सकल गुण निधानं वानराणामधीशं। उल्लसित रहने लगता है रघुपति प्रिय मतं वात पार नमामि ।।
अद्धापूर्वक विश्वास के साथ कोई भी व्यक्ति इसे अपने इसके बाद उपर्युक बजरंग बाण Bajrang Baan का प्रेम पूर्वक पाठ करें उपयोग में ला सकता है। अन्त में एक बात और स्पष्ट कर देना प्रतिदिन एक ही बार पाठ करना पर्याप्त है, आप मै जितनी अधिक चाहता, स्त्रियां भी इसका प्रयोग कर सकती हैं, केवलरजस्वला प्रजा होगी, उतनी ही जल्दी लाभ भी नजर आयेगा। काल में और सनक काल में उनके लिश्यह वर्जित है। बजरंग बाण Bajrang Baan पीडीएफ
हनुमान की भांति सर्वत्र विजय प्रदान करने वाला हनुमत प्रयोग हनुमान का एक बंदर की तरह मुंह है, एक पूंछ है, यह मात्र एक कल्पना है। ‘वानर एक जाति थी उस समय, जिस प्रकार से हमारी जाह्मण जाति है, क्षत्रिय जाति है. वैश्य जाति है, इसी प्रकार से बानर जाति थी | यह तो हमने बानर का तात्पर्य बंदर समझ लिया और पूंछ पीछे लगा दी. जबकि न तो उनके पूंछ थी और न ही कोई पूंछ की भावना बी |
महाभारत युद्ध में अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा- मैं विजयी होना चाहता हूं, मैं क्या का? श्रीकृष्ण ने कहा-ध्वजा पर हनुमान का स्थापन कर दो। उस समय कृष्ण एक ही लाइन बोलते हैं, कि अगर तुम्हें विजय प्राप्त करनी है. तो ध्वजा पर हनुमान का स्थापन कर दो, जिससे कि प्रत्येक क्षण मान तुम्हारी आँखों के सामने रहें। और शास्त्र साक्षी है, कि हनुमान को कभी असफलता का मुंह नहीं देखना पड़ा।
सौ योजन के समुद्र को छलांग लगाते समय यह नहीं सोचा, कि समुद्र में जब जाउंगा या बगा। माता सीना को खोजने लंका अकेले पहुंच गए, और पूंछ में आग लगाकर लंका दान की, नब भी उन्हें अपनी जान का खतरा नहीं लगा। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि प्रत्येक क्षण उनके हृदय में अपने गुरु की छवि, ग़म की छवि बनी ही रहती थी, एक भीक्षण के लिए अपने प्रभु की छवि उनके हृदय से अलग होती ही नहीं थी और यही उनकी बिजय का रहस्य भी था |
हनुमान की भांति ही जीका में सर्वत्र विजय प्राप्ति के लिए, चाहे बहशत्रुओ पर हो या रोगों परया अभावों पर, निम्न मंत्र का एक महीने तक ‘बजरंगयंत्र के समक्ष लाल हकीक माला से नित्यएकमाला सम्पन्न करने सेइच्छा की पूर्ति होती है ॥ नमो हनुमते रुद्रावताराब सर्वशत्रुसंडारणाय सर्वरोषहराव सर्ववशीकरणाय समवृतरथ स्वाहा ।। प्राचीन बजरंग बाण Bajrang Baan link
बजरंग बाण Bajrang Baan के चमत्कार और बजरंग बाण Bajrang Baan पाठ के लाभ
बजरंग बाण Bajrang Baan के चमत्कार यह एक बहुत ही सुंदर पृष्ठ है। संत शिरोमणि तुलसीदास जी द्वारा रचित बजरंग बाण Bajrang Baan बहुत शक्तिशाली, दिव्य और अदम्य है। महात्मा तुलसीदास जी ने अपने जीवन में मंगलमूर्ति हनुमान जी का कई बार साक्षात्कार करने वाले पवन सुत के गुणों का वर्णन करते हुए इस प्रभावशाली बजरंग बाण Bajrang Baan की अद्भुत चमत्कारी रचना की है।यह एक ऐसा दिव्य मंत्र है जिसमें महाबली शक्ति हनुमान जी की सिद्धि संकटों पर सटीक लक्ष्य लेती है, संकट दूर होते हैं।
इस बजरंग बाण Bajrang Baan के हर शब्द में अद्वितीय शक्ति निहित है। मनोविज्ञान के सिद्धांत के अनुसार मनुष्य जिन विचारों को बार-बार पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ दोहराता है, वह उसकी आदत और स्वभाव हमेशा के लिए बन जाता है। बजरंग बाण Bajrang Baan में पूर्ण श्रद्धा रखने और श्रद्धापूर्वक उसे बार-बार दोहराने से हनुमान जी की शक्तियां हमारे मन में जमा होने लगती हैं। इससे कम समय में ही सारे संकट दूर हो जाते हैं। बजरंग बाण Bajrang Baan हिंदी में विस्तार से अर्थ सहित
बजरंग बाण Bajrang Baan मंत्र
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीसा।। सत्य होहु हरि सत्य पाय कै। राम दुत धरू मारू धाई कै।।
हनुमान चालीसा बजरंग बाण Bajrang Baan हनुमान अष्टक
हनुमान चालीसा
हनुमान बजरंग बाण Bajrang Baan (Hanuman Bajrang Baan)
दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।
चौपाई
जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा।।
बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा।।
अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई। जै जै धुनि सुर पुर में भई।।
अब विलंब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होई दुख करहु निपाता।।
जै गिरधर जै जै सुख सागर। सुर समूह समरथ भट नागर।।
ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले। वैरहिं मारू बज्र सम कीलै।।
गदा बज्र तै बैरिहीं मारौ। महाराज निज दास उबारों।।
सुनि हंकार हुंकार दै धावो। बज्र गदा हनि विलम्ब न लावो।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीसा।।
सत्य होहु हरि सत्य पाय कै। राम दुत धरू मारू धाई कै।।
जै हनुमन्त अनन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत है दास तुम्हारा।।
वन उपवन जल-थल गृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।
पाँय परौं कर जोरि मनावौं। अपने काज लागि गुण गावौं।।
जै अंजनी कुमार बलवन्ता। शंकर स्वयं वीर हनुमंता।।
बदन कराल दनुज कुल घालक। भूत पिशाच प्रेत उर शालक।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल वीर मारी मर।।
इन्हहिं मारू, तोंहि शमथ रामकी। राखु नाथ मर्याद नाम की।।
जनक सुता पति दास कहाओ। ताकी शपथ विलम्ब न लाओ।।
जय जय जय ध्वनि होत अकाशा। सुमिरत होत सुसह दुःख नाशा।।
उठु-उठु चल तोहि राम दुहाई। पाँय परौं कर जोरि मनाई।।
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता।।
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।।
अपने जन को कस न उबारौ। सुमिरत होत आनन्द हमारौ।।
ताते विनती करौं पुकारी। हरहु सकल दुःख विपति हमारी।।
ऐसौ बल प्रभाव प्रभु तोरा। कस न हरहु दुःख संकट मोरा।।
हे बजरंग, बाण सम धावौ। मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ।।
हे कपिराज काज कब ऐहौ। अवसर चूकि अन्त पछतैहौ।।
जन की लाज जात ऐहि बारा। धावहु हे कपि पवन कुमारा।।
जयति जयति जै जै हनुमाना। जयति जयति गुण ज्ञान निधाना।।
जयति जयति जै जै कपिराई। जयति जयति जै जै सुखदाई।।
जयति जयति जै राम पियारे। जयति जयति जै सिया दुलारे।।
जयति जयति मुद मंगलदाता। जयति जयति त्रिभुवन विख्याता।।
ऐहि प्रकार गावत गुण शेषा। पावत पार नहीं लवलेषा।।
राम रूप सर्वत्र समाना। देखत रहत सदा हर्षाना।।
विधि शारदा सहित दिनराती। गावत कपि के गुन बहु भाँति।।
तुम सम नहीं जगत बलवाना। करि विचार देखउं विधि नाना।।
यह जिय जानि शरण तब आई। ताते विनय करौं चित लाई।।
सुनि कपि आरत वचन हमारे। मेटहु सकल दुःख भ्रम भारे।।
एहि प्रकार विनती कपि केरी। जो जन करै लहै सुख ढेरी।।
याके पढ़त वीर हनुमाना। धावत बाण तुल्य बनवाना।।
मेटत आए दुःख क्षण माहिं। दै दर्शन रघुपति ढिग जाहीं।।
पाठ करै बजरंग बाण Bajrang Baan की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।
डीठ, मूठ, टोनादिक नासै। परकृत यंत्र मंत्र नहीं त्रासे।।
भैरवादि सुर करै मिताई। आयुस मानि करै सेवकाई।।
प्रण कर पाठ करें मन लाई। अल्प-मृत्यु ग्रह दोष नसाई।।
आवृत ग्यारह प्रतिदिन जापै। ताकी छाँह काल नहिं चापै।।
दै गूगुल की धूप हमेशा। करै पाठ तन मिटै कलेषा।।
यह बजरंग बाण Bajrang Baan जेहि मारे। ताहि कहौ फिर कौन उबारे।।
शत्रु समूह मिटै सब आपै। देखत ताहि सुरासुर काँपै।।
तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई। रहै सदा कपिराज सहाई।।
दोहा
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै। सदा धरैं उर ध्यान।।
तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान।।
॥ हनुमानाष्टक ॥
बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों ।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो ।
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिए कौन बिचार बिचारो ।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो ॥ २ ॥
अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो ।
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥ ३ ॥
रावण त्रास दई सिय को सब,
राक्षसी सों कही सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाए महा रजनीचर मरो ।
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ ४ ॥
बान लाग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सूत रावन मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ।
आनि सजीवन हाथ दिए तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ ५ ॥
रावन जुध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ ६ ॥
बंधू समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो ।
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो ।
जाये सहाए भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ ७ ॥
काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो ।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होए हमारो ॥ ८ ॥
॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे,
अरु धरि लाल लंगूर ।
वज्र देह दानव दलन,
जय जय जय कपि सूर ॥
जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
कोई गिनती नहीं कितनी बार भी