कुंडलिनी क्या है what is ?
कुंडलिनी क्या है what is kundalini मनुष्य के भीतर कितनी ही प्रकार की शक्तियां छिपी पड़ी हैं। बहुत-सी ढूंढ ली गई हैं। बहुत-सी खोजी जा रही हैं और बहुत-सी ऐसी भी हैं जिनके विषय में हम जानते ही नहीं हैं । शारीरिक शक्ति, बौद्धिक शक्ति, विचार शक्ति, इच्छा शक्ति, प्राणशक्ति, आत्मिक शक्ति, विश्लेषण शक्ति, स्मरण शक्ति, कल्पना शक्ति, प्रतिभाशक्ति, पांचों ज्ञानेन्द्रियों की शक्तियों, क्रियाशक्ति, ज्ञानशक्ति, पाचन शक्ति, निर्णय शक्ति, प्रभाव शक्ति,
वशीकरण शक्ति, जीवनी शक्ति, जीवेषणा शक्ति, प्रजनन शक्ति, रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति, संघर्ष शक्ति, केन्द्रियकरण शक्ति, नियंत्रण शक्ति, धारणा शक्ति, कंठस्थ करने की शक्ति, भाषण शक्ति, पूर्वाभास शक्ति, मनोभाव जानने की शक्ति, प्रेमशक्ति, ऊर्जा प्रवाहन शक्ति, वैचारिक सम्पर्क शक्ति आदि असंख्य शक्तियां हैं जिनमें बहुत सी सिद्ध हैं, बहुत-सी विवादित हैं (अभी शोध के अन्र्तगत हैं)।
बहुत-सी अभी समझी जानी बाकी हैं। डिस्कवरी चैनल पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम–‘THE MIND’ के अन्तर्गत एक बार बताया गया था कि दुनिया के श्रेष्ठतम बुद्धिजीवी, विचारक, दर्शनिक आदि भी अपने दिमाग के एक लाख हिस्से से भी कम की शक्ति का प्रयोग अपने जीवन में कर पाते हैं। और यह आश्चर्य जनक सत्य है।
इस वैज्ञानिक निष्कर्ष से मस्तिष्क की विराट शक्तियों का एक अंदाजा सहज ही होता है।किन्तु मानव शरीर में एकमात्र मस्तिष्क ही नहीं है जो विलक्षण और अनन्त शक्तियों से सम्पन्न है। मन भी हैं, प्राण भी है, ऊर्जा भी है, चक्र भी हैं, जो मस्तिष्क के मुकाबले अधिक सूक्ष्म, अधिक शक्तिशाली, अधिक अद्भुत और अधिक रहस्यपूर्ण हैं।
कुंडलिनी जागरण के फायदे और नुकसान
पहले हम समझते है कुंडलनी जागरण क्यों किया जाता है ! कुण्डलनी जागरण अपनी भीतर की शक्तिओ को जागृत करने के लिए किया जाता है ! मानव शरीर के अंदर बहुत सारी शकितयाँ विध्यमान पर किसी को पता नहीं है न ही कोई इस पे काम करता है !अगर मानव इस शक्ति को जान जाए तो मनव न रहे देवता हो जाए !
सिर्फ इस को जागृत करने की देर है अगर इस को हम जागृत कर लेते है हमारी सोच से भी परे काम होने लगती है जैसे कोई लम्बे समय से आर्थिक परेशानी के कारन परेशान है तो आप अगर मूलाधार चक्र पर काम कर लेते हो तो आप की पैसे की तंगी ख़तम हो जाएगी अगर आप के पिरवार के साथ आप का रिश्ता ठीक नहीं है समाज किसी के साथ नहीं बनती तो आप साथिष्ठान चक्र पर काम करो तो आप की यह समस्या भी दूर हो जाएगी !
इसी तरह से हर चाकर आप की जिंदगी के साथ जुड़ा है ! तो आप सोच सकती है अगर पूरी कुण्डलनी जागरण हो जाए तो किया होगा इस के बाद एक और पोस्ट आए गी जिसमे तमाम चक्रो के फायदे बाटे जाएगे रही बात नुकसान की कुंडलनी जागरण के कोइ नुकसान नहीं है
फिर भला पूरी शक्तियों को गिनाया जा सकना किस प्रकार सम्भव हो सकता है? इन समस्त सूक्ष्म और स्थूल शक्तियों को प्रसारित और चैनेलाइज़्ड करने की प्रणाली ही योग है। जैसा कि नाम ही से स्पष्ट हो जाता है। योग का अर्थ है जोड़ना या बढ़ाना। इन समस्त शक्तियों में प्रमुख और अत्यंत विलक्षण है कुण्डलिनी ।
कुण्डलिनी शक्ति को जागृत कर उपर्युक्त वर्णित और इनके अलावा भी समस्त शक्तियों को सहज ही बढ़ाया जा सकता है। इनमें से कोई भी शक्ति कुण्डलिनी शक्ति के समकक्ष नहीं। कुण्डलिनी अकेली ही इन सबसे कहीं आगे, कहीं ऊंची, कहीं व्यापक और कहीं अधिक प्रभावशाली है, अद्वितीय है। नाभि शरीर का केन्द्र है। यहीं से सभी नस-नाड़ियां पूरे शरीर में फैलती हैं।
। शरीर में चक्रों का स्थान व स्थिति यहीं से गर्भ माता के साथ जुड़ा होता है और वृद्धि पाता है। यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। रावण की नाभि में अमृत होने का कूट संकेत नाभि को सर्वाधिक नाजुक मर्म सिद्ध करता है। आयुर्वेद में भी नाभि के महत्त्व व मर्म होने को स्वीकारा गया है।
कुंगफू नामक युद्धकला में विपक्षी के मर्मों पर प्रहार करते समय अंतिम व निर्णायक (मृत्युदायक) प्रहार नाभि पर ही किया जाता है। अतः नाभि अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। नाभि के बाद हृदय और मस्तिष्क भी महत्त्व रखते हैं। क्योंकि रक्त संचरण (ऊर्जा सप्लाई) तथा नियंत्रण, संचालन आदि के कार्य क्रमश: हृदय व मस्तिष्क ही ( करते हैं। शरीर-रचना की दृष्टि से भी नस नाड़ियों का सर्वाधिक जमावड़ा इन्हीं तीन केन्द्रों-नाभि, हृदय व मस्तिष्क में होता है।
इन तीनों के अलावा कण्ठ भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि इसी संकीर्ण स्थान से मस्तिष्क और समस्त ज्ञानेन्द्रियों को रुधिर पहुंचाने वाली नाड़ियां गुजरती हैं। नाक, कान, आंख, जिह्वा ये चारों ज्ञानेन्द्रियां कंठ से ऊपर हैं। (केवल एक त्वचा ज्ञानेन्द्रिय समस्त शरीर में उपस्थित रहती है।)
इन सभी अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटकों को ऊर्जा, रक्त व संदेश पहुंचाने का मार्ग कंठ ही है। कंठ ही से श्वांस, जल व भोजन आदि नीचे आकर समस्त शरीर को प्राप्त होता है। कंठ मस्तिष्क व ज्ञानेन्द्रियों को शरीर से जोड़े रखने वाला सेतु है अत: महत्त्वपूर्ण होने के साथ-साथ शरीर का एक मर्म भी है। है गुदा और जननेन्द्रिय के मध्य का स्थान, शरीर का केन्द्रिय आधार होने से ‘मूलाधार’ भी कहा जाता है। प्रजनन सामर्थ्य की दृष्टि से भी यह भाग अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
मर्म ही गुरुत्वाकर्षण के सीधे सम्पर्क में आने वाला आधार है पुस्तक में शरीर के इन मर्मों को गिनाने का विशेष कारण है। शरीर में स्थित सातों चक्र इन्हीं मर्मों के बीच स्थित हैं। इन सभी को परस्पर सम्बद्ध करने का कार्य करता है
मेरुदण्ड (रीढ़ की हड्डी) जिस पर पूर्ण शरीर का संतुलन व संचालन आधारित रहता है। इसका आरम्भ मूलाधार के निकट से होकर अन्त मस्तिष्क के निकट तक होता है। अत: यह रीढ़ की हड्डी भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। योग विद्या या कुण्डलिनी जागरण की क्रिया में तो यह निहायत ही महत्त्वपूर्ण है।
क्योंकि यही कुण्डलिनी का मार्ग भी है। (इस विषय में आगे चर्चा करेंगे)। अतः शरीर रचना विज्ञान, अध्यात्म विज्ञान और योग विद्या आदि समस्त दृष्टियों से मूलाधार, , नाभि, हृदय, कंठ, मस्तिष्क और मेरुदण्ड अत्यंत प्रमुखता से महत्वपूर्ण हैं। शरीर में स्थित सातों चक्र इन्हीं के मध्य स्थित है और यही कुण्डलिनी शक्ति के प्रवाह का मार्ग भी है।
इस विषय को और बेहतर समझने के लिए हम चित्र का सहारा लेंगे। पीछे दिये गये चित्र में सातों चक्रों का स्थान तथा कुण्डलिनी शक्ति संचालन का मार्ग आप स्पष्ट देख सकते हैं। इन चक्रों के संक्षिप्त परिचय के बाद हम कुण्डलिनी की चर्चा करेंगे। ।