सम्पूर्ण सरस्वती साधना saraswati sadhna ph. 85280 57364
सरस्वती साधना saraswati sadhna : भारतीय विद्या देवी की शक्ति परिचय – भारतीय संस्कृति में विद्या की देवी सरस्वती Saraswat saraswati को एक महान देवी माना जाता है। उनकी साधना करने से विद्या, बुद्धि, शक्ति और ज्ञान की प्राप्ति होती है। यहाँ हम जानेंगे कि सरस्वती Saraswat साधना क्या है, क्यों जरुरी है और कैसे इसे किया जाता है।
सरस्वती Saraswat saraswati देवी कौन है
सरस्वती Saraswat भारतीय संस्कृति की एक महत्वपूर्ण देवी है। वह ज्ञान, कला, संगीत, वाणी, शिक्षा, बुद्धि और विद्या की देवी है। सरस्वती Saraswat को ध्यान करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है और सभी कलाओं में उन्नति होती है।
सरस्वती Saraswat को एक सफेद हंस द्वारा वाहित दिखाया जाता है जो समुद्र में उतरता है। वह त्रिशूल और वीणा धारण करती हैं। उनकी पूजा भारत के विभिन्न हिस्सों में बहुत ही की जाती है।
या माया मधु-कैटभ प्रमथनी, या महिषोन्माथिनी,
या धूम्रचण्ड-मुण्डदलनी, या रक्तबीजाशनी ।
शक्तिः शुम्भनिशुम्भ-दैत्य मथनी, या सिद्धलक्ष्मी परा;
या देवी नवकोटि मूर्तिसहिता मां पातु विश्वेश्वरी ।।
अर्थात्- “मधु और कैटभ नामक राक्षसों को मथने वाली, महिषासुर को मारने वाली, धूम्र, चण्ड, मुण्ड, रक्तबीज, शुम्भ तथा निशुम्भ आदि दैत्यों का नाश करने वाली, लक्ष्मी स्वरूपा नवकोटि देवताओं की शक्ति से समन्वित भगवती महासरस्वती Saraswat मेरी रक्षा करें ।” महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती Saraswat – इन तीनों स्वरूपों द्वारा सम्पूर्ण चराचर जगत की कारणभूत आद्याशक्ति परमेश्वरी की अभिव्यक्ति होती है।
इन त्रिशक्तियों की मूल प्रकृति महालक्ष्मी ही हैं, जो विशुद्ध सत्व गुण के अंश से महासरस्वती Saraswat के रूप में प्रकट होती हैं, जिनका वर्ण चन्द्रमा के समान गौर है, उन्होंने अपने हाथों में अक्षमाला, अंकुश, वीणा तथा पुस्तक धारण कर रखा है। महासरस्वती Saraswat के अन्य प्रसिद्ध नाम हैं महाविद्या, महावाणी, भारती, वाक्, सरस्वती Saraswat, आर्या, ब्राह्मी, कामधेनु, वेदगर्भा, धीश्वरी (बुद्धि की स्वामिनी), तारा.ऋग्वेद में वाग्देवी का नाम सरस्वती Saraswat है।
ये वाणी और विद्या को प्रदान करने वाली देवी हैं। ये स्वर्ग, पृथ्वी और अन्तरिक्ष तीनों स्थानों पर निवास करने के कारण भारती, इला और सरस्वती Saraswat नाम से सम्बोधित की जाती हैं। तंत्र शास्त्र में वर्णित है, कि दस महाविद्याओं में दूसरी महाविद्या तारा देवी का एक स्वरूप ‘सरस्वती Saraswat’ भी है । सरस्वती Saraswat संगीत विद्या की अधिष्ठात्री देवी हैं, ताल, स्वर, लय, राग-रागिनी आदि का प्रादुर्भाव इनके द्वारा ही हुआ है।
इनकी आराधना सात स्वरों- “सा, रे, ग, म, प, ध, नी” द्वारा होने के कारण ये ‘स्वरात्मिका’ कहलाती हैं, और सप्तविध स्त्रों का ज्ञान प्रदान करने के कारण भी इन्हें ‘सरस्वती Saraswat’ कहते हैं। देवी सरस्वती Saraswat की साधना से समस्त सिद्धियां प्राप्त होती हैं, ये अपने साधक के हृदय में व्याप्त समस्त संशयों का उच्छेद कर उसे बोध प्रदान करती हैं।
महासरस्वती Saraswat saraswati उत्पत्ति
महासरस्वती Saraswat saraswati उत्पत्ति सरस्वती Saraswat की उत्पत्ति ‘देवी भागवत्’ में वर्णन आता है, कि सरस्वती Saraswat देवी का प्राकट्य भगवान श्रीकृष्ण की जिह्वा के अग्रभाग से हुआ है। सरस्वती Saraswat के प्रकट होने पर श्रीकृष्ण ने उन्हें नारायण को समर्पित कर दिया। विश्व में सरस्वती Saraswat पूजा का प्रचलन श्रीकृष्ण द्वारा प्रारम्भ किया गया ।
देवी भागवत् के अनुसार ही भगवान नारायण की तीन पत्नियां – लक्ष्मी, गंगा और सरस्वती Saraswat थीं। ये तीनों अत्यन्त प्रेम से रहती हुई पूर्ण श्रद्धा के साथ भगवान का पूजन करती थीं। किसी कार्यवश इन तीनों से उनको दूर जाना पड़ा। कार्य सम्पादित करके जब वे अंतःपुर में पधारे, उस समय तीनों देवियां एक ही स्थान पर बैठी हुई परस्पर अत्यन्त प्रेम से वार्तालाप कर रही थीं।
भगवान को अंतःपुर में आया देख तीनों देवियां उनके सम्मान में खड़ी हो गयीं। गंगा ने अत्यन्त प्रेमपूर्ण दृष्टि से भगवान की ओर देखा, उन्होंने भी गंगा की दृष्टि का अत्यधिक स्नेह युक्त मुस्करा कर उत्तर दिया, तत्पश्चात् वे आवश्यकता वश कक्ष से बाहर चले गये । उसी क्षण सरस्वती Saraswat ने गंगा के व्यवहार को अनुचित बता कर आक्षेप किया, गंगा ने भी कठोर शब्दों में प्रतिवाद किया… और दोनों में विवाद बढ़ता गया ।
लक्ष्मी ने दोनों को शान्त करना चाहा, किन्तु सरस्वती Saraswat ने अत्यधिक क्रोधित हो जाने, के कारण गंगा को नदी बन जाने का श्राप दे दिया, इस बात को सुन गंगा ने भी क्रोधावेश में सरस्वती Saraswat को नदी रूप में परिणित हो जाने का श्राप दे दिया, इपने में ही भगवान पुनः अंतःपुर में लौट आये, तब तक देवियां प्रकृतिस्थ हो चुकी थीं, तदुपरान्त उन्हें अपनी भूल का आभास हुआ और भगवान के चरणों से होने के भय से रोने लगीं।
दूर पूरा वृत्तांत सुनकर भगवान को अत्यधिक कष्ट हुआ, किन्तु गंगा व सरस्वती Saraswat की आकुलता को देखकर उन्होंने करुणार्द्र हो उन्हें आश्वासन दिया- – “गंगा! तुम एक अंश से नदी हो जाओगी, किन्तु अन्य अंशों से मेरे पास ही रहोगी।
सरस्वती Saraswat ! तुम को एक अंश से नदी बनकर रहना होगा, दूसरे अंश से ब्रह्मा जी की सेवा करनी होगी तथा शेष अंश से मेरे पास ही रहोगी। कलियुग के पांच हजार वर्ष बीतने के बाद तुम दोनों का शापोद्धार हो जायेगा ।”
तदनन्तर सरस्वती Saraswat अपने अंश रूप में भारत भूमि पर अवतीर्ण हो कर ‘भारती’ कहलायीं और अपने अंश रूप से ही ब्रह्मा जी की प्रिय पत्नी बनकर ‘ब्राह्मी’ नाम से भी प्रसिद्ध हुईं। किसी-किसी कल्प में सरस्वती Saraswat ब्रह्मा की कन्या के रूप में भी अवतीर्ण होती हैं और आजीवन कौमार्य व्रत का पालन करती हुई ब्रह्मा की सेवा करती हैं ।
ब्रह्मा ॐ ब्रह्मा के मन में एक बार विचार आया कि भूलोक पर सभी देवताओं के तीर्थ हैं, केवल मात्र मेरा ही कोई तीर्थ नहीं है। ऐसा सोचकर उन्होंने अपने नाम से एक तीर्थ स्थापित करने का निश्चय किया और एक रत्नखचित शिला को पृथ्वी पर गिराया | यह शिला अजमेर जिला में चमत्कारपुर स्थान के निकट गिरी, जी ने उसे ही अपना तीर्थ स्थल बनाया, जो ‘पुष्कर’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
तीर्थ स्थापन के पश्चात् ब्रह्मा ने वहां पवित्र जल से युक्त एक सरोवर बनाने से का निश्चय किया, अतः उन्होंने सरस्वती Saraswat को आवाहित किया। इसके पूर्व सरस्वती Saraswat नदी के रूप में परिणित हो कर, पापात्माओं के स्पर्श से बचने के लिए छिप कर पाताल में बहती थीं।
ब्रह्मा द्वारा आवाहन करने पर भूतल और पूर्वोक्त शिलाओं को भेदकर वे प्रकट हुईं। – उन्हें उपस्थित देख ब्रह्मा ने कहा- “मैं इस पुष्कर तीर्थ में निवास करूंगा, अतः तुम यहीं मेरे समीप रहो, जिससे मैं तुम्हारे जल में तर्पण कर सकूं।” ब्रह्मा के आदेश को सुनकर सरस्वती Saraswat ने अत्यन्त विनयवत् उत्तर दिया- “भगवन्!
मैं लोगों के स्पर्श-भय से ही पाताल में निवास करती हूं, किन्तु आपकी में आज्ञा का उल्लंघन भी नहीं कर सकती, अतः आप जो उचित समझें वैसी व्यवस्था करें।”सरस्वती Saraswat के विनम्र वचनों को सुनकर ब्रह्मा जी ने उनके निवास के लिए एक विशाल सरोवर निर्मित करवाया, तब सरस्वती Saraswat ने उसी सरोवर में आश्रय लिया ।
तत्पश्चात् ब्रह्मा ने बड़े-बड़े भयंकर सर्पों को बुलाकर, उन्हें सरस्वती Saraswat की रक्षा करने की आज्ञा दी । एक बार भगवान विष्णु ने देवी सरस्वती Saraswat को आज्ञा दी, कि वे “बड़वानल” को अपने प्रवाह में बहाकर समुद्र में छोड़ दें। सरस्वती Saraswat ने इसके लिए ब्रह्मा से भी आज्ञा प्राप्त कर, इस कार्य को सम्पादित करने के विचार किया।
लोकहित के कारण ब्रह्मा ने भी इस कार्य के लिए अनुमति प्रदान कर दी। सरस्वती Saraswat ने कहा – “भगवन्! यदि मैं पृथ्वी पर नदी रूप में प्रकट होकर इस अग्नि को ले जाऊंगी तो मुझे भय है, कि पापी जनों के सम्पर्क से मेरा स्वयं का शरीर दग्ध हो जायेगा, अतः पाताल मार्ग से ही इसे समुद्र तक ले जाऊंगी ।”
से ब्रह्मा ने कहा- “तुम्हें इस कार्य को करने में जिस तरह से सुगमता हो, उसी प्रकार इसे सम्पन्न करो। पाताल मार्ग से जाने पर यदि कहीं बड़वानल के ताप तुम अत्यधिक पीड़ित हो जाओ, तो वहां पृथ्वी पर नदी रूप में प्रकट हो जाना। इस प्रकार प्रकट होने पर तुम्हारे शरीर पर किसी प्रकार का दोष व्याप्त नहीं होगा।” ब्रह्मा जी से यह उत्तर पाकर देवी सरस्वती Saraswat, गायत्री, सावित्री और यमुना आदि अपनी प्रिय सखियों के साथ हिमालय पर्वत पर चली गईं और वहां से नदी रूप धारण कर भूतल पर प्रवाहमान हुईं। बड़वानल को लेकर वे सागर की ओर प्रस्थित हुईं।
इस प्रकार पाताल लोक से गमन करते तथा भूतल पर प्रकट होते हुए वे प्रभास क्षेत्र में पहुंची। वहां चार तपस्वी कठोर साधना में रत थे, उन्होंने सरस्वती Saraswat को पृथक-पृथक अपने आश्रम के पास बुलाया और तभी समुद्र ने भी वहां प्रकट ने होकर सरस्वती Saraswat को आवाहित किया।
सरस्वती Saraswat को समुद्र तक जाना था और मुनियों की आज्ञा का भी उल्लंघन करने से श्राप मिलने का भय था, अतः उन्होंने पांच धाराओं का रूप धारण कर लिया। इस प्रकार का रूप धारण करने के कारण ‘पंचश्रोता सरस्वती Saraswat’ के नाम से भी प्रसिद्ध हुईं।
अपनी एक धारा से वे मार्ग के अन्य विघ्नों को दूर करते हुए समुद्र से जा मिलीं तथा चार धाराओं से चारों ऋषियों को स्नान की सुविधा प्रदान कर गईं। पुराण में कथन है, एक बार ब्रह्मा जी ने सरस्वती Saraswat से कहा- “तुम किसी के मुख में कवित्व शक्ति के रूप में निवास करो।”
योग्य पुरुष ब्रह्मा जी की आज्ञा को पूरा करने हेतु सरस्वती Saraswat योग्य पात्र की खोज में विचरण करने लगीं। विभिन्न सत्यादि लोकों में भ्रमण करके तथा सातों पातालों में घूम कर ऐसे अलौकिक पुरुष की खोज करने लगीं;
किन्तु उन्हें सुयोग्य पात्र नहीं मिल सका । इस खोज में पूरा सतयुग बीत गया, तदुपरान्त त्रेतायुग के आरम्भ में अपने अनुसन्धान को पूर्णता देने के लिए भ्रमण करती हुई, वे भारत भूमि पर पहुंची और तमसा नदी के किनारे विचरण करने लगीं। तमसा नदी के तट पर महर्षि वाल्मिकी अपने शिष्यों के साथ रहते थे ।
प्रातःकाल वे स्नान के लिए नदी की ओर जा रहे थे, तभी उनकी दृष्टि एक व्याध के बाण से घायल क्रोंच पक्षी पर पड़ी, उसका सारा शरीर लहूलुहान था और वह मृत्यु से जूझ रहा था ।
मादा क्रोंची उसके पास ही गिर कर तड़पती हुई करुण स्वर में चीख रही थी । पक्षी के उस जोड़े की व्यथा महर्षि से देखी नहीं गई और वे उसकी व्यथा से द्रविभूत हो उठे । अकस्मात् ही उनके मुख से चार चरणों का श्लोक निकल पड़ा – मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शास्वतीः समाः । यत् क्रौंच मिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ।।
saraswati sadhna महर्षि वाल्मिकी के मुख से उच्चरित यह श्लोक सरस्वती Saraswat की कृपा का फल था, क्योंकि महर्षि को देखते ही उन्होंने उनके अन्दर छिपी असाधारण प्रतिभा को पहिचान लिया था, अस्तु; उन्होंने सर्वप्रथम वाल्मिकी के मुख में ही प्रवेश किया। सरस्वती Saraswat के कृपापात्र होकर ही महर्षि वाल्मिकी ‘आदि कवि, के नाम से विश्व प्रसिद्ध हुए।
मार्कण्डेय विरचित दुर्गा सप्तशती में भी सरस्वती Saraswat के प्रकट होने की कथा. है; जिसमें उन्होंने बताया है, कि गौरी के शरीर से ये प्रकट हुईं हैं, और शरीर कोश से प्रकट होने के कारण ये ‘कौशिकी’ नाम से प्रसिद्ध हुईं।
अपने कौशिकी स्वरूप से देवी सरस्वती Saraswat ने शुम्भ-निशुम्भ जैसे महान दैत्यों का वध कर पृथ्वी पर सुख-शांति की स्थापना की और देवताओं तथा ऋषियों को निर्भयता प्रदान की। तंत्र और पुराणों में इनकी महिमा का विस्तृत वर्णन पढ़ने को मिलता है । बिजी देवी महासरस्वती Saraswat अनेक प्रकार से विश्व के लोगों का कल्याण करती हैं; बुद्धि, ज्ञान एवं विद्या के रूप में सारा जगत इनकी कृपा को प्राप्त कर अविभूत हो उठता है।
महासरस्वती Saraswat साधना saraswati sadhna विधि
महासरस्वती Saraswat साधना saraswati sadhna विधि – भगवती सरस्वती Saraswat की सौम्य और उग्र दोनों रूपों में साधना मिलती है, सौम्य साधना से प्रायः सभी परिचित हैं, जो वाग्देवी भी कही जाती हैं। उनके उग्ररूप नील सरस्वती Saraswat, विद्याराज्ञी के नाम से प्रसिद्ध हैं। शुंभ और निशुंभ का वध करते समय उन्होंने अपना उग्र स्वरूप प्रकट किया था, जिसकी साधना से साधक को अभ्युदय और निःश्रेयता की प्राप्ति होती ही है। साधक को रात्रि के अन्तिम भाग जिसे ब्रह्म मुहूर्त कहा जाता है, जाग जाना चाहिए
ब्राह्म मुहूर्ते बुद्धयेत धर्मार्थमनु चिन्तयेत् । कायक्लेशांश्च तन्मूलान् वेदतत्त्वार्थमेव च ।।
ब्रह्म मुहूर्त में जगने के बाद शय्या पर बैठकर धर्म एवं अर्थ का चिन्तन करना चाहिए तथा दैनिक जीवन निर्वाह करने में शरीर तथा इन्द्रियों को प्राप्त होने वाले क्लेश आदि के शमन का भी चिन्तन करें। इस प्रकार वेद प्रतिपादित परम तत्त्वार्थ का चिन्तन करते हुए शय्या त्याग करें। स्नान आदि नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर साधना कक्ष में (जिसमें साधनानुकूल सभी सामग्री सुसज्जित हों) पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख हो सुखद श्वेत तथा पवित्र आसन पर बैठें। पहले पवित्रीकरण एवं आचमन करें, आचमन के बाद प्राणायाम करें। अपने सामने चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवती महासरस्वती Saraswat का चित्र तथा यंत्र (जो प्राण प्रतिष्ठित हो) स्थापित कर लें। पहले गणपति स्मरण एवं विधिपूर्वक गुरु पूजन करने के बाद ही मूल पूजन आरम्भ करें-
ध्यान महासरस्वती Saraswat साधना saraswati sadhna
:दोनों हाथ जोड़कर ध्यान करें शुक्लां ब्रह्म विचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं । वीणा पुस्तक धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् ।। हस्ते स्फाटिक मालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां । वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ।। श्री सरस्वत्यै नमः ध्यानं समर्पयामि ।
विशेष – “शुक्लवर्णा, ब्रह्मस्वरूपा, आद्याशक्तिरूपा, समस्त संसार में शक्तिरूप से व्याप्त, अपने दोनों हाथों में वीणा और पुस्तक धारण की हुई, जड़ता एवं अज्ञान को नाश करने वाली स्फटिक माला धारण करके पद्मासन में विराजमान, बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी भगवती सरस्वती Saraswat को मैं शुद्ध भाव से नमन करता हूं।”
saraswati आवाहन
: भव पुष्प स्वतन लेकर आवाहन करें- चतुर्भुजां चन्द्रवर्णां चतुरानन वल्लभाम् । आवाहयामि वाग्देवीं वीणा पुस्तक धारिणीम् ।। fre श्री सरस्वत्यै नमः आवाहनं समर्पयामि ।
saraswati गन्ध
चन्दन या कुंकुम लगावें- एक कर्पूरायैश्च कुंकुमागरू कस्तूरी गन्धं गृहाण शारदे विधिपत्नि! संयुक्तम् । नमोऽस्तुते ।। श्री सरस्वत्यै नमः गन्धं समर्पयामि। विदियो सुगन्धित धूप लगा लें फिलफरक ऊँच गुग्गुल्वगरू संयुक्तं भक्त्या दत्तं विधिप्रिये । धूप : १५ कर
saraswati दीप
: धूपं गृहाण देवेशि ! मातृमण्डल पूजिते ।। श्री सरस्वत्यै नमः थूपम् आघ्रापयामि। दीपक दिखाय – に難 घृताक्तवर्ति संयुक्तं वाणि चैतन्य दीपितम् । दीपं गृहाण वरदे कमलासन वल्लभे ।। श्री सरस्वत्यै नमः दीपं दर्शयामि । मिष्ठान्न का भोग लगावें- शर्कराघृत संयुक्तं मधुरं स्वादु चोत्तमं । उपहार समायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृहयताम् ।। श्री सरस्वत्यै नमः नैवेद्यं निवेदयामि, ऋतुफलानि समर्पयामि नमः । :
saraswati आरती करें-
नीराजनं नीरजाक्षि नीरजासन वल्लभे कर्पूरखण्ड कलितं गृहाण करुणार्णवे ।। श्री सरस्वत्यै नमः नीराजनं समर्पयामि। दोनों हाथों में खुले पुष्प ले लें – पुष्पांजलि र्मया दत्ता गृहाण शारदे लोकमातस्त्वं आश्रितेष्ट प्रदायिनि ।। वर्णमालिनि । श्री सरस्वत्यै नमः पुष्पांजलिं समर्पयामि । नैवेद्य : नीराजन पुष्पांजलि : नमस्कार : विशेषार्घ्य : दोनों हाथ जोड़ें – या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता, या वीणा वरदण्डमण्डितकरा या श्वेत पद्मासना । या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता, सा मां पातु सरस्वती Saraswat भगवती निःशेषजाड्यापहा ।। हरील – दाहिने हाथ में जल लें, उसमें अक्षत, पुष्प मिला कर लें- अधहीने गृहाणेदम् अर्ध्यमष्टांग संयुक्तं । अम्बाखिलानां जगतामम्बुजासन सुन्दरि ।। श्री सरस्वत्यै नमः विशेषार्घ्यं समर्पयामि । अनया पूजया श्री सरस्वती Saraswat देवता प्रीयन्ताम् सत् ब्रह्मार्पणमस्तु । तत् तत्पश्चात् मूल पूजन प्रारम्भ करें,
“महासरस्वती Saraswat यंत्र” को अपने सामने किसी प्लेट में कुंकुम से स्वस्तिक अंकित कर, स्थापित कर दें। विनियोग । दाहिने हाथ में जल लेकर निम्न संदर्भ का उच्चारण करें- ॐ ब्रह्म ऋषये नमः शिरसि । अनुष्टुप् छन्दसे मुखे । देवतायै नमः हृदि । सरस्वती Saraswat विनियोगाय नमः सर्वांगे । ल ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौः अंगुष्ठाभ्यां नमः । कर न्यास : नमः क्लीं ह्रीं ऐं ब्लू स्त्रीं तर्जनीभ्यां नमः । मध्यमाभ्यां नीलसरस्वती Saraswat नमः । दीद्रां द्रीं क्लीं ब्लूं सः अनामिकाभ्यां नमः । ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौः कनिष्ठिकाभ्यां नमः । सौः हीं स्वाहा करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः ।
saraswati हृदयादिन्यास :
जेवेश ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौः क्लीं ह्रीं ऐं ब्लू स्त्रीं नीलतारे सरस्वति हृदयाय नमः । शिरसे स्वाहा । शिखायै वषट् । द्रां द्रीं क्लीं ब्लू सः कवचाय हुम् । ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौः नेत्रत्रयाय वौषट् । सौः हीं स्वाहा अस्त्राय फट् । दोनों हाथ जोड़कर
saraswati भगवती सरस्वती Saraswat का ध्यान करें
– घण्टाशूल हलानि शंखमुसले चक्रं धनुः सायक, हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशु तुल्यप्रभा । गौरीदेह समुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महा पूर्वामत्र सरस्वती Saraswatमनुभजे शुम्भादि दैत्यार्दिनीम् ।। “घण्टा, त्रिशूल, हल, शंख, मूसल, चक्रं, धनुष एवं बाण आदि आयुधों को अपने दिव्य हाथों में धारण की हुई, अत्यधिक शोभायुक्त, चन्द्रमा के समान सुशीतल, पार्वती की देह से समुत्पन्न, तीनों लोकों की आधारभूता, शुम्भ-निशुम्भ आदि दानवों का संहार करने वाली भगवती सरस्वती Saraswat का मैं भावपूर्ण हृदय से ध्यान करता हूं।” नि ।
saraswati आवरण पूजा :
क 208 ध्यान के पश्चात् आवरण पूजन प्रारम्भ करें। आवरण पूजन में यंत्र के प्रत्येक घेरे का क्रमवार पूजन किया जाता है, जो अत्यधिक सूक्ष्म एवं दुरूह पद्धति है, जिसे प्रत्येक साधक के द्वारा सम्पन्न करना सम्भव नहीं है; अतः सभी साधकों तथा सामान्य पाठकों के लाभार्थ आवरण पूजा की सहज व लघु पद्धति प्रस्तुत की जा रही। इस पद्धति के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति पूजन सम्पन्न कर सकता है तथा इस पद्धति द्वारा पूजन करने से भी पूजन का पूर्ण लाभ प्राप्त होता है ।
saraswati प्रथमावरण पूजा
अपने बायें हाथ में कुंकुम से रंगे अक्षत (चावल) ले लें और निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए, अक्षत को यंत्र पर चढ़ाते रहें- – ॐ मेघायै नमः । ॐ प्रज्ञायै नमः । ॐ प्रभायै नमः । ॐ विद्यायै नमः ।गामी ॐ धियै नमः । ॐ धृत्यै नमः। ॐ बुद्ध्यै नमः । ॐ स्मृत्यै नमः । ॐ विश्वेश्वर्यै नमः ।
प्रथमावरण पूजन के बाद यंत्र को किसी ताम्र पात्र में रखकर दूध, दही, घी, शहद एवं शक्कर से स्नान करावें, फिर शुद्ध वस्त्र से पोंछ दें- हौं सरस्वती Saraswat योग पीठात्मने नमः इस मंत्र से पुष्पादि आसन देकर पुनः प्लेट में यंत्र को स्थापित करें तथा “ॐ श्रीं ह्रीं हसौः महा सरस्वत्यै नमः “
मंत्र से मूर्ति की कल्पना करके, विनयवत् आवरण पूजा के लिए आज्ञा मांगें के तर्प संविन्मये परे देवि परामृतरस प्रिये ।। सअनुज्ञां देहि मे मातः परिवारार्चनाय मे।। तदुपरान्त एक अन्य प्लेट में मौली सूत्र लपेट कर पांच सुपारी स्थापित करें, जो गणपति, क्षेत्रपाल, बटुक भैरव व गुरु की प्रतीक हैं तथा निम्न मंत्रोच्चारण के साथ इन पर पुष्प अर्पित करें-
ॐ विघ्नेशाय नमः विघ्नेश श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ क्षं क्षेत्रपालाय नमः क्षेत्रपाल श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ऊं बं बटुकाय नमः बटुक भैरव श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ यं योगिन्यै नमः योगिनी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ श्री गुरवे नमः श्री गुरु पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ अणिमायै नमः अणिमा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ लघिमायै नमः लघिमा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ महिमायै नमः महिमा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐॐॐ असितायै नमः असिता श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ वशितायै नमः वशिता श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ कामपूरिण्यै नमः साभार कामपूरिणी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ गरिमायै नमः गरिमा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ।
ॐ प्राप्त्यै नमः : प्राप्ति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ ॐ असितांग भैरवाय नमः असितांग भैरव श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ रुरु भैरवाय नमः रुरु भैरव श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ चण्ड भैरवाय नमः चण्ड भैरव श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ भैरवाय नमः भैरव श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ क्रोध भैरवाय नमः क्रोध भैरव श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ उन्मत्त भैरवाय नमः उन्मत्त भैरव श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ कपाल भैरवाय नमः कपाल भैरव श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ।
ॐ भीषण भैरवाय नमः भीषण भैरव श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ संहार भैरवाय नमः संहार भैरव श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । किल ॐ ब्राह्मयै भैरवाय नमःकर ब्राह्मी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ माहेश्वर्ये भैरवाय नमः ॐ कौमार्यै भैरवाय नमः मि के काही माहेश्वरी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ गर कौमारी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ।
ॐ वैष्णव्यै भैरवाय नमः वैष्णवी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ वाराह्यै भैरवाय नमः वाराही श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ इन्द्राण्यै भैरवाय नमः ह है इन्द्राणी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ चामुण्डायै भैरवाय नमः चामुण्डा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ महालक्ष्म्यै भैरवाय नमः अतिर ॐ महालक्ष्मी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । इसके बाद पुष्पाञ्जलि लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करें तथा पुष्पाञ्जलि समर्पित कर दें- – अभीष्ट सिद्धिं मे देहि शरणागत वत्सले । समर्पये तुभ्यं कारल भक्त्या प्रथमावरणार्चनम् ।।
saraswati द्वितीयावरण पूजा
करागीर द्वितीयावरण पूजन के लिए बायें हाथ में हल्दी से रंगे अक्षत ले लें तथा दाहिने हाथ से यंत्र पर चढ़ाते हुए चौसठ शक्तियों का पूजन व करें- ॐ कुलेश्वर्यै नमः कुलेश्वरी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । श ॐ कुलनन्दायै नमः कुलनन्दा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ वागीश्वर्यै नमः चागीश्वरी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ भैरव्यै नमः ॐ उमायै नमः ॐ श्रियै नमः ॐ शान्त्यै नमः ॐ चण्डायै नमः ॐ धूम्रायै नमः ॐ काल्यै नमः ॐ करालिन्यै नमः ॐ महालक्ष्म्यै नमः ॐ कंकाल्यै नमः ॐ रुद्रकाल्यै नमः ॐ सरस्वत्यै नमः २३ भैरवी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । कर लि उमा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । श्री श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । शान्ति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । चण्डा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । धूम्रा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । काली श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । करालिनी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । नजर ॐ महालक्ष्मी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ਕਿਸ कंकाली श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । मित्र रुद्रकाली श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । सरस्वती Saraswat श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । सके ॐ वाग्वादिन्यै नमः ॐ नकुल्यै नमः ॐ भद्रकाल्यै नमः ॐ शशिप्रभायै नमः ॐ प्रत्यंगिरायै नमः ॐ सिद्धलक्ष्म्यै नमः ॐ अमृतेश्वर्यै नमः ॐ चण्डिकायै नमः ॐ खेचर्यै नमः ॐ भूचर्यै नमः ॐ सिद्धायै नमः ॐ कामाक्ष्यै नमः वाग्वादिनी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । नकुली श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । भद्रकाली श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । शशिप्रभा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । प्रत्यंगिरा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । सिद्ध लक्ष्मी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । अमृता श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । चण्डिका श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । खेचरी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । भूचरी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । सिद्धा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । कामाक्षा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ बलायै नमः ॐ जयायै नमः ॐ विजयायै नमः ॐ अजितायै नमः ॐ नित्यायै नमः ॐ अपराजितायै नमः ॐ विलासिन्यै नमः ॐ अघोरायै नमः ॐ चित्रायै नमः ॐ मुग्धायै नमः ॐ धनेश्वर्यै नमः ॐ सोमेश्वर्यै नमः बला श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । जया श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । विजया श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । अजिता श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । नित्या श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । अपराजिता श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । विलासिनी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । अघोरा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । चित्रा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । मुग्धा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । धनेश्वरी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । सोमेश्वरी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ महाचण्ड्यै नमः ॐ विद्यायै नमः ॐ हंस्यै नमः ॐ विनायकायै नमः ॐ वेदगर्भायै नमः ॐ भीमायै नमः ॐ उग्रायै नमः ॐ वेद्यायै नमः ॐ सद्गत्यै नमः ॐ उग्रेश्वर्यै नमः ॐ चन्द्रगर्भायै नमः ॐ ज्योत्स्नायै नमः महाचण्डी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । विद्या श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । हंसी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । विनायका श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । वेदगर्भा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । भीमा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । उग्रा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । वेद्या श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । सद्गति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । उग्रेश्वरी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । चन्द्रगर्भा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ज्योत्स्ना श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ मोहिन्यै नमः ॐ वंशवर्द्धिन्यै नमः ॐ ललितायै नमः ॐ दूत्यै नमः ॐ मनोजायै नमः ॐ पद्मिन्यै नमः ॐ धरायै नमः ॐ वर्वर्यै नमः ॐ क्षत्रहस्तायै नमः ॐ रक्तायै नमः ॐ नेत्रायै नमः ॐ विचर्चिकायै नमः मोहिनी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । वंशवर्द्धिनी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ललिता श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । दूती श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । मनोजा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । पद्मिनी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । धरा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । वर्वरी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । क्षत्रहस्ता श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । रक्ता श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । नेत्रा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । विचर्चिका श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ श्यामलायै नमः श्यामला श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ बलायै नमः बला श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ पिशाच्यै नमः पिशाची श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ विदार्यै नमः विदारी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ शीतलायै नमः शीतला श्री पादुकां पूंजयामि तर्पयामि नमः । ॐ वज्रयोगिन्यै नमः वज्रयोगिनी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ सर्वेश्वर्यै नमः सर्वेश्वरी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । पुन: पुष्पाञ्जलि लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करें और पुष्प यंत्र पर अर्पित कर दें- अभीष्ट सिद्धिं मे देहि शरणागत वत्सले । भक्त्या समर्पये तुभ्यं चतुर्थावरणार्चनम् ||
saraswati पंचमावरण पूजा : करें- –
बायें हाथ में आठ कमल बीज ले लें। मंत्रोच्चारण करते हुए, दाहिने हाथ से एक-एक कमल बीज यंत्र पर अर्पित करते हुए आठ सरस्वतियों का पूजन ॐ नमः पद्मासने शब्दरूपे ऐं ह्रीं क्लीं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा । वाग्वादिनी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । हू स् क् ल् हीं वद वद चित्रेश्वरी ऐं स्वाहा । चित्रेश्वरी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ऐं कुलजे ऐं सरस्वती Saraswat स्वाहा । कलुजा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ऐं ह्रीं श्रीं वद वद कीर्तीश्वरी स्वाहा । कीर्तीश्वरी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ऐं ह्रीं अन्तरिक्ष सरस्वती Saraswat स्वाहा । अन्तरिक्ष सरस्वती Saraswat श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । हू स् ष्फ्रे हू सौः ष्फ्रीं ऐं ह्रीं श्रीं द्रां ह्रीं क्लीं ब्लूं सः हनीं घट सरस्वती Saraswat घटे वद वद तर तर रुद्राज्ञया ममाभिलाषं कुरु कुरु स्वाहा । घट सरस्वती Saraswat श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । · ब्लू वें वद वद त्रीं हूं फट् । नीला श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ऐं हैं ह्रीं किणि किणि विच्चे । किणि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । पुनः पुष्पाञ्जलि लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करें और पुष्प को यंत्र पर अर्पित कर दें। अभीष्ट सिद्धिं मे देहि शरणागत वत्सले । भक्त्या समर्पये तुभ्यं पंचमावरणार्चनम् ।।
saraswati षष्ठावरण पूजन :
बायें हाथ में काली सरसों ले लें और दाहिने हाथ से यंत्र पर अर्पित करते हुए छः योगिनियों की पूजा करें— ॐ डाकिन्यै नमः । डाकिनी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ शाकिन्यै नमः । शाकिनी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ लाकिन्यै नमः । लाकिनी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ काकिन्यै नमः । काकिनी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ राकिन्यै नमः । राकिनी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ हाकिन्यै नमः । हाकिनी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । पुष्पाञ्जलि लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करें और पुष्प यंत्र पर अर्पित करें- अभीष्ट सिद्धिं मे देहि भक्त्या समर्पये तुभ्यं शरणागत वत्सले । षष्ठावरणार्चनम् ।।
saraswati सप्तमावरण पूजा :
बायें हाथ में तीन पुष्प ले लें और यंत्र पर दाहिने हाथ से अर्पित करते – हुए तीन भैरवियों का पूजन करें- हीं परायै नमः । परा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ऐं क्लीं सौः बलायै नमः । बला श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । हू स्मैं हू क्लीं हू सौः भैरव्यै नमः । भैरवी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । पुनः पुष्पाञ्जलि लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करें और पुष्प यंत्र पर ३५ -अर्पित कर दें– अभीष्ट सिद्धिं मे देहि शरणागत वत्सले । भक्त्या समर्पये तुभ्यं सप्तमावरणार्चनम् ।।
मंत्र जप 41 आवरण पूजन करने के पश्चात् “सफेद हकीक माला” अथवा “स्फटिक माला” से निम्न मंत्र का एक माला मंत्र जप करें- मंत्र “ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौं क्लीं ह्रीं ऐं ब्लू स्त्रीं नीलतारे सरस्वती Saraswat द्रां द्रीं क्लीं ब्लू सः ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौः सौः हीं स्वाहा” इस मंत्र का जप करने से भगवती सरस्वती Saraswat प्रसन्न होकर अभीष्ट वर प्रदान करती हैं। मंत्र जप समाप्ति के बाद आरर्ती करें, बाद में
saraswati भगवती सरस्वती Saraswat का निम्न स्तुति पाठ करें
स्तुति पाठ मातनील सरस्वति प्रणमतां सौभाग्य सम्पत्प्रदे । प्रत्यालीढपदस्थिते शव हृदि स्मेराननाम्भोरुहे ।। फुल्लेन्दीवर लोचनत्रय युते कर्तृकपालोत्पले । खड्गञ्चादधतीं त्वमेव शरणं त्वामीश्वरीमाश्रये । बुद्धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे। कुबुद्धिं हर मे देवि! त्राहि मां शरणागतम् ।। सभायां शास्त्रवादे तु रिपुसंघसमाकुले । मुष्टियन्त्रित हस्ता मां पातु नील सरस्वती Saraswat ।। नीला सरस्वती Saraswat पातु हृदय मे समन्ततः । मूलाधारं सदा पातु फट् शक्तिर्नीिल सरस्वती Saraswat ।। विद्यादानरता देवी वक्त्रे नील सरस्वती Saraswat । शास्त्रे वादे च संग्रामे जले च विषमे गिरौ । नित्या नित्यमयी नन्दा भद्रा नील सरस्वती Saraswat । गायत्री सुचरित्रा च कौलव्रत परायणा ।। निषूदिनी । महाव्याधि हरा देवी शुम्भासुर महापुण्य प्रदा भीमा मधु कैटभ नाशिनी ।। पूर्ण श्रद्धा भावना से युक्त हो सरस्वती Saraswat देवी को प्रणाम करें तथा पूरे परिवार में प्रसाद वितरित करें। सम्पूर्ण विधि-विधान द्वारा सम्पन्न पूजन से निश्चित रूप से विद्या, धन, सुख, पुष्टि, आयु, कीर्ति, बल, स्त्री, सौन्दर्य तथा साधक की जो भी मनोकामना होती है, वह पूर्ण होती ही है। ।। इति सिद्धिम् ।।
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ज्ञान की देवी सरस्वती की सबसे मधुर वंदना कौन सी है?
वैसे तो सभी सरस्वती वंदना मुझे मधुर लगती हैं।लेकिन ये वंदना मुझे सबसे मधुर लगती है।
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ ,
अज्ञानता से हमें तार दे माँ
तू स्वर की देवी ये संगीत तुझ से,
हर शब्द तेरा है हर गीत तुझ से,
हम है अकेले, हम है अधूरे
तेरी शरण हम हमें प्यार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ…
मुनियों ने समझी, गुनियों ने जानी,
वेदों की भाषा, पुराणों की बानी,
हम भी तो समझे, हम भी तो जाने,
विद्या का हमको अधिकार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ…
तू श्वेत वर्णी कमल पे विराजे,
हाथों में वीणा, मुकुट सर पे साझे,
मन से हमारे मिटाके अंधेरे,
हमको उजालों का संसार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ…
चित्र स्त्रोत- गूगल।
ब्रह्मा ने अपनी ही पुत्री सरस्वती से शादी क्यों की
सरस्वती केवल स्त्री वाचक नहीं है ज्ञान वाचक भी है ज्ञान की देवी से शादी की ब्रह्मा जी ने अर्थात समस्त ज्ञान को स्वीकार किया क्योंकि उन्होंने ही उत्पन्न किया सरस्वती रूपी ज्ञान को भागवत पुराण में वर्णन है मरीचि के 6 पुत्र ब्रह्मा जी की इस स्थिति पर हंसे थे जिसके कारण उन्हें राक्षस बनना पड़ा क्योंकि वह ठीक से समझे नहीं थे
मां सरस्वती को कैसे प्रसन्न करें?
वसंत पंचमी के आगमन पर, सही समय पर उठें, अपने घर, पूजा क्षेत्र को साफ करें, और सरस्वती पूजा के रीति-रिवाजों को निभाने के लिए स्क्रब करें। चूंकि पीला सरस्वती देवी की सबसे प्रिय छाया है, इसलिए स्क्रब करने से पहले अपने शरीर पर हर जगह नीम और हल्दी का गोंद लगाएं।
स्नान के बाद पीले रंग के वस्त्र धारण करें। निम्नलिखित चरण में पूजा चरण / क्षेत्र में सरस्वती प्रतीक स्थापित करना है। एक बेदाग सफेद/पीली सामग्री लें और इसे टेबल/स्टूल जैसी उठी हुई अवस्था पर रखें।
इसके बाद से बीच में मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित करें। देवी सरस्वती के साथ, आपको भगवान गणेश का प्रतीक भी पास में रखना होगा। आप इसी तरह अपनी किताबें/स्क्रैच पैड/संगीत वाद्ययंत्र/या कुछ अन्य कल्पनाशील शिल्प कौशल घटक को आइकन के करीब रख सकते हैं।
उस समय, एक थाली लें और उसमें हल्दी, कुमकुम, चावल, फूल के साथ सुधार करें और सरस्वती और गणेश को उनके दान की तलाश के लिए अर्पित करें। चिह्नों के सामने थोड़ी सी रोशनी/अगरबत्ती जलाएं, अपनी आंखें बंद करें, अपने हाथ की हथेलियों को मिलाएं और सरस्वती पूजा मंत्र और आरती पर चर्चा करें। पूजा के रीति-रिवाज समाप्त होने के बाद, प्रसाद को प्रियजनों के बीच साझा करें।
देवी सरस्वती किसकी पुत्री है ?
हमारे सृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्मदेव माता सरस्वती के पिता थे। सरस्वती पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि ब्रह्मदेव ने सृष्टि का निर्माण करने के बाद अपने वीर्य से सरस्वती जी को जन्म दिया था। इनकी कोई माता नहीं है इसलिए यह ब्रह्मा जी की पुत्री के रूप में जानी जाती थी।
वहीं मत्स्य पुराण के अनुसार ब्रह्मा के पांच सिर थे। जब उन्होंने सृष्टि की रचना की तो वह इस समस्त ब्रह्मांड में बिलकुल अकेले थे। ऐसे में उन्होंने अपने मुख से सरस्वती, सान्ध्य, ब्राह्मी को उत्पन्न किया
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