दस महाविद्या साधना गुरु दीक्षा लाभ Das Mahavidya
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दस महाविद्या साधना गुरु दीक्षा लाभ Das Mahavidya Deeksha Ph.85280 57364 इस सृष्टि के समस्त जड़-चेतन पदार्थ अपूर्ण हैं, क्योंकि पूर्ण तो केवल वह ब्रह्म ही है जो सर्वत्र व्याप्त है। अपूर्ण रह जाने पर ही जीव को पुनरपि जन्मं पुनरपि मरण’ के चक्र में बार-बार संसार में आना पड़ता है, और फिर उन्हीं क्रिया- कलापों में संलग्न होना पड़ता है। शिशु जब मां के गर्भ से जन्म लेता है, तो ब्रह्म स्वरूप ही होता है, उसी पूर्ण का रूप होता है, परन्तु गर्भ के बाहर आने के बाद उसके अन्तर्मन पर अन्य लोगों का प्रभाव पड़ता है और इस कारण धीरे-धीरे नवजात शिशु को अपना पूर्णत्व बोध विस्मृत होने लगता है और एक प्रकार से वह पूर्णता से अपूर्णता की ओर अग्रसर होने लगता है। और इस तरह एक अन्तराल बीत जाता है, वह छोटा शिशु | अब वयस्क बन चुका होता है।
नित्य नई समस्याओं से जूझता हुआ वह अपने आप को अपने ही आत्मजनों की भीड़ में भी नितान्त | अकेला अनुभव करने लगता है। रोज-रोज की भाग-दौड़ से एक तरह से वह थक जाता है, और जब उसे याद जाती है प्रभु की, तो कभी कभी पत्थर की मूर्तियों के आगे दो आंसू भी कुलका देता है। परन्तु उसे कोई हल मिलता नहीं चलते-चलते जब कभी पुण्यों के उदय होने पर सद्गुरु से मुलाकात होती है, तब उसके जीवन में प्रकाश की एक नई किरण फूटती है। ऐसा इसलिए सिद्धाश्रम प्राप्ति के लिए भी दो महाविद्याओं में दक्ष होना एक अनिवार्यता है और यदि साधक को योग्य गुरु से एक-एक कर इन दस महाविद्याओं की दीक्षाएं प्राप्त हो जाएं, तो उसके सौभाग्य की तुलना ही नहीं की जा सकती है। गुरुदेव अपने अंगुष्ठ द्वारा अपनी
उर्जा को साधक के आज्ञा चक्र में स्थापित कर देते हैं। होता है, क्योंकि मात्र सद्गुरु ही उसे बोध कराते हैं, कि वह अपूर्ण था नहीं अपितु बन गया है। गुरुदेव उसे बोध कराते हैं, कि वह असहाय नहीं, अपितु स्वयं उसी के अन्दर अनन्त सम्भावनाएं भरी पड़ी हैं, असम्भव को भी सम्भव कर दिखाने की क्षमता छुपी हुई है, गुरु की इसी क्रिया को दीक्षा कहते हैं, जिसमें गुरु अपने प्राणों को भर कर अपनी ऊर्जा को अष्टपाश में बंधे जीव में प्रवाहित करते हैं। गुरु दीक्षा प्राप्त करने के बाद साधक का मार्ग साधना के क्षेत्र में खुल जाता है। साधनाओं की बात आते ही दस महाविद्या का नाम सबसे ऊपर आता है। प्रत्येक महाविद्या का अपने आप में एक अलग ही महत्व है।
लाखों में कोई एक ही ऐसा होता है जिसे सद्गुरु से महाविद्या दीक्षा प्राप्त हो पाती है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद सिद्धियों के द्वार एक के बाद एक कर साधक के लिए खुलते चले जाते हैं।
दस महाविद्या साधना गुरु दीक्षा लाभ Das Mahavidya ki Deeksha दीक्षाओं से सम्बन्धित लाभ निम्न हैं-
1 काली महाविद्या दीक्षा – जीवन में शत्रु बाधा एवं कलह से पूर्ण मुक्ति तथा निर्भीक होकर विजय प्राप्त करने के लिए यह दीक्षा अद्वितीय है। देवी काली के दर्शन भी इस दीक्षा के बाद ही सम्भव होते हैं, गुरु द्वारा यह दीक्षा प्राप्त होने के बाद ही कालीदास में ज्ञान का स्रोत फूटा था, जिससे उन्होंने ‘मेघदूत’, ‘ऋतुसंहार’ जैसे अतुलनीय काव्यों की रचना की, इस दीक्षा से व्यक्ति की शक्ति भी कई गुना बढ़ जाती है।
2 तारा दीक्षा– इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद साधक को अर्थ की दृष्टि से कोई कष्ट नहीं रह जाता। उसके अन्दर ज्ञान, बुद्धि, शक्ति का प्रस्फुटन प्रारम्भ हो जाता है। तारा के सिद्ध साधकों को आकस्मिक धन प्राप्त होता है, ऐसा बहुधा देखने में आया है।
3 षोडशी त्रिपुर सुन्दरी दीक्षा – गृहस्थ सुख, अनुकूल विवाह एवं पौरुष प्राप्ति हेतु इस दीक्षा का विशेष महत्व है। मनोवांछित कार्य सिद्धि के लिए भी यह दीक्षा उपयुक्त है। इस दीक्षा से साधक को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थो की प्राप्ति होती है।
4 भुवनेश्वरी दीक्षा– यह दीक्षा प्राप्त करना ही साधकों के लिए सौभाग्य का प्रतीक है। भुवनेश्वरी की कृपा से जीवन में ऐश्वर्य एवं सम्पन्नता स्थाई रूप से आती है, गृहस्थ जीवन स्वर्ग तुल्य हो जाता है। भोग एवं मोक्ष को एक साथ प्राप्त करने के लिए भुवनेश्वरी दीक्षा को श्रेष्ठ माना गया है।
5 छिन्नमस्ता दीक्षा प्रायः देखने में आता है, कि व्यक्ति अकारण ही किन्हीं मुकदमे में उलझ गया है, या शत्रु उस पर हावी हो रहे हैं, या बने हुए कार्य बिगड़ जाते हैं, यह सब साधक पर किए गए किसी तंत्र प्रयोग का भी परिणाम हो सकता है, इसके निवारण हेतु छिन्नमस्ता दीक्षा) का प्रावधान है। यह दीक्षा प्राप्त करने के उपरान्त न केवल स्थितियां अनुकूल होती हैं, वरन साधक के लिए तंत्र साधनाओं में आगे बढ़ने का मार्ग भी प्रशस्त हो जाता है।
6 त्रिपुर भैरवी दीक्षा भूत-प्रेत एवं इतर योनियों द्वारा बाधा आने पर जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। त्रिपुर भैरवी दीक्षा से जहां प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है, वहीं शारीरिक दुर्बलता भी समाप्त होती है, व्यक्ति का स्वास्थ्य निखरने लगता है एवं उसमें आत्मशक्ति त्वरित गति से जाग्रत होती है, जिससे वह असाध्य कार्यों को भी पूर्ण करने में सक्षम हो पाता है।
7 धूमावती दीक्षा– इस दीक्षा के प्रभाव से शत्रु शीघ्र ही पराजित होते है। उच्चाटन आदि क्रियाओं में सिद्धि के लिए भी यह दीक्षा आवश्यक है। सन्तान यदि अस्वस्थ रहती हो, नित्य कोई रोग लगा रहता हो, तो धूमावती दीक्षा अत्यन्त अनुकूल मानी गई है।
8 बगलामुखी दीक्षा– यह दीक्षा अत्यन्त तेजस्वी, प्रभावकारी है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद साधक निडर एवं निर्भीक हो जाता है। प्रबल से प्रबल शत्रु को निस्तेज करने एवं सर्व कष्ट बाधा निवारण के लिए इससे अधिक उपयुक्त कोई दीक्षा नहीं है। इसके प्रभाव से रुका धन पुनः प्राप्त हो जाता है। भगवती वल्गा अपने साधकों को एक सुरक्षा चक्र प्रदान करती हैं, जो साधक को अजीवन हर खतरे से बचाता रहता है।
9 मातंगी दीक्षा– आज के इस मशीनी युग में जीवन यंत्रवत्, ठूंठ और नीरस बनकर रह गया है। जीवन में सरसता, आनन्द, भोग-विलास, प्रेम, सुयोग्य पति पत्नी प्राप्ति के लिए वाक् सिद्धि के शक्ति मांतगी दीक्षा श्रेष्ठ है। इसके अलावा साधक में गुण भी आ जाते हैं। उसमें आशीर्वाद व श्राप देने की जाती है, और वह एक सम्मोहक व कुशल वक्ता बन जाता है।
10 कमला दीक्षा– दरिद्रता को जड़ से समाप्त कर धन का अक्षय स्रोत प्राप्त करने में कमला दीक्षा अत्यंत प्रभावी होती है। इसके प्रभाव से व्यापार में चतुर्दिक वृद्धि होती है, यदि नौकरी पेशा व्यक्ति है, तो उसकी पदोन्नति होती है। बेरोजगार व्यक्ति को राज्यपद प्राप्त होता है। एक तरह से इस दीक्षा के माध्यम से जीवन में स्थायित्व आ जाता है।
दस महाविद्या साधना गुरु दीक्षा लाभ Das Mahavidya Deeksha प्रत्येक महाविद्या दीक्षा अपने आप में ही अद्वितीय है, साधक अपने पूर्व जन्म के संस्कारों से प्रेरित होकर गुरुदेव से निर्देश प्राप्त कर इनमें से कोई भी दीक्षा प्राप्त कर सकते हैं। प्रत्येक दीक्षा के महत्व का एक प्रतिशत भी वर्णन स्थाना भाव के कारण यहां नहीं हुआ है, वस्तुतः मात्र एक महाविद्या साधना सफल हो जाने पर ही साधक के लिए सिद्धियों का मार्ग खुल जाता है, और एक-एक करके सभी साधनाओं में सफल होता हुआ वह पूर्णता की ओर अग्रसर हो जाता है। यहां यह बात भी ध्यान देने योग्य है, कि दीक्षा कोई जादू | नहीं है,
कोई मदारी का खेल नहीं है, कि बटन दबाया और उधर कठपुतली का नाच शुरू हो गया। दीक्षा तो एक संस्कार है, जिसके माध्यम से कुसंस्कारों का क्षय होता है, अज्ञान, पाप और दारिद्र्य का नाश होता है, ज्ञान, शक्ति व सिद्धि प्राप्त होती है और मन में उमंग व प्रसन्नता आ पाती है।
दीक्षा के द्वारा साधक की पशुवृत्तियों का शमन होता है. और जब उसके चित्त में शुद्धता आ जाती है, उसके बाव ही इन दीक्षाओं के गुण प्रकट होने लगते हैं और साधक अपने अंदर सिद्धियों का दर्शन कर आश्चर्य चकित रह जाता है। जब कोई पूर्ण श्रद्धा भाव से दीक्षा प्राप्त करता है, तो गुरु को भी प्रसन्नता होती है, कि मैंने बीज को उपजाऊ भूमि में ही रोपा है। वास्तव में ही वे सौभाग्यशाली कहे जाते हैं, जिन्हें जीवन में योग्य गुरु द्वारा ऐसी दुर्लभ महाविद्या दीक्षाएं प्राप्त होती हैं, ऐसे साधकों से तो देवता भी ईर्ष्या करते हैं।
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