अनाहत चक्र सम्पूर्ण रहस्य Anahata-Chakra ph .85280 57364

अनाहत चक्र सम्पूर्ण रहस्य Anahata-Chakra ph .85280 57364 अनाहत चक्र इस चक्र का स्थान हृदय है। इसीलिए इसे ‘हृदय कमल’ या ‘हृदचक्र’ भी कह देते हैं। यहां अनाहत ध्वनि (बिना प्रयास या थाप के, बिना आघात के स्वतः ही उत्पन्न होने वाली ध्वनि) स्वतः ही होती रहती है। इस लिए इस चक्र को अनाहत कहा गया है। क्योंकि ध्वनियों के दो ही मूल प्रकार हैं-आहत व अनाहत। आहत ध्वनि किसी प्रकार की छेड़छाड़ या आघात से उत्पन्न होती है और अनाहत ध्वनि अज्ञात कारण से स्वतः ही उत्पन्न होती है।

 

अनाहत चक्र अनाहत चक्र अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि नीचे के तीन और ऊपर के तीन चक्रों में यह संतुलनात्मक सेतु बनाता है। इसके अलावा इसी चक्र में हृत्पुण्डरीक कमल भी है, जिसमें कि योगीजन अपने आराध्य या इष्ट देव का ध्यान करते हैं। तांत्रिक ग्रन्थों के अनुसार भी (जैसा कि शिव सार तन्त्र में कहा गया है) ‘शब्द ब्रह्म कहलाने वाले सदाशिव इसी अनाहत चक्र में हैं। क्योंकि इस स्थान से उत्पन्न होने वाली ध्वनि है त्रिगुणमय ॐ एवं सदाशिव।’ यह चक्र विशेष महत्त्ववान है। पंचमहाभूतों में यह चक्र ‘वायु’ तत्त्व का मुख्य स्थान है। वायु तत्त्व की तन्मात्रा ‘स्पर्श’ है, अत: ‘स्पर्श’ इस चक्र का प्रधान गुण/ज्ञान है।

इसी कारण इस चक्र की ज्ञानेन्द्रिय त्वचा और कर्मेन्द्रिय हाथ हैं । नाक व मुख से प्रवेश कर समस्त शरीर में विचरने वाली एवं जीवन के लिए परमावश्यक प्राणवायु का यह चक्र मुख्य स्थान है। इस चक्र का लोक ‘मर्ह’ या ‘महत्’ है जो अन्त:करण का मुख्य स्थान है। इस चक्र के अधिपति देवता ईशान रुद्र हैं जो अपनी त्रिनेत्रा चतुर्भुजा शक्ति काकिनी’ के साथ हैं। अतः इस चक्र की शक्ति ‘काकिनी’ हैं। इस चक्र का यन्त्र रूप षट्कोणाकार यह चक्र सिंदूरी रंग से प्रकाशित बारह दलों/पंखुड़ियों से युक्त हैं जिन पर स्थित कं, खं, गं, घं, डं, चं, छं, जं, झं, जं, टं तथा ठं। ये बारह वर्ण (अक्षर) कमल दल की ध्वनियों को दर्शाते हैं। इस चक्र का तत्त्व बीज ‘यं’ इसकी बीज ध्वनि का परिचायक है। इसका बीज वाहन मृग है जो इस चक्र की तिरछी बीज गति को स्पष्ट करता है। इस चक्र पर ध्यान के समय अंगूठे और तर्जनी उंगली के सिरों को परस्पर दबाया जाता है। इससे मन स्थिर होता है और उसकी मृग जैसी चंचलता रुकती है। वायु का स्वभाव विश्रामहीनता/हर समय गति करते रहना है।

तदनुसार इस चक्र का यन्त्र व तत्त्व रूप षट्कोण हर दिशा में गति को दर्शाता है। इस षटकोण में एक अधोमुखी तथा एक ऊर्ध्वमुखी त्रिकोण सम्मिलित है जो क्रमशः शक्ति व शैव-मान्यताओं का प्रतीक होने से दोनों का समन्वय (अर्धनारीश्वर) प्रदर्शित भी करता है। साथ ही ऊपर के तीन लोकों व चक्रों और नीचे के तीन लोकों व चक्रों का संतुलन व सामंजस्य भी इंगित करता है जो इस चक्र के प्रधान गुणों में से एक है। चंचलता, भटकाव, चेष्टा, लोभ, आशा, निराशा, चिंता, कपट, अविवेक, अनुताप, भ्रम (मरीचिका), वितर्क, सक्रियता, दृढ़ता, हठ, तृष्णा, सवंदेनशीलता, उत्साह आदि गुणावगुण इस चक्र की विशेषता हैं।

परकाया प्रवेश तथा वायु गमन इसी चक्र के प्रताप से सम्भव हो पाता है। ज्ञान, दक्षता, वाक्पटुता, समर्थता, निपुणता, शास्त्रों का मर्म समझना, काव्यामृत के रसास्वादन में प्रवीणता आदि इसी चक्र पर ध्यान लगाने से प्राप्त होते हैं। इस चक्र के बीज मन्त्र ‘यं’ का पुनरावृत्ति के साथ शुद्ध रूप से उच्चारण हृदय को तरंगित कर वहां के समस्त अवरोध दूर करता है, जिससे शक्ति का प्रवाह निर्बाध गति से ऊपर की ओर होने लगता है परिणाम स्वरूप परम प्रभु की आह्लादिनी शक्ति से साधक का साक्षात्कार होता है और उसे सब ओर आनन्द की ही प्रतीति होने लगती है। श्वांसों और प्राणों पर अधिकार प्राप्त हो जाता है। इस प्रकार सिद्धियों का आरम्भ इस चक्र को जीतने से होने लगता है। समदर्शिता, स्थायित्व/नियंत्रण, प्रेम, सत्यता, निर्लोभता, दया, क्षमा, करुणा, विवेकशीलता, अहिंसकता आदि गुणों का उदय इस चक्र के शुभ प्रभावों के अन्तर्गत ही आता है।

इस अनाहत चक्र में एक लिंग का होना भी माना गया है, जिसे ‘बाणलिंग’ कहते हैं। इसके ऊपर अति सूक्ष्म छिद्र में हृत्पुण्डरीक कमल का निवास बताया गया है, जहां योगी जन अपने आराध्य देवता का ध्यान करते हैं। गहन प्रेम की स्थिति में योगमार्ग को जाने बिना ही (प्रेमयोग के माध्यम से) अनजाने में प्रेमी इस कमल तक पहुंच जाता है और अपनी प्रेयसी को इस कमल में उसी प्रकार बसा लेता है, जैसे हनुमानजी के हृदयकमल में श्रीराम बसे रहते हैं। तभी तो कोई शायर अनजाने में ही यह पते की बात कह गया है- तस्वीर-ए-यार हमने अपने दिल में बसा रखी है। जब जी में आया, जरा गर्दन झुकाई, देख लिया। शुद्ध प्रेम की स्थिति में प्रेमी अर्धयोगी हो जाता है, इसमें दो राय नहीं है।

क्योंकि योग के प्रधान गुणों व लक्षणों में से एक-तन्मयता/एकाग्रता/ स्वविस्मृति- कन्सन्ट्रेशन उसमें सहज ही आ जाता है। यही गुण एक उच्च कोटि के कलाकार, कवि, लेखक, दार्शनिक, वैज्ञानिक या संगीतकार में भी होता है। अत: मेरी दृष्टि में वे सभी पथभ्रष्ट/दिशाभ्रष्ट योगी होते हैं, बहरहाल। लगे हाथ इस चक्र के बीजवाहन मृग का भी विवेचन करते चलें। चंचलता, तिरछी गति, किसी भी ओर सशंक दौड़ जाना, मृग तृष्णा/मृग मारीचिका, अस्थिरता, विश्रामहीनता, सतर्कता, जागरूकता, उत्साह, संवदेनशीलता और प्रसन्नता में कुलांचें भरना आदि समस्त गुण मृग में विद्यमान हैं जो इस चक्र से सम्बन्धित हैं। अतः इसका बीज वाहन मृग सर्वथा सार्थक है।

 

अनाहत चक्र बीज मंत्र 

इस चक्र के बीज मन्त्र ‘यं’ का पुनरावृत्ति के साथ शुद्ध रूप से उच्चारण हृदय को तरंगित कर वहां के समस्त अवरोध दूर करता है, जिससे शक्ति का प्रवाह निर्बाध गति से ऊपर की ओर होने लगता है परिणाम स्वरूप परम प्रभु की आह्लादिनी शक्ति से साधक का साक्षात्कार होता है और उसे सब ओर आनन्द की ही प्रतीति होने लगती है। श्वांसों और प्राणों पर अधिकार प्राप्त हो जाता है। इस प्रकार सिद्धियों का आरम्भ इस चक्र को जीतने से होने लगता है। समदर्शिता, स्थायित्व/नियंत्रण, प्रेम, सत्यता, निर्लोभता, दया, क्षमा, करुणा, विवेकशीलता, अहिंसकता आदि गुणों का उदय इस चक्र के शुभ प्रभावों के अन्तर्गत ही आता है।

अनाहत चक्र  के लाभ

इस चक्र की साधना करने पर साधक के अंदर समदर्शिता, स्थायित्व/नियंत्रण, प्रेम, सत्यता, निर्लोभता, दया, क्षमा, करुणा, विवेकशीलता, अहिंसकता आदि गुणों का उदय इस चक्र के शुभ प्रभावों के अन्तर्गत ही आता है।  परकाया प्रवेश तथा वायु गमन इसी चक्र के प्रताप से सम्भव हो पाता है। ज्ञान, दक्षता, वाक्पटुता, समर्थता, निपुणता, शास्त्रों का मर्म समझना, काव्यामृत के रसास्वादन में प्रवीणता आदि इसी चक्र पर ध्यान लगाने से प्राप्त होते हैं 

अनाहत चक्र जागरण लक्षण
जब यह चक्र जागृत होता है साधक के भीतर बहुत सरे परवर्तन होती है जैसे साधक के सुभाव में मधुरता आने लगती है क्रोध की जगह ख़तम हो जाती है प्रेम, सत्यता, निर्लोभता, दया, क्षमा, करुणा, विवेकशीलता, अहिंसकता आदि गुणों का उदय महसूस होगा  है।
अनाहत चक्र के अधिपति देवता
इस चक्र के अधिपति देवता ईशान रुद्र हैं जो अपनी त्रिनेत्रा चतुर्भुजा शक्ति काकिनी’ के साथ हैं। अतः इस चक्र की शक्ति ‘काकिनी’ हैं।
अनाहत चक्रका रंग 

इस चक्र का यन्त्र रूप षट्कोणाकार यह चक्र सिंदूरी रंग से प्रकाशित बारह दलों/पंखुड़ियों से युक्त हैं जिन पर स्थित कं, खं, गं, घं, डं, चं, छं, जं, झं, जं, टं तथा ठं। ये बारह वर्ण (अक्षर) कमल दल की ध्वनियों को दर्शाते हैं।