चमत्कारी वीर बेताल साधना – Veer Betal sadhna ph .8528057364
चमत्कारी वीर बेताल साधना – Veer Betal sadhna ph .8528057364 वीर बेताल Veer Betal सिद्धि जो जीवन की अद्वितीय साधना है, जो व्यक्ति को रंक से राजा बना देती है, जो साधारण व्यक्ति को अद्वितीय बलशाली बना देती है और उसके द्वारा कठिन और असम्भव कार्य भी चुटकी बजाते सम्पन्न हो जाते हैं।
मैं यह कहूं कि ‘ वीर बेताल Veer Betal स्वयं में सरलता, दयालुता और ठगे जाने की सीमा तक बुद्धि से सरल, किसी दिद्युत शक्ति की ही दूसरी संज्ञा होती है, तो क्या अनेक पाठक मेरा विश्वास कर सकेंगे? केवल पाठक ही नहीं वीर बेताल Veer Betal के नाम से किसी रोमांचक अनुभूति की प्रतीक्षा में दिल थाम कर बैठे रहने वाले साधक मी सहसा मेरी बात पर विश्वास नहीं कर सकेंगे।इस तथ्य से परिचित हूं किन्तु जो सत्यता है वह यही है।
यह सत्यता स्वयं में विरोधाभासी भी है और हतप्रभ कर देने वाली भी. किन्तु निरपेक्ष रूप से सत्यता यही है। विरोधाभासी इस कारणवश, कि एक विद्युत शक्ति की तीव्रता से भरा व्यक्तित्व सरल, दयालु और ठगे जाने की सीमा तक बुद्धि से सरल कैसे हो सकता है? विद्युत का तो गुण ही होता है. आघात दे देना, भस्म कर देना, एक ही क्षण में सब कुछ जलाकर राख कर देना और जरा सा चूके, तो स्वयं सृजनकर्ता को ही दिनष्ट कर देना; किन्तु विद्युत की ऐसी धारणा केवल विज्ञान या साइंस में ही सम्भाव्य हो सकती है, भारतीय ज्ञान में नहीं।
वीर बेताल Veer Betal वस्तुतः ज्ञान पक्ष की एक विद्युत ही है, जिसको नियंत्रित करने वाला विज्ञान ही ‘साधना’ कहलाता है। ‘भारतीय विज्ञान’ जो साइंस नहीं है, नियंत्रण करने के आग्रह से युक्त कोई कला अथवा युक्ति भर ही होती है, क्योंकि नियंत्रित शक्ति ही सृजन कर सकती है, अनियंत्रित शक्ति नहीं।
वीर बेताल Veer Betal क्यों भारतीय चिंतन में जुगुप्सा उत्पन्न करने वाला हो गया? क्यों सामान्य साधक और गृहस्थ साथक उसके नान तक से ही घृणा करने लग जाते हैं? जैसे प्रश्नों के उत्तर में मैं वही कई बार दोहराई बात पुनः नहीं कहना चाहता कि गलत हाथों में पड़ यह साधना भी तंत्र व सावर मंत्रों की ही भांति निम्न दृष्टि से देखी जाने लग गई।
यह तो सत्य है कि ऐसी विलक्षण साधनाएं, जो अपने आप में अचूक थीं. गलत हाथों में पड़कर समाज की सामान्य धारा से बहिष्कृत कर दी गई. किन्तु क्या कभी किसी ने इस बात पर ध्यान देना चाहा है, कि क्यों ये साधनाएं गलत हाथों में जा पड़ी? क्या इसमें केवल उन्ही लोगों का योगदान रहा जिनकी प्रवृत्तिया दूषित थीं अथवा समाज का भी कोई योगदान रहा होगा?
कटु सत्य तो यही है कि ऐसी दुर्लभ विद्याओं के गलत हाथों में पड़ जाने का कारण स्वयं समाज ही होता है। जब समाज के प्रबुद्ध वर्ग के व्यक्ति ललक और गम्भीरता से स्वयं परीक्षण कर सत्यता को परखने की भावना व क्रिया त्याग देते हैं, तभी समाज में ऐसा क्षय होता है।
वस्तुतः कोई भी साधन स्वयमेव जाकर गलत हाथों में नहीं पड़ जाती। बस होता इतना ही है कि विवेचनादान, गम्भीर और प्रबुद्ध साधक अपनी बौद्धिकता के दम्भ में इन साधनाओं के प्रति एक प्रकार का उपेक्षा भाव (अथवा जिसे पूर्वाग्रह कहें तो अधिक उचित रहेगा ) मन में पनपा लेते हैं, जिससे साधना उनके मध्य में वितरित न होकर केवल ऐसे व्यक्तियों के मध्य प्रश्रय पा जाती है, जिनका लक्ष्य येन-केन-प्रकारेण स्वार्थ सिद्धि ही होता है। उग्र साधनाओं अथवा तीव्र साधनाओं के संदर्भ में तो यही बात विशेष रूप से होती है, क्योंकि जितनी उम्र साधना होगी स्वार्थ सिद्धि उतनी ही तीव्रता से हो सकेगी। |
पृथकतः कहना चाहूंगा कि कोई भी साधना अपने मूल स्वरूप में न तो उग्र होती है, न सौम्य केवल उसको प्रयुक्ति और किसी एक क्षेत्र में बार बार प्रयुक्ति ही उसे सौम्य या उग्र की संज्ञा दे जाती है। उदाहरणार्थं बगलामुखी महाविद्या साधना, जिसका केवल एक मात्र प्रयोग शत्रुनाश के लिए विख्यात होने के कारण वह उग्र साधनाओं की श्रेणी में स्थापित कर दी गई, जबकि भगवती बगलामुखी की यह सत्य है, कि वीर बेताल Veer Betal साधना को सम्पन्न करने के लिए साधक के पास अद्भुत बल और बल से भी अधिक मानसिक दृढ़ता का होना आवश्यक है, किन्तु इसमें इतना आश्चर्य क्यों ? इतनी वितृष्णा भी क्यों ? -जबकि इससे अधिक सरल और सहज कोई और साधना है. ही नहीं । एक अन्य सज्ञा पीताम्बरा भी है।
पीताम्बरा अर्थात् भगवान श्रीमन्नारायण की आधारभूत शक्ति पीताम्बर धारी की ही कियाशील शक्ति है पीताम्बरा अर्थात् भगवती बगलामुखी।
वीर बेताल Veer Betal साधना प्राचीन काल में इस हेयता को नहीं प्राप्त हुई थी। यदि ऐसा होता तो क्यों हनुमान इसे सम्पन्न कर, केवल हनुमान ही नहीं वीर हनुमान की संज्ञा पर जाते? एक साधारण वानर से किस प्रकार ‘अतुलित बलधाम, हेमशैलाभदेह’ की स्थिति को प्राप्त कर लेते।
साधको को जिज्ञासा हो सकती है. कि रामचरित मानस अथवा रामायण में तो ऐसा कोई उल्लेख नहीं मिलता, कि हनुमान ने दीर वैताल की साधना सम्पन्न की थी? प्रत्युत्तर में इतना ही कहना है कि रामचरित मानस में तो उस कसरत या दंड बैठक का भी वर्णन नहीं मिलता है. जिसे सम्पन्न कर हनुमान ने उपरोक्त स्थिति प्राप्त साधनाओ की चर्चा करना रामचरित मानस का उद्देश्य है ही नहीं यह तो एक भक्ति परक रचना है, जिसमें प्रसंगवश हनुमान को ऐसी विदिध शक्तियां वर्णित होती जाती हैं, जो अष्टादश सिद्धियों के अन्तर्गत आती हैं।
यदि रामचरित मानस अष्टादश सिद्धियों को प्रकारांतर से स्वीकार करती है, हनुमान द्वारा अणिमा लघिमा का प्रयोग अथवा उनका आकाश गमन करना स्वीकार करती है, तो या प्रकारांतर से साधना की महत्ता को ही नहीं वर्णित कर जाती? जिस प्रकार आज ‘वीर’ शब्द किसी बलवान पौरुषवान व्यक्ति के केवल शरीर का ही पर्याय है,
उसी प्रकार प्रारम्भ में यह उस सम्मान का पर्याय था, जो किसी साधक द्वाटरा वीर बेताल Veer Betal साधना करने और उसमें सफल होने पर उसके नाम के साथ सम्मिलित कर उसके साधकत्व का समाज में सम्मान करने की बात होती थी। यह सत्य है कि वीर बेताल Veer Betal साधना को सम्पन्न करने के लिए साधक के पास अदभुत बल और बल से भी अधिक मानसिक दृढ़ता का होना आवश्यक है. किन्तु इसमें इतना आश्चर्य क्यों? इतनी वितृष्णा भी क्यों?
विद्युत नियंत्रण करने वाले व्यक्ति को भी तो कुछ क्षमताएं विकसित करनी पड़ती हैं, कुछ उपकरण या यंत्र साथ रखने पड़ते हैं अपने साथ तभी तो विद्युत की आक्रमणकारी शक्ति का प्रभाव समाप्त कर उसका कल्याणकारी उपयोग कर पाना संभव होता है। वीर बेताल Veer Betal साधना में विद्युत अर्थात इलेक्ट्रिक के दिपरीत प्रारम्भ से ही कोई विपरीत प्रभाव होता ही नहीं. किन्तु जैसा कि प्रारम्भ में कहा, कि वीर बेताल Veer Betal का स्वरूप इस प्रकार का होता है कि निर्णय ले सकता उसकी क्षमता से बाहर होता है और तब साधक, सावना के माध्यम से वस्तुतः उसे निर्देशित करने की कला ही सीखता है।
यह मिथ्या धारणा है, कि वीर बैताल इतर योनि की श्रेणी में आता है। वीर बेताल Veer Betal तो साक्षात् भगवान शिव का ही अंश और गण होता है तथा इसी कारण अपने स्वामी भोलेनाथ की ही भांति भोला भी होता है। वीर बेताल Veer Betal तो प्रत्यक्षीकरण की अपेक्षा समाहितीकरण की साधना ही अधिक होती है। तथा इसी कारणवश प्राचीन काल में गुरुजन अपने समीप रहने वाले शिष्यों को यह साधना अवश्यमेव सम्पन्न करा कर उन्हें दृढ़ता, पौरुषता के गुणों से युक्त करते थे, जिससे वे समाज में जाकर निर्विघ्नता के साथ सक्रिय रह सके। इसी का अत्यन्त सूक्ष्म भेद यह है, कि जहां गुरु यह अनुभव करते थे कि उनका कोई शिष्य सीधे वीर ताल साधना को करने में असमर्थ है, तब वे उसे प्रारम्भ में हनुमान साधना सम्पन्न करवाते हुए वीर बेताल Veer Betal साधना तक ले जाते थे।
वीर बेताल Veer Betal तो हनुमान की ही भांति स्वामी भक्ति और सरलता का उदाहरण होता है, जिस प्रकार हनुमान सही जड़ी न पहचान पाने के कारण पूरा पर्यंत ही उठा लाए थे। प्राय: भोलेपन में वीर बेताल Veer Betal भी सिद्ध होने के बाद ऐसा कुछ कर सकता है। इसीलिए तो कहा कि कठिन वीर साधना नहीं है, कठिन तो है वीर बेताल Veer Betal पर नियंत्रण रखना। पौरुष पर पौरुष ही नियंत्रण कर सकता है। केवल हनुमान या जामवन्त ही नहीं, वीर साधना की सिद्धि करने वाले अनेक राजपुरुष और व्यक्तित्व हुए हैं।
विक्रमादित्य और कर्ण सरीखे ने समझ लिया था, कि यदि ये इतिहास के पन्नों अपना नाम दुर्धर्ष योद्धा के रूप में अंकित कराना हैं तो उन्हें पूर्ण प्रामाणिकता से वीर बेताल Veer Betal साधना सिद्धि प्राप्त करनी ही होगी उन्होंने ऐसा किया भी और कारणवश वीर विक्रमादित्य व वीर कर्ण के नाम से हमें अमर हो गए। क्या यह संभव नहीं, कि कर्ण में देने की जो उदारता थी, इतना भोलापन उतर आया उसके मूल में इसी वीर बेताल Veer Betal साधना का ही कोई कार्य कर रहा हो? तभी तो कर्ण को केवल वीर कर्ण नहीं दानवीर कर्ण भी कहा गया।
कालांतर में ज्यों ज्यों कतिपय कारणों से शिष्यों को धारणा शक्ति घटती गई, तेज व बल को समाहित करने की पात्रता का जो अभाव हो गया और जिसे परिलक्षित कर गुरुजनों ने अपने शिष्यों को बीर वैताल की मूल साधना के स्थान पर उनके भी साधक हनुमान की साधना को कराना आरम्भ करा दिया।
कदाचित वही कारण है वीर बेताल Veer Betal नाका इतिहास के पृष्ठों में सिमट जाने का। हनुमान की स्थापना आज गली-गली, चौराहे-चौराहे पर है। सम्भव है आने वाले दो सौ वर्षों में वीर्य, बल, तेज, ब्रह्मचर्य का इतना भी सम्मान न रह जाए और वीर बेताल Veer Betal साधना की ही भांति लोग हनुमान साधना को भी भय मिश्रित आश्चर्य से देखने लग जाए।
ऐसी स्थिति में दोष किसका होगा? यही कारण है कि साधना की अक्षुण्णता समाज में बनी रहनी चाहिए, जिससे न तो हमारी संतानें उससे वंचित हो न उसके विकृत अथवा कम प्रभावशाली रूप को प्राप्त करने के लिए विवश हो यही मंतव्य है,
सम्भव है आने वाले दो सौ वर्षों में वीर्य, बल, तेज, ब्रह्मचर्य का इतना भी सम्मान न रह जाए और वीर बेताल Veer Betal साधना की ही भांति लोग हनुमान साधना को भी भय मिश्रित आश्चर्य से देखने लग जाएं। ऐसी स्थिति में दोष किसका होगा? साधना का परीक्षण अपने संन्यस्त शिष्यों के माध्यम से करने के बाद, इसे समाज के समक्ष स्पष्ट करना आवश्यक समझा, क्योंकि इस युग धर्म की यही अपेक्षा है तथा गुरुत्व के गुणों से युक्त व्यक्तित्व ही युग की अपेक्षा का वास्तविक आकलन कर सकते हैं।
पुन स्पष्ट करना चाहूंगा कि वीर बेताल Veer Betal साधना केवल पौरुष प्राप्ति की जीवन में निर्भय बनने की तथा साथ ही साथ अतुलित बल के स्वामी बनने की साधना होती है। शेष सब कुछ मूल साधना में सफल हो जाने के उपरांत ही घटित होना संभव हो पाता है, चाहे वह अष्टादश सिद्धियों का विषय हो अथवा दीर वैताल के माध्यम से मनोवांछित कार्य सम्पन्न कराने का इस साधना को सम्पन्न करने के इच्छुक योग्य गम्भीर साधक के लिए आवश्यक है
वीर बेताल Veer Betal साधना विधि
रात्रि में दस बजे के पश्चात् स्नान कर घर के किसी एकांत स्थान पर साधना में प्रवृत्त हो या इस साधना को किसी भी मंगलवार से की जा सकती है। घर के अतिरिक्त इसे किसी प्राचीन एवं निर्जन शिव मंदिर के प्रांगण अथवा किसी नदी, सालाब के किनारे निर्जन तट पर सम्पन्न करना भी शास्त्रोच्ति माना गया है। पहनने के वस्त्र आसन सामने बिछाने वाला वस्त्र सभी गहरे काले रंग के होने आवश्यक हैं।
साधक साधना में प्रवृत्त होने से पूर्व प्रत्येक छोटी से छोटी साधना सामग्री अपने समीप रख लें। साधना के बी में उठना, साधना भंग के समान हो जाता है। इस साधना की आवश्यक सामग्री ताम्रपत्र पर अंकित वीर बेताल Veer Betal यत्र एवं वीर बेताल Veer Betal माला हैं।
यंत्र को साधक अपने सामने बिछे काले वस्त्र पर किसी ताम्र पात्र में रख कर स्नान कराएं और वो-पोंछ कर पुनः (पात्र का जल फेंक दें) पात्र में स्थापित कर, सिंदूर व अक्षत से पूजन करें। पूजन के उपरांत यंत्र के ऊपर एक सुपारी रख कर उसका भी इसी प्रकार से पूजन कर
निम्न ध्यान
उच्चारित करें कु फं फुल्लार शब्दो वसति फणिजयते यस्य कण्ठे डि डि नितिडिन्नम् डमरु यस्य पाणी प्रकम्पम् । तक तक तन्दाति तन्दात् धीगति श्रीमति व्योमदार्मि सकल भय हरो भैरवो स स न पायात् ।।
इसके पश्चात ‘वीर बेताल Veer Betal माला से निम्न मंत्र को पन्द्रह (15) माला मंत्र जप सम्पन्न करें मंत्र ॥
ॐ वीर सिद्धिं दर्शय दर्शय फट् ॥ OM BHRAAM BHREEM BHROUM VEER SIDDHIM DARSHAY DARSHAY PHAT साधना का उपरोक्त क्रम आगामी चार दिनों तक (कुल पांच दिन ) तक अक्षुण्ण रूप से बनाएं रखें। यदि सम्भव हो, तो प्रत्येक दिन साधना उसी समय प्रारम्भ करे, जिस समय पर प्रथम दिन प्रारम्भ की थी। अंतिम दिन समस्त साधना सामग्री को किसी नदी, सरोवर अथवा शिव मंदिर में भेंट के साथ विसर्जित कर दें। जीवन में अभाव की समाप्ति, विश्वस्त सहायक, पौरुष व बल की यह अनुपम साधना है, जिसका अनुभव साधक स्वयं साधना सम्पन्न करने के उपरांत कर सकते। है। प्रस्तुत साधना में बटुक भैरव का समावेश साधना की अतिरिक्त विशिष्टता है
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