प्राचीन चमत्कारी उच्छिष्ट गणपति शाबर साधना Uchchhishta Ganapati Sadhna PH. 85280 57364
चमत्कारी उच्छिष्ट गणपति शाबर साधना uchchhishta ganapati sadhna उच्छिष्ट गणपति शाबर साधना समय के साथ-साथ अनेक परिवर्तन अपने आप होते चले जाते हैं। यह परिवर्तन अक्सर लोगों की मानसिकता में आने वाले बदलाव के परिणामस्वरूप परिलक्षित होते हैं। आज ऐसा समय है जहां जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में बहुत अधिक प्रतिस्पर्द्धा देखने में आ रही है।
इस स्थिति का जो ठीक से सामना कर पाते हैं, वे निरन्तर उन्नति करते चले जाते हैं। अनेक लोगों से बहुत आगे निकल जाते हैं। जो पीछे रह जाते हैं, वे आगे निकले लोगों के प्रति ईर्ष्या से भर जाते हैं। ऐसे में उनका एकमात्र प्रयास रहता है कि किसी भी प्रकार से उन्हें चोट पहुंचाना, उन्हें परेशान करना ।
इसके लिये अनेक हत्थकण्डे अपनाये जाते हैं। इन्हीं में एक हत्थकण्डा यह भी है कि किसी को झूठे केस में फंसा कर अदालतों के चक्कर काटने को विवश कर देना । अनेक लोग इन्हीं कारणों से अदालतों में फंसे नजर आते हैं। कभी-कभी तो व्यक्तिगत शत्रुता निकालने के लिये भी ऐसा गलत कार्य कर देते हैं। ऐसी स्थिति में अक्सर आम व्यक्ति ही फंसता है । कभी-कभी तो ऐसे लोग भी फंस जाते हैं जिन्होंने कभी किसी अदालत का मुंह तक नहीं देखा था । ऐसा लोगों के लिये उच्छिष्ट गणपति साधना uchchhishta ganapat बहुत लाभदायक सिद्ध होती है ।
भगवान गणपति को समस्त प्रकार के सुख एवं वैभव देने वाले तथा कष्टों का हरण करने वाले देव के रूप में माना जाता है । इसलिये इस साधना के प्रभाव से अदालत में झूठे केसों में फंसे लोगों की समस्याओं का समाधान होने लगता है । इस साधना को अनेक साधकों द्वारा सम्पन्न किया गया है। उनमें से अधिकांश को अदालत ने सम्मान सहित बरी किया है। पाठकों के लिये इस साधना का उल्लेख कर रहा हूं ।
उच्छिष्ट गणपति Uchchhishta Ganapati शाबर साधना विधि
उच्छिष्ट गणपति Uchchhishta Ganapati शाबर साधना विधि इस शाबर गणपति अनुष्ठान के लिये सबसे पहले एक वट मूल (बरगद की जड़) निर्मित गणेश प्रतिमा, पांच गोमती चक्र और एक श्वेत चन्दन माला की आवश्यकता होती है। अनुष्ठान के लिये बैठने के लिये लाल रंग का ऊनी आसन, सिन्दूर, घी, धूप, दीप, लोबान, लाल कनेर के पुष्प, लाल रेशमी वस्त्र, स्वयं के पहनने के लिये एक लाल या श्वेत रंग की धोती, केसर से रंगा जनेऊ आदि वस्तुओं की आवश्यकता रहती है ।
सबसे पहले किसी विशेष शुभ मुहूर्त जैसे कि होली, दीपावली, दशहरा अथवा ग्रहण आदि के समय किसी वट वृक्ष की जड़ खोदकर घर ले आयें और उसे गणपति प्रतिमा का रूप प्रदान करके अपने पास रख लें। उसी शुभ मुहूर्त में इस वट गणेश प्रतिमा की विधिवत् षोडशोपचार पूजा-अर्चना करके चेतना सम्पन्न कर लेना चाहिये । ऐसी चेतना सम्पन्न प्रतिमा ही अनुष्ठान को सम्पन्न करने के काम में लायी जाती है ।
यह शाबर अनुष्ठान लगातार ग्यारह बुधवार को किया जाता । इसे किसी शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि अथवा शुक्लपक्ष के किसी भी बुधवार से प्रारम्भ किया जा सकता है। अगर इस शाबर अनुष्ठान को किसी प्राचीन गणेश मंदिर में बैठकर रात्रि के समय सम्पन्न किया जाये तो तत्काल इसका प्रभाव दिखाई देने लग जाता है । यद्यपि इस अनुष्ठान को किसी तालाब के किनारे स्थित वट वृक्ष के नीचे बैठकर अथवा घर पर भी किसी एकान्त कक्ष में सम्पन्न किया जा सकता है। अनुष्ठान काल में अन्य सदस्यों का प्रवेश इस कक्ष में वर्जित रहे ।
इस शाबर अनुष्ठान के लिये रात्रि का समय उपयुक्त रहता है। इसे प्रातःकाल चार से सात बजे के मध्य भी किया जा सकता है। जिस दिन से इस अनुष्ठान को शुरू करना हो, उस दिन रात्रि के नौ बजे के आसपास स्नान करके शरीर शुद्धि कर लें। स्वच्छ श्वेत या लाल रंग की धोती शरीर पर धारण कर लें। शरीर का शेष भाग निवस्त्र ही रहे। इसके पश्चात् अपने पूजाकक्ष में जाकर लाल ऊनी आसन बिछाकर पूर्वाभिमुख होकर बैठ जायें । अगर यह अनुष्ठान गणेश मंदिर में बैठकर सम्पन्न करना हो तो उस स्थिति में पूर्वाभिमुख होकर बैठना आवश्यक नहीं है । उस स्थिति में गणेश प्रतिमा के सामने मुंह करके बैठना ही पर्याप्त रहता है।
आसन पर बैठने के पश्चात् अपने सामने लकड़ी की एक चौकी रख कर उसके ऊपर लाल रंग का रेशमी वस्त्र बिछा लें। चौकी पर चांदी या तांबे की एक प्लेट रख कर उसमें केसर से एक स्वस्तिक की आकृति बनायें और उस पर चेतना सम्पन्न वट मूल निर्मित गणपति प्रतिमा को स्थापित कर दें । एक कांसे की कटोरी में घी और सिन्दूर को ठीक से मिला लें तथा अग्रांकित गणपति मंत्र का ग्यारह बार उच्चारण करते हुये पहले गणेश प्रतिमा को गंगाजल के छींटें दें और फिर उस पर सिन्दूर का लेप कर दें।
उच्छिष्ट गणपति मंत्र Uchchhishta Ganapati MANTRA
गणपति मंत्र है- ॐ वट वरदाय विजय गणपतये नमः ।
सिन्दूर लेपन के पश्चात् उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करते हुये गणेश प्रतिमा पर 21 लाल कनेर के पुष्प चढ़ावें । उन्हें अक्षत, पान, सुपारी और दूर्वा अर्पित करें। फिर गणेश जी पर इसी मंत्र का उच्चारण करते हुये एक-एक करके पांचों गोमती चक्र भी अर्पित कर दें।
गोमती चक्रों को अर्पित करने से पहले एक-एक लौंग, इलाइची और थोड़े से अक्षत अर्पित करें। इनके साथ ही गणपति के सामने घी का दीपक प्रज्ज्वलित करके रखें। गणपति को नैवेद्य के रूप में गुड़ और थोड़े से भुने हुये चने रखे जाते हैं। चौकी पर ही गणेश प्रतिमा के बायीं तरफ एक मिट्टी के बर्तन में गाय का जला हुआ कण्डा रखकर उसमें लोबान, सुगन्धबाला, सूखे हुये लाल गुलाब की पंखुड़ियां एवं की बार-बार धूनी दें।
तत्पश्चात् अपनी आंखें बंद करके तथा हाथों से ज्ञानमुद्रा (हथेलियों को खुला रख कर अंगुष्ठा मूल की ओर तर्जनी के प्रथम पोर का स्पर्श करना) बनाकर पूर्ण भक्तिभाव से अपनी प्रार्थना को बार-बार दोहराते रहें ।
वट मूल निर्मित यह गणपति प्रतिमा इतनी चेतना सम्पन्न बन जाती है कि जब साधक पूर्ण तन्यमयता के साथ अपनी प्रार्थना करता है, तो अनुष्ठान के प्रारम्भिक दिनों में ही वह एक विशेष प्रकार का कम्पन शरीर में अनुभव करने लग जाता है। इस अनुष्ठान के दौरान अन्तिम ग्यारहवें बुधवार तक गणपति के सवा लाख मंत्रों का जाप करना होता है। अतः प्रत्येक रात्रि को कितने मंत्रों का जाप करना है, इसका निर्णय आप ही करें। इस अनुष्ठान में मंत्रजाप के लिये श्वेत चंदन माला का प्रयोग किया जाता है।
चंदन माला की जगह स्फटिक माला का प्रयोग भी किया जा सकता है। इस प्रकार के अनुष्ठानों में कभी भी पहले पूजा-पाठ के काम में लायी गई वस्तुओं का पुनः प्रयोग नहीं करना चाहिये। इसका कारण यह बताया जाता है कि किसी भी तरह के अनुष्ठानों में त्रयुक्त की जाने वाली तांत्रोक्त वस्तुएं विशेष शक्ति सम्पन्न रहती हैं और उनकी यह शक्तियां पूजा-पाठ, अनुष्ठानों के दौरान प्रभावित होती रहती हैं ।
अतः प्रत्येक अनुष्ठान में सदैव नवीन चीजों को ही प्रयोग में लाना चाहिये । इनके अलावा भी कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिये। जैसे कि पूरे जपकाल के दौरान घी का दीपक निरन्तर जलते रहना चाहिये तथा मिट्टी के बर्तन में भी निरन्तर लोबान, घी आदि की समिधा अर्पित करते रहना चाहिये । जब प्रथम दिन का मंत्रजाप पूर्ण संख्या में सम्पन्न हो जाये तो एक बार पुनः अपनी प्रार्थना को गणपति के सामने दोहरा लेना चाहिये ।
तत्पश्चात् ही गणपति की आज्ञा लेकर आसन से उठना चाहिये । गणपति को जो गुड़ और भुने चने का नैवेद्य चढ़ाया जाता है। जप के पश्चात् उसमें से थोड़ा सा अंश निकाल कर मिट्टी के बर्तन की अग्नि को अर्पित करना चाहिये । उसका थोड़ा सा अंश कौये अथवा काले कुत्ते को खिला देना चाहिये तथा थोड़ा सा अंश स्वयं ग्रहण करके शेष को पानी में प्रवाहित कर देना चाहिये ।
इस शाबर गणपति अनुष्ठान का यह क्रम निरन्तर 31 दिन तक इसी प्रकार ही बनाये रखना चाहिये। यद्यपि इस अनुष्ठान के दौरान अपने सभी घरेलू अथवा व्यवसाय संबंधी कार्यों को पूर्ण रूप से जारी रखा जा सकता है, नौकरी आदि पर भी जाया जा सकता है, लेकिन पूरे अनुष्ठानकाल में पूर्ण सदाचार का पालन अवश्य करना चाहिये।
दिन में केवल एक समय सुपाच्य भोजन ग्रहण करें । ब्रह्मचर्य का पालन करें, अनुष्ठान के बीच-बीच में भी अपने अनुभवों पर गुरु के साथ विचार-विमर्श करते रहें । पूरे अनुष्ठान काल के दौरान मंत्रजाप के पश्चात् तेल का एक दीया जलाकर घर की मुण्डेर पर अथवा किसी वट / पीपल ( बेरी वृक्ष) के नीचे अवश्य रख दें। इस दीये का इस अनुष्ठान में विशेष महत्व होता है।
इस साधना क्रम को अगले ग्यारह बुधवार तक इस प्रकार से बनाये रखना चाहिये । प्रत्येक रात्रि को स्नान करके स्वच्छ श्वेत या लाल धोती पहन कर ही अनुष्ठान में बैठना चाहिये। चौकी पर एकत्रित हुई पूजा सामग्री को तथा मिट्टी के बर्तन की राख को किसी पात्र में भर कर एकत्रित करते रहना चाहिये ।
प्रत्येक दिन वटमूल निर्मित गणेश प्रतिमा को गंगाजल के छींटे मारकर घी मिश्रित सिन्दूर का लेपन करना चाहिये। मंत्रोच्चार के साथ नियमित रूप से 21 लाल कनेर के पुष्प, अक्षत, पान, सुपारी और पांचों गोमती चक्रों को पूर्ववत् अर्पित करते रहना चाहिये ।
इसके पश्चात् दीपदान करके गुड़ और भुने चने का नैवेद्य चढ़ाना चाहिये । तत्पश्चात् प्रथम दिन की भांति मिट्टी के बर्तन में आग जलाकर लोबान, लाल गुलाब की पंखड़ियां, सुगंधबाला और घी मिश्रित समिधा अर्प करनी चाहिये। इसके बाद अपनी आंखें बन्द करके और हाथों से ज्ञानमुद्रा बनाकर पूर्ण एकाग्रता के साथ अपनी प्रार्थना को बार-बार दोहराना चाहिये तथा गणपति से आज्ञा लेकर चंदन अथवा स्फटिक माला पर 4000 मंत्रजाप पूर्ण कर लेने चाहिये। जपोपरान्त की सम्पूर्ण प्रक्रिया को भी पूर्ववत् ही बनाये रखना चाहिये । आसन से उठने से पहले अपनी प्रार्थना को पुनः दोहरा लेना चाहिये तथा गणपति की आज्ञा लेकर ही आसन से उठना चाहिये ।
गणपति को अर्पित किये गये नैवेद्य का उपयोग भी पूर्ववत् करना चाहिये। साथ ही आसन से उठने के बाद तेल का एक दीप जलाकर घर की मुण्डेर अथवा वट या पीपल या बेरी वृक्ष के नीचे रख देना चाहिये। अनुष्ठान का यही क्रम है जो पूरे अनुष्ठान काल में बना रहता है ।
जिस दिन यह अनुष्ठान पूर्ण होने वाला होता है उस दिन नैवेद्य के रूप में गुड़ और भुने चनों के साथ मोतीचूर के लड्डू भी गणेश को अर्पित किये जाते हैं, साथ ही उस दिन मंत्रजाप पूर्ण हो जाने के पश्चात् 51 मंत्रों से घी की आहुतियां मिट्टी के बर्तन में दी जाती है। पांच कन्याओं को मिष्ठान आदि के साथ भोजन करवा कर एवं दान-दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
अनुष्ठान समाप्ति के पश्चात् गणपति प्रतिमा को छोड़कर शेष समस्त सामग्रियों को नये लाल रंग के वस्त्र में बांध करके बहते हुये पानी में प्रवाहित कर दिया जाता है, जबकि गणपति प्रतिमा को अपने पूजास्थल पर प्रतिष्ठित कर लिया जाता है । इस प्रकार इस शाबर गणपति अनुष्ठान को सम्पन्न करने से निश्चित ही मुकदमे के निर्णय को अपने अनुकूल बदला जा सकता है।
जब तक मुकदमे की कार्यवाही पूर्ण न हो जाये, तब तक मुकदमे की प्रत्येक तारीख पेशी से पहले पड़ने वाले बुधवार को उक्त गणेश प्रतिमा के सामने बैठकर अपना यथाशक्ति (पांच या तीन माला) मंत्रजाप के क्रम को बनाये रखना चाहिये । न्यायालय की कार्यवाही के दौरान मानसिक रूप से मंत्र का जाप करते रहना चाहिये ।
विशेष उच्छिष्ट गणपति special Uchchhishta ganapati
यह शाबर पद्धति पर आधारित एक अद्भुत एवं प्रभावशाली अनुष्ठान है, जिसका प्रभाव अवश्य ही सामने आता है । एक सबसे महत्त्वपूर्ण बात की तरफ आपका ध्यान आकृष्ट करना आवश्यक है। उच्छिष्ट गणपति की यह साधना केवल वही साधक करे जो बिना किसी विशेष कारण से अदालत में किसी मुकदमे में फंसा दिया गया हो।
ऐसे व्यक्ति की ही गणपति सहायता करते हैं और उसे अवश्य समस्याओं और दुःखों से उभार लेते हैं । जो व्यक्ति जानबूझ कर किसी अपराध में लिप्त हुआ हो अथवा कोई आदतन अपराधी प्रवृत्ति का है, वह इस साधना को न करे। अगर ऐसे व्यक्ति यह साधना करते हैं तो उन्हें लाभ प्राप्त नहीं होगा ।
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