प्रचंड काल भैरव Kaal Bhairav साधना – kaal bhairav sadhna ph .8528057364
प्रचंड काल भैरव Kaal Bhairav साधना – kaal bhairav sadhna – धन धान्य, ऐश्वर्य, सुख सौरभ प्रदायक काल भैरव Kaal Bhairav साधना | जीवन में अभाव भी शत्रुवत् ही होते हैं, जो स्तम्भित कर देते हैं व्यक्ति के जीवन की सहज गति और प्रायः उसकी मति भी.. . आश्चर्य है। ऐसे ‘शत्रुओं को समाप्त करने के लिए साधक क्यों नहीं सहायता लेते भगवान श्री भैरव की, जो अपने स्वरूप में प्रबल शत्रुहंता ही स्वीकृत किए गए हैं।
प्रस्तुत है काल भैरव Kaal Bhairav अष्टमी के पर्व पर भगवान भैरव की साधना से सम्बन्धित एक नवीन आयाम- त्येक साधना एवं साधना पद्धति की अपनी एक पृथक विशिष्टता होती है और उस विशिष्टता के साथ साधना स्वयं में सम्पूर्ण भी होती है, यह साधना जगत का एक महत्वपूर्ण तथ्य है। आज इस बात को उल्लिखित करना इस कारण प्र इस बात पर केंद्रित रहता है. कि कैसे उसके जीवन की किसी समस्या विशेष का समाधान शीघ्रातिशीघ्र हो सके।
आवश्यक हो गया है. क्योंकि न केवल साधना के मार्ग में प्रविष्ठ हुए साधकों के मन में वरन् इस मार्ग पर कई कई वर्ष तक चल चुके साधकों के मन में यह धारणा घर बन गई है, कि विशिष्ट साधनाएं केवल विशिष्ट लक्ष्यों की पूर्ति तक ही सीमित होती है। यद्यपि ऐसा करने में कोई दोष नहीं है।
प्रत्येक साधक से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वह पहले किसी साधना अथवा देवी-देवता के स्वरूप का तात्विक विवेचन कर ले तब साधना में प्रवृत्त हो किन्तु एक सम्पूर्ण दृष्टि की अपेक्षा तो की ही जा सकती है और इसका सर्वाधिक लाभ भी अन्ततोगत्वा किसी साधक को ही तो मिलता है।
इस विचार-विमर्श के क्रम में यदि भगवती बगलामुखी संहार की देवी (या साधना) है, लक्ष्मी केवल धन सम्पत्ति देने की एक हेतु हैं, दुर्गा दुष्टों का संहार करने का एक उपाय भर हैं इसी प्रकार से अन्य देवी-देवताओं अथवा साधनाओं के भी निश्चित अर्थ सुस्थापित हो चुके हैं।
साधना एक व्यवसायिक विषय वस्तु नहीं होती है कि मुंह मांगा दाम देकर अपनी मनोवांछित वस्तु को प्राप्त कर लिया जाए। किसी भी साधना को पहले अपने रोम-रोम में समाहित करना होता है तभी उस साधना से सम्बन्धित मंत्र जप को सम्पन्न करने का कोई अर्थ होता है और यह क्रिया किसी अन्य युक्ति से नहीं वरन् सम्भव होती है तो केवल ज्ञान के माध्यम से, तात्विक विवेचन के माध्यम से।
यह सत्य है, कि विशिष्ट साधनाएं विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक होती हैं किन्तु है अन्ततोगत्वा एक अर्चसत्य ही | और अर्धसत्य सदैव किसी झूठ से भी अधिक भ्रमित करने वाला होता है। पत्रिका में कोई साधना विधि प्रस्तुत करने से पूर्व उसकी संक्षिप्त व्याख्या करने के पीछे यही मंतव्य होता है।
साधनाओं अथवा देवी-देवताओं को उनके विशिष्ट स्वरूप से कुछ अलग हटकर एक सम्पूर्ण दृष्टि से देखने की शैली या तो विकसित नहीं हुई अथवा साधकों के पास जीवन की व्यस्तता में इतना अवकाश नहीं रहा, कि वे इस विषय पर चिंतन कर सके क्योंकि इस तीव्र युग में साधक का ध्यान साधना से भी अधिक जैसा कि प्रारम्भ में कहा कि प्रत्येक साधना यद्यपि स्वयं में किसी एक विषय तक ही केंद्रित प्रतीत होती है
किन्तु वही साधना स्वयं में एक सम्पूर्ण साधना भी होती है, इसका भी अर्थ केवल इतना ही है कि साधना कोई भी क्यों न हो, यदि साधक की अन्तर्भावना उसमें रच पच जाती है तो न केवल उसके तात्कालिक उद्देश्यों की पूर्ति सम्भव होती है वरन वह उसी साधना के माध्यम से विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभूतियों एवं चैतन्यता को प्राप्त करने में भी समम होने लग जाता है।
यह कदापि महत्वपूर्ण नहीं है कि किस साधक के इष्ट कौन है, क्योंकि कोई भी देवी या देव न तो छोटे होते हैं न बड़े न कोई देवी या देवता) न्यून होते हैं और न कोई उच्च, यदि साधक के पास एक सम्पूर्ण दृष्टि हो। अंतर तो केवल साधक के लक्ष्यों से पड़ता है, जिस प्रकार से आज भैरव को केवल एक भीषण देव मानने से उनको छविजनमानस में प्रायः एक विकृत देव के रूप में स्थिर हो गई है,
किन्तु भगवान भैरव का परिचय इस रूप में प्रस्तुत होना एक प्रकार की अपूर्णता ही है। यह सत्य है, कि जीवन की भीषणताओं को समाप्त करने में भगवान भैरव की साधना के समकक्ष कोई साधना नहीं प्रतीत होती. शत्रुहंता स्वरूप में उनकी सिद्धि प्राप्त करना वास्तव में जीवन का सौभाग्य ही होता है. श्मशान साधनाओं एवं उग्र साधनाओं में पूर्णता उनकी प्रसन्नता के बिना मिलना कठिन ही नहीं असम्भव भी होता है किन्तु इसके पश्चात् भी मानों भगवान भैरव का चित्र पूर्ण नहीं होता है।
भैरव साधना का एक गोपनीय पक्ष यह भी है, कि जहां वे एक उग्र देव हैं वहीं अन्तर्मन से पूर्ण शांत व चैतन्य देव भी हैं जिनकी यथेष्ट रूप में उचित साधना विधि से उपासना करने पर यह सम्भव ही नहीं है कि उनके साधक के जीवन में किसी प्रकार का भौतिक अभाव रह जाए।
इसी तथ्य का और अधिक गूढ़ विवेचन यह है कि जहां जीवन में सुख समृद्धि का आगमन किसी तेजस्वी साधना के माध्यम से सम्भव होता है वहां, वह अन्य साधनाओं की अपेक्षा कहीं अधिक स्थायी, आभायुक्त एवं जीवन में निश्चित रूप से सुखद परिवर्तनकारी होती है।
इतिभैरवः’ (अर्थात् जो शत्रुओं को भयभीत करने वाले हैं वे भैरव है) ही नहीं वरन् बिभर्ति जगदिति भैरवः’ (अर्थात् जो समस्त जगत का भरण पोषण करने वाले हैं. वे भैरव है) भी है। यह बात और है कि उनको १ जनसमान्य में छवि एक गोषण देव के रूप में ही सुस्थापित हुई। जब समाज किसी तेजस्विता को सहन नहीं कर पाता है तो यही क्रिया होती है।
जब विवेचन का क्रम स्तम्भित हो जाता है तो एक प्रकार का भोंडापन उपन आता ही है और इन सभी बातों के मूल में जो त्रुटि होती है, वह अपना ध्यान केवल लक्ष्य की पूर्ति तक केंद्रित रखने के कारण ही होती है। इसके उपरांत भी इस सत्य से तो कोई इन्कार नहीं।
कर सकता, कि जीवन में भौतिक लक्ष्यों की प्राप्ति करना, भौतिक बाधाओं को दूर करना जीवन का प्रथम एवं अत्यावश्यक सोपान होता है जिसके अभाव में चित्त स्थिर हो ही नहीं सकता। साधक का चित्त नहां विभिन्न भौतिक बाधाओं की समाप्ति से सुस्थिर हो सके वहीं उसके जीवन में एक तेजस्विता का भी समावेश हो सके और वही बात पूर्णतया सत्य है भगवान भैरव के किसी भी स्वरूप से सम्बन्धित साधना में भी।
भगवान श्री भैरव की व्याख्या केवल ‘बिभेति शत्रून साधक अथवा गृहस्थ साधक द्वारा अवश्यमेव प्रयोग में लाने योग्य है। इस विधि की विशिष्टता है, कि जहां एक ओर से यह दुर्बलता, हीनता आदि की स्थितियों को समाप्त करने की साधना है वहीं दूसरी ओर से पूर्ण मौतिक समृद्धिदायक साधना भी है।
प्रचंड काल भैरव Kaal Bhairav साधना विधि – kaal bhairav sadhna
इसे सम्पन्न करने के इच्छुक साधक को चाहिए कि वह समय रहते ‘भैरव यंत्र’ व ‘भैरव माला’ को प्राप्त कर ( या किसी भी रविवार की रात्रि में दस बजे के आसपास काले वस्त्र पहन साधना में प्रवृत्त हो। दक्षिण दिशा की ओर मुख कर बैठना आवश्यक है। यंत्र व माला का सामान्य पूजन कर एक तेल का बड़ा सा दीपक जलाएं और उसकी निम्न मंत्र से अभ्यर्थना करें
ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं ऐं ह्रीं श्रीं सर्वज्ञान प्रचण्ड पराक्रमाव बटुकाब इमं दीपं ग्रहाण सर्वकार्याणि साध्य साधव, कुष्टान नाशव नाराय, त्रासव आा सर्वतोम रक्षां कुरु कुरु हुं फट् स्वाहा ।
इसके पश्चात् अक्षत, कुंकुम, पुष्प व जल हाथ में लेकर दीपक का समक्ष छोड़ निम्न मंत्र उच्चरित करें – गृहाण दीपं देवेश, बटुकेश महाप्रभो, ममाभीष्टं कुरु विप्रमापदभ्यो समुदर फिर निम्न मंत्रोच्चारण के साथ दीपक को प्रणाम करें- भो बटुक / मम् सम्मुखोभव, मम कार्य करु करु इच्छितं देहि देहि मम सर्व विध्नान् नाशय नाशय स्वाहा । अपने मन की इच्छाओं व उनमें आ रही बाधाओं का उच्चारण कर (अथवा मन ही मन उनका स्मरण कर साथ ही भगवान भैरव से उनकी पूर्ति की प्रार्थना कर भैरव माला से निम्न मंत्र की २१ माला मंत्र जप को सम्पन्न करें। यदि सम्भव हो तो यह मंत्र जप दीपक की लौ पर ध्यान केंद्रित करते हुए ही करें मंत्र ॥
काल भैरव Kaal Bhairav सिद्धि मंत्र
ॐ ह्री काल भैरव Kaal Bhairavाय ही नमः ॥ Om Hreem Kaul Bheiravany Freem Namah
मंत्र जप के पश्चात् पुनः दीपक के सम्मुख निम्न मंत्र का उच्चारण करें श्री भैरव नमस्तुभ्यं सत्वरं कार्य साधक उत्सर्जयामि ते दीप जायस्व मबसाजरात मंत्राणाक्षर होनेन पुष्पेण विकले नवर पूजितोऽसि मवावेद / तत्क्षमस्व मम प्रमो ध्यान रखें कि दीपक को बुझाना नहीं है अपितु वह जब तक जले उसे जलने देता है।
दूसरे दिन सभी साधना सामग्रियों को नदी में विसर्जित कर दें। जीविकोपार्जन के क्षेत्र में आ रही बाधाओं को समाप्त करने के लिए यह एक अनुभव सिद्ध साधना है।
आवश्यकता होती है, तो केवल एक सम्पूर्ण दृष्टि की और यही बात कही जा सकती है भगवान भैरव के प्रति प्रचलित मान्यताओं के प्रति भी… भगवान शिव की ही भांति मगवान भैरव का स्वरूप भी शता से प्रसन्न होने वाला माना गया है। आवश्यकता है इस बात की कि साधक को भैरव साधना में आने वाले चरणों का विशेष रूप से ज्ञान हो ।
प्रत्येक साधना का एक गुन सूत्र होता है या यूं कह सकते हैं कि key point होता है जिसके अभाव में भले ही कितने खमंत्र जप क्यों न सम्पन्न कर लिए जाएं, सफलता पूर्णरूपेण मिल पाती है।
यह key point प्रत्येक साधना की अन्तर्भावना परिवर्तित होने वाला तत्व होता है अर्थात यह आवश्यक कि जो बात एक साधना के विषय में सत्य हो वहीं प्रत्येक के लिए अंतिम रूप से सत्य हो तथा इसका निर्धारण तर्क के आधीन न होकर भाव के हो आधीन होता है।
काल भैरव Kaal Bhairav का स्वरूप भी किसी तर्क का आधीन होकर के आधीन आने वाला विषय होता है। साधक सामान्यतः काल भैरव Kaal Bhairav संज्ञा से किसी भीषण आकृति की कल्पना कर लेते और यदि तत्सम्बन्धित साधना में प्रवृत्त होते भी हैं, तो एक मिश्रित जुगुप्सा के साथ उनका ऐसा भाव रखना ही साधक के लिए सर्वाधिक न्यून हो जाता है।
वस्तुतः काल भैरव Kaal Bhairav का अर्थ है, जो काल चक्र में पड़े हुए (साधक) को अपनी चेतन्यता से मुक्त कर श्रेयस्कर मार्ग की ओर प्रवर्तित कर दें और निश्चय ही ऐसे देव का पूजन, साधना अत्यन्त आह्नाव के साथ सम्पन्न की जानी चाहिए।
यूं इन पंक्तियों में भले ही कितना कुछ क्यों न वर्णित कर दिया जाए, कि काल भैरव Kaal Bhairav की साधना से जीवन में क्या क्या होते हैं, वह तब तक फलप्रद हो ही नहीं सकेगा जब तक मक काल भैरव Kaal Bhairav के प्रति एक सश्रद्धाभाव को अपने मन में स्थान नहीं देगा. उनसे सम्बन्धित साधना विधि को प्रयोग में पूर्ण एकाग्रता से नहीं लाएगा |
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