विवाह बाधा निवारण शिव-पार्वती अनुष्ठान Vivah Badha Nivaran

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विवाह बाधा निवारण शिव-पार्वती अनुष्ठान Vivah Badha Nivaran शिव-पार्वती अनुष्ठान की प्रक्रिया :

 

विवाह बाधा निवारण शिव-पार्वती अनुष्ठान Vivah Badha Nivaran शिव-पार्वती अनुष्ठान की प्रक्रिया इस अनुष्ठान को किसी भी सोमवार के दिन से प्रारम्भ किया जाता है । अगर वह सोमवार शुक्लपक्ष का हो तो और भी अच्छा रहता है । वैसे भी शिव और माँ पार्वती की पूजा-अर्चना का दिवस सोमवार ही है।

अगर इस अनुष्ठान को किसी प्राचीन शिव मंदिर जाकर और वहां शिव-पार्वती का पूर्ण विधि-विधानपूर्वक पूजन करके व वहीं शिवालय में बैठकर सम्पन्न किया जाये तो इसका तत्काल प्रभाव दिखाई देने लगता है । इस अनुष्ठान के दौरान अग्रांकित मंत्र का अभीष्ट संख्या में जाप करने से विवाह बाधा संबंधी समस्त समस्याओं से सहज ही मुक्ति प्राप्त हो जाती है। यह अनुष्ठान तीन महीने की अवधि का है ।

इस दौरान साधक ( कन्या अथवा युवक) को नियमित रूप से ग्यारह माला मंत्रजाप की पूरी करनी होती हैं। मंत्रजाप की इस संख्या को अपनी सामर्थ्यनुसार घटाकर पांच अथवा तीन मालाओं तक भी सीमितकिया जा सकता है। इस अनुष्ठान को किसी भी शिव मंदिर में करने से फल की प्राप्ति शीघ्र होने के बारे में कहा गया है किन्तु वर्तमान में अपने आस – पास ऐसा कोई शिव मंदिर अथवा शिवालय मिल पाना कठिन लगता है

जहां बैठकर यह अनुष्ठान सम्पन्न किया जा सके । जिन्हें यह सुविधा प्राप्त है वह अवश्य शिव मंदिर में इस अनुष्ठान को सम्पन्न कर सकते हैं अन्यथा इसे घर पर भी सम्पन्न किया जा सकता है। इसके लिये आपको नमर्देश्वर शिवलिंग की आवश्यकता होगी। नर्मदेश्वर शिवलिंग को प्राण-प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता नहीं होती है।

पूजा में इन्हें सीधे ही स्थान दिया जाता है। इसके लिये सामर्थ्य अनुसार पीतल, ताम्बे अथवा चांदी का स्टेण्ड चाहिये, जिस पर शिवलिंग को स्थापित किया जा सके। घर में जिस स्थान पर आपको अनुष्ठान सम्पन्न करना है, उस स्थान को गोबर से लीप कर अथवा गोबर के अभाव में गंगाजल छिड़क कर स्थान शुद्धि करें। उस पर एक लकड़ी की चौकी रखें, उस पर शिवलिंग को स्थापित कर लें । इसके बाद की सम्पूर्ण प्रक्रिया वैसी ही रहेगी जैसी आगे बताई जा रही है ।

इस अनुष्ठान की प्रक्रिया इस प्रकार है- यह अनुष्ठान सोमवार के दिन से शुरू करना है और निरन्तर तीन महीने तक जारी रखना है। इस अनुष्ठान को सम्पन्न करने के लिये शिव-पार्वती पूजनार्थ काले तिल, शतावरी की फली, कमल दाने (फूल डोडा), श्वेत आक के पुष्प, नागकेशर, तीन सप्तमुखी रुद्राक्ष, एक लघु पंचमुखी रुद्राक्ष माला, घी का दीपक, गुग्गुल युक्त धूप, जनेऊ, चुन्दरी एवं कुमकुम आदि की आवश्यकता होती है ।

अतः अनुष्ठान की शुरूआत करने से पहले उक्त समस्त सामग्रियों को एकत्रित करके रख लें। जिस सोमवार के दिन से इस अनुष्ठान को शुरू करना हो, उस दिन सबसे पहले प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व नहा-धोकर तैयार हो जायें । स्वच्छ, श्वेत रंग के वस्त्र पहन लें ।

इसके पश्चात् एक गिलास कच्चा दूध में थोड़े से काले तिल, कमल दाने, श्वेत आक पुष्प, शतावरी, नागकेशर आदि को डालकर व अन्य पूजा सामग्री लेकर शिव मंदिर चले जायें। जो साधक यह अनुष्ठान मंदिर की अपेक्षा अपने घर पर ही सम्पन्न करना चाहते हैं, तो पूर्व में बताये अनुसार अनुष्ठान की तैयारी कर लें।

शेष विधि यही रहेगी । शिवलिंग के सामने उत्तराभिमुख होकर बैठ जायें। अपने बैठने के लिये कम्बल का आसन अथवा कुशा आसन का प्रयोग करें। सबसे पहले शिवलिंग को काले तिल युक्त व अन्य सामग्री युक्त दूध से स्नान करायें, फिर उन्हें शुद्ध जल से स्नान कराकर जनेऊ समर्पित करें। कुंकुम का टीका लगायें तथा रुद्राक्ष को जल से धोकर अग्रांकित मंत्र का उच्चारण करते हुये शिवलिंग पर अर्पितकर दें । रुद्राक्ष को अर्पित करने का मंत्र अग्रांकित प्रकार से है

मंत्र – ॐ सकल दोष निवारणाय शिव पार्वतीय नमः ।

रुद्राक्ष अर्पित करने के पश्चात् शिव को आक पुष्प चढ़ावें । उन्हें पुष्पमाला व मौसमी फल अर्पित करें और अन्त में घी का दीपक जलाकर उनके सामने रख दें । इसके पश्चात् माँ पार्वती को दूध व जल से विधिवत स्नान करायें । तत्पश्चात् उन्हें कुंकुम का टीका लगाकर चुन्दरी चढ़ावें । उन्हें भी पुष्पमाला अर्पित करें। यह शिव-पार्वती की संक्षिप्त पूजा का क्रम है । इस संक्षिप्त पूजा के पश्चात् कम्बल या कुशा आसन पर बैठकर शिव व माँ पार्वती से अपनी प्रार्थना करें। उनसे शीघ्रताशीघ्र विवाह बाधा का निवारण करके विवाह कार्य सम्पन्न कराने का अनुरोध करें ।

अन्त में उनकी आज्ञा को शिरोधार्य करके उनके अग्रांकित मंत्र का रुद्राक्ष माला से जप पूर्ण कर लें । इस अनुष्ठान के लिये अग्रांकित मंत्र का ग्यारह माला मंत्रजाप करने का विधान है। इसकी संख्या को अपनी सुविधानुसार भी व्यवस्थित किया जा सकता है ।

शिव-पार्वती मंत्र इस प्रकार है- हे गौरि शंकराद्वांगि यथा त्वं शंकर प्रिय तथा मां कुरू कल्याणि कांत कांता सुदुर्लभाम्॥ यह मंत्रजाप पंचमुखी लघु रुद्राक्ष माला के ऊपर सम्पन्न किया जाता है। जब आपका अभीष्ट संख्या में मंत्रजाप पूर्ण जो जाये तो घी के दीपक के द्वारा शिव-पार्वती की ग्यारह-ग्यारह बार आरती उतार लें। तत्पश्चात् एक बार पुनः पूर्ण भक्तिभाव एवं श्रद्धायुक्त होकर अपनी प्रार्थना को दोहरा लें।

आसन से उठने से पहले शिव की आज्ञा प्राप्त कर लें । एकाएक बिना आराध्य देवी की आज्ञा लिये आसन से उठ जाना, समस्त किये गये कर्म को व्यर्थ कर डालता है। आसन से उठते समय शिव को अर्पित किए गये तीनों रुद्राक्ष को भी प्रसाद स्वरूप उठा लें तथा अपने साथ अपने घर ले आयें ।

घर आकर इन तीनों रुद्राक्ष को शुद्धता के साथ अपने पूजास्थल में किसी तांबे अथवा स्टील की प्लेट में रख दें । रात्रि के समय घर पर इनके सामने एक घी का दीपक जलाकर रख दिया करें । प्रथम सोमवार के दिन अगर उपवास रखा जाये, तो अति उत्तम रहता है ।

यद्यपि व्रत के दौरान फल, दूध का सेवन किया जा सकता है किन्तु इस दौरान नमक का सेवन न करें। इसके अलावा अपने विचारों को शुद्धतम बनाये रखें। अनुष्ठान सम्पन्न होने तक भूमि शयन करें । शिव-पार्वती के इस पूजा-अर्चना एवं मंत्रजाप के क्रम को निरन्तर तीन महीने तक इसी प्रकार से बनाये रखें ।करने होते हैं ।

उस दिन स्वयं उपवास रखकर पांच कन्याओं को स्वादिष्ट भोजन कराकर दान-दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिये । इस प्रकार यह अनुष्ठान सम्पूर्ण हो जाता है।

अगर इस अनुष्ठान को घर पर रहकर ही सम्पन्न किया गया है तो अनुष्ठान समाप्ति के पश्चात्, अगले दिन समस्त पूजा सामग्रियों को एकत्रित करके एक श्वेत व नये वस्त्र में बांधकर किसी पीपल के वृक्ष पर रख देना चाहिये अथवा बहते हुये पानी में प्रवाहित कर देना चाहिये। इस शिव-पार्वती अनुष्ठान के दौरान अक्सर देखने में आया है कि इस अनुष्ठान को पूर्ण विधि-विधान से जारी रखने पर अधिकतर लड़के-लड़कियों के लिये दो से तीन महीनों के मध्य ही उनको मनोनुकल रिश्ता मिल जाता है।

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