जैन धर्म में तारा साधना रहस्य Tara Sadhana Mystery in Jainism ph.85280 57364

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जैन धर्म में तारा साधना रहस्य Tara Sadhana Mystery in Jainism

 

जैन धर्म में तारा साधना रहस्य Tara Sadhana Mystery in Jainism
जैन धर्म में तारा साधना रहस्य Tara Sadhana Mystery in Jainism

जैन धर्म में तारा साधना रहस्य Tara Sadhana Mystery in Jainism : तारा महाविद्या की साधना तंत्र साधकों के अतिरिक्त बौद्ध भिक्षुओं और जैन साधकों भी खूब प्रचलित रही है । अगर बात जैन धर्म की की जाये तो प्राचीन समय से ही जैन मतावलम्बियों में माँ तारा की उपासना होती आ रही है। दरअसल जैन धर्म में चौबीस तीर्थंकरों की मान्यता है और उन्हीं के अनुसार चौबीस तीर्थंकरों की चौबीस शासन देवियां मानी गयी हैं। इन देवियों को जिन शासन में शीर्ष स्थान प्रदान किया गया है। जैन धर्म में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव को स्वीकार किया गया है और उसी प्रकार भगवान ऋषभदेव के शासन की प्रभाविका देवी चक्रेश्वरी मानी गयी है। जैन धर्म में आठवें तीर्थंकर के रूप में चन्द्रप्रभु की मान्यता है और उनकी शासन देवी ज्वाला मालिनी देवी मानी गयी ।

इसी प्रकार बाइसवें तीर्थंकर की मान्यता भगवान नेमिनाथ को दी गई है और उनकी शासन देवी का स्थान अम्बिका को दिया गया है । तेइसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ माने गये हैं और उनकी शासन प्रभाविका देवी के रूप में ही माँ तारा की प्रतिष्ठा माता पद्मावती के रूप में की गयी है। जैन धर्मावलम्बियों में देवी पद्मावती के रूप में माँ तारा की पूजा, अर्चना, आराधना से इहलोक के साथ-साथ परलोक संबंधी समस्त सुख, वैभवों की प्राप्ति की मान्यता रही है। माता पद्मावती के प्रति भक्ति और उनके आशीर्वाद की गौरव गाथा जैन ग्रंथों में यत्र- तत्र विपुल मात्रा में उपलब्ध है। यहां एक ओर लोकेषणा (सांसारिक इच्छाओं की प्राप्ति) के लिये माँ की पूजा-अर्चना की जाती है, वहीं दूसरी ओर बड़े-बड़े जैन मुनियों ने अलौकिक एवं दिव्य आनन्द की प्राप्ति के लिये कल्याणमयी माँ पद्मावती को अपनी आराधना का अंग बनाया । 

 

ऐसे उल्लेख मिलते हैं कि प्रसिद्ध जैन मुनि हरिभद्र शूरि ने अम्बिका देवी को प्रसन्न करके उनका आशीर्वाद प्राप्त किया, तो वहीं दूसरी ओर आचार्य भट्ट अकलंक ने माता पद्मावती को प्रसन्न करके उनसे वरदान ग्रहण किया । आचार्य भद्रबाहू स्वामी ने एक व्यंतर (देव) के घोर उपसर्ग से आत्मरक्षा के निमित्त माँ पद्मावती की अभ्यर्थना की थी । एक अन्य जैन श्रुति के अनुसार श्रृणुमान, गुरुदत्त तथा महताब जैसे जैन श्रावकों पर भी मा पद्मावती की सदैव विशेष अनुकंपा बनी रही 1 माता पद्मावती को विभिन्न नामों से स्मरण किया जाता है, जिनमें सरस्वती, दुर्गा, तारा, शक्ति, अदिति, काली, त्रिपुर सुन्दरी आदि प्रमुख हैं। माता पद्मावती की स्तुति, भक्ि के लिये जैन ग्रंथों में विपुल स्तोत्र साहित्य उपलब्ध है ।

इनकी स्तुति एवं भक्ति समस्त दुःखों का शमन करने वाली, प्रभु का सान्निध्य, सामीप्य के साथ-साथ दिव्य आनन्द प्रदान करने वाली संजीवनी मानी गयी है । विभिन्न स्तोत्रों के रूप में माता पद्मावती की पूजा- अर्चना भक्त हृदयों का कंठहार बन गयी है । पार्श्वदेव गणि कृत भैरव पद्मावती कल्प स्तोत्र में कहा गया है कि माता पद्मावती की आराधना से राज दरबार में, शमशान में, भूत-प्रेत के उच्चाटन में, महादु:ख में, शत्रु समागम के अवसर पर भी किसी तरह का भय व्याप्त नहीं रहता । सांसारिक इच्छाओं से अभिभूत होकर बहुत से लोग माँ की पूजा-अर्चना में निमग्न होते हैं, लेकिन जब वह लौकिक भक्ति के साथ विशेष अनुष्ठान (तांत्रिक पद्धति) से करते हैं, तो उनका अनुष्ठान अलौकिक रूप धारण कर लेता है ऐसी अवस्था में साधक की भक्ति मंगललोक में प्रवेश कर जाती है, जैसे सौभाग्य रूप दलित कलिमलं मंगल मंगला नाम अर्थात् माता सौभाग्य रूप है तथा कलियुग के दोष हरण कर उत्कृष्ट मंगल को प्रदान करने वाली है।

तंत्र की भांति ही जैन धर्म भी माता पद्मावती का चतुर्भुजधारी रूप स्वीकार किया गया है। माता पद्मावती की प्रत्येक भुजा में क्रमशः आशीर्वाद, अंकुश, दिव्य फल और चतुर्थ भुजा में पाश (फंदा) माना गया है। माँ की इन भुजाओं का विशेष प्रतीकात्मक अर्थ है। जैसे माँ का प्रथम वरदहस्त समस्त प्राणी जगत को आशीर्वाद का संकेत प्रदान करता है। दूसरी बाजू में अंकुश है जो इस बात का प्रतीक है कि साधक को प्रत्येक स्थिति में अपने ऊपर अंकुश (संयम) बनाये रखना चाहिये। तीसरी बाजू में दिव्य फल भक्ति के फल को प्रदान करने वाला है, जबकि चतुर्थ बाजू में पाश प्रत्येक प्राणी को कर्मजाल से स्वयं को सदैव के लिये बचाये रखने के लिये प्रेरित करता है 

जैनधर्म में माता पद्मावती का वाहन कर्कुट नाग माना गया है। यह भी तांत्रिकों की भांति माँ के रौद्ररूप का परिचायक है । कर्कुट नाग का अर्थ विषैले नाग से है। यह पापाचारियों के लिये दण्ड का चिह्न है। माता पद्मावती पार्श्वनाथ की लघु प्रतिमा को अपने शीश पर धारण किये रहती हैं । गुजरात में मेहसाणा के पास मेरी एक जैन मुनि से भेंट हुई थी, जो पिछले लगभग चालीस सालों से माँ पद्मावती की साधना करते आ रहे हैं। उन्होंने तांत्रिक पद्धति से माँ का साक्षात्कार प्राप्त करने में सफल्ता प्राप्त की है । इन जैन मुनि के आशीर्वाद मात्र से चमत्कार घटित होते हुये देखे गये हैं ।

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