प्राचीन प्रत्यंगिरा साधना Pratyangira Sadhana Ph.85280 57364
प्राचीन प्रत्यंगिरा साधना Pratyangira Sadhana Ph.85280 57364 अपने शत्रुओं को इससे तीक्ष्य शान्त के द्वारा .. प्रत्यंगिरा Pratyangira प्रयोगआज जीवन एक कुरुक्षेत्र बन कर रह गया है। “कुरुक्षेत्र” शब्द से उस स्थान को परिभाषित किया जा सकता है जहां द्वन्द्व है। द्वन्द्व वहां होता है, जहां दो में विषम भाव परिलक्षित होता है
और यह विषम भाव ही तो कारण होता है तनावग्रस्त बने रहने का। दोनों पक्ष (वादी और प्रतिवादी) तनाव ग्रस्त रहते ही हैं, क्योंकि दोनों अपने-अपने स्वार्थ को सिद्ध करने में लगे हुए हैं, यही कारण है कि संसार में कोई भी ऐसा नहीं, जो तनाव मुक्त हो. स्वार्थ एक ऐसा दलदल है, जिसमें से निकल पाना कठिन है, जितना उसमें से बाहर निकलने का प्रयत्न करते हैं.
उतना ही और धंसते बले जाते हैं ऐसे घुटन भरे जीवन का क्या अर्थ, जहां सुख-चैन से दो घड़ी सांस भी न ले सकते हो। जब तक मानव-मन स्वार्थ प्रेरित एवं तनाव ग्रस्त रहेगा, तब तक वह हर स्थान कुरुक्षेत्र ही कहा जायेगा, जहां ऐसे लोग रहते हैं, अतः जब तक स्वार्थ भाव समाप्त नहीं होगा, तब तक यों ही चलता रहेगा कौरवो पांडवों के मध्य का यह युद्ध जिसकी ओट में छिपा है- ‘अन्धकार’ और ‘मृत्यु’ ।
– क्या तनावग्रस्त बने रहना ही जीवन का प्रयोजन है? जीवन का प्रयोजन तो कुछ और है पर हम अपने बनाये हुए कुरुक्षेत्र में ही फंस कर रह गये हैं और भ्रमित हो गये हैं अपने लक्ष्य से। * जीवन इतना सुलभ नहीं है, जितना आप समझ बैठे हैं जब तक आप अपने मन से दुर्भावनाओं से बनी गांठें नहीं निकाल पायेंगे, तब तक शांति और तृप्ति कैसे मिल सकती है.
असल जब त शत्रुता का नहीं हो द्वेष, वैम क्रोध समाप तब तक यह कुर नहीं हो सकता. की साधना द्वारा करना सम्भव है. की तेजोमय ज्व शत्रुओं क में तो दुर्भावनाएं ही हमारी शत्रु है, जो हमारे भीतर शत्रुता के भाव को जन्म देती हैं, कि मैं जो करता हूँ, ठीक करता हूँ, मैं जो कहता हूँ, ठीक कहता हूँ, मैं सच्चा हूँ, सामने वाला झूठा है इन अवगुणों को मानव देखते हुए भी नहीं देख पाता और अपने आप को सदाचारी, सद्व्यवहारी, सद्गुणकारी समझ बैठता है, फलस्वरूप जीवन कुरुक्षेत्र का मैदान बन जाता है।
आज जिधर भी दृष्टि जाती है उधर द्वेष की चिनगारियां बिखरी हुई हैं, आखिर कब वह समय आयेगा जब मानव अपने मन से दुर्भावनाओं को निकाल सकेगा, क्योंकि जब ऐसा सम्भव होगा, तभी व्यक्ति सुखी हो और ऐसा तब सम्भव हो सकेगा, निर्द्वन्द्व हो सकेगा.सकेगा, जब वह अपने आप को सही रूप में पहिचान लेगा. कि यह क्या है?
मनुष्य उस शक्ति से अपरिचित है, जिसने उसका निर्माण किया है, तेजस्वी माता-पिता की संतान होकर भी वह भयभीत है. क्योंकि उसने मा का जन्मदायिनी स्वरूप ही देखा है। यह तो उसका एक स्वरूप है, दूसरा स्वरूप तो उसका शक्तिदायिनी स्वरूप है, जिसकी शक्ति से मानव अनभिज्ञ है। संसार में केवल मा ही ऐसी होती है, जिसे चुकारे जाने पर वह व्याकुल हो उठती है अपने शिशु को कलेजे से लगा लेने के लिए…
फिर वह बालक कितना हो दुराचारी क्यों न हो, दोगी क्यों न तक मन से का भाव समाप्त होगा, ईर्ष्या, मनस्य, घृणा, प्त नहीं होगा, कुरुक्षेत्र का युद्ध खत्म पर प्रत्यंगिरा देवी सिद्धि प्राप्त कर ऐसा क्योंकि प्रत्यंगिरा . ● वाला से जड़-मूल से का नाश होगा! हो उसे संकट से उबारने के लिए वह तत्क्षण प्रस्तुत हो ही जाती है, और ठीक एक अवोध शिशु की भांति आपको भी तो बस उस मां को पुकारना है और निश्चिन्त हो जाना है, क्योंकि परम शक्तिशालिनी मा अपने पुत्र को शक्तिवान बना ही देती है जीवन के कुरुक्षेत्र को जीतने के लिए।
मां की शक्ति को प्राप्त करने के लिए आपको सम्पन्न करना है “प्रत्यंगिरा प्रयोग” आगे का काम तो उसका है, आपको चिन्ता करने की जरूरत नहीं है और न ही भयभीत होने की आवश्यकता है, आपको तो देवी प्रत्यंगिरा का श्रद्धापूर्वक नाम लेना है. प्रत्यंगिरा आदिशक्ति का अत्यधिक स्वत तकारी स्वरूप है, जिसकी साधना तो फलदायी सिद्ध होती ही है। यो तो कोई भी शक्ति साधना विफल नहीं मानी जाती. किन्तु प्रत्यंगिरा प्रयोग का अपना विशेष महत्त्व है, जो बड़े से बड़े शत्रु को भी शांत कर देने वाली है, क्योंकि इसका है। उद्भव शिव की शक्ति शिवा से हुआ शिवा है ही कल्याणकारी, जो अपने भक्तो की विधि सुरक्षा करती है। प्रत्यंगिरा के साधक को न तो अपमृत्यु का भय रहता है, और न ही कोई आशंका ही व्याप्त होती है, क्योंकि यह प्रयोग साधक को हर प्रकार से सुरक्षित कर देता है।
जीवन में अक्सर धोखे होते रहते हैं. यदि आपको यह ज्ञात हो जाय कि अमुक शत्रु के कारण आपका जीवन कंटकाकीर्ण हो गया है, तो सुरक्षा का उपाय क्यों नहीं किया जाय, शत्रु की शक्ति को ही क्यों न इतना क्षीण बना दिया जाय कि वह मुंह की खाये।
मानव का शत्रु केवल मात्र प्रतिद्वन्द्वी मानव ही नहीं होता, अपितु कभी-कभी तो मानव के आन्तरिक कारण ही उसके शत्रु बन जाते हैं और ऐसी स्थिति में प्रत्यंगिरा जहां बाहरी शत्रुओं का विनाश करती है, साथ ही अन्दर निहित विकारों की उत्पत्ति से जन्मी शत्रुता के भाव को भी पूर्णतः समाप्त कर देती है, फलस्वरूप जहां यह प्रयोग भौतिक दृष्टि से लाभदायक है, वहीं आध्यात्मिक दृष्टि से भी फलदायी हैं, जो मन के विकारों को समाप्त कर, शुद्धता और निर्मलता प्रदान कर भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही दृष्टियों से उन्नति और सफलता प्रदान करता है।
प्रत्यंगिरा Pratyangira प्रयोग विधिः
प्रत्यंगिरा Pratyangira प्रयोग विधिः इस प्रयोग के लिए आवश्यक सामग्री है दिव्य मंत्रों से प्राण-प्रतिष्ठित “प्रत्यंगिरा Pratyangira यंत्र”, “विभीतिका माला” एवं “शत्रुमर्दनी गुटिका” । इस प्रयोग को करने का विशेष दिन है १८.१२.६५ सोमवार इस प्रयोग को किसी भी माह की एकादशी को भी सम्पन्न किया जा सकता है। यह प्रयोग रात्रिकालीन है। साधक निश्चित समय पर पश्चिम दिशा की ओर मुख करके लाल आसन पर बैठ जाये। सामने चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर किसी स्टील या तांबे की प्लेट पर कुंकुम से रंगे हुए चावल से अपने शत्रु विशेष का नाम अंकित करके यंत्र को स्थापित करें । .
गुटिका को भी यंत्र के सामने स्थापित करें, उसके बाद इन्द्र, वरुण, कुबेर और यम जो चार दिशाओं के अधिपति है, उनके निमित्त चार दीपक (सरसों के तेल के) जला लें। चारों देवताओं का अपनी पूर्ण मनोरथ सिद्धि के लिए कुंकुम, अक्षत, धूप व दीप से पूजन करें। ८. यंत्र और गुटिका पर कुंकुम और अक्षत चढ़ाकर पूजन करें तथा लाल रंग के पुष्पों को चढ़ायें। धूप व दीप लगातार जलते रहने चाहिये । या . इसके बाद यंत्र के सामने एक कटोरी रखें और उसमें निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए कुकुम से रंगे चावल को तब तक चढ़ाये, जब तक कि वह कटोरी पूर्णरूप से भर न जाय। मंत्र
।।ॐ प्रत्यंगिरायै स्वाहा ।।
फिर उन चावलों से यंत्र व दीपकों के चारों ओर घेरा डालें। इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें और प्रत्यंगिरा देवी का ध्यान करते हुए अपनी मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करें, फिर जल को भूमि पर छोड़ दे । ।।
ॐ शत्रुदारिण्यै फट् । ।
का मंत्र जप की समाप्ति के पश्चात् व मंत्र जप से पूर्व एक-एक माला गुरु मंत्र का जप अवश्य कर लें। शत्रुमर्दनी गुटिका को अपने आसन के नीचे दबा दें और यंत्र की ओर देखते हुए “विभीतिका माला” से निम्न मंत्र का १ माला जप करें- मंत्र जप समाप्ति के बाद गुरु आरती एवं जगदम्बा आरती करें।
यंत्र. गुटिका एवं माला को नदी या समुद्र में प्रवाहित कर दें और दोनों हाथ जोड़कर प्रत्यगिरा PRATYANGIRA को नमस्कार करें। पूजन में प्रयुक्त लाल अक्षत को किसी पीपल के पेड़ पर या मंदिर में चढ़ा आयें। एक दिन का यह प्रयोग साधक के जीवन के विरोधी उत तत्त्वों को समाप्त करने वाला अचूक अस्त्र है, जिससे जीवन की उन्नति के मार्ग में बाधा उत्पन्न करने वाले शत्रुओं को के जड़मूल से नष्ट किया जा सकता है और भौतिकता के ओ साथ-साथ अध्यात्म के पथ पर भी अग्रसर हुआ जा सकता के है, इसलिए प्रत्येक गृहस्थ व्यक्ति को, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष यह प्रयोग सम्पन्न कर अपने जीवन में सफलता प्राप्त के करनी ही चाहिए।
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