Yogini Sadhana प्राचीन योगिनी साधना रहस्य -विधि विधान
Yogini Sadhana प्राचीन योगिनी साधना रहस्य -विधि विधान आज हम योगिनी साधना पर चर्चा करेंगे। यद्यपि स्त्री का हर रूप मधुर होता है, फिर भी जीवन में हर रूप का एक निश्चित अर्थ और महत्वपूर्ण स्थान होता है। चाहे मां का रूप हो, बहन हो या बेटी का, चाहे वह पत्नी हो या प्रेमिका या दोस्त। स्वरूप भिन्न हो सकते हैं. लेकिन गहरे दृष्टिकोण से हर रूप भोग के प्रयास में डूबे मातृत्व के एक अंतरशाला का प्रवाह लेकर ही चलता है, क्योंकि ऐसा करना हर स्त्री का मूल धर्म है, लेकिन इन सभी रूपों से कुछ अलग है, जो न केवल विशिष्ट है बल्कि विशिष्ट भी है, उसी एक रूप योगिनी का नाम है!
योगिनी एक नारी देह में आबद्ध होते हुए, नारी मन की समस्त कोमल भावनाओं को एकत्र कर उपस्थित होते हुए भी अन्ततोगत्वा शक्ति का एक पुंज ही होती है, जो नारी देह का आश्रय लेकट सम्मुख आती है, क्योंकि शक्ति का आश्रय स्थल सदैव से ही नारी को स्वीकार किया गया है। केवल साधक ही नहीं, प्रत्येक सामान्य मनुष्य के जीवन में भावनाएं होती है, जो उसे सहज प्रवाह दे सकती हैं। जीवन से यदि भावनाओं को ही निकाल दिया जाए, तो मनुष्य व यंत्र में अंतर ही क्या रह जाएगा? किन्तु मनुष्य यंत्र नहीं हो सकता। एक पहले ही इस युग की सभ्यता’ ने मनुष्य यंत्र बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है जिसके परिणाम की अधिक व्याख्या या वर्णन की आवश्यकता नहीं है। जो सम्मुख है, वह है एक यंत्रवत् जीवन जिसमें न किसी के प्रति कोई ममत्व है, न अपनत्व, न उछाह न वेग, न प्रेम और न ही फिर इन भावनाओं के अभाव में जीवन के प्रति कोई लक्ष्य ही।
किसी भी व्यक्ति से पूछ कर देखिए, कि उसके जीवन में जो आपाधापी चल रही है या जिस आपाधापी का न केवल उसने सृजन कर लिया है वदन् जिसका वह निरन्तर पोषण भी करता जा रहा है, उसका अर्थ क्या है? क्यों वह सदैव इतना उद्विग्न बना रहता है? इसके मूल्य पर उसे क्या प्राप्त हो जाएगा? किसी के पास भी इसका निश्चित उत्तर नहीं होगा, क्योंकि इन बातों का कोई निश्चित उत्तर हो भी नहीं सकता। भावनाएं जो जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि हो सकती हैं, जब उसी का अभाव हो गया, उसी का हनन् करके कुछ निर्मित करने की चेष्टा की, तो भूल तो वहीं से प्रारम्भ ही हो गयी।
और इसी बिन्दु पर आकर योगिनी साधना का महत्व स्वयमेव स्पष्ट हो जाता है, क्योंकि योगिनी साधना का अर्थ ही है- भावनाओं की साधना, अपनत्व व ममत्व की साधना, जीवन में जो कुछ विस्मृत हो चला हो, जो कुछ टूट गया हो या जो कुछ रिक्त रह गय हो, उन सभी को अर्जित कर लेने या पुनः प्राप्त कर लेने की साधना यह तो भावनाओं का ही बल होता है कि जीवन में कोई भी व्यक्ति वह सब कुछ कर जाता है, जो अन्यथा उसके सहज बल से सम्भव नहीं था और यहां यह ध्यान रखने की बात है, कि बल का तात्पर्य शरीरिक बल से नहीं होता है।
यह तो मानसिक बल होता है, जो एक नर को पुरुष बनने की ओर तथा पुरुष को पुरुषोत्तम बनने की ओर उत्प्रेरित करता है और इसके मूल में होती हैं वे भावनाएं, जिनके मूल में होता है प्रेम! (यह कहना शायद पुनरोक्ति हो। जाएगा कि प्रेम का आधार होती है स्त्री) जो अपनत्व का भाव पत्नी के रूप में अधिक स्पष्टता से सामने आता है, प्रेमिका के रूप में वही भाव इस रूप में किंचित परिवर्तित हो जाता है, कि वह अपने प्रिय को सभी रूपों में केवल श्रेष्ठ ही नहीं श्रेष्ठतम देखना चाहती है. क्योंकि सामाजिक शिष्टाचार के अन्तर्गत एक प्रेमिका से अधिक पत्नी को अपनी मनोभावनाएं प्रकट करने की छूट होती है।
अंतर केवल सामाजिक बंधनों का है, विवेक का नहीं, और यह जीवन में सबसे अधिक संतोष और संतुष्टि से अधिक एक अद्वितीय सौ संतुष्टि का कारण बन जाता है। कोई मेरे लिए भी चिंतित रहता है, कोई | वह अनकहे रूप में मुझ पर अपना प्यार बरसाते रहते हैं, कोई मेरे बारे में भी सोचता रहता है और सबसे बड़ी बात यह है कि कोई मेरे पूरे अस्तित्व पर अपना अधिकार मानता है। क्योंकि इसका मतलब है कि ऐसा आश्वासन मिलना। भावनाओं पर आधारित केवल एक प्रकार की सुरक्षा भावना और आश्वासन ही वास्तविक सुरक्षा भावना दे सकता है, अन्यथा व्यक्ति को यह नहीं पता होता कि वह इसे प्राप्त करने के प्रयास में कहां भटकता है।
जीवन एक निरपेक्ष घटना नहीं होती है। प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह किसी भी पद प्रतिष्ठा अथवा आर्थिक स्थिति का क्यों न हो. अपने जीवन का ताना-बाना किसी व्यक्ति या और अधिक विशद रूप में कहें तो किसी भावना से जोड़ कर ही बुनना चाहता है। सामान्यतयः व्यक्ति अपने जीवन को या अपनी अस्मिता को अपने परिवार से जोड़ कर जीवित रखना चाहता है। इसमें कोई अनुचित बात भी नहीं है।
परिवार जैसी सामाजिक संस्था के निर्माण के पीछे उद्देश्य ही यही रहा है, किन्तु निरन्तर बढ़ते हुए आर्थिक एवं अन्यान्य दबावों के बाद क्या आज यह सम्भव रह गया है. कि व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों से कुछ अलग हट कर अपने जीवन को आहलाद व मधुरता देने वाले क्षणों के विषय में चिंतन तक कर सके ?
जीवन में ऐसी स्थिति आ जाने पर जिस प्रवाह की आवश्यकता होती है, वह किसी गणित की अपेक्षा केवल साधनाओं से ही उपलब्ध हो सकती है, क्योंकि प्रत्येक साधना स्वयं में शक्ति का एक-एक अजरा प्रवाह ही तो होती है। और यही तथ्य योगिनी साधना के विषय में भी पूर्णतयः सत्य है। आज समाज में योगिनी शब्द को लेकर क्या धारणा है, इसको कदाचित विस्तार से बताने की आवश्यकता नहीं अनेक व्यक्तियों की दृष्टि में भैरवी व योगिनी के मध्य भी कोई भेद नहीं होता।
यूं भैरवी की प्रस्तुति ही कहा प्रासंगिक रूप में सम्भव हो पायी है? किन्तु योगिनी इतना हल्का शब्द नहीं होता। योगिनी स्वयं में शक्ति तत्व की एक विशिष्ट प्रस्तुति व स्वरूप होती है, जिसकी साधना सम्पन्न करना प्राण तत्व को संचेतन कटने का एक उपाय होता है। यह सत्य है कि योगिनी की प्रस्तुति एक प्रेमिका रूप में होती है। किन्तु यह आवश्यक नहीं कि प्रेमिका शब्द से सदैव वासनात्मक अर्थ ही अभिप्रेत हो क्या प्रेमिका शब्द से एक महिला मित्र का अर्थ अभिप्रेत नहीं हो सकता है? वस्तुत योगिनी का वर्णन प्रेमिका रूप में होने के जो है वह है कि भारतीय समाज इतना की मान्यताओं में महिला मित्र की कभी कोई ही नहीं रही. लेकिन जो भावगत है वह सदैव से यही रहा है।
साथ ही प्रेमिका का तात्पर्य होता है, ऐसी स्त्री, जो अपने प्रिय पर अपना सावरकर देने में ही अपना सुख मन हो और न केवल विलक्षण सौन्दर्य के मेंट इस रूप में भी योगिनी की कोई भी उभी करने में असमर्थ ही होगी। जीवन को भावनाओं के आधार पर पुनः निर्मित करने व योगिनी के रूप में एक वास्तविक प्रेमिका प्राप्त करने के इच्छुक साधकों के हेतु
जिसे सकर वे अपने भावनाशून्य हो रहे जीवन में हास्य, विनोद व मधुरता जैसे कुछ नये पृष्ठ जोड़ पाने में समर्थ हो सकते हैं।
योगिनी साधना Yogini Sadhana विधि
इस साधना में प्रवृत्त होने वाले साधकों के लिए आवश्यक है कि वे ताम्रपत्र पर अंकित ‘योगिनी यंत्र’ व सफेद हकीक की माता को साधनात्मक उपकरण के रूप में प्राप्त कर लें। यह साधना उपरोक्त दिवस (योगिनी एकादशी) के अतिरिक्त किसी भी शुक्रवार को सम्पन्न की जा सकती है। साधना में वस्त्र आदि का रंग श्वेत होना चाहिए तथा दिशा उत्तर मुख होनी चाहिए। इस साधना में किसी विशेष विधि-विधान को सम्पन्न करने की आवश्यकता नहीं है। यंत्र व माला का सामान्य पूजन करने पश्चात् दत्तचित्त भाव से निम्न मंत्र की ग्यारह माला मंत्र जप सम्पन्न करें- खिलता हुआ गोरा रंग भरा भरा सा पुष्ट मांसल बदन, अंडाकार चेहरा, खंजन पक्षी की भांति नयन और उन नयनों की एक-एक चपलता में झिलमिलाते प्रेम के कई कई सदिश योगिनी तो स्वयं में एक उपमा है, उसकी उपमा दें भी तो किससे दें प्रेमिका . अवसर पर ही है,
मंत्र योगिनी साधना Yogini Sadhana
॥ ॐ ह्रीं योगिनि आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥ OM HREEM YOGINI AAGACHH AAGACHH SWAHA
यह एक दिवसीय साधना है तथा साधना सम्पन्न करने के दूसरे दिन यंत्र ६ माला को किसी स्वच्छ जलाशय में या निर्जन स्थान पर विसर्जित कर देना चाहिए। जैसा कि प्रारम्भ में कहा, योगिनी शक्ति तत्व का ही एक विशिष्ट प्रस्तुतिकरण होती है, अतः यह स्वाभाविक ही है, कि इसे मनोयोग पूर्वक सम्पन्न करने वाले साधक को जीवन के प्रत्येक पक्ष में अनुकूलता मिलने की क्रिया स्वयमेव | प्रारम्भ हो जाए, चाहे वह धन सम्बन्धी पक्ष हो, स्वास्थ्य की समस्या हो सौन्दर्य प्राप्ति की कामना हो या गृहस्थ जीवन के किसी भी पक्ष को स्पर्श करता कोई भी पक्ष क्यों न हो। प्रस्तुत साधना की एक अन्य गुहा विशेषता यह साधना भी है। अनुभवों को भी है कि यह प्रबल पौरुष प्राप्ति की साधना सम्पन्न करने के उपरान्त अपने गोपनीय ही रखें।
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