भुवनेश्वरी महाविद्या साधना Maa Bhuvaneshwari Sadhana
भुवनेश्वरी महाविद्या साधना Maa Bhuvaneshwari Sadhana भुवनेश्वरी महाविद्या दस महाविद्या में से एक है ! इस महा विद्या को करने से आप भूमि सुख राज्य सुख और भी जो इस धरती पर जो सुख है सब प्राप्त होंगे ! सब शत्रु से विजय प्राप्त होगी ! रात हनुमान ने आंखों में बिता दी थी। – हनुमान ने विनम्रता पूर्वक कहा। उन्हें पल भर नहीं आई थी… अभी हाल ही में गुप्तचर संदेश लेकर आया था कि रावण ने युद्ध में विजय हेतु महाचण्डी यश का प्रारम्भ कर दिया है। उसने देश भर के उत्कृष्ट विद्वानों को आमंत्रण था, और वे सभी इकट्ठे हो गए थे।
बस दो दिन बाद से ही इस महायज्ञ का प्रारम्भ हो जाएगा. और अगर वह यज्ञ किसी प्रकार से सफलतापूर्वक सम्पन्न हो जाए, तो रावण की विजय सुनिश्चित है… यही सब सोचकर अंजनी सुत सारी रात गंभीर चिंतन में इधर-उधर टहलते रहे.. पर ऋषि भी कब मानने वाले थे…. उनके बार-बार आग्रह करने पर कमिश्रेष्ठ ने एक अति विस्मित करने वाला वर मांगा, जो कि आगे जाकर राम की विजय का एक मुख्य कारण बना. महाचण्डी यज्ञ में जिस मंत्र के संपुटीकरण से हवन किया जाना था, वह था जय त्वं देविचामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते । युद्ध 斗 रावण की स्थिति दयनीय हो गई थी। Bhuvaneshwari Sadhana
उसके समस्त उच्चकोटि के योद्धा मारे गए थे. सभी काल कवलित हो गए थे और वह निःसहाय, निरुपाय मां चण्डी के आशीर्वाद के लिए लालायित था.. इसमें भूतार्तिहारिणी का अर्थ है सभी प्राणियों की पीड़ा करने वाली हनुमान ने ऋषियों से यह वर मांगा कि वे भूतार्तिहारिणी में ‘ह’ की जगह ‘क’ का उच्चारण कर दें। बेचारे ऋषि तो वचन बद्ध थे ही, उन्होंने तथास्तु कह दिया। इस प्रकार वह शब्द बन गया ‘भूतार्तिकारिणी’ जिसका अर्थ है सभी प्राणियों को कष्ट देने वाली। पर हनुमान को चैन कहां, वे तो निरन्तर इसी चिंतन में थे. कि किस प्रकार से राम के सामने आने वाली विपदा को पहले से ही ध्वस्त कर दिया जाए, किस प्रकार से उनके कंटकाकीर्ण मार्ग को पुष्पों से आच्छादित कर दिया जाए, ताकि उन्हें किसी प्रकार की कठिनाई का सामना न करना पड़े इस प्रकार एक अक्षर के बदलने मात्र से यज्ञ रावण के लिए ही अनिष्टकारी बन गया। परन्तु इसके बाद भी हनुमान चैन से नहीं बैठे। Bhuvaneshwari Sadhana
वे तत्काल भगवान राम के पास पहुंचे और विनम्रता पूर्वक कहा और इसके लिए अगले ही दिन हनुमान एक विन का रूप धर कर पहुंच गए यज्ञ स्थली पर और वहां पहुंच कर सभी ऋषि-मुनियों की पूर्ण श्रद्धा भाव से सेवा करने लगे। उनकी निःस्वार्थ सेवा भावना से सभी ऋषि-मनि इतने प्रभावित कि उन्होंने विप्र के रूप में आए हनुमान को वर मांगने को कहा। “”प्रभु ! हमारे युद्ध कौशल के आगे रावण की समस्त सेना का विध्वंसहो चुका है, हमारी रणनीति और आपके आशीर्वाद द्वारा उनका अत्यधिक अहित हो चुका है, परन्तु.. 21 2 परन्तु क्या कपिश्रेष्ठ ?” – राम बोले। “नहीं नहीं महात्मन् मैंने किसी प्रयोजन से आपकी सेवा नहीं की थी मैं तो मात्र आपका साहचर्य लाभ प्राप्त परन्तु रावण अभी भी जीवित है और वही हमारा मुख्य एवं प्रबलतम शत्रु है। Bhuvaneshwari Sadhana
उसकी नाभि में अमृत कुण्ड स्थापितहै, जिससे वह सदैव चिर-यौवन वान बना रहता है और जिसके फलस्वरूप उसकी मृत्यु संभव नहीं इसके अलावा भी वह अपने कई आत्मजों के शवों को ढो चुका है. यहां तक कि उसकी विजय का आखिरी प्रयास महाचण्डी यज्ञ भी आपकी कृपा से विफल हो चुका है। अतः यह एक घायल सिंह की भांति हो गया है और आप तो जानते ही हैं, कि सौ सिंहों से एक चायल सिंह अधिक खतरनाक सिद्ध हो सकता है। और उसी क्षण राम ने अपने प्रिय शिष्य हनुमान के निवेदन पर भुवनेश्वरी साधना एवं अनुष्ठान का प्रारम्भ किया एवं उसे सफलता पूर्वक सम्पन्न किया और इतिहास भी इस बात का गवाह है, किजो | रावण नाभि में अमृत कुण्ड स्थापित होने की वजह से अजेय था, अंततः कालकेविकराल पंजों से बच नहीं पाया… वैसे भी यह बड़ा मायावी और प्रपंची है। Bhuvaneshwari Sadhana
भुवनेश्वरी महाविद्या साधना के लाभ Maa Bhuvaneshwari Sadhana ki labh भुवनेश्वरी साधना बेनिफिट्स
भुवनेश्वरी महाविद्या साधना के लाभ Maa Bhuvaneshwari Sadhana ki labh भुवनेश्वरी साधना बेनिफिट्स1 उच्चकोटि की सिद्धियां उसके पास हैं और समस्त प्रकृति को वह अपने नियंत्रण में ले चुका है सारी प्रकृति उसके इशारों पर नृत्य करती है। साथ ही साथ उसके पास अद्वितीय दिव्यास्त्रों की भरमार है और उनमें कुछ तो ऐसे हैं जो समस्त ब्रह्माण्ड को विनष्ट करने में सक्षम है। जाता है, जिससे उसके आसपास के लोग स्वतः उसकी और आकर्षित होते हैं और उसकी हर आज्ञा का ना-नुच किए बिना पालन करते हैं।
2. यह साधना सिद्ध होते ही व्यक्ति की दरिद्रता, रोग, शत्रुभय, ऋण आदि की स्थिति स्वतः ही नष्ट हो जाती है और वह मान-सम्मान के साथ जीवन व्यतीत करने लगता है। तो तुम्हारा क्या विचार है हनुमान राम ने पूछा। “प्रभु के आशीर्वाद से मुझे स्मरण आ रहा है, कि बाल्यावस्था में शिक्षा प्राप्त करने के दौरान मुझे एक अद्वितीय महातेजस्वी साधना पद्धति मेरे गुरु सूर्यदेव ने प्रदान की थी, जो भुवनेश्वरी से सम्बन्धित है। उनके अनुसार समस्त देवियों की शक्ति को भुवनेश्वरी के रूप में सिद्ध कर लेने से वह साधक अजेय हो जाता है और फिर उसके सामने समस्त त्रैलोक्य के देवता, दानव, मनुष्य, गन्धर्व आदि भी युद्ध में टिक नहीं सकते। जिस क्षण यह साधना सम्पन्न होती है, उसी क्षण से शत्रु काल के सुपूर्द हो जाता है और उसका विनाश उतना ही निश्चित हो जाता है, जितना कि सूर्य और चन्द का अस्तित्व में होना।”
3. व्यक्ति के घर में निरन्तर धन का आगमन होता ही रहता है। उसका व्यापार तरक्की करता है और अगर वह नौकरी पेशा हो, तो उसकी पदोन्नति शीघ्र होती है।
4. इस साधना के प्रभाव से घर में अगर कोई तांत्रिक प्रयोग हो, तो वह नष्ट होता है।
5. कुण्डली में निर्मित दुर्योग फलहीन हो जाते हैं.. अगर दुर्घटना एवं अकाल मृत्यु का योग हो. तो वह भी अल्प हो जाता है, एक प्रकार से नष्ट हो हो जाता है। -और प्रभु राम मुस्करा दिए, प्रभु अपने भक्त की प्रसन्नता के लिए स्वयं विष्णुवतार होते हुए भी शिष्य/ भक्त हनुमान के निवेदन पर उसी क्षण भुवनेश्वरी साधना एवं अनुष्ठान का प्रारम्भ किया एवं उसे सफलता पूर्वक सम्पन्न किया.
6. साधक जिस कार्य में हाथ डालता है. उसमें विजय ही प्राप्त करता है, हर क्षेत्र में सफल होता है। इंटरव्यू परीक्षा आदि में पूर्ण सफलता प्राप्त करता है। – और इतिहास भी इस बात का गवाह है कि जो रावण नाभि में अमृत कुण्ड स्थापित होने की वजह से अजेय था, अंततः काल के विकराल पंजों से बच नहीं पाया
7. ऐसा व्यक्ति समाज में सम्माननीय एवं पूजनीय होता है। उच्चकोटि के मंत्रीगण एवं अधिकारी भी उसकी बात को मस्तक पर धारण करते हैं। वह सभी का प्रिय होता है और जीवन में उसे किसी चीज का अभाव नहीं रहता।
8. इसके साथ ही साथ उसका पारिवारिक जीवन अत्यधिक सुखी होता है, यदि कोई क्लेश व्याप्त हो, तो भी वह समाप्त हो जाता है। वास्तव में ही यह साधना अपने आप में महातेजस्वी अद्वितीय एवं अनिवर्चनीय है। ऐसा आज तक हुआ ही नहीं, कि | व्यक्ति यह साधना सम्पन्न करे और उसका परिणाम उसे न मिले। ऊपर दिए गए संदर्भ में इस साधना का एक ही तथ्य स्पष्ट किया गया है। वैसे इसके सफलतापूर्वक सम्पन्न होने पर निम्न स्थितियां साधक के जीवन में अंकुरित हो जाती है-
9. उसकी समस्त इच्छाएं और कामनाएं पूर्ण होती है और वह स्वयं भी आश्चर्य चकित रह जाता है, कि किस प्रकार से उसकी सारी अभिलाषाएं स्वतः ही पूर्ण हो रही हैं।
10. भगवती भुवनेश्वरी वास्तव में सम्पूर्ण 64 कलाओं 1. साधक का व्यक्तित्व अत्यधिक आकर्षक एवं भव्य हो जाता है।
उसके इर्द-गिर्द एक तेजयुक्त आभा मण्डल निर्मित हो से परिपूर्ण है, अतः इस साधना को सम्पन्न करने से व्यक्ति को नहा भोग, धन, वैभव, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, वहीं वह अन्त में मोक्ष की स्थिति प्राप्त कर बालीन हो जाता है… और आवागमन के चक्र से छूट जाता है। ऊपर बताई गई स्थितियां तो मात्र सूर्य को रोशनी दिखाने के समान हैं। वास्तव में तो वह अपने आप में ही अद्वितीय तेजस्वी युगपुरुष बन जाता है। उसके अन्दर शक्ति का वह तीव्र प्रवाह समाहित हो जाता है, जिससे काल भी उसके सामने आने से मयभीत होता है। साथ ही साथ वह समस्त ज्ञान-विज्ञान में पारंगत हो वर्तमान पीढ़ी का मार्गदर्शन करने में सक्षम हो पाता है और आने वाली पीढ़ियां उसे दिव्य पुरुष को संज्ञा से विभूषित कर आदर भाव से देखती हैं। साधना विधान यह भुवनेश्वरी साधना विधान वास्तव में शक्ति साधना का ही स्वरूप है और एक तरह से मात्र इस साधना को करने से आद्य शक्ति के समस्त स्वरूपों की साधना स्वतः ही हो जाती है।
भुवनेश्वरी महाविद्या साधना की विधि Maa Bhuvaneshwari Sadhana vidhi
भुवनेश्वरी महाविद्या साधना की विधि Maa Bhuvaneshwari Sadhana vidhi यह 9 दिन की साधना है और 1. 1. 99 से अथवा किसी भी मास के प्रथम दिन से इसे प्रारम्भ करना चाहिए। नवरात्रि के अवसर पर इस साधना को सम्पन्न किया जा सकता है। इस साधना में निम्न उपकरणों की आवश्यकता होती है। 1. भुवनेश्वरी यंत्र, 2. मूंगे का दाना, 3. मुक्नेश्वरी माना। निर्धारित दिवस की रात्रि में दस बजे के उपरान्त साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर श्वेत स्वच्छ धोती धारण कर श्वेन आसन पर पूर्वाभिमुख होकर बैठें। गुरु चित्र का स्थापन करें तथा ‘दैनिक साधना विधि’ पुस्तक में दी गई विधि से गुरु पूजन करें। अपने सामने लाल वस्त्र से ढके बाजोट पर भुवनेश्वरी यंत्र स्थापित कर उसका (कुंकुंम, अक्षत, धूप, दीप, पुष्प) पंचोपचार पूजन सम्पन्न करें। फिर साधक वाहिने हाथ में जल लेकर
निम्न प्रकार से विनियोग करें विनियोग ॐ अस्य श्री भुवनेश्वरी हृदय स्तोत्रस्य श्री शक्ति ऋषिः । गायत्री मन्च, भुवनेश्वरी देवता, ही बीजं, ई शक्तिः // रं कीलकं सकल-मनोवांछित-सिद्धचर्य पाठे विनियोगः ॥ जल भूमि पर छोड़ दें तथा शरीर के विभिन्न अंगों को दाहिने हाथ से स्पर्श करते हुए
निम्न न्यास सम्पन्न करें- ऋष्यादि न्यास श्री शक्ति ऋषये नमः शिरसि || गायत्री छन्दसे नमः मुखे ॥ श्री भुवनेश्वरी देवतायै नमः हृदि । ह्रीं बीजाय नमः गुझे ॥ ई शक्तये नमः नाभौ ॥ रं कीलकाय नमः पाक्योः ॥ सकल मनोवांछित सिन्द्रवयें पाठे विनियोगाय नमः सर्वांगि।
फिर मूंगे का दाना अगर मन में कोई इच्छा विशेष हो, तो उसे सोचकर निम्न मंत्रों से यंत्र पर अर्पित करे भुवनेश्वरी ध्यान उपदविनश्रुति मिन्दु किरीटान्तुङ्ग कुचाश्यनत्र युक्ताम् स्मेरमुखी व्वरवाङ्कुश पाशांभीति कराम्प्रभुजे मुवनेशीम् फिर ‘भुवनेश्वरी माला’ पर सिंदूर से तिलक करें तथा उसी माला से निम्न मंत्र की 101 माला मंत्र जप करें- मंत्र ।। ॐ ह्रीं ॐ ।। Qs Hreem Om तिलक कर पूजन करने के बाद ही भुवनेश्वरी माला से 101 मालाएं फिर नित्य साधना करने से पूर्व यंत्र एवं मुंगे के दाने का मंत्र जप करें। ऐसा नौ दिन तक करें, उसके उपरांत समस्त साधना सामग्री को किसी जलाशय में अर्पित कर दें। ऐसा करने से साधना निश्चय ही सिद्ध होती है। इसमें कोई संशय नहीं। निश्चित ही यह साधना एवं मंत्र परम गोपनीय और सामान्यतः अप्राप्य है, पर जिस किसी को भी यह साधना सिद्ध हो जाती है उसके
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भाग्य से तो स्वयं देवी-देवता भी ईष्या करने लगते हैं और वह दिनों दिन ऊंचाई की ओर अग्रसर होता ही रहता है।
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