Chinnamasta Sadhana – छिन्नमस्ता साधना मंत्र प्रयोग सहित Ph.85280 57364
Chinnamasta Sadhana – छिन्नमस्ता साधना मंत्र प्रयोग सहित Ph.85280 57364 आज हम छिन्नमस्ता साधना की जानकारी प्रदान करेंगे। इस पोस्ट में साधको छिन्नमस्ता साधना का दैनिक ज़िंदगी में क्या महत्व है इस के बारे में बताया गया है और दुर्गम मुनष्य जीवन को यह देवी कैसे सुगम बनाती है यह बताया गया है। आप इस पोस्ट को विस्तार सहित पढ़े
एक नहीं अनेक स्क बीज है इस जीवन में जिनका समूल नाश करता छिन्नमस्ता जो शक्ति का सर्वाधिक तीक्ष्ण स्वरूप है पौराणिक कथाओं में तो बस रक्तबीज की कथा मिलती है, किन्तु आज व्यक्ति के दैनंदिन जीवने में चारों और समस्या रूपी जो अनेक रक्तबीज खड़े हैं, उनके सहार का क्या उपाय किया जाए जैसे जैसे व्यक्ति की एक समस्या सुलझती है, कि उससे जुड़ी चार नई समस्याएं आ जाती है। केवल एक या दो वर्ष नहीं, पूरे के पूरे जीवन पर्यन्ता- ऐसी ही स्थितियों के लिए किया गया है शक्ति साधनाओं का सृजन और छिन्नमस्ता की साधना इनमें एक पृथक व विशिष्ट स्थान रखती है।सकती य विरोधाभासी धार प्रतीत है, किन्तु है शत प्रतिशत सत्य कि जहां कांच का पूर्ण प्रवाह होता है, वहीं प्रेस का भी पूर्ण प्रवाह सम्भव हो सकता है।
यह जो इस युग की तथाकथित सभ्यता है कि इन्हें दो परस्पर विरोधी गुणमान लिया गया है और ऐसा इस कारण हुआ है कि जीवन की गति तीव्र होने के साथ-साथ व्यक्ति ने पौरुष का आश्रय स्यांग हृदय के आवरण को ओढ़ लिया है। हृदय के आवरण के साथ गतिशील होने पर व्यक्ति को प्रारम्भिक सफलताएं सस्ती लोकप्रियता अवश्य मिल जाती है, किन्तु होती है सब बालू की भांति एक ही आघात से भरभरा कर गिर जाती है और इसका सर्वाधिक पुष्ट प्रमाण है दिन प्रतिदिन केवल विदेशों में ही नहीं
एक अहं विकसित कहे जाने वाले देश भारत में बढ़ती हृदय रोगियों की संख्या व्यक्ति किसी प्रकार से समस्त चतुराई को लगाकर कुछ अर्जित करता है, लेकिन पाता है, कि उसके कुछ अर्जित करते ही उससे जुड़ी चार और समस्याएं खड़ी हो गई हैं या यह अनुभव करता है, कि उसकी चतुराई से किए गए। अजून में संघ लगाकर उसे झपट लेने वाले और आ गए हैं, तो उसे अपना जीवन ही व्यर्थ लगने लगता है और वह इसी वेद में या तो अस्वस्थ होकर बिस्तर पकड़ लेता है या इस जगत को ही अलविदा कह देता है।
केवल हृदय रोग ही नहीं वरन निरन्तर बढ़ा रही आत्महत्याओं की संख्या भी प्रकार से इसी की और संकेत करती है। एक बेटोजगार व्यक्ति इधर-उधर से सम्पर्क कट, उच्चतम शिक्षा प्राप्त होने के बावजूद भी जब उत्कोच (घुस) देकर किसी नौकरी को पाता है और नौकरी पाने के बाद पाता है, कि उसकी समस्याओं का अन्त नहीं हुआ ‘प्रारम्भ’ हुआ है।
अपने शीर्ष अधिकारी नित्य प्रणाम करना है, उनके बच्चों तक की ही नहीं कुते तक कोजी हजूरी करनी पड़ती है या उन्हें जोड़ो कर हर माह एक नियत राशि पहुंचानी होती है अथवा कार्यालय के राजनीतिक इन्हों में उलझना है या इसी प्रकार के अनेकानेक लिया तो वह हतप्रभ सी चन अतियां, जड़ हो जाता है एक पिता अपनी सारे चातुर्य और धन-बल को लगाकर अपनी योग्य और सुशिक्षित पुत्री का विवाह किसी प्रतिष्ठित परिवार में करता है किन्तु विवाह के बाद पता चलता है, कि उसका पति परपीड़क (Sadist) प्रवृत्ति का है या उसकी और से विवाह के बाद अधिक की नाग की जाती है अथवा तलाक की धमकी मिलने लगती है, तो ऐसी स्थिति में परिवार की प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए उस परिवार को किन दावों से गुजरना पडता है। इसका यत्र विज्ञान अनुमान तो कोई प्रत्यक्षदर्शी ही कर सकता है। ए
क व्यक्ति अपनी जीवन भर की पूँजी को मकान बनवाता है और सोचता है, कि उसे नित्य मकान मालिक के तानों, उलाहनों, धमकियों से मुक्ति मिल सकेगी, किन्तु बनवाने के बाद भूमि के स्वामित्व को लेकर और दावेदार खड़े हो जाते हैं या कोई कानूनी अन निकल आती है अथवा पड़ोसी दुष्ट प्रकृति का जाता है, तो ऐसे में वह घर उस गुड़ भरी हंसिया की हो जाता है, जो न उगली जा सकती है. न निगली सकती है। ऊपर तो ये केवन तीन उदाहरण हैं किन्तु जीवन का स्वरूप इन तीन उदाहरणों से परे कहीं अधिक विस्तारित है।
पग-पग पर व्यक्ति अनुभव करता है, कि उसने अपनी किसी समस्या के लिए जो समाधान प्राप्त किया है, वह तव में चार नई समस्याओं को जन्म देने वाला बनता रहा है और इस ऊहापोह में व्यक्ति इस तरह से कर्तव्यविमूढ़ हो जाता है कि उसके जीवन की गति, हृदय का उमंग, ओठों की मुस्कराहट सब कुछ खो जाती है। ऐसे में वह कोई भी चातुर्य कार्य नहीं करता है और लड़ते-लड़ते व्यक्ति उस स्थिति में पहुंच जाता है. कि उसके अन्दर चातुर्य प्रयोग करने की क्षमता भी नहीं रह जाती है। अन्त में वह हारे को हरिनाम या ‘हरि इच्छा, प्रभु इच्छा का मनत सलबरा ओढ़ एक घुटन में घिर कर रह जाता है।
साधनाएं केवल ऐकान्तिक सुख अथवा समाधि को उपलब्ध करवा देने का माध्यम नहीं होती और जो होती हैं उन्हें कुछ समय के लिए विश्राम दे देना चाहिए जब तक जीवन की ऐसी ही स्थितियों के निश्चित और फलप्रद समाधान न मिल जाएं, क्योंकि साधना का सारा अस्तित्व ही जिस आधार पर टिका है वह है ‘विद्रोह’ । भाग्य साधना ने भाग्य लिपि में क्या अंकित किया है, यह पढ़ने का अवकाश साधक के पास नहीं होता और न होना चाहिए। साधक का तात्पर्य ही होता है कि वह अपनी इच्छानुसार परिवेश का निर्माण स्वयं कर लेता है और इसमें माध्यम बनाता है विविध साधनाओं को यथार्थ शिष्य केवल गुरु-गुरु की रट नहीं लगाता, वरन जीवन की समस्याओं का समाधान स्वयं अपने पौरुष से पाने का प्रयास करता है।
इस लेख के प्रारम्भ में जिस पौरुष की चर्चा की उसका वस्तुतः यही तात्पर्य है। पौरुषता का तात्पर्य केवल एक पुरुष शटीर और बात-बात पर ऐंठने से नहीं होता, वरन् जहां कोई भी साधक अथवा साधिका जीवन की विविध स्थितियों का शान्त चित से आकलन कर उनका उपाय सोचता है और यह चिन्तन करता है, कि इसके लिए कौन सी मुक्ति फलप्रद होगी, वह भी पौरुष ही है। साधना भी एक प्रकार की ही विषय वस्तु है यह अलग बात है. कि आज साधना के क्षेत्र में प्रविष्ट होने वाले व्यक्ति की धारणा एक अव्यवहारिक, अब्बाक और प्रायः पोंगा के रूप में की जाती है किन्तु जो यथार्थ में साधना के क्षेत्र में प्रविष्ट होने वाले व्यक्ति को जिन आलोडनों विलोड़गों का सामना करना पड़ता है।
एक ओर उनमें प्रबल वेग, पौरुष, क्रोध और ज्ञान का समुद्र सा उमड़ता रहता है, तो वहीं उन्हें क्षमा, प्रेम, करुणा और शान्त मनःस्थिति जैसे सर्वथा विरोधी भावों का आश्रय लेकर समाज में एक सामान्य व्यक्ति की तरह गतिशील होते हुए सकारात्मक व निर्माणात्मक कार्यों को पूर्णता भी देनी होती है और ऐसे व्यक्तित्व ही सही अर्थों में दत्त महाविद्याओं में से किसी भी महाविद्या के यथार्थ साधक हो सकते हैं। अन्तर इस बात से नहीं पड़ता है, कि कौन सा साधक किस महाविद्या की साधना में लीन है. यरन मुख्य यहीं है, कि क्या महाविद्या साधना मैं प्रवृत्त पूर्व एक पृष्ठभूमि का निर्माण कर चुका है।
जगदम्बा का कोई भी स्वरूप हो और किसी कारण जहां महाविद्याओं में एक ओर से शक्ति प्रवाह रहता है वहीं दूसरी ओर से प्रेम, ममता जैसे भावों की भी समाहिती होती है, जो इन को साथ लेता है यही महाविद्या साधनाओं में सकता है और जिसने जीवन में किसी एक साधना में भी सफलता प्राप्त कर ली. उसका आलोकित हो जाता है।
मस्ता साधना भी इसी श्रेणी की एक समुच्चय है जिसका समाज में भयवश और भ्रमवश अत्यन्त प्रसार हो सका है। इसके नाम के अनुरूप यह मिथ्या धारणा कर लेते हैं, कि इस साधना होने पर यदि साधना में कोई चूक हो गई, तो देवी सिर के टुकड़े-टुकड़े (छिन्नमस्तक) कर देंगी। यह है कि केवल छिन्नमस्ता ही नहीं किसी भी महाविद्या के पूर्ण क्रम में प्रवेश करने पर गुरु निर्देशन में नियमों का दृढ़ता से पालन करना पड़ता है, किन्तु यह तात्पर्य नहीं कि साधक किसी देवी या देवता के मात्र से भयभीत होकर उससे सम्बन्धित साधना का ही त्याग दे।
किसी भी शक्ति का तात्पर्य केवल यह नहीं होता, कि साधक पहले पूर्णता प्राप्त करे तभी उसके (उस शक्ति) विविध प्रयोग करे, अपितु जिनको अपने जीवन में समाहित कर सहज ही दैनदिन जीवन में आने वाली कठिनाईयों से मुक्ति पाता हुआ अपने अभीष्ट लक्ष्य की पूर्ति में सहजता और निर्द्वन्द्वता से प्रविष्ट हो सके। प्रस्तुत छिन्नमस्ता साधना के साथ भी यही तथ्य है, कि आवश्यक नहीं, कि पहले साधक छिन्नमस्ता की सिद्धि करे तभी इस प्रयोग को सम्पन्न करने की पात्रता प्राप्त कर सके।
दूसरे शब्दों में यहां छिन्नमस्ता महाविद्या साधना की विधि नहीं अपितु छिन्नमस्ता महाविद्या पर आधारित एक ऐसे प्रयोग की प्रस्तुति की जा रही है, जिसे सम्पन्न कर साधक जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में निर्विघ्नता की स्थिति प्राप्त कर सकता है। जीवन का कोई भी महत्वपूर्ण कार्य कट लेता है, तो न केवल उसका विशेष कार्य ही निर्विघ्नता पूर्वक सम्पन्न होता है वरन् आगे की सम्भावित सभी विपरीत स्थितियों का समाधान भी हो जाता है।
Chinnamasta Sadhana – छिन्नमस्ता साधना विधि
प्रस्तुत प्रयोग में आवश्यक उपकरण के रूप में साधक के पास ताम्र-पत्र पर अंकित छिन्नमस्ता यंत्र’, ‘दो दि मधुररूपेण रुद्राक्ष (जो छिन्नमस्ता की दो अभिन्न शक्तियां जया और विजया के प्रतीक है) छिन्नमस्ता माता होनी आवश्यक है। साधक इस साधना को किसी भी मंगलवार की रात्रि में दस बजे के आस-पास प्रारम्भ कर सकता है। यह एक दिवसीय साधना है, अतः विशेष श्रमसाध्य भी नहीं है। साधक स्वयं लाल रंग की धोती पहन दक्षिण मुख हो. न लाल रंग के आसन पर ही बैठें और सामने लकड़ी के में बाजोट पर लाल रंग का वस्त्र बिछाकर समस्त साधना क सामग्रियों की स्थापना कर दें।
दोनों धुपे रुद्रावर यंत्र दाई ओर बाई और रखें तथा समस्त साधना सामग्री का पूजन सिन्दूर व अक्षत से करें। यदि सम्भव हो, तो लाल रंग के पुष्प चढ़ाएं। अगरबत्ती अथवा धूप लगाने की विशेष आवश्यकता नहीं है किन्तु तेल का इतना बड़ा दीपक अवश्य जला लें, जो समस्त मंत्र जप के काल में प्रज्ज्वलित रहे। इसके पश्चात् साधक अपनी जिस मनोकामना की मूर्ति में तत्पर होने जा रहा है, उसका मन ही मन स्मरग करें मनोकामना किसी भी प्रकार की हो उसमें संकोच में करने की आवश्यकता नहीं है। यह प्रयोग प्रत्येक मनोकामना के प्रति समान रूप से प्रभावी है किन्तु साधक को प्रत्येक नई मनोकामना चाहे वह रोजगार की प्राप्ति से सम्बन्धित हो अथवा व्यवसाय को प्रारम्भ करने से अथवा विवाह या सन्तान या गृहस्थ सुख से प्रत्येक बार नई साधना सामग्री के साथ ही प्रयोग को सम्पन्न करें मनोकामना स्मरण के पश्चात देवी के उग्र स्वरूप का ध्यान करते हुए और मन में । यह भावना करते हुए, कि उनके वरदायक प्रभाव से साधक का पथ निष्कंटक हो रहा है।
Chinnamasta Sadhana – छिन्नमस्ता साधना ध्यान
मास्वमण्डलमध्यमां निजशिरश्छित्रं विकीर्णालिक स्फारास्यं प्रपिवद्गलात्स्वधिरं वामे करे विभ्रतीम् याभासक्तरतिस्मारोपरिगतां सख्याँ निजे डाकिनीवर्णिन्यौ परिदृश्य मोदकलितां श्रीछिन्नमस्तां भजे ॥
साधक छिन्नमस्ता माला से निम्न मंत्र की केवल 21 माला मंत्र जप सम्पन्न करें।
मंत्र. ।। ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वैरोचनीये ह्रीं फट् स्वाहा OM SHREEM HREEM HREEM KLEEM AVIEM VAJRAVAIROCHANEFYE HROUM HREEM PHAT SWAHA
मंत्र जप के पश्चात् दूसरे समस्त सामग्रियों का किसी पवित्र सरोवर में विसर्जित कर दें।
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