यक्षिणी सम्बन्धी प्रारम्भिक ज्ञान शोभना यक्षिणी साधना
yakshini related basic knowledge and shodhna
yakshini sadhna
आज हम यक्षिणी साधना के उपर चर्चा करेंगे कौन सी यक्षिणी की साधना आप के लिए उपयोग रहेंगी। पहले हम यक्षिणी साधना के विषय मे समाज में बहुत सी गलत धारणाएँ हैं । कुछ लोगों का मानना है कि यक्षिणी खून मनुष्य का खून चूसती हैं।
प्रत्येक व्यक्ति के मन यक्षिणी साधना के सम्बन्ध में कई प्रकार की धारणा है कुछ साधक इस विषय अंजान है ज्ञानता के कारण इस साधना के बारे में गलत सोचते है इस साधना तामसिक साधना समझते हैं बहुत से लोग यक्षिणी का नाम सुनते ही डर जाते हैं कि ये बहुत भयानक होती हैं, किसी चुडैल कि तरह, किसी प्रेतानी कि तरह, मगर ये सब सब आज्ञानता पूरन बाते है । यक्षिणी साधना के विषय मे समाज जो असत्य मिथ्या धारणाओं को दूर करने का प्रयत्न करूंगा अस्ल में यक्षिणी साधना क्या इस के विषय बताने का प्रयत्न करूंगा है । कोई भी साधना करने से पहले उस साधना की प्रारम्भिक जानकारी होने जरूरी है हम भटक न सकें ।
यक्षिणी साधना परिचय yakshni sadhna related introduction
yakshni sadhna यक्षिणी एक सौम्य और दैविक शक्ति होती है देवताओं के बाद देवीय शक्तियों के मामले में यक्ष का ही नंबर आता है हमारे भारतीय पौराणिक ग्रंथो में बहुत सारी प्रमुख रहस्यमयी जातियां का वर्णन मिलता है । जैसे कि देव गंधर्व ,यक्ष, अप्सराएं, पिशाच, किन्नर, वानर, रीझ, ,भल्ल, किरात, नाग आदि यक्षिणी भी इन रहस्यमय शक्तियो के अंतर्गत आती है । देवताओं के कोषाध्यक्ष महर्षि पुलस्त्य पौत्र विश्रवा पुत्र कुबेर भी यक्ष जाती के हैं । जैसे कि देवताओं के राजा इंद्र है वैसे ही यक्ष यक्षिणी काराजा कुबेर है कुबेर को यक्षराज बोला जाता है यक्ष यक्षिणीया कुबेर के आधीन होती है।
यक्षिणी साधना को किसी रूप में सिद्ध किया जाता है yakshni sadhna ko kis roop me siddh kiya jata hai
yakshni sadhna कुछ साधको के मन शंकाआऐं होता है कि यह किसी रूप मे सिद्ध होती है कुछ लोगों की धारणा यह सिर्फ प्रेमिका रूप में सिद्ध की जा सकती है जो कि बिलकुल गलत है साधक इच्छा अनुसार किसी भी रूप सिद्ध कर सकता है । इच्छा अनुसार, माता , पुत्रीव स्त्री ( पत्नी ) के रूप में सिद्ध कर सकते है यक्षिणियों की साधना अनेक रूपों में की जाती है, जैसे माँ, बहन, पत्नी अथवा प्रेमिका के रूप में इनकी साधना की जाती है, ओर साधक जिस रूप में इनको साधता है ये उसी प्रकारका व्यवहार व परिणाम भी साधक को प्रदान करती हैं, माँ के रूप में साधने पर वह ममतामयी होकर साधक का सभी प्रकार से पुत्रवत पालन करती हैं तो बहन के रूप में साधने पर वह भावनामय होकर सहयोगात्मक होती हैं, ओर पत्नी या प्रेमिकाके रूप में साधने पर उस साधक को उनसे अनेक सुख तो प्राप्त हो सकते हैं किन्तु उसे अपनी पत्नी व संतान से दूर हो जाना पड़ता है ।उड्डीश तंत्र में जिक्र मिलता है कि इस को किसी भी रूप मे सिद्ध किया जा सकता है ।
सर्वासां यक्षिणीना तु ध्यानं कुर्यात् समाहितः ।
भविनो मातृ पुत्री स्त्री रुपन्तुल्यं यथेप्सितम् ॥
तन्त्र साधक को अपनी इच्छा के अनुसार बहिन , माता , पुत्रीव स्त्री ( पत्नी ) के समान मानकर यक्षिणियों के स्वरुप में साधना अत्यन्त सावधानीपूर्वक करना चाहिए । कार्य में तनिक – सी भी असावधानी हो जाने से सिद्धि की प्राप्ति नहीं होती ।
इस श्लोक से उपरोक्त बात स्पष्ट होती है कि आप इच्छा अनुसार, माता , पुत्रीव स्त्री ( पत्नी ) के रूप में सिद्ध कर सकते है ।
अष्टम यक्षिणी प्रमुख आठ यक्षिणीया ashat yakshni parmukh aath yakshniya
जैसे कि मनुष्यो कुछ विशेष मनुष्य होते है उसी तरह यक्षिणी में भी कुछ विशेष यक्षिणीया होती है । सभी योनियों में इस तरह से होता है । इनमे से निम्न 8 यक्षिणियां प्रमुख मानी जाती है
1.सुर सुन्दरी यक्षिणी
2.मनोहारिणी यक्षिणी
3.कनकावती यक्षिणी
4.कामेश्वरी यक्षिणी
5.रतिप्रिया यक्षिणी
6.पद्मिनी यक्षिणी
7.नटी यक्षिणी
8.अनुरागिणी यक्षिणी
किस यक्षिणी की साधना से क्या फल मिल सकता kiss yakhni ke sadhna se kya phal milta hai
सुर सुन्दरी यक्षिणी
यक्षिणी सम्बन्धी प्रारम्भिक ज्ञान शोभना यक्षिणी साधना
– यह यक्षिणी सिद्ध होने के बाद साधक को ऐश्वर्य, धन, संपत्ति आदि प्रदान करती है।
मनोहारिणी यक्षिणी ये यक्षिणी सिद्ध होने पर साधक के व्यक्तित्व को ऐसा सम्मोहक बना देती है, कि हर व्यक्ति उसके सम्मोहन पाश में बंध जाता है।
कनकावती यक्षिणी कनकावती यक्षिणी को सिद्ध करने पर साधक में तेजस्विता आ जाती है। यह साधक की हर मनोकामना को पूरा करने मे सहायक होती है।
कामेश्वरी यक्षिणी यह साधक को पौरुष प्रदान करती है और सभी मनोकामनाओं को पूरा करती है।रति प्रिया यक्षिणीसाधक और साधिका यदि संयमित होकर इस साधना को संपन्न कर लें तो निश्चय ही उन्हें कामदेव और रति के समान सौन्दर्य मिलता है।
रति प्रिया यक्षिणी yakshni sadhna साधक और साधिका यदि संयमित होकर इस साधना को संपन्न कर लें तो निश्चय ही उन्हें कामदेव और रति के समान सौन्दर्य मिलता है।
पद्मिनी यक्षिणी यह अपने साधक को आत्मविश्वास व स्थिरता प्रदान करती है और हमेशा उसे मानसिक बल प्रदान करती
नटी यक्षिणी को विश्वामित्र ने भी सिद्ध किया था।यह अपने साधक कि पूर्ण रूप से सुरक्षा करती है।
अनुरागिणी यक्षिणी साधक पर प्रसन्न होने पर उसे नित्य धन, मान, यश आदि प्रदान करती है और साधक की इच्छा होने पर सहायता करती है
विशेष कामना पूर्ति के हिसाब से अलग अलग साधनाओ को किया जाता है
यक्षिणी अन्य साधना से जल्दी सिद्ध होती है yakshni any sadhna se jaldhi siddhi hote hai
हमारे प्राचीन भारतीय ग्रंथो में बहुत सारे लोको का वर्णन मिलता है इस ब्रह्मांड में कई लोक हैं। सभी लोकों के अलग-अलग देवी देवता हैं जो इन लोकों में रहते हैं । पृथ्वी से इन सभी लोकों की दूरी अलग-अलग है। मान्यता है नजदीकि लोक में रहने वाले देवी-देवता जल्दी प्रसन्न होते हैं, क्योंकि लगातार ठीक दिशा और समय पर किसी मंत्र विशेष की साधना करने पर उन तक तरंगे जल्दी पहुंचती हैं। यही कारण कि यक्ष, अप्सरा, किन्नरी आदि की साधना जल्दी पूरी होती है, क्योंकि इनके लोक पृथ्वी से पास हैं। yakshni sadhna
तंत्र ग्रंथो के अनुसार यक्षिणी साधना को संपन्न करने के लिए विशेष नियम tantra gratho ki anusaar yakshni sadhna ko sampan kani ki lea vishesh niyam
भोज्यं निरामिष चान्नं वर्ज्य ताम्बूल भक्षणम् ॥
उपविश्य जपादौ च प्रातः स्नात्वा न संस्पृशेत् ॥
यक्षिणी साधन में निरामिष अर्थात् मांस तथा पान का भोजन सर्वथा निषेध है अर्थात् वर्जित है । अपने नित्य कर्म में , प्रातः काल स्नान आदि करके मृगचर्म ( के आसन ) पर बैठकर फिर किसी को स्पर्श न करें । न ही जप और पूजन के बीचमें किसी से बात करें ।
नित्यकृत्यं च कृत्वा तु स्थाने निर्जनिके जपेत् ।यावत् प्रत्यक्षतां यान्ति यक्षिण्यो वाञ्छितप्रदाः ॥
अपना नित्यकर्म करने के पश्चात् निर्जन स्थान में इसका जप करना चाहिए । तब तक जप करें , जब तक मनवांछित फल देने वाली ( यक्षिणी ) प्रत्यक्ष न हो । क्रम टूटने पर सिद्धि में बाधा पड़ती है । अतः इसे पूर्ण सावधानी तथा बिना किसी को बताए करें ।
Shobhna yakshni sadhna शोभना यक्षिणी साधना
शोभना यक्षिणी के विषय में आज जानकारी देने का प्रयत्न करूँगा अगर आप को यक्षिणी साधना के सम्बन्ध में प्रारंभिक जानकारी नहीं है तो उपरोक्त दी गई जानकारी को अवश्य पढे जरूर पढे । कोई भी साधना करने से पहले उस साधना के विशष में जानकारी होना बहुत जरूरी है साधना की प्रारम्भिक जानकारी न होने के कारण आप भटक सकते हो । इस लिए आप पहले उस पोस्ट को जरूर पढे पहले वाली पोस्ट के बाद बहुत सारे साधको का फोन आया कि हमे कोन सी यक्षिणी की साधना से हमें शुरूआत करनी चाहिए कोई ऐसी साधना बताऐ जो सरल हो जिससे घर पर ही संपन्न हो जाए । इस लिए आज आप को ऐसी साधना की जानकारी देने का प्रयत्न करूंगा जो आप घर पर संपन्न कर सिद्धीया कर सकते है । yakshni sadhna
शोभना यक्षिणी साधना आप इस साधना को घर पर ही सिद्ध कर सकते हैं यह जितनी सरल साधना उतनी ही प्रभावकारी भी हैं । शोभना यक्षिणी का रूप शांतिमय तेजस्विता से पूरण अत्यंत ही ख़ूबसूरत और यौवन आकर्षण से परिपूर्ण होती है। अगर वृद्धि व्यक्ति इस साधना करें एक युवक की तरह यौवनवान हो जाएगा । साधक काल के दिनो में साधक के शरीर जोश और चेहरे के उपर लालीमा और तेज आ जाता है । दिवय आकर्षण शक्ति प्राप्त होती शत्रु के मन में आप के प्रति आदर भाव पैदा होता है अगर शादी शुदा हो पती पत्नी के रिश्ते में मधुरता आ जाती है । संसार में मान सम्मान की प्राप्ती होती है । साधना के दिनो में आप यह बदलाव महसूस करोगे । हर वह साधक जो साधना क्षेत्र में आगे नया है लेकिन तंत्र मंत्र साधना में आगे बढ़ना चाहता वह साधक शोभना से शुरुआत करनी चाहिए वैसे यह साधना हरेक के लिए है । हरेक मनुष्य इस साधना को कर सकता है स्त्री पुरूष कर सकता है । अगर स्त्री करे तो आपर सुंदरता की प्राप्ती होती है।
yakshni sadhna
(Sadhna vidhi) साधना विधी – साधना में लाल आसन और लाल माला रक्त चंदन की लकड़ी की होनी चाहिए साधक खुद लाल वस्त्र धारण करने चाहिए । साधना वाले कमरे को पहले अच्छे तरह से साफ करे दूध से धोकर इत्र का पोचा लगाए । लाला रंग के आसन पर गंगा जल छिटकाव करना चाहिए । फिर वातावरण को सुगंधित करने के लिए गूगल की धूप जलाए । यक्षिणी मंत्र का 31 माला जप करे 40 दिन तक। साधक को साधना के दिनो में यक्षिणी के दर्शन हो पास आकर बैठ जाए बोले नहीं देवी को दूर से प्रणाम करें बिना आपने आसन से उठे जप करते रहें । yakshni sadhna
shobna yakshini mantra
ॐ ड्रीम अशोक पलवा करतले शोबने श्रीं क्ष स्वः
Shobhna yakshni sadhna ki labh शोभना यक्षिणी साधना के लाभ
शोभना यक्षिणी साधक इच्छा अनुसार भोग विलास परूती भी करती है ।
साधक त्रिकाल प्रदान करती है भूत भविष्य वर्तमान की जानकारी भी प्रदान करती है ।
ईस साधना से साधक को यौवन शक्ति और सौदर्य की प्राप्ति होती है जिससे के साधक स्त्री और पुरुष सभी आकर्षित रहते ।
यक्षिणी साधक संसार शोभा और मान सम्मान दिलाती है इस लिए इस को शोभना यक्षिणी कहते है ।
यक्षिणी साधना में सवाधानीया Yakshni sadhna me savdhaneya
भोज्यं निरामिष चान्नं वर्ज्य ताम्बूल भक्षणम् ॥
उपविश्य जपादौ च प्रातः स्नात्वा न संस्पृशेत् ॥
यक्षिणी साधन में निरामिष अर्थात् मांस तथा पान का भोजन सर्वथा निषेध है अर्थात् वर्जित है । अपने नित्य कर्म में , प्रातः काल स्नान आदि करके मृगचर्म ( के आसन ) पर बैठकर फिर किसी को स्पर्श न करें । न ही जप और पूजन के बीचमें किसी से बात करें ।
नित्यकृत्यं च कृत्वा तु स्थाने निर्जनिके जपेत् ।यावत् प्रत्यक्षतां यान्ति यक्षिण्यो वाञ्छितप्रदाः ॥
अपना नित्यकर्म करने के पश्चात् एकांत स्थान में इसका जप करना चाहिए । तब तक जप करें , जब तक मनवांछित फल देने वाली ( यक्षिणी ) प्रत्यक्षन हो । क्रम टूटने पर सिद्धि में बाधा पड़ती है । अतः इसे पूर्ण सावधानी तथा बिना किसी को बताए करें ।
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