Wednesday, February 19, 2025
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प्राचीन चमत्कारी ब्रह्मास्त्र माता बगलामुखी साधना अनुष्ठान Ph. 85280 57364

बगलामुखी  साधना विधि  Baglamukhi Sadhana Method

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बगलामुखी  साधना विधि  Baglamukhi Sadhana Method माँ बगलामुखी के इस प्रयोग को बताने से पहले मैं कुछ बातों को स्पष्ट करना उचित समझता हूं। आजकल कुछ व्यक्ति अपनी दुश्मनी निकालने के लिये अथवा अपना कोई स्वार्थ सिद्ध करने के लिये, दबाव बनाने के लिये व्यक्ति को झूठे मुकदमों में उलझा देते हैं। आम व्यक्ति तो थाने तथा कोर्ट आदि का नाम सुनते ही कांप जाता है। उसने कभी इन स्थितियों के बारे में विचार तक नहीं किया था और अब वह स्थितियां अपने सामने देख कर कांप उठता है । ऐसे लोगों के लिये माँ बगलामुखी का यह प्रयोग अत्यन्त लाभदायक है ।

इसके लिये यह आवश्यक है कि कोर्ट में फंसा हुआ व्यक्ति वास्तव में ही निर्दोष हो । अगर अपराध करके कोई व्यक्ति इस विधि के द्वारा माँ का अनुष्ठान करके लाभ की आशा करता है तो उसे कभी लाभ प्राप्त नहीं होता है। जो वास्तव में निर्दोष है, किन्तु फिर भी किसी ने षड्यंत्र करके उसे कोर्ट में फंसा दिया है तो उसे इस अनुष्ठान का अवश्य लाभ मिलेगा।

 बगलामुखी महाविद्या की यह तांत्रोक्त अनुष्ठान साधना यूं तो 90 दिन की है, लेकिन अगर इसे पूर्ण विधान के साथ 31 दिन तक भी सम्पन्न कर लिया जाये तो भी अनेक प्रकार की परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है। लड़ाई-झगड़े, मुकदमेबाजी और प्रतियोगिता आदि में पूर्ण विजय पाने के लिये 31 दिन का अनुष्ठान सम्पन्न करना ही पर्याप्त रहता है।

माँ बगलामुखी के तांत्रिक अनुष्ठान को सम्पन्न करने के लिये पीले या केसरिया रंग की वस्तुओं का विशेष महत्त्व रहता है। पीला रंग को वैसे भी प्रसन्नता, मादकता, बुद्धिमत्ता, उत्साह, पौरुषता आदि का प्रतीक माना जाता है । तंत्रशास्त्र में माँ बगलामुखी का सम्बन्ध भी एक तरह से बुद्धिमत्ता, निर्णय लेने की सामर्थ्य, पौरुषता आदि के साथ ही जोड़ा गया है।

इसीलिये इनके अनुष्ठान के दौरान पीले रंग की चीजों, जैसे कि गोरोचन, केसर, हल्दी, चम्पक पुष्प, पीले कनेर के पुष्प, पीले रंग के यज्ञोपवीत, पीले वस्त्र, माँ पीताम्बरा को चढ़ाने के लिये भी पीले वस्त्र, पीला कम्बल आसन के रूप में, पीला कलावा, पीले मौसमी फल, बेसन के लड्डू, पान, सुपारी, धूप, दीप, कपूर, हरिद्रा गांठ माला आदि को प्रमुखता दी जाती है ।

अगर साधना कक्ष को भी पीले रंग से पोत लिया जाये तो और भी श्रेष्ठ रहता है। इनके अलावा अनुष्ठान के लिये हल्दी से रंगी कच्ची मिट्टी की हांडी, मिट्टी के दीये, लघु धेनुका शंख, स्वर्ण या रजत पत्र पर निर्मित बगलामुखी श्रीयंत्र आदि की आवश्यकता रहती है। अनुष्ठान की शुरूआत में सबसे पहले स्वर्ण या रजत पत्र पर बगलामुखी श्रीयंत्र शुभ मुहूर्त में उत्कीर्ण करवा कर उसका विधिवत पूजन करवा लेना चाहिये। स्वर्ण या रजत पत्र के अभाव में ताम्र पर भी इस यंत्र को बनवाया जा सकता है। बगलामुखी यंत्र पूजा में गोरोचन, केसर एवं जवाकुसुम के पुष्पों का प्रयोग किया जाना लाभप्रद माना गया है ।

विधिवत् पूजा से सम्पन्न यंत्र पूर्ण शक्ति सम्पन्न वन जाते हैं। ऐसे यंत्र बहुत ही प्रभावपूर्ण होते हैं। ऐसे सभी तांत्रोक्त अनुष्ठान अगर शक्ति स्थलों अथवा देवी मंदिरों में बैठकर सम्पन्न किये जायें तो तत्काल अपना प्रभाव दिखाते हैं । यद्यपि ऐसे तांत्रोक्त अनुष्ठान किसी प्राचीन शिवालय, वृक्ष के नीचे बैठकर भी सम्पन्न किये जा सकते हैं। इसके अलावा इन्हें घर पर भी सम्पन्न किया जा सकता है। इसके लिये किसी एकान्त कक्ष का चुनाव करना पड़ता है। अगर अनुष्ठान कक्ष को पीले रंग से पुतवा लिया जाये और उसके खिड़की-दरवाजों के ऊपर पीले रंग के पर्दे चढ़ा लिये जायें तो वह स्थान और भी प्रभावपूर्ण बन जाता है ।

बगलामुखी अनुष्ठान को सम्पन्न करने के लिये मध्य रात्रि का समय अधिक अनुकूल रहता है। इसे अपनी सुविधानुसार प्रातःकाल आठ बजे के आस-पास बैठकर भी सम्पन्न किया जा सकता है। इस तांत्रिक अनुष्ठान को सम्पन्न करने के दौरान साधक को दक्षिणाभिमुख होकर बैठना है। बैठने के लिये पीले कम्बल का आसन अथवा कुशा आसन का प्रयोग करना होता है। बगलामुखी महाविद्या के इस तांत्रिक प्रयोग को अगर कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारम्भ किया जा सकता है अथवा इसे कृष्ण पक्ष के किसी भी मंगलवार के दिन से भी शुरू किया जा सकता है। अनुष्ठान स्थल को गाय के गोबर से लीप कर स्वच्छ एवं पवित्र किया जाता है। गाय के गोबर के अभाव में अनुष्ठान स्थल को गंगाजल से भी पवित्र किया जा सकता है।

अब अनुष्ठान प्रारम्भ करने के लिये पीले कम्बल के आसन पर दक्षिणाभिमुखी होकर बैठ जायें। गोबर से लिपे स्थान के ऊपर लकड़ी की चौकी रखें। चौकी के ऊपर पीले रंग का वस्त्र बिछाकर एक चांदी अथवा स्टील की स्वच्छ प्लेट रखकर उसमें पिसी हुई हल्दी, गोरोचन एवं श्वेत चंदन के मिश्रण से एक त्रिकोण निर्मित करके उसके मध्य में निम्न मंत्र लिखकर यंत्र को स्थापित किया जाता है- ॐ ह्रीं बगलामुखीमुख्यै नमः बगलामुखी यंत्र को प्रतिष्ठित करने से पहले गंगाजल अथवा स्वच्छ जल से पवित्र कर लिया जाता है। यंत्र प्रतिष्ठा के पश्चात् उसकी विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है । यंत्र को गोरोचन, हरिद्रा एवं श्वेत चंदन के मिश्रण का लेपन किया जाता है ।

तत्पश्चात् यंत्र को पीले रंग का वस्त्र दान, गंध दान, फल-फूल दान, ताम्बूल, घी का दीपक आदि अर्पित किया है। चौकी के ऊपर यंत्र के दाहिनी तरफ धेनुका शंख को हल्दी से पोत कर पीले रंग का कर दें। यह शंख शत्रुस्तंभन के लिये होता है । इस शंख के ऊपर तीन हरिद्रा गांठ, सात काली मिर्च, सात लौंग, सात सुपारी, एक पीला रंगा हुआ यज्ञोपवीत भी अर्पित कर दें ।

इनके सामने सरसों के तेल का दीपक जला कर रख दें। इसके अतिरिक्त चौकी के सामने जमीन के ऊपर मिट्टी का सकोरा (मिट्टी का एक बर्तन) रखकर उसमें धूनी जला दें। उसमें लौबान, पीली सरसों, श्वेत चन्दन, जवा कुसुम, लौंग, इलायची, समुद्रफेन और धूप लक्कड़ आदि की आहुति देते हुये अनुष्ठान प्रारम्भ करें। यंत्र आदि की स्थापना एवं अन्य तांत्रिक क्रियाओं को सम्पन्न करने के उपरान्त अपने दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प करें। संकल्प से इस अनुष्ठान को बल मिलता है। संकल्प में देश, काल और स्थान आदि का वर्णन करते हुये अभीष्ट कार्य का उल्लेख भी करें।

Rodhar nath
Rodhar nathhttp://gurumantrasadhna.com
My name is Rudra Nath, I am a Nath Yogi, I have done deep research on Tantra. I have learned this knowledge by living near saints and experienced people. None of my knowledge is bookish, I have learned it by experiencing myself. I have benefited from that knowledge in my life, I want this knowledge to reach the masses.
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