अप्सरा साधना के नियम – यक्षिणी के साधना Rules of Apsara Sadhna – Rules of Sadhna of Yakshini ph. 85280-57364
अप्सरा साधना के नियम – यक्षिणी के साधना Rules of Apsara Sadhna – Rules of Sadhna of Yakshini हर साधना के नियम होते है जिनको फॉलो करना बहुत जरूरी है अगर आप इन नियमो को फॉलो करते हो तो आप उस साधना में सफल हो सकते है अप्सरा यक्षिणी और कारन पिशाचिनी इतर योनि की साधना के नियम एक जैसे होते है यह नियम निम्न लिखे अनुसार है
1 अप्सरा साधना के नियम – यक्षिणी के साधना के नियम
अप्सरा साधना को कोई भी संपन्न कर सकता है, चाहे स्त्री हो या पुरुष।
१८ से लेकर ६०-७० वर्ष के बीच के व्यक्ति अप्सरा साधना कर सकते हैं।
साधना करने से पहले मार्गदर्शन प्राप्त करें।
मंत्र जाप करते समय आँखें बंद करें।
गुरु से दिक्षा प्राप्त करें।
साधना को बीच में छोड़कर न जाएं।
स्त्रियों को मासिक धर्म के कारण ३ दिन की छूट मिलती है।
साधना को निश्चित समय पर शुरू करें, और १०-१५ मिनट बढ़ते जाएं।
साधना में उपांशु जाप का प्रयोग करें, अर्थात् बुदबुदाने के साथ जाप करें और होंठ हिलने दें।
जल्दबाजी नहीं करें, साधना की निर्धारित अवधि में करें।
कुछ साधकों को बीच में ही साधना सफल हो गई मानकर उन्होंने साधना को छोड़ दिया, लेकिन अप्सराएँ परीक्षाओं का आयोजन करती रहती हैं।
2 अप्सरा साधना के नियम – यक्षिणी के साधना के नियम साधना के प्रति पूर्ण विश्वास रखें।
साधना के दौरान अपनी कामनाओं को नियंत्रित करें, और वासनाओं का कोई स्थान न दें, क्योंकि ऐसे विचार साधना को असफल बना सकते हैं।
कुछ साधक अप्सराओं के साथ शारीरिक संबंध की कल्पना करने लगते हैं, इसलिए ऐसी भावनाओं से बचें, क्योंकि ऐसी भावनाएँ साधना को असफल बना सकती हैं।
साधना के दौरान खुशबू का अहसास हो सकता है, और किसी के आस-पास चलने का भाव आ सकता है। सभी योग्यताओं को ध्यान में रखें।
कहा जाता है कि जब तक अप्सराएँ वचन नहीं देती, तब तक उनकी बातों पर विश्वास न करें।
साधना के प्रति पूर्ण विश्वास रखना जरूरी है, और साधना के प्रति समर्पण दिखाना भी।
उम्मीद है कि ये नियम आपके लिए उपयोगी सिद्ध होंगे।
3 अप्सरा साधना के नियम – यक्षिणी के साधना के नियम के लिए स्थान का चयन:
साधना के लिए एकांतिक स्थान का चयन करें, जिससे कि आपकी पूजा या साधना में किसी प्रकार का व्यवधान न हो।
मंत्र जप की संख्या को पूरा करने के साथ-साथ, आपको एकाग्र भाव में पूजा अथवा साधना करनी चाहिए। जप के स्थान को शुद्ध और शांतिपूर्ण बनाए रखना आवश्यक है।
- शास्त्रों में पवित्र नदियों के किनारे, पर्वतों, जंगलों, तीर्थ स्थलों, गुफाओं आदि को प्राथमिकता दी गई है। इन स्थलों पर मन स्वतः ही एकाग्र होने लगता है।
- अपने घर में भी एकांतिक कमरे को शुद्ध और स्वच्छ बनाकर पूजा और साधना कर सकते हैं।
साधना के लिए एकांतिक स्थान का चयन करते समय आसन की विशेष ध्यान देना चाहिए।
3 अप्सरा साधना के नियम – यक्षिणी के साधना के नियम के लिए उपयुक्त आसन का चयन करें:
आप पालथी मारकर बैठ सकते हैं और मेरुदंड को सीधा रख सकते हैं।
कुशासन, रेशमी आसन, ऊनी आसन, म्रगचर्म आसन या व्याघ्र चर्म आसन में से साधना के अनुकूल आसन का चयन करें।
पूजा आराधना के समय उपयुक्त माला और यंत्र का उपयोग करें:
शिव-उपासना में रुद्राक्ष की माला और यंत्र का प्रयोग करें।
अप्सरा साधना के लिए अप्सरा माला और यंत्र गुटका का उपयोग करें।
लक्ष्मी उपासना में कमल गट्टे की माला का प्रयोग करें।
बगुलामुखी उपासना में हल्दी की माला का उपयोग करें।
4 अप्सरा साधना के नियम – यक्षिणी के साधना के नियम जप कार्य के लिए माला का उपयोग करें:
माला के सहाय्य से मंत्र जप करें। प्रातःकाल माला को नाभि के सामने, दोपहर को ह्रदय के सामने, सायंकाल मस्तक के सामने रखें।
मंत्र जप करते समय माला को गोमुखी में रखें।
5 अप्सरा साधना के नियम – यक्षिणी के साधना के नियम साधना के समय विशेष ध्यान दें
साधना काल में मल-मूत्र विसर्जन की विवशता होने पर पूनः हाथ-पैर और मुख धोकर आरंभ करें।
साधना किसी योग्य गुरु के निर्देशन में करना चाहिए।
साधना के दौरान दिशा का ध्यान रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
नोट: शिव मंत्र और गणेश मंत्र की कम से कम 5 माला प्रतिदिन की अवश्यकता होती है।
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