चौसठ योगिनी कौन है – 64 योगिनी की कथा – चौसठ योगिनी रहस्य ph.85280 57364
chausath yogini rahasya चौसठ योगिनी कौन है – 64 योगिनी की कथा – चौसठ योगिनी रहस्य चौसठ योगिनीयों का प्रादुर्भाव मां काली से ही हुआ है। चौसठ योगिनीयों सृष्टि के विभिन्न आयामों पर शासन करती हैं और हर एक योगिनी का एक विशिष्ट चरित्र है। मुख्यतः इनका संबंध या कहें सामान्य कारक आठ मात्रिकाओं से है।
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आदि शक्ति काली के ही भिन्न-भिन्न अवतारी अंश हैं और देवी महात्मा के अनुसार इन आठ देवियों ने शुंभ और रक्तबीज । राक्षसों के विरुद्ध युद्ध में मां दुर्गा की सहायता की थी और देवी दुर्गा ने स्वयं मातिकाओं की रचना की थी।
इनमें से सात दी शक्तियों को संबंधित देवों के ही नारित्व रूप माना जाता है। ये सात देवी अपने पतियों के वाहन तथा आयुद्ध के साथ यहाँ उपस्थित होती हैं। आठवीं मात्रिका स्वयं मां काली है। हर एक मातिका की सहायक आठ शक्तियां हैं इसीलिए इनकी संख्या चौसठ हो जाती है।।
सर्वप्रथम जानते हैं कि यह मातिकाएं कौन- कौन है और किन देवों से संबंधित है। नंबर एक।
ब्रह्माणी भगवान ब्रह्मा उनके चार सिर और चार भुजाएं हैं। ब्रह्मा जी की ही तरह इनका वाहन हंस है। नंबर दो महेश्वरी भगवान शिव, भगवान शिव की ही तरह उनकी जटाओं में अर्धचंद्र है और उनका वाहन नंदी है। चतुर्भुजाओं में त्रिशूल, खटगा आदि हैं। नंबर तीन कमारी कार्तिकेय जी उनका वाहन मयूर है। वे अपने हाथों में शक्ति, दंड आदि धारण करती हैं।
नंबर चार। वैष्णवी भगवान विष्णु। वनमाला पहने हुए देवी वैष्णवी के दो हाथों में चक्र हैं। इनकी सवारी विष्णु जी की ही तरह गरुड़ ही है। नंबर पांच देवराज इेंद्र। वे अपने वहां हाथी पर विराजमान होकर वज्र धारण करती हैं। नंबर छः। वाराही वारा भगवान विष्णु के वारा अवतार की ही तरह दिन देववी का चेहरा वाराह व धड़ मनुष्य का है। हाथों में दंड खड़ग खेत का और पाश धारण करती हैं और कहीं कहीं भैंसे पर भी सवार दिखाई गई हैं।
नंबर सात नर से ही भगवान नरसिंह इनका चेहरा सेह व धड़ मानव का है और हाथों में शंकर, चक्रृत, शूल डमरु आदि धारण करती हैं और अंत में आती है। मां काली जिन्हें चामुंडा के नाम से भी जानते हैं, एकमात्र। ऐसी मात्रिका हैं जिन्हें किसी भी देव के स्त्री शक्ति अवतार के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जाता।
यह देवी के हाथों में कपाल। शूल नर मुुंड तथा अग्नि है तथा इनका वाहन सियार है, जैसे हमने पहले बताया योगिनीिया, साक्षात आदि काली के ही अवतार हैं तथा सदैव माता पार्वती की सखियों की ही तरह उनके साथ ही रहती हैं। देवी पार्वती द्वारा लड़े गए प्रत्येक युद्ध में समस्त योगिनियों ने भाग लिया था और अपनी वीरता का परिचय दिया था।
महाविद्याएं सिद्ध विद्याएं भी योगनियों की ही श्रेणी में आती हैं। यह भी मां काली की ही भिन्न-भिन्न अवतारी अंश हैं। समस्त योगिनिया अलौकिक शक्तियों से संपन्न है तथा इंद्रजाल, जादू, वशीकरण, मारण, आदि कर्म इन्हीं की कृपा द्वारा सफल हो पाते हैं। मुख्य रूप से आठ योगिनिया अपने गुणों तथा स्वभाव से भिन्न-भिन्न रूप धारण करती हैं।
ये सभी तंत्र तथा योग विद्या में भी निपुण है। स्कंद पुराण के काशी खंड। पूर्वाध के अनुसार भगवान शंकर राजा देवोदास से काशीपुरी प्राप्त करना चाहते थे परंतु राजा देवोदास धर्म पूर्व प्रजा का पालन करते और उनके राज्य में अपराध नाम की कोई चीज़ न थी। भगवान शिव के कहने पर समस्त देवताओं ने उन सर्वत्र शुद्ध राजा के छिद्र अर्थात कोई कमी ढूंढने की बहुत चेष्टा की किन्तु वह असफल रहे।
इंद्र आदि देवताओं ने देवोदास के राज्य तथा शासन को असफल बनाने के लिए अनेक प्रकार के विघ्न उपस्थित किए किंतु राजा ने अपने तपोबल से उन सब विघनों पर विजय पाई। मंदराचल से महादेव जी ने चौसठ योगिनियों को राजा के छिद्र दोष देखने के लिए काशी भेजा।
उन योगिनियों ने विभिन्न रूप धारण कर लिए। अलग अलग रूप धारण कर अलग-अलग कार्यों में लग गई वह योगनिया बारह महीनाों तक काशी में रहकर निरंतर चेष्टा करते रहने पर भी राजा का कोई छिद्र अर्थात दोष ना पा सकें परंतु वह सब लौटकर मंदराचल भी नहीं गई।
तब से लेकर आज तक योगिनियों ने कभी भी काशी को नहीं छोड़ा हालांकि वे तीनों लोकों में घूमते हैं। आगे व्यास जी के पूछने पर स्कंददेव इन योगनियों के बारे में बताते हैं कि यदि कोई मनुष्य इन चौसठ नाम का प्रतिदिन , दोपहर और संध्या के समय जप करें तो उसके। भूत प्रेत द्वारा दिए गए सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
इनके चौसठ नाम का पाठ करने वाले को ना डाकिनी शाकिनीष्मंड और ना ही कोई अन्य कष्ट दे सकता है। यह नाम, युद्ध, वाद, विवाद आदि में भी विजय प्रदान करते हैं। जो योगिनी पीठों की सेवा करता है उसे वाछित शक्तियां प्राप्त। और यदि कोई अन्य मे्रो को भी उनके आसनों के सामने दोहराता है उसे भक्ति प्राप्त होती हैं।
यज्ञ, पूजा और प्रसाद तथा धूप और दीपक के समर्पण से योगिनी जल्दी ही प्रसन्न हो जाती हैं और वे सभी इच्छाओं को अवश्य पूर्ण करती हैं। अश्व युज के महीने में शुक्ल पक्ष के पहले चंद्र के दिन से शुरू होकर नौवे दिन तक मनुष्य को योगिनियों की पूजा करनी चाहिए। इससे वह जो चाहे प्राप्त कर सकता है।
काशी तीर्थ यात्रा करते समय इनकी आराधना भी अवश्य करनी चाहिए अन्यथा उनके कार्यों में ये विघन डाल सकती है। अलग-अलग पुराणों में इन चौसठ योगििनियों के नामों में थोड़ा अंतर अवश्य मिलता है।
वैसे तो भारत में इनके कई पीठ हैं पर मुख्य पीठ थोड़ीसा और मध्यप्र प्रदेश में स्थित है। जय मां काली। आज के पोस्ट में बस इतना ही। आशा करते हैं कि आपको आज का पोस्ट पसंद आया होगा। इसे लाइक अवश्य करें।
किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए आप सबसे क्षमा चाहते हुए आपसे निवेदन है कि प्रेम पूर्वक परमपिता परमात्मा को ह्रदय में धारण करें और बोले वैदिक सनातन धर्म की सदा ही जय ।
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