काल भैरव प्रत्यक्षिकरण साधना | भैरव को बुलाने का मंत्र सहित ph.85280 57364

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काल भैरव प्रत्यक्षिकरण साधना | भैरव को बुलाने का मंत्र सहित ph.85280 57364
काल भैरव प्रत्यक्षिकरण साधना | भैरव को बुलाने का मंत्र सहित ph.85280 57364

काल भैरव प्रत्यक्षिकरण साधना | भैरव को बुलाने का मंत्र सहित ph.85280 57364

काल भैरव प्रत्यक्षिकरण साधना | भैरव को बुलाने का मंत्र सहित ph.85280 57364
काल भैरव प्रत्यक्षिकरण साधना | भैरव को बुलाने का मंत्र सहित ph.85280 57364

काल भैरव प्रत्यक्षिकरण साधना | भैरव को बुलाने का मंत्र सहित ph.85280 57364 भैरव को भगवान् शिव का प्रधान सेवक तथा उन्हीं का प्रतिरूप कहा गया है । वे भगवान शिव के अन्य अनुचर भूत-प्रेतादि गणों के अधिपति हैं। उनकी उत्पत्ति भगवती महामाया की कृपा से हुई है । अतः वे भगवान् भूतनाथ महादेव एवं भगवती महादेवी के अनुरूप ही शक्ति तथा सामर्थ्यवान् हैं । भैरव के अनेक स्वरूपों का वर्णन पुराणों में किया गया है। यथा – बटुक भैरव, काल भैरव आदि ।

गुरु गोरखनाथ द्वारा प्रवर्तित नाथ सम्प्रदाय में भैरव – पूजा का विशेष महत्त्व माना गया है और इस संसार की उत्पत्ति, स्थिति एवं प्रलय का आदिकरण भी भगवान् भैरव तथा भगवती भैरवी को बताया गया है ।

भगवान् भैरव प्रसन्न होकर अपने साधक भक्तों को अभिलषित वर एवं वस्तुएँ प्रदान करने में समर्थ हैं, इसीलिए हमारे देश में भैरव पूजन की प्रथा भी सहस्रों वर्षों से प्रचलित है । आज भी भारतवर्ष के विभिन्न स्थानों में भैरव के मन्दिर पाये जाते हैं, जहाँ उनकी नियमित रूप से पूजा तथा उपासना की जाती है ।

प्राचान तन्त्रशास्त्रों में भैरव साधन की विविध विधियों का उल्लेख पाया जाता है तथा अर्वाचीन ग्रंथों में लोकभाषा के माध्यम से भी भैरव -सिद्धि के अनेक उपाय कहे गये हैं ।

भैरव को बुलाने का मंत्र | काल भैरव का मंत्र | काल भैरव सिद्धि मंत्र

ॐ काली कंकाली महाकाली के पुत्र कंकाल भैरव हुकुम हाजिर रहै मेरा भेजा काल करै भेजा रक्षा करै आन बांधू वान बांधू चलते फूल में भेजू ं फूल मैं जाप कोठे जी पडे थर थर कांपै हल हल हले गिरि गिरि पर उठ उठ भगै बक बक बकै मेरा भेजा सवा घड़ी पहर सवा दिन सवा मास सवा बरस को बावला न करे तो माता काली की शैया पै पग धेरै वाचा चूकै तौ ऊमा सूखै वाचा छोड़ कुवाचा करै धोबी की नाद चमार के कूडे में पड़े, मेरा भेजा बावला न करें तौ रुद्र के नेत्र के आग की ज्वाला कढै सिर की लटा टूट भूमि में गिरै माता पार्वती के चीर पै चोट पडै बिना हुकुम नहीं मारना हो काली के पुत्र कंकाल भैरव फुरो मन्त्र ईश्वरोवाच सत्यनाम आदेश गुरु को ।

साधन विधि – इस मन्त्र को कालरात्रि अथवा सूर्य ग्रहण की रात्रि में सिद्ध करे। त्रिखूंटा चौका देकर दक्षिण की ओर मुँह करके बैठ जाय तथा एक सहस्र मन्त्र का जप करे । तदुपरान्त लाल कनेर के फूल, लहू, सिन्दूर, लौंग का जोड़ा तथा चौमुखा दीपक जलाकर श्रागे रक्खे एवं दशांश हवन करे । जिस समय भैरव ययंकर रूप धारण कर सामने आवे, उस समय उससे भयभीत न हो, अपितु पुष्पों की माला को उनके कण्ठ में तुरन्त डालकर, सामने लड्डू रख दे। इस विधि से भैरव साधक पर प्रसन्न हो जाते हैं तथा वर माँगने के लिये कहते हैं । उस समय साधक को चाहिये कि वह उनसे त्रिवाचा भरवाकर सदैव वशीभूद रहने का वचन ले ले । तदुपरान्त मन की जो भी अभिलाषा हो, उसे भौरव से कहे । भैरव साधक की उस अभिलाषा को तुरन्त पूरा कर देते हैं तथा भविष्य में भी साधक के वशीभूत बने रहकर, साधक जब भी जिस कार्यं के लिये कहता है, उसे पूर्ण करते रहते हैं ।