धूमावती साधना अनुभव और Dhumavati धूमावती साधना के लाभ
धूमावती साधना अनुभव और Dhumavati धूमावती साधना के लाभ इस साधना को सम्पन्न करने के उपरान्त व्यक्ति भौतिक समृद्धि के साथ-साथ जीवन में पूर्णता प्राप्त कर लेता है। शत्रु व अन्य कोई भी बाधा उसके सम्मुख टिक नहीं पाती है। इस साधना का तीव्रतम एवं शीघ्र अनुकूलता का प्रभाव मुझे उस समय देखने को मिला, जब एक व्यवसायी सज्जन मेरे पास आये और रोते हुए अपने कारोबार के बारे में बताने लगे कि आज से छः माह पूर्व मेरा व्यवसाय बहुत अच्छा चलता था, किन्तु आज व्यवसाय पूर्णतः बन्द हो गया है. कोई भी ग्राहक माल खरीदने नहीं आता है, मेरे चारों ट्रक गैरेज में खड़े हैं. यहां तक तो मैं चुपचाप सहन कर रहा था. किन्तु दो दिन पूर्व मेरे पुत्र का भी अपहरण हो गया है, अब सहन शक्ति जवाब दे रही है कोई उपाय कीजिए, जि मेरा पुत्र किसी भी तरह से वापिस आ जाए।
मैंने गम्भीरता पूर्वक उनकी समस्या को सुना तथा उनके व्यवसाय स्थल तथा घर को देखने उनके साथ गया सम्पूर्ण निरीक्षण के उपरान्त मुझे समस्या अत्यन्त गम्भीर लगी एवं भविष्य में कोई अनहोनी घटना न घटित हो जाए. उन्हें तुरन्त परम पूज्य गुरुदेव जी से मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद प्राप्त करने की सलाह दी वे सज्जन आग्रह कर मुझे भी साथ ले गये। पूज्य गुरुदेव जी के चरण स्पर्श करने के उपरान्त मैने उनकी समस्या का विवरण पूज्य गुरुदेव जी के सम्मुख रखा पूज्य गुरुदेव जी ने मेरी बात को गौर से सुनकर उन्हें सांत्वना दी और उन सज्जन को Dhumavati धूमावती साधना करने की सलाह दी।
पूज्य गुरुदेव जी ने इस साधना के गोपनीय पक्ष को स्पष्ट करते हुए उन्हें चना की सूझता के बारे में निर्देशित कर सफलता का आशीर्वाद प्रदान किया। घर आने के पश्चात् उन्होंने शुभ मुहूर्त पर साधना का सकला लेकर साधना आरम्भ कर दी साधना प्रारम्भ करने के एक सप्ताह के अन्दर उनका बालक घर वापिस आ गया और साधना सम्पन्न होने तक उनके व्यवसाय में पर्याप्त जो समस्त बाधाओं पर विजय प्राप्त कर अपने जीवन में उच्चता को धारण करना चाहते है उनके लिएDhumavati धूमावती साधना ही एक मात्र अनुक साधना है। सुधार होने लगे व अनुकूलता आ गयी उन सज्जन व्यवसायी के लिए पूज्य गुरुदेव जी ने जो साधना विधान स्पष्ट किया था, उसका लघु रूप इस प्रकार है साधना विधान Dhumavati धूमावती साधना मूल रूप से तात्रिक साधना है।
भूत-प्रेत, पिशाच तो Dhumavati धूमावती साधना से इस प्रकार गायब होते हैं, जैसे जल को अग्नि में देने पर जल वाय रूप में विलीन हो जाता है। सुधा स्वरूप होने के कारण अर्थात् भूख से पीडित होने के कारण इन्हें अपने भक्षण के लिए कुछ न कुछ अवश्य चाहिए। अतः जब साधक इनकी साधना करता है, तो वह प्रसन्न होकर साधक के समस्त बाधारूपी शत्रुओं का दहण कर लेती है। ·