Muladhara Chakra मूलाधार चक्र सम्पूर्ण ज्ञान हिंदी में
Muladhara Chakra मूलाधार चक्र सम्पूर्ण ज्ञान हिंदी में – मूलाधार चक्र Muladhara Chakra इस चक्र को कुछ ग्रन्थों में ‘आधार चक्र’ भी कहा गया है। कोष्ठक में दिया गया नाम इस चक्र का पर्याय नहीं है, किन्तु इसका स्थान ठीक-ठीक समझ पाने में पाठकों के लिए सहायक होगा, अत: लिख दिया गया है। इस चक्र का नाम आधार या मूल आधार इसलिए है, क्योंकि यह चक्र सुषुन्ना के मूल में अवस्थित है। यही भाग शरीर का आधार भी है और समस्त चक्रों के मूल में यही सर्वप्रथम है। गति 9A . सामने मूलाधार चक्र योग विद्या या कुण्डलिनी की दृष्टि से यह चक्र न केवल अति अधिक महत्त्वपूर्ण है अपितु सम्पूर्ण योग प्रणाली का मूल या आधार भी है। कारण-देवता-ब्रह्मा millone शक्ति-डाकिनी कुण्डलिनी शक्ति इसी चक्र में अवस्थित होती है (इस विषय में हम आगे विस्तार से पढ़ेंगे) । जीवन के प्रारम्भिक सातवें वर्षों में की चेष्टाएं प्रायः इसी चक्र से प्रभावित होती हैं। स्वयं में ही रत रहना तथा असुरक्षा बोध से ग्रस्त रहना इसका प्रबल प्रमाण है।
मूलाधार चक्र के देवता
मूलाधार चक्र Muladhara Chakra के देवता ?
मूलाधार चक्र Muladhara Chakra जागरण के लक्षण ?
मूलाधार चक्र Muladhara Chakra के फायदे ?
मूलाधार चक्र Muladhara Chakra के रोग ?
मूलाधार चक्र Muladhara Chakra कहां होता है ?
मूलाधार चक्र Muladhara Chakra के विशिष्ट प्रभाव में आया हुआ मनुष्य प्राय: दस से बारह घंटे तक रात्रि में पेट के बल सोता है। मोह, क्रोध, ईर्ष्या, घृणा, द्वेष, कामुकता, प्रजनन एवं माया-इसी चक्र के प्रभाव के ही अर्न्तगत आते हैं। स्वास्थ्य, बल, बुद्धि, स्वच्छता तथा पाचन शक्ति भी इसी चक्र से सम्बन्धित है। शरीर की धातुओं, उपधातुओं व चैतन्य शक्ति को इसी चक्र से बल मिलता है। शारीरिक मलिनता का इस चक्र की अशुद्धि से सीधा सम्बन्ध है। सांसारिक प्रगति और चैतन्यता का मूल यह चक्र मनुष्य के देवत्व की ओर किए जाने वाले विकास का आधार है। मूलाधार चक्र का स्थान सुषुम्ना मूल में गुदा से दो अंगुल आगे व उपस्थ से दो अंगुल पीछे ‘सीवनी’ के मध्य में है। मूलबन्ध लगाते समय इसी प्रदेश को पैर की एड़ी से दबाया जाता है। नीचे की ओर चलने वाली अपान वायु का यह मुख्य स्थान है। इसका सम्बन्धित लोक भूलोक’ है। पंच महाभूतों में यह पृथ्वी तत्त्व का प्रतिनिधित्व करता है, क्योंकि यह चक्र पृथ्वी तत्त्व का मुख्य स्थान है।
पृथ्वी तत्त्व से सम्बन्धित होने के कारण इसका प्रधान ज्ञान अथवा गुण ‘गन्ध’ है। अतः इसकी कर्मेन्द्रिय गुदा और ज्ञानेन्द्रिय नासिका है। इसका तत्त्वरूप चतुष्कोण चतुर्भुज (वर्गाकार) है, जो सुनहरे अथवा भूमिपीत वर्ण का है। इसकी यन्त्राकृति पीत वर्ण चतुष्कोण है, जो रक्त वर्ण से प्रकाशित चार पंखुड़ियों/दलों से युक्त है। सुरक्षा, शरण और भोजन इस चक्र के प्रधान भौतिक गुण हैं। इस चक्र का तत्त्व बीच ‘लं’ है, जो इसकी बीज ध्वनि का सूचक है। कमल दल ध्वनियां क्रमश: वं, शं, षं और सं हैं जो इसकी पंखुड़ियों के अक्षर हैं। इसके तत्त्व बीज का वाहन ऐरावत हाथी है। (जिस पर इन्द्र विराजमान हैं)। जो इसकी सामने की ओर की बीजगति को दर्शाता है। इस चक्र के अधिपति देवता चतुर्भुज ब्रह्मा हैं, और उनकी शक्ति चतुर्भुज डाकिनी भी साथ हैं जो चक्र की शक्ति की सूचक है। इस चक्र के अधिकारी गणेश हैं तथा इसका बीज वर्ण स्वर्णिम है। अतः यन्त्राकृति व तत्त्वरूप में पीतवर्ण के साथ स्वर्ण-सी आभा भी रहती है।
इस चक्र पर ध्यान के समय प्रयुक्त होने वाली कर मुद्रा में अंगूठे तथा कनिष्ठा अंगुली के सिरों को दबाया जाता है, जिसके प्रभाव में चैतन्य का मानवीकरण होता है। ध्यान के समय जब मूलाधार की तत्त्वबीज ध्वनि ‘लं’ का शुद्ध रूप से बार- बार उच्चारण किया जाता है तो ‘लं’ उच्चारण से उत्पन्न होने वाली विशेष तरंगें मूलाधार की नाड़ियों को उत्तेजित करती हैं तथा उर्ध्व मस्तिष्क को तरंगित करती हैं।
परिणामस्वरूप शक्ति के अधोगति में अवरोध उत्पन्न होकर शक्ति उर्ध्वगति (ऊपर की ओर गति करने वाली) होती है जिससे मूल आधार के प्रभावों-असुरक्षा, भय आदि का लोप होता है तथा मनोबल की प्राप्ति होती है। कुछ विद्वान इसे ‘यौनचक्र’ भी कहते हैं। योग मार्ग पर न जाने वाले साधकों के लिए भी मूलबन्ध का अभ्यास लाभकारी है (इस विषय में हम बन्ध प्रकरण में विस्तार से चर्चा करेंगे)। किन्तु एड़ी द्वारा सीवन को दबाते समय मूलबंध दृढ़ता से लगा रहे तथा लंगोट कसी रहे क्योंकि सीवनी मर्मस्थान है। शौर्यकला कुंगफू के सिद्धांतानुसार यहां पर किया प्रहार, आघात अथवा अनुचित दबाव नपुंसकत्व उत्पन्न करता है। मूलाधार Muladhara Chakra के अधिपति देवता ब्रह्मा ही क्यों हैं ? शक्ति डाकिनी ही क्यों है? अधिकारी गणेश ही क्यों हैं? आदि तत्त्वों की मीमांसा भी की जा सकती है, किन्तु उससे न केवल पुस्तक के कलेवर में वृद्धि होगी, अपितु यह चर्चा मूल विषय की सुगम्यता और लयबद्ध प्रस्तुति में बाधक भी होगी।
तिस पर इस चर्चा से योगमार्ग के साधकों अथवा कुण्डलिनी जागरण के इच्छुक पाठकों को कोई लाभ नहीं होगा, बल्कि वे कन्फ्यूज़ हो सकते हैं। अतः केवल पाण्डित्य सिद्ध करने के लिए ऐसी वे चेष्टा युक्ति संगत नहीं होगी-ऐसा सोचकर इस विषय में चर्चा नहीं कर रहा हूं। इच्छुक पाठक पत्र व्यवहार से अपनी शंकाओं का समाधान प्राप्त कर सकते हैं। वैसे तो चक्रों के स्वरूप का विराटता से वर्णन करना भी आवश्यक नहीं था, क्योंकि कार चलाना सीखने के लिए इंजन के सभी पुों का पूर्ण ज्ञान पाना अनिवार्य नहीं होता। आवश्यक भी नहीं होता, तथापि जिज्ञासा शांति के अलावा कुण्डलिनी जागरण के मन्त्र उपाय की चर्चा के समय इन तमाम जानकारियों की आवश्यकता पाठकों को पड़ेगी अतः पहले ही प्रसंगवश पूर्ण विवरण प्रस्तुत कर दिया गया है। बात मूलाधार चक्र की चल रही थी। मूलाधार चक्र Muladhara Chakra से होकर ही योग मार्ग या कुण्डलिनी यात्रा आरम्भ होती है। यही इस यात्रा का मूल उद्गम और प्रथम सोपान है। अत: इसे ध्यान से समझें।