अप्सराएं, भारतीय पौराणिक साहित्य में सुंदरता और दिव्यता के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत होती हैं। इनमें से एक महत्त्वपूर्ण अप्सरा है – तिलोत्तमा Tilottama । इस लेख में हम जानेंगे कि तिलोत्तमा Tilottama अप्सरा की साधना क्यों और कैसे की जाती है और इससे कैसे आप सुख और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।
तिलोत्तमा Tilottama अप्सरा का प्रत्यक्षीकरण एक श्रमसाध्य कार्य है, और इसमें मेहनत बहुत ही जरुरी है। इसके बाद, जीवन में कोई भी दुर्लभ नहीं रह जाता।
इसके साथ ही, तिलोत्तमा Tilottama अप्सरा अप्रत्यक्ष रूप से भी साधक की सहायता करती हैं। साधना की शुरुआत होते ही धीमी धीमी खुशबू का प्रवाह होता है, जो तिलोत्तमा Tilottama के सामने होने की पूर्व सूचना के रूप में है।
तिलोत्तमा Tilottama साधना करने से साधक को सभी सुखों की प्राप्ति होती है। यह एक अद्वितीय अनुभव है जो साधक को आत्मा के साथ जोड़ता है।
साधना करते समय खुशबू का अनुभव साधक को धीरे-धीरे समृद्धि की दिशा में मोड़ने लगता है। यह खुशबू तिलोत्तमा Tilottama के सामने होने का सूचक होती है और साधना की सफलता की पूर्व सूचना देती है।
यहां महत्त्वपूर्ण है कि खुशबू का मौजूद होना तिलोत्तमा Tilottama साधना की सफलता का सूचक नहीं होता, बल्कि यह भी एक ऊँची भौतिकीकृत ऊँचाई को दर्शाता है।
अप्सरा के प्रत्यक्षीकरण का पूरा कार्यक्रम एक श्रमसाध्य है, और इसमें मेहनत बहुत ही जरुरी है। एक बार इस साधना के बाद कुछ भी दुर्लभ नहीं रह जाता, इसमें कोई दोराय नहीं है।
इसमें मेहनत का महत्वपूर्ण स्थान है, और साधक को अपनी उत्साही मेहनत से सफलता प्राप्त करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
सामान्यतः, अप्सरा साधना गोपनीयता की श्रेष्णी में आती है, लेकिन इसे साधारित व्यक्ति भी कर सकता है। इसमें किसी विशेष ज्ञान या पंडित तांत्रिक की आवश्यकता नहीं है।
इन साधनाओं की खास बात यह है कि इन्हें साधारित व्यक्ति भी कर सकता हैं, मतलब उसको पंडित तांत्रिक बनाने की कोई अवश्यकता नहीं है।
तिलोत्तमा Tilottama अप्सरा की कहानी
तिलोत्तमा Tilottama साधना विधि
साधना करने से पहले साधक को स्नान करना जरुरी है, और यदि वह स्नान करने में असमर्थ है, तो धोकर, धुले वस्त्र पहनकर, साधना शुरु कर सकता है।
रात में ठीक 10 बजे के बाद साधना शुरु करना उत्तम है, और रोज़ दिन में एक बार स्नान करना अत्यंत आवश्यक है।
साधना करते समय साधक को दिन में एक बार स्नान करना चाहिए, और वह साफ और शुद्ध वस्त्र पहने हुए होना चाहिए।
साधना में अप्सरा, गुरु, धार्मिक ग्रंथों और नैतिकता के प्रति सम्मान और आदर होना चाहिए।
साधक को यह ध्यान में रखना चाहिए कि साधना का समय एक ही रखना चाहिए और वह नियमित रूप से साधना करना चाहिए।
सामग्री:
- तिल (सीसम) के बीज
- फूल, चांदन, कुमकुम
- गंध (सुगंधित तैल)
- अद्भुत (आभूषण)
- धूप और दीप
- पूजा की थाली
- प्रासाद (फल, मिठाई)
पूजा विधि:
- शुद्धि का संकल्प: पूजा करने से पहले, मन से शुद्धि का संकल्प लें और अपने उद्देश्य का दृढ़ निर्धारण करें।
- पूजा स्थल स्थापना: एक शुद्ध और सुरक्षित स्थान पर पूजा स्थल स्थापित करें।
- तिलोत्तम की मूर्ति पूजा: यंत्र के सामने बैठें। उसको फूल, चांदन, कुमकुम, गंध, और अद्भुत से सजाएं।
- मंत्र जप: तिलोत्तम के नाम का मंत्र जप करें। आप अपनी भक्ति या गुरुदेव के द्वारा सुझाए गए मंत्र का चयन कर सकते हैं।
- आरती: तिलोत्तम की आरती गाएं और दीप और धूप के साथ पूजा को समाप्त करें।
- प्रासाद: फल, मिठाई, और अन्य प्रसाद साधक के लिए रखें।
- आत्मा समर्पण: पूजा के दौरान और उसके बाद, अपनी आत्मा को अप्सरा के साथ समर्पित करें और उसकी कृपा का आभास करें।
पूजा में आदतन श्रद्धा और पवित्रता के साथ बैठें और इसे एक आनंदमय और सकारात्मक अनुभव किसी को न बताए
क की माला से 51 माला जपे और ऐसा 11 या 21 दिन करनी हैं। बिना गुरु आज्ञा से ही अप्सरा साधना करें। इस के लिए यंत्र माला की जरूरत होगी वह हम से प्रपात कर सकते है किसी भी मार्ग दर्शन के लिए करें फ़ोन नंबर 8528057364