Friday, February 21, 2025
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‘सुरसुन्दरी’ यक्षिणी साधना sursundari yakshini ph.8528057364

‘सुरसुन्दरी’ यक्षिणी साधना sursundari yakshini ph.8528057364

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‘सुरसुन्दरी’ यक्षिणी साधना sursundari yakshini ph.8528057364 हिन्दू धर्मशास्त्रों में मनुष्येतर जिन प्राणि-जातियों का उल्लेख हुआ है, उनमें देव, गन्धर्व, यक्ष, किन्नर, नाग, राक्षस, पिशाच आदि प्रमुख हैं । इन जातियों के स्थान जिन्हें ‘लोक’ कहा जाता है-भी मनुष्यजाति के प्राणियों से भिन्न पृथ्वी से कहीं प्रत्यत्र प्रवस्थित हैं।

इनमें से कुछ जातियों का निवास आकाश में और कुछ का पाताल में माना जाता है । इन जातियों का मुख्य गुण इनको सार्वभौमिक सम्पन्नता है, अर्थात् इनके लिए किसी वस्तु को प्राप्त कर लेना अथवा प्रदान कर देना सामान्य बात है ।

ये जातियाँ स्वयं विविध सम्पत्तियों की स्वा- मिनी हैं। मनुष्य जाति का जो प्राणी इनमें से किसी भी जाति के किसी प्राणी की साधना करता है अर्थात् उसे जप, होम, पूजन आदि द्वारा अपने ऊपर अनुरक्त कर लेता है, उसे ये मनुष्येतर जाति के प्राणी उसकी अभिलाषित वस्तु प्रदान करने में समर्थ होते हैं।

इन्हें अपने ऊपर प्रसन्न करने एवं उस प्रसन्नता द्वारा अभिलषित वस्तु प्राप्त करने की दृष्टि से ही इनका विविध मन्त्रोपचार आदि के द्वारा साधन किया जाता है जिसे प्रचलित भाषा में ‘सिद्धि’ कह कर पुकारा जाता है । यक्षिणियाँ भी मनुष्येतर जाति की प्रारणी हैं।

ये यक्ष जाति के पुरुषों की पत्नियाँ हैं और इनमें विविध प्रकार की शक्तियाँ सन्निहित मानी जाती हैं । विभिन्न नामवारिणी यक्षिणियाँ विभिन्न शक्तियों से सम्पन्न हैं- ऐसी तांत्रिकों की मान्यता है ।

अतः विभिन्न कार्यों की सिद्धि एवं विभिन्न अभिलाषात्रों की पूर्ति के लिए तंत्रशास्त्रियों द्वारा विभिन्न यक्षिणियों के साधन की क्रियाओं का श्राविष्कार किया गया है। यक्ष जाति चूँकि चिरंजीवी होती है, अतः पक्षिणियाँ भी प्रारम्भिक काल से अब तक विद्यमान हैं और वे जिस साधक पर प्रसन्न हो जाती हैं, उसे अभिलषित वर अथवा वस्तु प्रदान करती हैं।

अब से कुछ सौ वर्ष भारतवर्ष में यक्ष-पूजा का अत्यधिक प्रचलन था । अब भी उत्तर भारत के कुछ भागों में ‘जखैया’ के नाम से यक्ष- पूजा प्रचलित है। पुरातत्व विभाग द्वारा प्राचीन काल में निर्मित यक्षों अनेक प्रस्तर मूर्तियों की खोज की जा चुकी है।

देश के विभिन्न पुरातत्त्व संग्रहालयों में यक्ष तथा यक्षिणियों की विभिन्न प्राचीन मूर्तियाँ भी देखने को मिल सकती हैं। कुछ लोग यक्ष तथा यक्षिणियों को देवता तथा देवियों की ही एक उपजाति के रूप में मानते हैं और उसी प्रकार उनका पूजन तथा आराधनादि भी करते हैं। इनकी संख्या सहस्रों में हैं ।

‘सुरसुन्दरी’ यक्षिणी साधन मन्त्रः-

ॐ ह्रीं श्रागच्छ आगच्छ सुन्दरि स्वाहा ।”

साधन विधि – दिन में तीन बार एकलिंग महादेव का पूजन करे तथा उक्त मंत्र को तीनों काल में तीन-तीन हजार जपे । एक मास तक इस प्रकार साधन करने से ‘सुरसुन्दरी यक्षिणी’ प्रसन्न होकर साधक के समीप आती है। जब यक्षिणी प्रकट हो, उस समय साधक को चाहिये कि वह उसे अर्ध्य देकर प्रणाम करे। जब यक्षिणी यह प्रश्न करे – ” तूने मुझे कैसे स्मरण किया ?” उस समय साधक यह कहे – “हे कल्याणी ! मैं दरिद्रता से दग्ध हूँ । आप मेरे दोष को दूर करें ।” यह सुनकर यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को दीर्घायु एवं घन प्रदान करती है ।

Rodhar nath
Rodhar nathhttp://gurumantrasadhna.com
My name is Rudra Nath, I am a Nath Yogi, I have done deep research on Tantra. I have learned this knowledge by living near saints and experienced people. None of my knowledge is bookish, I have learned it by experiencing myself. I have benefited from that knowledge in my life, I want this knowledge to reach the masses.
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