शुक्राचार्य मृत संजीवनी मंत्र – जो जीवन प्रदान करेगा साधक को shukracharya mrit sanjeevani mantra

शुक्राचार्य मृत संजीवनी मंत्र – जो जीवन प्रदान करेगा साधक को shukracharya mrit sanjeevani mantra गुरु मंत्र साधना डाट कॉम में आपका स्वागत है। श्री गुरु चरणों में नमन कर, श्री गणेश की वंदना करता हूँ। सर्वप्रथम मैं वेबसाइट के उन सभी प्रबुद्ध और मुखर पाठको का हार्दिक अभिनंदन करना चाहता हूँ।
आज के पोस्ट में हम चर्चा करते हैं मृत संजीवनी मंत्र के ऊपर। आपने नाम अवश्य सुना होगा। असुरों के गुरु शुक्राचार्य के पास यह विद्या थी। इस विद्या के दम पर, इस मंत्र के दम पर, वह देवासुर संग्राम में असुरों को पुनर्जीवित कर दिया करते थे।
जो असुर युद्ध में मारे जाते, वे सब पुनर्जीवित हो जाते। परिणाम स्वरूप, ये असुर देवताओं पर भारी पड़ते थे। यह विद्या केवल शुक्राचार्य के पास थी, देवगुरु बृहस्पति के पास नहीं थी।
एक मंत्र है महामृत्युंजय मंत्र, भगवान शिव का मंत्र, बहुत प्रसिद्ध है। नाम से ही प्रकट होता है, महामृत्युंजय, मृत्यु को जीतने में सक्षम, महामृत्युंजय है।
और यह मंत्र क्या है? मृतसंजीवनी। जो मृत व्यक्ति को भी संजीवनी प्रदान कर उन्हें पुनर्जीवित कर दे, वह है मृत संजीवनी मंत्र। एक व्यक्ति को मरने से बचाता है, उसकी मृत्यु पर विजय प्राप्त कराता है और मृत व्यक्ति को पुनर्जीवित कर देता है।
तो आज का विषय है कि विभिन्न ग्रंथों में मृत संजीवनी विद्या के नाम पर, मंत्र के नाम पर, कई मंत्र मिलते हैं। मैं इस मंत्र की बात कर रहा हूँ। अनुभूत।
कई मंत्रों के बारे में पढ़ा है, मृत संजीवनी विद्या के नाम पर कई पुस्तकें हैं मेरे पास। ‘त्रिपुर सुंदरी साधना’ में देवदत्त शास्त्री एक बहुत प्रतिष्ठित नाम हैं। यह तंत्र के क्षेत्र में, तंत्र साहित्य में, उनकी लिखी हुई पुस्तकें हैं।
स्मृति प्रकाशन, 134 चेतना बाग, इलाहाबाद से प्रकाशित यह पुस्तक, ‘त्रिपुर सुंदरी साधना’ इस पुस्तक का नाम है। इस पुस्तक के पेज नंबर 90 पर एक घटना का उल्लेख है इस मंत्र के बारे में कि स्वामी दिव्यानंद आश्रम जी महाराज, जो पुणे के थे, उनको यह मंत्र सिद्ध था। वैसे आज के समय में यह बहुत जटिल है, इसका साधन सरल नहीं है। हर व्यक्ति नहीं कर सकता।
लेकिन उनको यह विद्या सिद्ध थी कि उन्होंने सैकड़ों व्यक्तियों के सामने मृत कंकाल को पुनर्जीवित किया था। ऐसा इस पुस्तक में उल्लेख है।
साथ में यह लिखा है इसमें कि यह तो बात हुई उनकी जिनको यह विद्या सिद्ध हो जाए, और आज के समय में यह बहुत जटिल, आम व्यक्ति के लिए असंभव-सी है। लेकिन फिर भी यह मंत्र आम व्यक्ति के लिए बहुत उपयोगी है। वह कैसे?
अल्पायु योग हो, कोई जटिल बीमारी हो, मृत्युतुल्य कष्ट हो, किसी भी प्रकार से कोई संकट, ऐसी बीमारी जो जानलेवा, प्राणलेवा हो, उसमें इस मंत्र का प्रयोग किया जा सकता है।
shukracharya mrit sanjeevani mantra vidhi शुक्राचार्य मृत संजीवनी मंत्र साधना विधि –
108 बार यानी एक माला प्रतिदिन, 31 दिन तक जप करके और अभिमंत्रित जल उस रोगी को दिया जाए।
इस मंत्र से अभिमंत्रित जल उस व्यक्ति को पिलाया जाए। तो रोगी को, यदि कर सके, तो स्वयं रोगी को भी इस मंत्र का अनुष्ठान, जप करना चाहिए। मेरे एक मित्र की धर्मपत्नी को मस्तिष्क में ट्यूमर हो गया। उन सज्जन ने आकर अपनी समस्या बताई। मैंने इसी मंत्र का प्रयोग उनके लिए किया। वह सकुशल हैं, आज भी हैं।
तो इस मृतसंजीवनी मंत्र का प्रयोग, आज के इस पोस्ट में, किसी भी प्रकार की समस्या आपकी परिस्थितियों में, अपनों में किसी को हो, तो आप प्रयोग करके देख सकते हैं।
भगवती परांबा की कृपा हुई तो वह रोगमुक्त होंगे। आचार्य शंकर, अर्थात् जगद्गुरु शंकराचार्य, उनके गुरु श्री गोविंद पाद महाराज ने बद्रिकाश्रम में बैठकर उन्होंने ‘शुभोदय’ ग्रंथ की रचना की और उसी ‘शुभोदय’ के आधार पर आचार्य भगवत्पाद श्री शंकर ने ‘सौन्दर्यलहरी’ की रचना की।
यह स्तुतिपरक काव्य ‘सौन्दर्यलहरी’, उसमें कुल 103 श्लोक हैं। इस पुस्तक के अनुसार, श्लोकों से मंत्र बनते हैं। विशिष्ट लक्ष्मीधर, रमेश प्रकाशन, मद्रास की एक पुस्तक की टीका है, ‘सौन्दर्यलहरी’ पर। उसमें प्रत्येक श्लोक से यंत्र भी बनता है, मंत्र प्रयोग भी है, सब उसमें प्रत्येक मंत्र के विधान हैं।
लेकिन इस पुस्तक के अनुसार, देवदत्त शास्त्री जी के अनुसार, उनको इन 103 श्लोकों में से कुछ श्लोकों में मंत्र मिले। तो ‘सौन्दर्यलहरी’ के बीसवें श्लोक से यह मंत्र, जिसकी हम चर्चा कर रहे हैं, उद्धृत होता है।
यह मंत्र उस ‘सौन्दर्यलहरी’ के बीसवें श्लोक से बनता है। ‘सौन्दर्यलहरी’ संस्कृत में देखा जाए तो मूल रूप से वह भगवती त्रिपुरसुंदरी की ही आराधना है। दशमहाविद्याओं में तीसरी महाविद्या षोडशी, त्रिपुरसुंदरी, एक ही बात है।
तो हमें यदि इस मंत्र का प्रयोग करना है, तो सबसे पहले विनियोग।
shukracharya mrit sanjeevani mantra शुक्राचार्य मृत संजीवनी मंत्र विनीयोग
औंग् अस्य श्री मृत्संजीवनी विद्या मंत्रस्य भृगुर्ऋषिः , विराट छन्दः , चिदानन्द लहरी देवता , ह्रीं सर्वव्यापिनी प्राणेश्वरी बीजं , क्लीं कीलकम् , ह स क ह ल ह्रीं शक्तिः मृत्संजीवने विनीयोगः |
shukracharya mrit sanjeevani mantra शुक्राचार्य मृत संजीवनी मंत्र
ओंग् ऐं श्रीं ह्रीं ह्सोः सर्वतत्त्वव्यापिनी जीव जीव प्राण प्राणे मृतामृते क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं हुं हुं मृत विद्रावणे प्राण तत्त्वे तत्त्वाति तत्त्वे सर्वेश्वरि वेदगुह्ये ह स क ह ल गर्भे सावित्रि ऐं वाचम्भरि काली क्लींग् जीवय जीवय स्वाहा ।
‘सौन्दर्यलहरी’ के बीसवें श्लोक से यह बनता है, जो मृतसंजीवनी मंत्र के नाम से जाना जाता है। और इसी मंत्र के प्रयोग से, जैसा उन्होंने उल्लेख किया, देवदत्त जी ने, स्वामी ब्रह्माश्रम जी महाराज ने एक कंकाल को जीवित किया था।
वह बहुत बड़ी बात है। हम उसे लेकर कोई कल्पना और कोई लक्ष्य न रखकर चलें। हमारा है, लेकिन यदि इस मंत्र के प्रयोग से कोई असाध्य रोगी रोगमुक्त हो सकता है, कोई व्यक्ति जीवन भर स्वस्थ रह सकता है, मृत्यु भय से मुक्त होकर जी सकता है, तो यह भी अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है, बहुत बड़ा काम है। नियमित रूप से इस मंत्र का, कभी भी किसी सिद्ध पर्व में, इस मंत्र का अधिकतम जप कर लेना चाहिए।
और 21 दिनों तक नियमित रूप से, 21 दिन एक माला प्रतिदिन जप करके, फिर न्यूनतम भी कम से कम 21 बार या 27 बार प्रतिदिन इस मंत्र के जप का, नियमित जप का, रूटीन या नियम रखा जाए, तो व्यक्ति स्वस्थ रह सकता है।
मृतसंजीवनी में और महामृत्युंजय में यही फर्क है। एक, आपका महामृत्युंजय, वह टॉनिक का काम करता है। वह स्वस्थ रहने में मदद करता है। लेकिन मृतसंजीवनी, वह तो मृत्यु के भय को टालने में, जो मृत हो चुका हो, उसे भी पुनर्जीवन प्रदान करने की क्षमता रखता है।
वह मृतसंजीवनी विद्या के नाम से और भी कई मंत्र मिलते हैं, लेकिन इस मंत्र का प्रयोग मैंने कई लोगों पर किया है, करवाया है। इसके अनुभूत, बहुत संतोषजनक परिणाम मिले हैं। इसलिए मैंने आज के पोस्ट में इस मंत्र की चर्चा की है।
उन्हीं प्रयोगों की चर्चा करने से… क्या होता है कि एक वैद्य हैं, उन्होंने आयुर्वेद की बहुत अच्छी शिक्षा प्राप्त की, बहुत विद्वान हैं आयुर्वेद के, लेकिन प्रैक्टिस नहीं की, कहीं रोगियों का उपचार करने का काम नहीं पड़ा, तो उनको, जो भी कुछ उनका अध्ययन है, उस पर उतना अधिकार, उतना कॉन्फिडेंस नहीं आ पाएगा, जितना एक कम पढ़े-लिखे को, उनसे, लेकिन जिसने उपचार किया हो, उसको अनुभव है इस बात का कि मैंने इस रोगी को इस रोग में यह औषधि दी और वह ठीक हुआ।
मैं कोई अधिक विद्वान व्यक्ति नहीं हूँ। मेरी ज्यादा किसी तरह की कोई गति इन विषयों में नहीं, लेकिन लगभग 50 वर्षों से मैं जिन विषयों से जुड़ा हूँ, ज्योतिष से।
मेरे पास लोग कई तरह की समस्याएँ लेकर आते थे और उन समस्याओं के जो समाधान मैंने बताए और उनके समाधानों से लोगों का जो हित-साधन हुआ था, उन्हीं की चर्चा मैं इस चैनल के माध्यम से करने का प्रयास कर रहा हूँ।
आपके, आपके किसी भी इष्ट-मित्र की उसी तरह की समस्याएँ हों और जो समाधान मैं बता रहा हूँ, यदि उनको आप देखते हैं, निश्चित रूप से उनका हित-साधन होगा। यही एक ध्येय और यही एक उद्देश्य इस चैनल का है।
तो आप कोशिश करें, इस मंत्र को यदि देखना चाहें तो आप इस पुस्तक को, ‘त्रिपुर सुंदरी साधना’, देवदत्त शास्त्री की, इस पुस्तक को मँगा करके, जो मैंने अभी कहा, वह सब आप देख सकते हैं इसमें।
आप बहुत धैर्य से सुनते हैं और वेबसाइट को सहयोग करते हैं, इसके लिए आपका पुनः बहुत-बहुत आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद। भगवती आप सब पर कृपा करें, इसी प्रार्थना के साथ मैं आपको नमन करता हूँ। नमस्कार।