माँ तारा अनुष्ठान maa tara anushthan
माँ तारा अनुष्ठान maa tara anushthan : यद्यपि तारा विद्या को सम्पूर्णता के साथ स्वयं में आत्मसात करना ही एक तंत्र साधक का मुख्य और परम लक्ष्य रहता है । इसे ही तंत्रशास्त्र में ‘महाविद्या को सिद्ध’ करना कहा गया है, लेकिन सभी लोगों के लिये यह प्रमुख ध्येय नहीं होता । अतः सामान्य पाठकों के लिये लिखी जाने वाली इस पुस्तक का भी यह मुख्य विषय नहीं है।
तंत्र के उच्च स्वरूप को समझने के लिये पुस्तक की जगह ‘गुरु’ के मार्गदशन की आवश्यकता रहती है। तंत्र साधना की ऐसी दिव्य उपलब्धियों के लिये पर्याप्त धैर्य, समर्पण, सम्पूर्ण विश्वास और गुरु पर पूर्ण आस्था रखने की आवश्यकता होती है। इस क्षेत्र में अधीरता अथवा अत्यधिक उतावलेपन की जगह गहन श्रद्धा एवं दीर्घ अभ्यास की आवश्यकता पड़ती है।
वैसे भी तंत्र साधना के उच्च विषय गोपनीयता के आवरण में ढके रखे जाने का प्रावधान रहा है। इसके विषय में किसी योग्य मार्गदर्शक के द्वारा ही जाना जा सकता है। पुस्तक के इस अंश में सीमित आकांक्षाओं में प्रभावशाली रहने वाले तांत्रिक अनुष्ठानों के विषय में संक्षिप्त प्रकाश डालने का प्रयास किया जा रहा है। तारा महाविद्या के रूप में माँ तारा के अनेक तरह के तांत्रिक अनुष्ठान प्रचलित रहे हैं।
इन विभिन्न तरह के अनुष्ठानों को सम्पन्न करके बहुत से लोगों ने अनेक प्रकार की परेशानियों, दुःख, दर्द आदि से मुक्ति पाई है। यद्यपि माँ तारा के ऐसे अनुष्ठान आर्थिक समस्याओं में फंसे हुये और भारी कर्ज के बोझ से दबे हुये लोगों के लिये संजीवनी बूटी जैसी भूमिका निभाते देखे गये हैं । इन अनुष्ठानों से सहज ही व्यापारिक बाधाएं दूर होती हैं। शत्रु बाधाएं भी धीरे-धीरे समाप्त होती चली जाती है।
साधकों को कई तरह के जटिल से भी मुक्ति मिल जाती है। माँ के इस अनुष्ठान का कोई लम्बा-चौड़ा विधान नहीं है और न ही इसे सम्पन्न करने के लिये किसी विशेष वस्तु की आवश्यकता पड़ती है । इस अनुष्ठान को सम्पन्न करने के लिये गुरु के सानिध्य और पूर्ण समर्पित भाव की आवश्यकता रहती है।