प्राचीन चमत्कारी ब्रह्मास्त्र माता बगलामुखी साधना अनुष्ठान Ph. 85280 57364

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बगलामुखी साधना अनुभव   और किन  योद्धाओ ने इस साधना को सिद्ध कर दुनिया खयाती  हासिल करी 

 

माँ के इसी रूप की पूजा-अर्चना शत्रु बाधा से पीड़ित साधकों द्वारा की जाती है। माँ बगलामुखी अपनी शरण में पूर्ण श्रद्धाभाव से आये भक्तों एवं अपने साधकों पर अन्याय सहन नहीं करती। माँ की शरण में नतमस्तक होते ही वह अपने भक्तों की नाना प्रकार की परेशानियों को समाप्त कर देती है । माँ बगलामुखी की अनुकंपा से अनेक लोगों को मुकदमों में विजयी होते हुये और जेल यात्रा से बचते हुये देखा गया है। नीचे ऐसी ही स्थितियों का मैं विशेष रूप से वर्णन करना चाहूंगा। इन मामलों में जेल यात्रा की निश्चित संभावना बन गयी थी, किन्तु महामाई ने अपनी विशेष अनुकंपा से अपने भक्तों को जेल जाने से बचा लिया। इन लोगों ने सही समय पर माँ का तांत्रिक अनुष्ठान सम्पन्न कराया और माँ ने भी उन पर शीघ्र अपनी अनुकंपा करके उन्हें और अधिक कष्ट उठाने से बचा लिया ।

एक मामला बेटा-बहू के तलाक से संबंधित मुकदमे में फंसे हुये परिवार का है। लड़के के पिता सेना में पुरोहित के पद पर कार्यरत थे । लड़का भी पूजा-पाठ आदि का कार्य करता था । इस व्यक्ति ने अपने बड़े पुत्र का विवाह बड़ी ही धूमधाम से किया था । वधू भी अच्छे परिवार की थी। शुरू के डेढ़ वर्ष तक लड़के-लड़की के मध्य सब कुछ ठीक- ठीक चलता रहा। इस दौरान वह एक बच्चे के माँ-बाप भी बन गये, किन्तु उसके पश्चात् परिस्थितियों ने नाटकीय रूप लेना शुरू कर दिया। घटनाक्रम कुछ इस रूप में बदला कि लड़की इस बार मायके गयी तो उसके माँ-बाप ने उसे सुसराल भेजने से मना कर दिया।

वह एक ही शर्त पर अपनी लड़की को लड़के साथ रखने को तैयार थे कि लड़का उनके पास (ससुराल) में आकर रहे और वहां पर ही अपना काम-धन्धा जमावे । यह शर्त लड़के और उसके परिवार को स्वीकार नहीं थी । इस छोटी सी हठ और अहम ने आगे चलकर कलह और मुकदमेबाजी का रूप ले लिया । लड़की के परिवार ने ससुराल वालों पर दबाव बनाने के लिये मारने-पीटने एवं दहेज मांगने का झूठा मुकदमा दर्ज करवा दिया। शुरू में तो लड़के के पिता ने उनकी ऐसी कार्यवाहियों को हल्के रूप में लिया और सामाजिक स्तर पर आपस में ही सुलझा लेने का प्रयास किया, किन्तु लड़की के माँ-बाप खासकर उसके भाई को ऐसा कोई समझौता स्वीकार नहीं था।

परिणामस्वरूप वह अपनी लड़ाई पर दृढ़ रहे। इससे लड़के के परिवार की परेशानियां निरन्तर बढ़ती रही । महिला उत्पीड़न तथा दहेज आदि के केस ऐसे बनाये जाते हैं कि वे झूठे होते हुये भी सही लगते हैं । इन केसों में गम्भीर बात यह है कि पुलिस एवं न्यायालय में भी पुरुष पक्ष को कम विश्वसनीय माना जाता है और अक्सर अदालत का फैसला स्त्री के पक्ष में हो जाता है । लड़के एवं लड़के के पिता ने भरसक प्रयास किया कि उनकी बेगुनाही को अदालत गंभीरता से ले किन्तु लड़के की पत्नी और उसके परिवार वालों ने ऐसे सबूत बनाकर अदालत में पेश किये कि निचली अदालत ने उन्हें दोषी मान कर सजा सुना दी और आगे ऊंची अदालत में अपील करने के लिये एक माह का समय देते हुये उनकी जमानत स्वीकार कर ली ।

स्थिति को देखते हुये लड़के तथा उसके पिता को विश्वास हो चला था कि ऊपरी अदालत में भी वे केस हार जायेंगे। इससे ऊपरी अदालत में जाने की उनकी क्षमता नहीं थी, इसलिये मिलने वाली सजा को भुगतने के लिये उन सबको जेल जाना ही पड़ेगा। सब भीतर से डरे-सहमे से थे। तभी उन्हें किसी परिचित ने सलाह दी कि वे माँ बगलामुखी का अनुष्ठान करायें। इसके प्रभाव से उनके बचने का कोई न कोई रास्ता अवश्य ही निकल आयेगा ।

उन्होंने तुरन्त माँ बगलामुखी का अनुष्ठान करवाया और इसका प्रभाव भी दिखाई दिया। ऊपरी कोर्ट ने तथ्यों की गंभीरता से विवेचना की और झूठे सबूतों को नकार कर उन्हें बरी कर दिया। माँ बगलामुखीमुखी के अनुष्ठान के बारे में आगे विस्तार से बताया जा रहा है। दूसरा मामला एक अन्य मुकदमे से सम्बन्धित है। इस मामले में एक परिवार के चार सदस्यों को एक साजिश रच कर गबन के झूठे मामले में फंसा दिया गया।

कुछ लोगों एक झूठा ट्रस्ट बनाकर एक सम्पत्ति को हड़पने की योजना बनाई और इसी योजना के अनुसार उन्होंने उस परिवार पर झूठा मुकदमा दर्ज किया था। वह लोग इतने चतुर थे कि वारंट निकलने तक उस परिवार को मुकदमे का पता ही नहीं चलने दिया । हरसंभव तरीके से वे न्यायालय की कार्यवाही को गुप्त रखने में सक्षम रहे । जब इस परिवार को इस सारे घटनाक्रम के बारे में पता चला, तब तक उनकी जमानत की तारीख में दस दिन ही शेष बचे थे ।

सबसे बड़ी मुश्किल तो यह थी कि उन लोगों को मुकदमेबाजी, न्यायालय के कार्य की कोई जानकारी नहीं थी और न ही उनके पास जमानतदारों का इंतजाम था। वह परिवार पूर्ण आस्थावान और धार्मिक प्रवृत्ति का था । उन्होंने अपने जीवन में कभी किसी का बुरा नहीं किया था और वे इस बात पर विश्वास करते थे कि ईश्वर कभी उनका अहित और बुरा नहीं होने देगा किन्तु फिर भी उनके ऊपर यह मुसीबत टूट पड़ी थी । इतना सब घटित हो जाने के बाद भी उन्हें पूरा विश्वास था कि पहले की तरह ही उनकी इष्टदेवी माँ बगलामुखी उन्हें इस कष्ट से सम्मान के साथ निकाल देगी। और हुआ भी बिलकुल ऐसा ही ।

महामाई का अनुष्ठान शुरू करते ही सातवें दिन उनकी तारीख थी, उसी दिन उन्हें जमानत करानी थी अन्यथा उन्हें जेल जाना पड़ सकता था । माँ की कृपा दृष्टि से उनके एक परिचित जमानत देने के लिये आगे आये । उनकी जमानत को स्वीकार कर लिया गया। माँ के प्रताप से न्यायालय से भी उन्हें बिना किसी परेशानी के जमानतें मिल गयी। आगे जब केस की नियमित सुनवाई प्रारम्भ हुई तो माँ की कृपा से झूठ की एक-एक परत उघड़ती चली गई । अन्त में उन्हें बेकसूर मान कर सम्मान सहित मुक्त कर दिया गया । यह महामाई का ही चमत्कार था । वास्तव में माँ की महिमा अपरम्पार है । उनके प्रताप से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं।

माँ के मंत्रजाप, स्तोत्र पाठ, रक्षाकवच के नियमित पठन-पाठन से अनेक बार आश्चर्यजनक कार्य होते हुये देखे गये हैं । शत्रु शमन के लिये तो उनकी शरण में जाना ही पर्याप्त रास्ता है।