हनुमान जी चिरंजीवी हैं, इसलिये समय की लम्बी धारा में हजारों लोगों ने हनुमान जी का साक्षात्कार किया है । हनुमान Hanuman जी का अस्तित्व त्रेतायुग से लेकर द्वापर और कलियुग तक में सदैव बना रहा है। त्रेतायुग में हनुमान Hanuman जी ने अपने भक्ति भाव से राम-रावण युद्ध में सबसे प्रमुख भूमिका निभाई, तो द्वापर युग में वे महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण-अर्जुन के रथ की ध्वजा ( पताका) पर उपस्थित रहे थे । हनुमान जी की प्रसिद्धि भारत में ही नहीं, अपितु दुनिया के अनेक देशों में भी उतनी ही रही है, जितनी कि भारत में ।
हनुमान जी की पूजा-अर्चना श्रीलंका, सिंगापुर, इण्डोनेशिया, जावा, सुमात्रा, मलेशिया जैसे अनेक देशों में बीते लम्बे समय से आज तक हो रही है । वास्तव में हनुमान जी की महिमा अपरम्पार है । इस कलियुग के समय में तो हनुमान जी ही भैरव, काली, दुर्गा, रुद्र आदि के बाद एक मात्र ऐसे देव हैं, जो अपने भक्तों को प्रत्यक्ष दर्शन देकर उनके समस्त दुःखों को मिटा सकते हैं। हनुमान जी बल, बुद्धि, विद्या के देव माने गये हैं ।
हनुमान Hanumanजी को शास्त्र मर्मज्ञ और विद्या शिरोमणि भी कहा जाता है क्योंकि वह वेद, पुराण, उपनिषदों के समस्त रहस्यों के ज्ञाता हैं और साथ ही सर्वश्रेष्ठ संस्कृतज्ञ भी हैं। हनुमान जी का उच्चारण अत्यन्त शुद्ध था । वे व्याकरण में भी पारंगत थे । रामायण के किष्किंधा काण्ड में एक कथा का विशेष रूप से उल्लेख आया है, जिसमें हनुमान Hanuman जी की बुद्धि की पुष्टि हो जाती है । सीताजी की खोज में जब राम और लक्ष्मण वन-वन भटक रहे थे, तब सुग्रीव ने उनकी परीक्षा लेने के लिये हनुमान Hanuman जी को ही ब्राह्मण वेश बनाकर उनके पास भेजा था ।
स्वयं भगवान राम हनुमान जी की विद्वता, चतुराई और नीतिशास्त्र सम्बन्धी वार्तालाप से अत्यधिक प्रभावित हुये थे । हनुमान जी को नीतिशास्त्र का भी सर्वश्रेष्ठ विद्वान माना गया है । वह उच्च कोटि के संगीतज्ञ भी थे । वह बल, बुद्धि और विद्या के देव हैं ।
इसलिये हनुमान जी अपने भक्तों को न तो विद्या के द्वारा, न बल के माध्यम से और न ही नीति द्वारा परास्त होने देते हैं । यही मुख्य कारण रहा है कि अनन्तकाल से ही हनुमान जी विद्यार्थियों, यौद्धाओं और मल्लयुद्ध के महारथियों के आराध्य देव के रूप में पूजनीय रहे हैं ।कोई भी युद्ध कौशल की शाला अथवा पहलवानों का अखाड़ा ऐसा नहीं होगा, जहां पर हनुमान जी की प्रतिष्ठा न की गई हो।
आधुनिक स्कूलों में तो हनुमान जी की पूजा-अर्चना का अधिक प्रचलन नहीं है, किन्तु पुराने जमाने में सभी गुरुकुलों में अन्य आराध्य देवों के साथ-साथ हनुमान जी की प्रमुखता से प्रतिष्ठा की जाती थी । मगध नरेश चन्द्रगुप्त के गुरु और महान कूटनीतिज्ञ कौटिल्य भी हनुमान जी के परम भक्त थे । हनुमान जी सभी आयुधों से अवध्य हैं, क्योंकि उनमें प्राय: समस्त देवों की शक्तियां समाहित हैं ।
एक तरह से वे समस्त देवों की शक्ति को स्वयं संचित करके ही अवतरित हुये हैं । वरुणदेव ने उन्हें अमरत्व प्रदान किया है, जिससे वे चिरंजीवी हो सके, तो यम ने उन्हें अपने दण्ड से अभयदान प्रदान किया है । इसी प्रकार कुबेर ने उन्हें गदाघात से अप्रभावित होने का आशीर्वाद प्रदान किया, तो देवाधिदेव भगवान शंकर ने शूल और पाशुपत आदि अस्त्रों से अभय होने का वर दिया है ।
एकादश रुद्र तो वह स्वयं ही हैं । अंजनी नंदन इतनी अधिक शक्तियों एवं इतने गुणों से सम्पन्न हैं कि वह अपने भक्तों की प्रत्येक समस्या का सहज ही निदान कर देते हैं। हनुमानजी के भक्तों की संख्या सर्वाधिक इस कारण से है कि उन्हें प्रसन्न करना बहुत ही सहज एवं सरल है।
प्रत्येक व्यक्ति की यह प्रबल अभिलाषा होती है कि उसके पास सुख-समृद्धि के अधिकाधिक साधन हों, आर्थिक रूप से सक्षम हो और जीवन में कभी किसी प्रकार की समस्या नहीं आये। इसके लिये वह प्रयास भी करता है। कुछ व्यक्तियों की यह कामना पूर्ण हो जाती है और कुछ की नहीं होती है। इसके साथ ही वे अनेक समस्याओं से घिर जाते हैं। दुःख एवं कष्ट जीवन में निराशा एवं अवसाद उत्पन्न करने लगते हैं। इसके अन्य अनेक कारण हो सकते हैं किन्तु कई बार ऐसे व्यक्ति दूसरों की जलन एवं ईर्ष्या के शिकार हो जाते हैं।
ऐसे लोग प्रत्यक्ष रूप में कुछ कर नहीं पाते हैं किन्तु अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न तांत्रिक अभिचार अथवा टोटकों के द्वारा व्यक्ति को कष्ट में डाल देते हैं । ऐसी घटनाओं के शिकार लोगों को अनेक प्रकार की विपरीत स्थितियों का सामना करना पड़ता है । अनेक लोगों का अच्छा खासा चलता व्यापार अचानक घाटा देने लगता है। लाभ के स्थान पर विभिन्न रूपों में हानि होने लगती है जो उसे आर्थिक समस्याओं में धकेल देती है । अनचाहे ही व्यक्ति अदालतों के केसों में उलझा दिया जाता है।
बिना बात के लोगों से शत्रुता बनने लगती है। ऐसे लोग अपनी समस्या के समाधान के लिये ज्योतिषियों, तांत्रिकों तथा मांत्रिकों के चक्कर लगाने लगते हैं किन्तु अधिकांश अवसरों पर निराशा ही हाथ लगती है ।
उपरोक्त प्रकार की समस्या से पीड़ित लोगों के लिये हनुमत साधना का प्रयोग अत्यन्त लाभदायक रहेगा । वैसे भी इस बात को सभी जानते हैं कि श्री हनुमान ऐसे किसी भी व्यक्ति के कष्टों को तुरन्त दूर करते हैं जो सरल एवं सच्चे मन से उनकी साधना करता है । जिस व्यक्ति का व्यापार घाटे में चल रहा है, अकारण रूप से हानि का सामना करना पड़ रहा है, शत्रुओं की संख्या बढ़ रही हो, बनते काम बिगड़ते हों, ऐसे सभी लोगों को श्री हनुमान साधना का यह उपाय अवश्य करना चाहिये । आगे मैं हनुमान जी से सम्बन्धित एक विशेष साधना का उल्लेख कर रहा हूं
। इस साधना (उपाय) के द्वारा आपके कष्ट एवं समस्या दूर होने की स्थितियां बनने लगेंगी और कुछ समय पश्चात् ही समस्या दूर हो जायेगी । हनुमान जी की यह साधना बहुत ही सरल और सहज है, किन्तु इसके माध्यम से साधक अपनी इच्छित आकांक्षाओं की प्राप्ति सहज ही कर सकते हैं ।
हनुमान जी की यह साधना विद्यार्थियों के लिये भी बहुत ही उपयोगी सिद्ध होती है। इस साधना से विद्यार्थियों का बौद्धिक कौशल बढ़ता है तथा परीक्षाओं में अच्छे अंक लेकर पास होते हैं । हनुमत साधना से साधकों की एकाग्रता एवं शारीरिक सामर्थ्य में भी वृद्धि होती जाती है, जिससे वे प्रतियोगिताओं, परीक्षाओं आदि में सर्वश्रेष्ठ क्षमता दिखा पाते हैं ।
साक्षात्कार आदि में सफल होने के लिये भी यह हनुमत साधना बहुत ही उपयोगी सिद्ध होती है । हनुमान जी की इस साधना के माध्यम से अनेक विद्यार्थियों ने परीक्षाओं में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त किया है ।