तंत्र Tantra का वास्तविक प्रकटीकरण तंत्र Tantra की दिव्य अनुभूतियों का अवतरण स्थूल शरीर से परे सूक्ष्म शरीर, आत्मिक शरीर पर होता है और हममें से अधिकांश लोगों को अपने सूक्ष्म शरीर के विषय में कोई जानकारी नहीं होती। इसलिये बिना तंत्र Tantra की वास्तविक अनुभूति से गुजरे हममें से अधिकतर लोग तांत्रिक साधनाओं के वास्तविक स्वरूप और उनकी क्षमताओं को समझने में पूर्णत: असमर्थ रहते हैं । हमें एक बात और भी समझ लेनी चाहिये कि हमारे स्थूल शरीर की सीमाएं भौतिक जगत तक ही सीमित रहती हैं, जबकि हमारे सूक्ष्म शरीर, हमारे आत्मिक शरीर का संबंध स्थूल जगत से लेकर अभौतिक जगत तक के साथ रहता है । इस अभौतिक जगत की सूक्ष्म झांकी हममें से बहुत कम लोगों को ही कभी -कभार दिखाई पड़ती है। अधिकांश व्यक्ति तो जन्म-जन्मान्तर तक इसकी सूक्ष्म झलक से भी वंचित बने रहते हैं । तंत्र Tantra के दिव्य प्रयोग 10 होती हैं । इन अनुभूतियों के विषय में समाज लगभग संज्ञाहीन ही रहता है।

शायद आपने अनेक बार इस बात को तो समझा होगा कि हमारे अनुभव करने की जितनी सीमाएं हैं, उसके हजारवें अंश के बराबर भी हम अपनी अनुभूतियों को प्रकट नहीं कर पाते हैं। हम अपनी अचेतना के द्वारा अपने सूक्ष्म शरीर पर जितना अनुभव कर पाते हैं, उसके हजारवें अंश के बराबर भी सोच-विचार नहीं कर पाते । इसी प्रकार हम जितना कुछ सोच-विचार कर पाते हैं, जितनी कल्पनाओं, जितने विचारों को अपने मन में जन्म दे पाते हैं, उनके हजारवें अंश के बराबर भी हम उन्हें शब्दों के रूप में प्रकट नहीं कर पाते। अपनी भावनाओं, अपनी अनुभूतियों को लिखने की सामर्थ्य हमारे सोचने- विचारने की क्षमता के मुकाबले हजारवें अंश के बराबर भी नहीं होती । इसलिये कोई व्यक्ति अपने अन्तस में उठने वाले विचारों को थोड़ा अधिक अंश में पकड़ कर उन्हें बोलकर अथवा लिखकर प्रकट करने की सामर्थ्य प्राप्त कर लेता है, वही समाज में सबसे अलग प्रतीत होने लग जाता है ।

फिर वह महान विचारक, महान लेखक, महान कवि, एक अद्भुत विद्वान के रूप में मान्यता प्राप्त कर लेता है । उसकी थोड़ी सी अधिक स्थूल क्षमता उसे सामान्य पुरुष से विशेष पुरुष अथवा महापुरुष बना देती है। लगभग यही बात तांत्रिक साधनाओं और उनके माध्यमों से उत्पन्न होने वाली क्षमताओं के विषय में भी कही जा सकती है । तांत्रिक साधनाओं और तांत्रिक अनुष्ठानों से जो क्षमताएं उत्पन्न होती हैं, उनकी दिव्य अनुभूतियां चेतना से परे रहने वाले सूक्ष्म शरीर पर उतरती हैं, किन्तु उन तांत्रिक अनुष्ठानों को सम्पन्न करने का मुख्य आधार साधक का स्थूल शरीर और बाह्य चेतना ही बनती है। इसलिये तंत्र Tantra के माध्यम से जो दिव्य अनभूतियां साधकों को अनुभव होती हैं, वह साधारणतः स्थूल शरीर पर पूर्णत: से प्रकट ही नहीं हो पाती हैं, क्योंकि उन्हें व्यक्त करने के लिये चेतना से संबंधित ज्ञानेन्द्रियों की सीमाएं सूक्ष्म पड़ जाती हैं।
तंत्र Tantra का वास्तविक प्रकटीकरण तंत्र Tantra की दिव्य अनुभूतियों का अवतरण स्थूल शरीर से परे सूक्ष्म शरीर, आत्मिक शरीर पर होता है और हममें से अधिकांश लोगों को अपने सूक्ष्म शरीर के विषय में कोई जानकारी नहीं होती। इसलिये बिना तंत्र Tantra की वास्तविक अनुभूति से गुजरे हममें से अधिकतर लोग तांत्रिक साधनाओं के वास्तविक स्वरूप और उनकी क्षमताओं को समझने में पूर्णत: असमर्थ रहते हैं । हमें एक बात और भी समझ लेनी चाहिये कि हमारे स्थूल शरीर की सीमाएं भौतिक जगत तक ही सीमित रहती हैं, जबकि हमारे सूक्ष्म शरीर, हमारे आत्मिक शरीर का संबंध स्थूल जगत से लेकर अभौतिक जगत तक के साथ रहता है । इस अभौतिक जगत की सूक्ष्म झांकी हममें से बहुत कम लोगों को ही कभी -कभार दिखाई पड़ती है। अधिकांश व्यक्ति तो जन्म-जन्मान्तर तक इसकी सूक्ष्म झलक से भी वंचित बने रहते हैं । अभौतिक सत्ता का यह जगत, जिस भौतिक जगत में हम रहते हैं, उसकी तुलना में सैकड़ों गुना विस्तृत है, पर हममें से अधिकतर लोग जीवन भर बाह्य चेतना के तल पर ही जीते रहते हैं, इसीलिये हमें अभौतिक जगत के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिल पाती । इसी अभौतिक जगत में प्रवेश का मार्ग तंत्र Tantra साधनाएं उपलब्ध कराती हैं ।
हमारी बाह्य चेतना हमें स्थूल शरीर और भौतिक जगत तक ही बांधे रखती है । अतः तंत्र Tantra साधनाओं के माध्यम से साधकों के सूक्ष्म शरीर पर जिन अभौतिक शक्तियों का उदय होता है, जिन क्षमताओं का प्रकटीकरण होता है, उन्हें कुछ हद तक ही स्थूल शरीर पर अनुभव किया जा सकता है । यद्यपि शब्दों के रूप में प्रकट करना तो और भी मुश्किल होता है।
अभौतिक जगत से संबंधित जिन शक्तियों का उदय सूक्ष्म शरीर पर होता है, उन्हें कुछ हद तक ही अनुभव किया जा सकता है और कुछ सीमा तक ही उनका इच्छानुसार उपयोग किया जा सकता है, परन्तु उन शक्तियों का सम्पूर्णता में बोध सहज एवं सामान्य बुद्धि से संभव नहीं हो पाता । उन पर पूर्ण रूप से नियंत्रण पाना तंत्र Tantra के उच्च साधकों के सामर्थ्य की ही बात होती है । एक बात और, तांत्रिक साधनाओं के माध्यम से जिन शक्तियों का जागरण होता है उनका सृजनात्मक अथवा विध्वंसात्मक, किसी भी रूप में प्रयोग किया जा सकता है ।
इसीलिये तंत्र Tantra के वास्तविक लक्ष्य से भटके हुये कुछ तांत्रिक अपनी क्षमताओं का विनाशात्मक रूप में उपयोग करने लग जाते हैं । ऐसे तांत्रिक सृजनात्मक कार्यों की जगह मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, विद्वेषण जैसे निकृष्ट कर्मों में अधिक रुचि लेने लगते हैं । अतः यह तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि सही प्रक्रिया से सम्पन्न किया जाने वाला कोई भी काम कभी निष्फल नहीं जाता । उसका कुछ न कुछ परिणाम अवश्य निकलता ही है । यही बात तंत्र Tantra साधना एवं तांत्रिक अनुष्ठानों •पर लागू होती है । तंत्र Tantra की कोई भी साधना सम्पन्न की जाये, अगर उसकी प्रक्रिया सही है, तो उसकी कुछ न कुछ अनुभूति साधक को अवश्य होती है । साधक अपनी क्षमतानुसार उस शक्ति का उपयोग किसी विशेष रचनात्मक कार्य अथवा किसी विनाशात्मक रूप में भी कर सकता है।
यद्यपि तंत्र Tantra का सम्पूर्ण रूप से उपयोग कुछ श्रेष्ठ तंत्र Tantra साधक ही कर पाते हैं । यही कारण है कि कभी-कभार ही वशिष्ठ, परशुराम, खरपानन्द, भैरवानन्द, गोरखनाथ, सर्वानन्द, मृत्युन्जय बाबा, रामकृष्ण परमहंस, वामाक्षेपा जैसा महासाधकों का जन्म होता है जो अपने तंत्र Tantra बल के आधार पर, अपनी तांत्रिक साधना के बल पर एक अलौकिक एवं विलक्षण क्षमता प्राप्त कर लेते हैं । अतः एक बात ठीक से समझ लेनी आवश्यक है कि तंत्र Tantra विज्ञान और तांत्रिक साधनाओं के माध्यम से होने वाली क्षमताओं को अनुभव किया जा सकता है और उन शक्तियों का सृजनात्मक एवं विभिन्न तरह के रचनात्मक कार्यों, विध्वंसात्मक अथवा ןविनाशात्मक रूप में उपयोग किया जा सकता है, लेकिन इसके उपरांत भी तंत्र Tantra की उस दिव्य शक्ति की व्याख्या करना सहज बोध से संभव नहीं हो पाता ।
जिस प्रकार आधुनिक वैज्ञानिक प्रकृति में विद्यमान रहने वाली कई तरह की शक्तियों का उपयोग करने की कला तो सीख गये हैं, वह कुछ हद तक उनके पीछे के तथ्यों को समझने, उनकी व्याख्या करने और उन्हें वैज्ञानिक सिद्धान्तों के रूप में परिभाषित करने में भी कुछ हद तक सक्षम हुये हैं लेकिन उनके लिये अब भी इस बात का उत्तर दे पाना संभव नहीं हो पाया है कि इन शक्तियों के अस्तित्व के पीछे प्रकृति का क्या उद्देश्य है ? इन शक्तियों का उद्देश्य क्या है ? इन शक्तियों के सृजन के पीछे किसका हाथ है ?
विज्ञान सृष्टि और उसकी रचना का कुछ हद तक विश्लेषण करके संरचनात्मक बनावट की जानकारी तो दे सकता है, लेकिन हमारी इस सृष्टि का अस्तित्व क्यों है…. इसका विकास किस उद्देश्य के लिये हुआ है… जीवन की यहां क्या उपयोगिता है…. मनुष्य क्या है… मनुष्य का यहां अस्तित्व क्यों है… वह कहां से आया है… किस उद्देश्य से यहां आया है… मृत्यु उपरांत वह कहां चला जाता है, इस गतिमान जगत के पीछे किसका हाथ है, ऐसे असंख्य प्रश्नों का कोई भी उत्तर विज्ञान नहीं दे सकता । विज्ञान सृष्टि की बनावट अथवा मनुष्य के जीवन, उसके जीवित रहने, जन्म से लेकर मृत्यु तक घटित होने वाली विविध घटनाओं का विश्लेषण तो कर सकता है, परन्तु उनके पीछे के मूल उद्देश्य पर कोई प्रकाश नहीं डाल सकता |