माँ बगलामुखी के कवच पाठ Kavach Lessons of Maa Baglamukhi
माँ बगलामुखी के कवच पाठ का विधान निम्न प्रकार है- सबसे पहले निम्न मंत्र का पाठ करते हुये माँ को प्रणाम करें-
श्रुत्वा च बगलामुखी पूजां स्तोत्रं चापि महश्वर । इदानीं श्रोतुमिच्छामि कवचं वद मे प्रभो ॥ वैरिनाशकरं दिव्यं सर्वाशुभ विनाशकम् । शुभदं स्मरणात्पुण्यं त्राहि मां दुःख नाशनम् ॥ यह कवच भैरव द्वारा पूरित किया गया है, अतः निम्न मंत्र का पाठ करते हुये एक बार पुनः माँ का विनियोग कर लेना चाहिये । विनियोग पहले दिया गया है।
मंत्र है- कवचं श्रुण्ड वक्ष्यामि भैरविः प्राणवल्लाभम् । पठित्वा धारयित्वा तु त्रैलोक्ये विजयी भवेत् ॥ माँ का कवच पाठ निम्न प्रकार है:-
तंत्र के दिव्य प्रयोग कवच शिरो मे बगलामुखी पातु हृदयैकाक्षरी परा । ॐ ह्रीं ॐ मे ललाटे च बगलामुखी वैरिनाशिनी ॥ गदाहस्ता सदा पातु मुखं मे मोक्षदायिनी । वैरि जिह्वाधरा पातु कण्ठं मे बगलामुखीमुखी ॥ उदरं नाभि देशं च पातु नित्यं परात्परा । परात्परतरा पातु मम गुह्नं सुरेश्वरी ॥ हस्तौ चैव तथा पादौ पार्वती परिपातु मे । विवादे विषये धोरे संग्रामे रिपुसंकटे ॥ पीताम्बराधरा पातु सर्वांगं शिवनर्तकी । श्रीविद्या समयं पातु मातंगी पूरिता शिवा ॥ पातु पुत्रीं सुतन्चैव कलत्रं कालिका मम । पातु नित्यं भ्रातरं मे पितरं शूलिनी सदा ॥ रंध्रं हि बगलामुखीदेव्या कवचं सन्मुखोदितम् । न वै देयममुख्याय सर्वसिद्धि प्रदायकम् ॥ पठनाद्वारणादस्य पूजनाद्वांछितं लभेत् । इदं कवचमज्ञात्वा यो जयेद् बगलामुखीमुखीम्॥ पिबन्ति शोणितं तस्य योगिन्यः प्रादय सादराः । वश्ये चाकर्षणे चैव मारणे मोहने तथा ॥ महाभये विपत्तौ च षष्वा पठेद्वा पाठयेत्तु यः । तस्य सर्वार्थसिद्धिः स्याद् भक्तियुक्तस्य पार्वति ॥ यह बगलामुखी महाविद्या का तांत्रोक्त कवच है ।
माँ बगलामुखी के कवच महत्व Kavach Significance of Maa Baglamukhi
Kavach Significance of Maa Baglamukhi बगलामुखी के उपरोक्त मंत्र के साथ इस रक्षा कवच के विधिवत् पाठ से साधक के चारों ओर एक ऐसा घेरा निर्मित हो जाता है, जो शत्रुओं द्वारा करवाई गई किसी भी क्रिया के लिये अभेध किले जैसा कार्य करता है। इसीलिये बगलामुखीमुखी के इस तांत्रोक्त अनुष्ठान को विधिवत् सम्पन्न कर लेने से बड़े से बड़े शत्रु से भी किसी तरह का भय नहीं रहता । इस प्रकार के तांत्रोक्त अनुष्ठानों को सम्पन्न करने की प्राचीन समय में एक आवश्यक परम्परा ही बन गयी थी । भीषण युद्ध में फंस जाने पर अधिकतर यौद्धा इस अनुष्ठान को सम्पन्न करने का प्रयास करते थे।