ucchishta ganapati sadhana rahsya उच्छिष्ट

गणपति तंत्र का एक रहस्यमयी स्वरूप

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ucchishta ganapati sadhana rahsya उच्छिष्ट गणपति: तंत्र का एक रहस्यमयी स्वरूप अमोघ शक्ति देखने वाले सभी पाठकों को पंडित अखिलेश जी का प्रणाम, नमन। मित्रों, उच्छिष्ट गणपति के बारे में बात करने जा रहा हूँ। बहुत ही अद्भुत लेख होने वाला है। उच्छिष्ट गणपति कवच के बारे में। मूल विषय हमारा उच्छिष्ट गणपति कवच रहेगा, लेकिन उससे पहले थोड़ा-सा समझेंगे उच्छिष्ट गणपति भगवान के बारे में।

उच्छिष्ट गणपति वाम मार्ग और दक्षिण मार्ग का अर्थ

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वाम मार्ग और दक्षिण मार्ग, दो पद्धतियां हैं हमारे तंत्र-शास्त्र के अंदर पूजन करने की या मंत्र सिद्ध करने की। वामाचार बाईं तरफ़ वाला, दक्षिणाचार दाईं तरफ़ वाला। इसके भी कई सारे भेद हैं। लोग समझते हैं कि वामाचार का मतलब पंच-मकार हो गया।

मांस, मदिरा, मैथुन, मुद्रा, यह सब जो है, यह चलता है। यह सब वामाचार उस अर्थ में लिया जाता है। एक्चुअल अर्थ क्या है? वाम मतलब बायां।

जो काम आप राइट हैंड से, जो नॉर्मली अपने जीवन में जो हाथ आपका काम करता है, वह आप जो आप कर रहे हो, लेकिन उल्टे हाथ से जितने भी आप काम करते हैं, उल्टे स्टाइल से जो काम करते हैं, विपरीत स्टाइल से जो काम किए जाते हैं, विपरीत तरीके से, वह वामाचार हो गया।

बहुत छोटा सा तरीका बताता हूँ। किसी देवता को किसी कठिन परिस्थिति में सिद्ध करना हो, उनको मनाना हो, उनकी कृपा प्राप्त करनी हो, उनका कोई उपाय सिद्ध करना हो, आप बहुत परेशानी में हों। जैसे मैंने लोम-विलोम पाठ बताया था।

एक, एक लेख लिखा था लोम-विलोम पाठ पर। अद्भुत उपाय है। अगर नहीं पढ़ा हो तो ज़रूर देखिएगा। पहली बार आए हैं तो आपको इस वेबसाइट से बहुत कुछ मिलने वाला है।

देखिए, टिके रहिए। जो काम सीधे तरीके से नहीं होते, वह काम उल्टे तरीके से करने पड़ते हैं। भगवान को भी कई बार जब एक पिता के सामने जब बच्चा कोई चीज़ माँगता है और पिता मना कर देते हैं तो कई बार वह उल्टे तरीके अपनाता है।

जैसे जिद करी, ज़मीन पर लोटने लग गया, चिल्लाने-चीखने लग गया, रोने लग गया या इस तरीके की चीज़ें जो एक बेटे को अपने पिता के साथ नहीं करनी चाहिए।

लेकिन छोटा बालक होता है। पिता को उसकी इस जिद को देखते हुए उसकी इच्छा पूरी करनी पड़ती है और वह उस वक्त हल हो सकता है, थोड़ा-सा गुस्सा हो जाए लेकिन फिर भी है अल्टीमेटली पिता, तो उसको समझेगा कि चलो ठीक है, बच्चे को चाहिए, दे दो।

इसमें एक फ़ैक्टर और काम करता है माँ का। माँ कई बार इंसिस्ट करती है कि दिला दो, क्यों रुलाना बच्चे को। तो चलो ठीक है, दे दो।

पूरा कॉन्सेप्ट समझना मैं क्या बोलने जा रहा हूँ। उच्छिष्ट गणपति भगवान को वामाचार पूजा से जो है, संतुष्ट किया जाता है हमारे तंत्र मार्ग में। तंत्र मार्ग में गणपति का जो सर्वश्रेष्ठ तांत्रिक का स्वरूप है, वह उच्छिष्ट गणपति है। वामाचार, देवी, जिद, यह सब चीज़ें अभी आएंगी तो मैं रिलेट कर दूँगा।

‘उच्छिष्ट’ का वास्तविक रहस्य

ucchishta ganapati sadhana rahsya उच्छिष्टगणपति तंत्र का एक रहस्यमयी स्वरूप
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 उच्छिष्ट का अर्थ होता है छोड़ा हुआ या खाकर जो अंत में कुछ छूट जाता है, जूठा। यानी अब जो बिल्कुल अंत में बचा है, उसको उच्छिष्ट कहा जाता है। जिसको अब कोई हाथ नहीं लगा रहा। थाली में से जो जूठन छूट जाता है अंत में, थोड़े-बहुत जो दाने बच जाते हैं या जो कुछ भी, उसे उच्छिष्ट कहा जाता है। याद रखना।

उच्छिष्ट गणपति कैसे नाम पड़ा ?

असलियत में इनका नाम उत्कृष्ट गणपति है। कालांतर में धीरे-धीरे अपभ्रंश होते हुए, तंत्र मार्ग में वामाचार का उपयोग करते हुए इनका नाम उच्छिष्ट गणपति पड़ा।  वामाचार की जितनी पूजाएं हैं, जितने अभ्यास हैं हमारे तंत्र मार्ग के अंदर, वह सब हमारी आत्मा को परमात्मा से मिलाने के लिए, यानी एक सर्वोच्च लक्ष्य के लिए तंत्र का प्रतिपादन किया था।

भगवान शिव ने, पैसा, धन, माया, इन सब चीज़ों के लिए नहीं किया था, अपने आत्म-कल्याण के लिए, ईश्वर से मिल जाने के लिए तंत्र का जो है, उत्सर्ग हुआ था।

 अब इन सब चीज़ों को आपको लग रहा होगा, ये क्या बात कर रहे हैं? मैं इन सब चीज़ों को मिला दूँगा थोड़ी देर, पाँच मिनट और रुकिए। छूटा हुआ, उच्छिष्ट, जिन्हें हम कहते हैं, वास्तव में अंत में क्या छूटता है? जब हमारे प्राण निकल जाते हैं, अंत में क्या छूटता है?

आत्मा। आत्मा से उत्कृष्ट कुछ नहीं है। यह सबको पता है। यानी जो उत्कृष्ट है, वही अंत में छूट जाता है। लेफ़्ट ओवर। जो सबसे श्रेष्ठ है, वही सबसे अकेला अपने आप को खड़ा पाता है।

वही सबसे अलग अपने आप को खड़ा पाता है। सबसे अलग होना भी उच्छिष्ट है। बिल्कुल जो श्रेष्ठ, श्रेष्ठता जो सबसे अंत में बच जाती है, वह भी उच्छिष्ट है। दूध का उच्छिष्ट जो है, वह क्या है पता है आपको? घी। वह सबसे श्रेष्ठ उसकी योनि है।

दूध की सबसे श्रेष्ठ योनि क्या है? घी। तो उच्छिष्ट हम इसको इस अर्थ में, तंत्र में इसको वामाचार में इस अर्थ में लिया जाता है जैसे जूठा छूट गया हो। अब आप इसका सारा अर्थ समझ लीजिए। मैंने आपको समझा दिया कि इसका, इसके पीछे रहस्य क्या है? उच्छिष्ट के, उत्कृष्ट जो सबसे अंत में बच जाता है।

दूध का उच्छिष्ट या उत्कृष्ट क्या है? घी। हमारे शरीर का उच्छिष्ट, उत्कृष्ट क्या है? आत्मा। ‘नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः’। जिसको आग जला नहीं सकती, पानी गला नहीं सकता।

जो श्रेष्ठतम स्वरूप है, आत्मा, सो ही परमात्मा, जो परमात्मा का ही स्वरूप होता है, अंत में वह बचता है। तो सर्वश्रेष्ठ परमात्मा के रूप में भगवान गणपति की साधना की जाती है तंत्र मार्ग के अंदर उच्छिष्ट गणपति के रूप में। हम बोलचाल में उसको उच्छिष्ट गणपति ही बोलेंगे पूरे इस लेख में।

उच्छिष्ट गणपति  विंध्यावान राक्षस की कथा

इनकी सामान्य छोटी-सी कथा इनकी मैं सुना देता हूँ। इनकी उत्पत्ति कैसे हुई? प्राचीन काल में विंध्यावान नाम का एक राक्षस हुआ। भयंकर दैत्य हुआ। उसने ब्रह्मा जी की तपस्या की, जो होता है। अब सारी कथाओं में इसी प्रकार से चलता है। 

विंध्यावान ने तपस्या की। ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए। वह आ गए। भैया, क्या चाहिए? बोलो। विंध्यावान ने कहा कि अमरत्व चाहिए, अमरता दे दो। ब्रह्मा जी ने कहा, अमरता नहीं दे सकता, और कुछ माँग ले। कुछ ऐसा माँग ले जिससे तेरा काम भी पूरा हो जाए। विंध्यावान ने कहा कि ठीक है, वह कुछ स्पेशल उसने माँग लिया।

 उसने कहा कि मुझे ऐसा कोई मारे जो अपनी पत्नी से रति-क्रिया में रत हो। उसी अवस्था में कोई मारे तो मैं मरूँ। अब बताओ, उसके माँगने के पीछे और इस उच्छिष्ट गणपति के रहस्य के पीछे कितनी चीज़ें छुपी हैं? कितना बड़ा तंत्र है? कितनी चीज़ें इससे सॉल्व हो सकती हैं? ‘कलौ चण्डी विनायकौ’, जो तंत्र में कहा जाता है न, आगम में, हमारे आगम शास्त्र में कहा जाता है

कि कलि में चंडी और विनायक की उपासनाएँ श्रेष्ठ कही जाती हैं। विनायक के कई स्वरूप हैं, 52 स्वरूप हैं भगवान गणपति के। उनमें से एक है उच्छिष्ट गणपति, जो तांत्रिक स्वरूप है।

अब उसने माँग लिया कि जो कोई भी अपनी सहचारिणी से रति-क्रिया में रत हो, उस अवस्था में अगर मुझे मारे तो ही मेरा वध हो, वरना न हो। अब ऐसी अवस्था में कौन मारे?

सारे देवता दुखी, स्वर्ग, आकाश, पाताल, नरक, सप्तलोक, तीनों भुवन दुखी कर दिए उसने। सब लोग गए ब्रह्मा, विष्णु, महेश के पास, तीनों त्रिदेवों के पास कि महाराज, कुछ करो इसका। उन्होंने भी हाथ जोड़ लिए कि भैया, इसका, इसको कैसे मारें?

इसने तो शर्त ही ऐसी रख दी। अब अपनी पत्नी के साथ समागम करते हुए युद्ध करना, आप समझना, थोड़ा-सा इसके स्पिरिचुअल रहस्यों पर भी आएँगे। तब जाकर भगवान गणपति आगे आए। भगवान श्री महागणपति आगे आए। उन्होंने कहा कि मैं यह करूँगा।


 

उच्छिष्ट गणपति का प्रतीकात्मक स्वरूप

 

इसके पीछे एक रहस्य और समझो कि भगवान महागणपति इतने उदार देवता हैं, इतना उनका ऐसा स्वभाव है कि थोड़े समय में वह प्रसन्न हो जाते हैं। उसके बाद अपने भक्तों के लिए जब कोई आर्त पुकार उनके सामने करता है, त्राहि-त्राहि कर-करके उनके पास जाता है या अपने आप को सर्वस्व समर्पित कर देता है।

जब पूरी दुनिया आपसे मुख मोड़ ले, तब भगवान गणपति आपका साथ देने के लिए आ जाते हैं, अगर उन्हें पूजा जाए, उनसे, उनको पूरे दिल से पुकारा जाए। भगवान गणपति आ गए। मैं जाऊँगा।

अपना जो सबसे श्रेष्ठ छूट जाता है, उस उच्छिष्ट स्वरूप में भगवान गणपति ने अपनी सहचारिणी विघ्नेश्वरी को अपनी बाईं जंघा पर बिठाकर रति-क्रीड़ा में रत रहते हुए उस विंध्यावान राक्षस का उन्होंने वध किया। अब इनका आइकनइज़्म देखो। आप इनका सिम्बॉलिज़्म देखो।

प्रतीकात्मकता देखो। इस सब पर बात करेंगे। ऐसा मत समझना कि लिटरली यही हुआ। समझना, मैं समझा दूँगा सारी चीज़ें। क्योंकि उस राक्षस ने माँगा ही ऐसा वर था कि कोई रति-क्रीड़ा में रत रहते हुए कोई व्यक्ति मुझे मारे, कोई मुझे मारे।

तो भगवान गणेश ने अपनी बाईं जंघा पर अपनी प्रिया विघ्नेश्वरी, जिनका नाम हस्तिपिशाची भी कहा गया है, उनको अपनी जंघा पर बिठाया।

प्रतीक में इस प्रकार से आता है, प्रतीकात्मक चित्रण में इस प्रकार से आता है कि भगवान की सूंड देवी की योनि के अंदर है और देवी का राइट हैंड में कमल का पुष्प है और लेफ़्ट हैंड में भगवान गणपति का प्राइवेट पार्ट है।

इतना सघन चित्रण, इतना सघन प्रतीकात्मकता आपने और किसी कथा में, किसी देवता में नहीं देखी होगी। उस अवस्था में उन्होंने उस राक्षस का वध किया।

 

 उच्छिष्ट गणपति संभोग से समाधि का अर्थ

 

अब इसका मूल समझाता हूँ। ओशो ने एक, एक लाइन कही थी, बड़ी क्रांति आ गई थी—संभोग से समाधि की ओर। अर्थ क्या है इसका?

इसका अर्थ भगवान उच्छिष्ट गणपति समझाते हैं कि जिस अवस्था में आप अपने चरम पर होते हैं, चरम सुख पर होते हैं, उस अवस्था में आप अपनी ऊर्जा को इतना ऊपर बढ़ा लें कि आपके अंदर के राक्षसों को आप समाप्त कर दें और आपका फ़ोकस बने, ईश्वर से आप मिल जाएँ।

आप अपनी प्रकृति से इस प्रकार से जुड़ जाएँ, उसमें इस प्रकार से एकाग्र हो जाएँ कि उन, उस सुखों से ऊपर बढ़कर आप एकात्म कर लें ईश्वर के साथ, अपने अंदर के राक्षसों को समाप्त करते हुए, अंदर की मलिन, मलिनताओं को नष्ट करते हुए, यह इसका अर्थ है।

 

 उच्छिष्ट गणपति शिव के अट्टहास से उत्पत्ति

 

एक और कथा के अनुसार, भगवान उच्छिष्ट गणपति का जो जन्म है, वह भगवान महाशिव की हँसी से हुआ था। भगवान शिव के अट्टहास से हुआ था। जब उन्होंने काली के नृत्य को देखा, जब काली ब्रह्मांडीय नृत्य करती हैं, महाकाली, तब उनको देखकर भगवान शिव जो हँसते हैं, जो मुस्कुराते हैं, उनकी हँसी से भगवान उच्छिष्ट गणपति का जन्म होता है।

उच्छिष्ट, यानी जूठा, जूठन। तो भगवान के मुख से, जो भगवान की उस, उस हँसी से जो, जो जन्म हुआ भगवान से, उनको उच्छिष्ट गणपति कहा गया। ये एक अघोर, महान तांत्रिक स्वरूप है भगवान गणपति का।


 

 उच्छिष्ट गणपति साधना का महत्व

 

इनकी पूजा के बारे में ऐसा कहा जाता है कि कलियुग में देखो, तंत्र तो कोई भी शुरू करे, तंत्र-शास्त्र में जितने भी लोग हैं, कोई शायद आपसे खुलकर बोले चाहे न बोले, हक़ीक़त यह है कि जितने बड़े-बड़े मंत्रज्ञ हैं, जितने बड़े-बड़े मंत्रवेत्ता हैं, जितने बड़े-बड़े साधक हैं इस दुनिया के अंदर, इस ब्रह्मांड के अंदर, वह सबसे पहले अपना स्टार्टिंग भगवान गणपति से ही करते हैं।

वह महागणपति से करो, चाहे वामाचारी है तो उच्छिष्ट गणपति से करो। गणपति की साधना किए बिना कोई साधना आपकी सफल नहीं हो सकती। यह तय बात है। मैं हो सकता है किसी और लेख में दोबारा न बताऊँ। यह बात सच है।

अगर आप भगवान गणपति को इंक्लूड नहीं कर रहे हैं या अपनी मूल साधना, जो पुरश्चरण आप करते हैं, करना चाहते हैं, उससे पहले आप अगर गणपति का कोई छोटा-मोटा आपने पुरश्चरण, छोटा-मोटा तो एक शब्द है, गणपति की कोई-न-कोई सामान्य साधना अगर आपने नहीं करी, पाँच दिन, 25 दिन, महीना-भर, साल-भर, जो भी, वो, वो देखने पर पता लगता है कितना किसको चाहिए।

अगर आपने ऐसा नहीं कर रखा है तो आपको फल मिलना मुश्किल है, लगभग नामुमकिन है। आप करते रहो, घिसते रहो, पाप कटेंगे, कुछ-न-कुछ तो उस साधना का मिलेगा ज़रूर, लेकिन जितना आप चाहते हैं न कि मुझे इस मंत्र का फल मिल जाए, इसमें यह मंत्र मुझे सिद्ध हो जाए, मंत्र-सिद्धि भगवान गणपति की पूर्व-साधना के बिना हो ही नहीं सकती।

और उसमें से जो वामाचार में जो है, जो वाम मार्ग में जो अपनी पूजाएँ, तंत्र-साधनाएँ करते हैं, उसमें उच्छिष्ट गणपति का बहुत बड़ा स्थान है।

उच्छिष्ट गणपति का सही वास्तविक अर्थ है

उत्कृष्ट गणपति, जो हमारे शरीर का, जो हमारा उत्कृष्ट एम है, जो संपूर्ण लक्ष्य है, जो परम लक्ष्य है, उससे मिला देना उच्छिष्ट गणपति का कार्य है।

उच्छिष्ट गणपति को शत्रुहंता के रूप में, विजयप्रदा साधना के रूप में माना जाता है और मूल रूप से यह कुंडलिनी जागरण की विद्या है, मोक्ष की साधना है।

 

 उच्छिष्ट गणपति में देवी की भूमिका

 

फिर इसमें एक प्रतीक आया देवी का। उन्होंने अपनी बाईं जंघा पर देवी को स्थापित कर रखा है और उनसे रति में निमग्न हैं और उस अवस्था में उन्होंने उसे मारा। बिना देवी की कृपा के, बिना उस पर्टिकुलर देवता की शक्ति की कृपा के, उस पर्टिकुलर देवता का आशीर्वाद आपको नहीं मिल सकता। यह भी एक तथ्य है। यह भी एक सच है।

शिव की कृपा पाना चाहते हैं तो देवी दुर्गा की कृपा, पार्वती की कृपा, भुवनेश्वरी की कृपा आप पर होनी ही चाहिए। उनके आशीर्वाद से, उनकी अनुमति से आप, शिव आप पर प्रसन्न होंगे। ऋद्धि, सिद्धि, विघ्नेश्वरी, हस्तिपिशाची, इनकी कृपा के बिना आप भगवान गणपति की कृपा प्राप्त नहीं कर सकते।

माता जानकी की कृपा के बिना राम जी की कृपा कैसे मिलेगी ? माता लक्ष्मी की कृपा के बिना विष्णु की कृपा कैसे प्राप्त होगी ? यानी यह तो मैंने नाम लिए। असल बात यह है कि उस देवता की शक्ति जब आपसे प्रसन्न होगी, तब देवता आप पर प्रसन्न होंगे।

यानी उनको इंक्लूड करके आपको रखना ही पड़ेगा। भगवान महादेव की उपासना करते हैं तो आपको साथ-ही-साथ महादेव की, अब इसका समझ लो, सीधी भाषा में सर समझ लो, जिस देवी या देवता की आप उपासना करते हैं, उसके साथ में आपको उस पर्टिकुलर की शक्ति या शिव की उपासना आपको करनी ही चाहिए।

जिस प्रकृति की आप उपासना करते हैं तो उसके साथ पुरुष की उपासना करनी पड़ेगी, पुरुष की करते हैं तो प्रकृति की करनी पड़ेगी। शिव के मंत्र-सिद्धि में आप लगे हैं, मुझे शिव के मंत्र को सिद्ध करने का है, तो उसके साथ में आपको देवी का कोई भी पाठ, कोई भी मंत्र, मंत्र आपको साथ में रखना पड़ेगा।

विष्णु की उपासना करते हैं, विष्णु भगवान नारायण की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो लक्ष्मी का कोई भी पाठ, कनकधारा स्तोत्र, श्री सूक्त या कोई लक्ष्मी जी का मंत्र या कोई लक्ष्मी कवच या लक्ष्मी स्तोत्र, इस प्रकार से आपको करना पड़ेगा। यह जल्दी, शीघ्र, जल्दी सिद्धि के साधन बता रहा हूँ।


 

उच्छिष्ट गणपति से जुड़ी भ्रांतियों का खंडन

 

जो तंत्र-सिद्धि जो होती है, जो एक्यूरेट, अरे आपको क्या पता कि मंत्र क्या-क्या दे सकता है? हमें लगता है कि मैंने तो आज तक कभी देवी की उपासना नहीं की, सब हमेशा शिव की करी, लेकिन फिर भी मेरे पे तो बहुत कृपा है। मेरे तो पास तो बहुत पैसा है। बहुत ज़मीन-जायदाद हो गई।

बहुत ज्ञान आ गया। सब कुछ हो गया। यह तुच्छ है। यह सबसे अधम सिद्धियों में माना जाता है तंत्र के अंदर। यह तो कण मात्र भी नहीं है। मंत्र से तो तुम इतना ले सकते हो।

तो मैं तो वह तरीके बता रहा हूँ जिससे आप सब कुछ प्राप्त कर सको। बात उच्छिष्ट गणपति की चल रही है। अगले लेख में मैं आपको बताऊँगा कि उच्छिष्ट गणपति कवच, यह कितना महान है।

उसकी हम बात करेंगे अगले लेख में। इस साधना को जब आप करते हैं तो आपको अनंत तक देखने की दृष्टि प्राप्त हो जाती है। अपने चारों तरफ़ देखने का एक, एक भाव उत्पन्न अंदर होने लग जाता है। देखने का मतलब ऐसा लिटरली ऐसा देखने का नहीं। त्रिकालदर्शी जिसे बोला जाता है, त्रिकालज्ञ व्यक्ति हो सकता है अगर भगवान उच्छिष्ट गणपति की उपासना अगर ठीक-ठीक तरीके से कर ले।

बुद्धि और ज्ञान के देवता तो हम मानते हैं न सामान्य भाषा में। हम तंत्र की बातें कर रहे हैं। उसके आधार पर अगर उस, उस पर्सपेक्टिव में जाया जाए तो त्रिकाल, त्रिकालज्ञ, त्रिकालज्ञ से ऊपर, कुछ बियॉन्ड स्पेस एंड टाइम, वह व्यक्ति देखने लगता है।

उसकी इतनी एबिलिटी उसकी बढ़ जाती है, जिसको हम कहते हैं कुंडलिनी जागृत हो गई। इसकी कुंडलिनी में मूलाधार के देवता कौन हैं? गणपति। स्टार्टिंग वहाँ से होती है।

यही कारण है कि उच्छिष्ट गणपति की साधना करने वाले के विज़न फैल जाते हैं। उनकी दृष्टि उसकी विस्तृत हो जाती है।

हम जो अभी जीवन जी रहे हैं, आप समझना, यह मेरा भाई, यह मेरी बहन, यह मेरे पापा जी, यह मेरी मम्मी जी, यह मेरी पत्नी, यह मेरा पैसा, यह मेरी गाड़ी, यह मेरा, यह मेरा, वह मेरा, ये या और भी कुछ चीज़ें, ईर्ष्या, जलन, गुस्सा, लोभ, मोह, क्रोध, इस प्रकार का, ये सब जो हम इस चारों, इस प्रपंच में जो हम फँसे पड़े हैं, इसको तोड़ने का काम करते हैं भगवान उच्छिष्ट गणपति।

आपकी सोच से इस एक्चुअल सोच को मिलाने का काम कर देते हैं कि वास्तव में चल क्या रहा है। उस दर्शन को, चिदाकाश में भ्रमण करने की प्रवृत्ति आपके अंदर आ, पैदा हो सकती है, अगर उच्छिष्ट गणपति सिद्ध हो जाएँ। शत्रुओं का नाश और विजय और भयों से रक्षा और ये तो बहुत छोटी-छोटी बातें हैं।

ये तो करेंगे ही, बाद में कर ही लेंगे। यह तो सब लिखा पड़ा है। यह तो लिखा होता है। मैं वह बोल रहा हूँ जो लिखा नहीं गया। जो लिखा है, उसके पीछे की बातें हम समझने की कोशिश कर रहे हैं। तो यह तो वह विद्या है जो आपका सर्वश्रेष्ठ निचोड़कर, जो सर्वश्रेष्ठ आपके अंदर का है, वह लाके बाहर छोड़ देगी, जो उच्छिष्ट है।

प्रसाद और गृहस्थ साधना पर विचार

 

इस प्रकार से कहा गया कि उच्छिष्ट गणपति का प्रसाद खुद को नहीं, स्वयं नहीं खाना चाहिए। इनकी साधना जो है, गृहस्थों को नहीं करनी चाहिए। अगर, श्मशान जैसा हो जाता है या आपका, देखो यार, ऐसा है बाबा, कोई भी साधना हो, वाम मार्ग, दक्षिण मार्ग से घबराने की आवश्यकता नहीं है।

हाँ, यह बात अवश्य है कि आपकी कुंडली में, आपके प्रारब्ध से आप इस प्रकार के ग्रह-योग लेकर आए हैं तो आप साधना यह कर सकते हैं। कोई भी व्यक्ति कर सकता है और थोड़े-से प्रयास में तो कर ही सकता है। वह कुंडली देखकर ज़्यादा अच्छे से पता लगाया जा सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि बिल्कुल कर ही नहीं सकते।

सामान्य स्तोत्र-पाठ तो कर ही सकते हैं। कवच-पाठ आप कर ही सकते हैं। इसमें कोई बुराई नहीं है, कोई नुकसान भी नहीं है। फिर यह कहा जाता है कि इनका जूठा नहीं, ऐसा नहीं है, जूठा इनका, इनका भोग नहीं ले सकते। अरे भैया, जब इनका भोग चढ़ाओगे, प्रसाद चढ़ाओगे, भगवान की साधना करोगे तो उस प्रसाद को किसको खिलाओगे ? भगवान का जूठा किसको खिलाओगे ? कुत्ते को डाल दोगे ? क्या करो ? उस प्रसाद का क्या करोगे?

ईश्वर का प्रसाद नहीं खाओगे?

मतलब प्रसाद के बारे में तो ऐसा कहा गया है कि प्रसाद का नियम है, जब भी आप मंदिर में जाते हो और कोई हाथ में प्रसाद थमाता है तो प्रसाद को हाथों-हाथ उसी समय आपको खा लेना चाहिए, पा लेना चाहिए, उस प्रसाद को ग्रहण कर लेना चाहिए। और प्रसाद को कभी भी अपने हाथ से उठाकर नहीं, खुद खाना चाहिए।

प्रसाद हमेशा दूसरों से लेना चाहिए। याचक की भांति, भिखारी की भांति हाथ फैलाकर प्रसाद को माँगा जाता है। प्रभु का आशीर्वाद होता है वह प्रसाद। खा सकते हैं।

 

 उच्छिष्ट गणपति  स्वरूप और पूजा का भय

 

फिर एक, एक और बात जो मुझे प्रॉब्लेमैटिक लगी कि श्मशान हो जाता है। आपका शरीर क्या है? आपका जीवन है क्या ? यह बताओ। आपके शरीर में, आपके मन में, आपके आस-पास झूठ, निंदा, चोरी, कपट, ईर्ष्या, द्वेष, लोभ, मोह, काम, अब्रह्मचर्य, अभक्ष्य-भक्षण, व्यभिचार, इतना कुछ यह जो कचरा फैला हुआ है न, यह जो कचरा-पट्टी फैल रखी है। 

यह क्या श्मशान से कम है? उच्छिष्ट गणपति तो आपको श्मशान से बाहर निकालने की, मुक्त कर देने की विद्या है। समझने की बातें हैं। उनके स्वरूप को देखकर कई लोग जो है, इस प्रकार से ऑब्जेक्शन करते हैं कि यह इस प्रकार का कैसा स्वरूप है भगवान का।

क्योंकि भगवान गणेश जी को तो गणपति बप्पा मोरया और एक हंसते हुए, प्यारे से, गोलू-मोलू जो हम बताते रहते हैं न, वैसा, वैसा लोग मान के चलते हैं। तंत्र के जो हैं न, सुप्रीम होते हैं भगवान गणपति।

तंत्र के अंदर ऐसे-ऐसे प्रयोग हैं कि मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण, विद्वेषण, यह सारे जो षट्कर्म हैं, भगवान गणपति के ऐसे-ऐसे प्रयोग हैं कि आपकी हवा टाइट हो जाएगी।

भगवान का स्वरूप अपनी शक्ति के साथ एकात्म होकर अपनी बुराइयों को नाश करने में है। यानी जब आप अपने सबसे अति आनंद की अवस्था में हों, जब आप सबसे ज़्यादा आनंदित हों, सुखी हों, तब भी कोई बुरा कर्म आपके ऊपर प्रभाव न डाल सके, उसको भी आप नष्ट कर दें। यह इसका प्रतीकात्मक चित्रण इस प्रकार से है बाबा।


 

 उच्छिष्ट गणपति का सच्चा उद्देश्य और निष्कर्ष

 

 99% तो यही नाटक है हमारे हिंदुओं में कि जब हमें ज़रूरत होती है, जब हम पर कोई संकट आता है, तब हमें भगवान याद आते हैं।

अगर आपके जीवन से सारे संकट मिट जाएँ, आनंद हो जाए, अंबानी जितना पैसा आ जाए और आपके बच्चे बढ़िया हो जाएँ सब और आपकी आयु 100 वर्ष और 100 वर्ष तक निरोगी रहें। 

घूमते-फिरते रहें जीवन में, ऐसा हो जाए आपके जीवन में दुख ही न हो, मैं बताता हूँ 99% हिंदू पूजा-पाठ करना छोड़ देंगे, भगवान को छोड़ देंगे, मंदिर जाना बंद कर देंगे।

भगवान का कॉन्सेप्ट है हमारे लिए कोई देने वाला और हमारा अपने मन में कॉन्सेप्ट है, हम हैं भिखारी। भगवान के सामने मंगतों की तरह, भिखारियों की तरह माँगने जाते हैं बस। और ईश्वर का कुछ लेना-देना है नहीं।

तो तंत्र, जो कि ईश्वर से मिला देने की विद्या है, वह कहाँ समझोगे? उसके पैटर्न कहाँ समझोगे? उसके प्रतीक कहाँ समझोगे? उसके, उसके सिम्बल्स कहाँ समझोगे? भगवान के फ़ोटो हमारे पैरों में आ रहे हैं। भगवान के कैसे-कैसे रूप बना के, कैसे-कैसे खिलौने बनके, चल रहा तमाशा तो हमने बना रखा है इसका।

 अभी तो मुख्य, मूल बात उच्छिष्ट गणपति का जो कॉन्सेप्ट है, वह अपनी, अपने, अपने आनंद पर विजय प्राप्त करते हुए, अपने चरम सुख के समय भी आप अपने कुकर्मों को मार सकें, अपनी बुराइयों को नष्ट कर सकें, तो उच्छिष्ट गणपति का आनंद है। यह उनकी कृपा है। यह उनका कॉन्सेप्ट है।

फिर इसकी साधना कैसे की जाती है? सामान्य चीज़ें ही बताऊँगा। ऐसा नहीं कि कोई घनघोर कोई मंत्र बताकर और ऐसा कोई, ऐसा विद्या, देखो, वह तो इंटरनेट पे यहाँ पर पोस्ट में तो नहीं बताई जा सकती कि कोई मैं मंत्र बताऊँ और उसके विनियोग, न्यास और पूरा आवरण-पूजा, ये तो इंपॉसिबल है यहाँ बताना।

तो अगले लेख में मैं उसका कवच लेकर अवश्य आऊँगा। उच्छिष्ट गणपति कवच, ज़रूर पढ़िए। ठीक अगला लेख, बने रहिए। इसी को कंटिन्यू कीजिए।

जीवन बदल देने वाली विद्या है उच्छिष्ट गणपति कवच। चलिए, इसी के साथ, लेख अच्छा लगा हो, बात अच्छी लगी हो, सच्ची लगी हो, पसंद आई हो तो पोस्ट को लाइक करें, वेबसाइट को फॉलो करें।

हम बार-बार यही विनती करते हैं कि 4-5 साल हो चुके हैं मुझे इस वेबसाइट के ऊपर अपना कंटेंट, अपनी पूरी ईमानदारी से अच्छी, सच्ची बात करने का प्रयास करता हूँ।

लेकिन उस, हो सकता है कोई कमी रही हो क्योंकि बहुत ज़्यादा शोर-शराबा, ताम-झाम नहीं होता मेरे लेखों में। बहुत ज़्यादा धूम-धाम, ये सब नहीं होता। सिंपल सी बात करते हैं।

समझाने का प्रयास करता हूँ। लेकिन ठीक है। चलो, आगे बढ़ाओ बाबा, साथ रहो। तो इस वेबसाइट से आपको निराशा हाथ नहीं लगेगी। कभी भी गलत सूचना नहीं लगेगी। कोई हवाबाज़ी नहीं होगी।

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Rodhar nath
मैं रुद्र नाथ हूँ — एक साधक, एक नाथ योगी। मैंने अपने जीवन को तंत्र साधना और योग को समर्पित किया है। मेरा ज्ञान न तो किताबी है, न ही केवल शाब्दिक यह वह ज्ञान है जिसे मैंने संतों, तांत्रिकों और अनुभवी साधकों के सान्निध्य में रहकर स्वयं सीखा है और अनुभव किया है।मैंने तंत्र विद्या पर गहन शोध किया है, पर यह शोध किसी पुस्तकालय में बैठकर नहीं, बल्कि साधना की अग्नि में तपकर, जीवन के प्रत्येक क्षण में उसे जीकर प्राप्त किया है। जो भी सीखा, वह आत्मा की गहराइयों में उतरकर, आंतरिक अनुभूतियों से प्राप्त किया।मेरा उद्देश्य केवल आत्मकल्याण नहीं, अपितु उस दिव्य ज्ञान को जन-जन तक पहुँचाना है, जिससे मनुष्य अपने जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझ सके और आत्मशक्ति को जागृत कर सके।यह मंच उसी यात्रा का एक पड़ाव है — जहाँ आप और हम साथ चलें, अनुभव करें, और उस अनंत चेतना से जुड़ें, जो हमारे भीतर है ।Rodhar nathhttps://gurumantrasadhna.com/rudra-nath/