Ucchishta Ganapati Sadhana उच्छिष्ट गणपति साधना विधि विधान
Ucchishta Ganapati Sadhana उच्छिष्ट गणपति साधना विधि विधान गणेश ऐसे देवता हैं जिनकी वैदिक, तांत्रिक और पौराणिक, सभी प्रकार की साधनाएं और पूजा होती हैं। जी हां, यहां हम इनकी तंत्र साधना के बारे में बात करते हैं। तंत्र साधना के अंतर्गत गणपति की वक्रतुंड गणपति साधना, लक्ष्मी विनायक गणपति साधना, हरिद्रा गणपति साधना, उच्छिष्ट गणपति की साधना जैसी अनेक प्रकार की साधनाएं होती हैं, जिनको तंत्र में बहुत अधिक महत्त्व दिया जाता है। इन सब में उच्छिष्ट गणपति की साधना सबसे अधिक तीव्र और प्रभावी मानी जाती है।
तो आज हम आपको उच्छिष्ट गणपति साधना के बारे में विस्तार से बताते हैं, क्या विधान उपयोग होते हैं, कौन-कौन से मंत्र होते हैं, इन मंत्रों के क्या-क्या प्रयोग हैं, कैसे इनको आप कर सकते हैं और कैसे इनका लाभ उठा सकते हैं।
हालांकि आप बिना गुरु के उच्छिष्ट गणपति या गणपति की तंत्र साधना नहीं कर सकते, किंतु गुरु की सुरक्षा प्राप्त होने पर, इनकी आप जानकारी प्राप्त कर साधना कर सकते हैं और लाभ उठा सकते हैं। यह बहुत अधिक तीव्र प्रभाव और त्वरित परिणाम देने वाले होते हैं।
उच्छिष्ट गणपति नवार्ण मंत्र
उच्छिष्ट गणपति का नवार्ण मंत्र भी होता है। मंत्र महोदधि के अनुसार, इनका नवार्ण मंत्र होता है: “हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा”। ‘हस्ति पिशाचि लिखे’ के कारण इनको यह नाम दिया गया है और इस मंत्र का प्रभाव बहुत तीव्र होता है।
- विनियोग: ॐ अस्य श्रीउच्छिष्टगणेश-नवाण-मन्त्रस्य कङ्कोल ऋषिः, विराट् छन्दः, उच्छिष्टगणपतिर्देवता, मम अभीष्टसिद्धये जपे विनियोगः।
- ऋष्यादिन्यास:
- ॐ कङ्कोलर्षये नमः शिरसि:
- ॐ विराट् छन्दसे नमः मुखे:ॐ उच्छिष्टगणपतिदेवतायै नमः हृदि:
- ॐ विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे:
- करन्यास: ॐ हस्ति अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ पिशाचि तर्जनीभ्यां नमः। ॐ लिखे मध्यमाभ्यां नमः। ॐ स्वाहा अनामिकाभ्यां नमः। ॐ हस्ति पिशाचि लिखे कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
- हृदयादि षडङ्गन्यास: ॐ हस्ति हृदयाय नमः। ॐ पिशाचि शिरसे स्वाहा। ॐ लिखे शिखायै वषट्। ॐ स्वाहा कवचाय हुम्। ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा नेत्रत्रयाय वौषट्। ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा अस्त्राय फट्।
जिनको न्यास करना नहीं आता है, गुरु सिखा नहीं पा रहे हैं या गुरु पास में उपलब्ध नहीं हैं, वह सीधे अपने सर्वांगो में गणपति की भावना करते हुए भी मंत्र जप कर सकते हैं।
- ध्यान: चतुर्भुजं रक्ततनुं त्रिनेत्रं पाशांकुशौ मोदकपात्रदन्तौ। करैर्दधानं सरसीरुहस्थमुच्छिष्ट गणपतिं भजेत्।।
इस प्रकार ध्यान करके इनका मन से आप जप कर सकते हैं। इसके बाद इनका यंत्र बनाया जाता है, जिसकी पूजा की जाती है, जो कि गुरु विस्तार से बताता है। पर गुरु नहीं है तो आप इनकी मूर्ति या चित्र स्थापित करके सीधे पूजा करते हुए भी साधना कर सकते हैं, किंतु गुरु की अनुमति जरूरी है और उनका सुरक्षा कवच भी जरूरी है।
मंत्र प्रयोग और विधान
इस मंत्र के प्रयोग हम आपको बताते हैं। पूजा पद्धति तो गुरु ही समझा पाएंगे, पूजा पद्धति यहां बताने से आपके समझ में नहीं आएगी और बिना गुरु के आप कर भी नहीं सकते। हम बस मंत्र का प्रयोग बता रहे हैं।
- राज्य प्राप्ति: अपने स्वयं के अंगूठे के आकार जितनी गणेश की प्रतिमा की रम्य कल्पना करते हुए लाल चंदन या श्वेतार्क (सफेद मदार) से मूर्ति निर्मित करें। फिर विधिवत् प्राण-प्रतिष्ठा करके मधु से स्नान कराएं। चतुर्दशी से शुक्ल चतुर्दशी तक प्रत्येक दिन गुड़ युक्त खीर का नैवेद्य तैयार करें और एकांत स्थान में बैठकर उच्छिष्ट मुख (बिना कुल्ला किए), वस्त्रहीन होते हुए “मैं स्वयं गणेश हूँ” की भावना से घी व तिल की 1000 आहुति दें। इस विधि का प्रभाव ऐसा है कि साधक राजकुल में उत्पन्न होता है अथवा 15 दिन में ही राजा जैसा सुख प्राप्त करता है, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है।
- अन्य प्रयोग:
- कुम्हार की मिट्टी से प्रतिमा का निर्माण करके गणेश पूजन करने से राज्य की उपलब्धि होती है।
- वाल्मीक की बांबी (जो चींटियां मिट्टी को अपने बिल से बाहर निकालती हैं) की मिट्टी से निर्मित प्रतिमा के पूजन से इच्छित मनोकामना सिद्ध होती है।
- गोमय (गाय के गोबर) की प्रतिमा का पूजन सौभाग्यवर्धक है।
- लावण (नमक) की प्रतिमा के पूजन से शत्रु रोगभीत होते हैं।
- नील की प्रतिमा के पूजन से शत्रु नष्ट होते हैं।
हम आपको बताना चाहेंगे कि उच्छिष्ट गणपति की प्रतिमा सफेद मदार की जड़ से (यानी कि श्वेतार्क की जड़ से), नीम की जड़ से, मधुमक्खी के छत्ते के मोम से, मिट्टी की बांबी (यानी कि चींटी द्वारा निकाली हुई मिट्टी से) बनाई हुई मूर्ति से इनकी पूजा की जाती है और यह सब बहुत अधिक प्रभावी और तीव्र परिणाम देने वाले होते हैं।
विभिन्न तांत्रिक प्रयोग
- वशीकरण: घृत (घी) और तिल का मिश्रण करके होम किया जाए तो अखिल जगत वश में होता है। उच्छिष्ट मुख से तैयार पान पर फूंक कर जप किया जाए तो शत्रुओं को वश में किया जा सकता है।
- शत्रु भेद: सरसों के तेल व राजिक (राई) पुष्पों को मिश्रित करके होम किया जाए तो शत्रुओं में विभेद होता है।
- विजय प्राप्ति: द्यूत (जुआ), विवाद, वादियोंग (बहस) में इस मंत्र के जप से विजयश्री प्राप्त होती है। इसी मंत्र के जप से कुबेर अक्षक्रीड़ा के स्वामी बने और सुग्रीव-विभीषण को सहजता से राज्य प्राप्ति हुई।
- अन्य विधान: रुद्रयामल के अनुसार, माघ कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी से शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तक प्रतिदिन नियमपूर्वक 1000 जप करें। मूलतः यहां पर श्वेतार्क की प्रतिमा का ही प्रयोग होता है। नैवेद्य के रूप में खीर, फल आदि दें। भोजनोपरांत उच्छिष्ट मुख से जप करना गणेश को सहज प्रिय है।
- मंत्र सिद्धि: अंगूठे के आकार की गणेश की प्रतिमा श्वेतार्क अथवा लाल चंदन से बनाएं और उसे अग्नि और गुरु के सम्मुख स्थापित करें, फिर 16 हजार जप करें। यह एक मत है। दूसरा मत है कि बुद्धिमान यक्षराज कुबेर ने भी उच्छिष्ट मुख से गणेश का जप करने का समर्थन किया है। उपहारों से युक्त और उच्छिष्टमुख से आराधित गणेश सभी फलदायक हैं। इस विधान से जप करने से जपकर्ता वाञ्छित धनैश्वर्य को उपलब्ध करता है, यह सत्य है।
अत्यंत तीव्र प्रयोग
चेतावनी: ये प्रयोग अत्यंत तीव्र हैं और केवल गुरु के मार्गदर्शन में ही किए जाने चाहिए। इनका दुरुपयोग साधक के लिए हानिकारक हो सकता है।
- उच्चाटन: 108 बार अभिमंत्रित अपामार्ग की समिधाओं से होम किया जाए तो सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस मंत्र से अभिमंत्रित बन्दर व घोड़े की हड्डी की कील जिस किसी के घर में गाड़ दी जाए, उसका परम उच्चाटन होता है। मनुष्य की हड्डी की कील मंत्र से अभिमंत्रित कर जिस किसी के घर में गाड़ दी जाए, उसका मरण निश्चित है। यदि अस्थि की कील निकाल दी जाए तो प्रभावित व्यक्ति स्वास्थ्य लाभ कर सकता है, इसमें संदेह नहीं।
- वशीकरण: साधक जिसका नाम लेकर जप करता है, वह वशीभूत होता है। यदि साधक पाँच हजार मरुपुष्पों का होम करे तो वह उत्तम स्त्री का वरण करता है। दस हजार मंत्र से होम किया जाए तो राजा तत्काल वशीभूत होता है।
- सिद्धि प्राप्ति: एक लाख मंत्र जपने से राजा तथा दो लाख मंत्र जपने से अनगिनत राजा वशीभूत होते हैं। दस लाख मंत्र जपने से साधक इष्ट को सर्वथा वश में करता है। एक करोड़ मंत्र जपने से अणिमा, पूर्ण शक्ति और सर्वज्ञता आदि महासिद्धियां प्राप्त होती हैं।
इस मंत्र को लिखकर शीश अथवा कंठ में धारण किया जाए तो सौभाग्य व रक्षा मिलना सुनिश्चित है। यह मंत्र अजितेन्द्रिय को हानि करता है। समस्त पापों में गोपनीय माने गए इस मंत्र को अजितेन्द्रिय के लिए प्रकाशित नहीं किया गया है। इसमें तिथि, उपवास अथवा नक्षत्र आदि का विधान नहीं है। मंत्र का यथेष्ट चिंतन ही सर्व कामनाओं को प्रदान करता है, सर्व फल प्रदान करता है।
अन्य उच्छिष्ट गणपति मंत्र
ऐसे ही गणेश के अन्य मंत्र भी हैं, जिनके विनियोग, ऋष्यादिन्यास, करन्यास, हृदयादिन्यास आदि अलग हो जाते हैं।
- द्वादशाक्षर मंत्र: ॐ ह्रीं गं हस्तिपिशाचि लिखे स्वाहा।
- ऊनविंशत्यक्षर मंत्र: ॐ नमो उच्छिष्ट गणेशाय हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा।
- चतुस्त्रिंशदक्षर मंत्र (चौंतीस अक्षर): ॐ नमो भगवते एकदंष्ट्राय हस्तिमुखाय लम्बोदराय उच्छिष्टमहात्मने आं क्रों ह्रीं गं घे घे स्वाहा।
इस तरह से अनेक मंत्र भी मिलते हैं उच्छिष्ट गणपति के। इन मंत्रों से अभीष्ट की सिद्धि हेतु जैसा कि पीठ बनाया जाता है, जैसी की पूजा की जाती है, यंत्र आदि की और कुछ भेदों से पूजन करने से, एक लाख जप करके घी की आहुतियां देने से, या कृष्णाष्टमी से चतुर्दशी तक प्रत्येक दिन पाँच हजार जप करें, तदनंतर इसके दशांश का क्रमशः होम और तर्पण करें, इससे मंत्र सिद्धि को प्राप्त होता है और धन-धान्य, पुत्र-परिवार, सौभाग्य, अतुल यश मिलता है।