ज्ञानगंज से ही संबंधित एक अन्य महापुरुष हैं, जिन्हें महर्षि महातपा के नाम से जाना जाता है। महर्षि महातपा भी अनेक शताब्दियों से क्रियायोग संबंधी अनेक प्रक्रियाओं के प्रचार-प्रसार में जुटे हुये हैं । महर्षि महातपा द्वारा भी समय-समय पर अलग-अलग साधकों को क्रियायोग की दीक्षा प्रदान करने के उल्लेख मिलते रहे हैं । कहा जाता है कि गुरु गोरखनाथ को उनकी तिब्बत यात्रा के दौरान इन्हीं द्वारा क्रियायोग अथवा उस जैसी ही किसी अन्य तंत्र Tantra संबंधी पद्धति की दीक्षा प्रदान की गई थी । गोरखनाथ प्रारम्भ में शाक्त उपासकों के सिद्धों के वर्ग से संबंधित रहे थे और तांत्रिकों की पंचमकार क्रियाओं काजन्मों तक करना पड़ता है । यही कारण है कि बहुत दुर्लभ महापुरुष ही यहां तक, इस सिद्धावस्था तक पहुंचने में सफल हो पाते हैं। वशिष्ठ, विश्वामित्र, कणाद, अगस्त जैसे आद्य ऋषि, गोरखनाथ, आदिशंकराचार्य, मृत्युंजय बाबा, स्वामी महातपा, स्वामी सर्वानन्द, स्वामी रामकृष्ण परमहंस जैसे कुछ साधक ही यहां तक पहुंचने में सफल हो पाये हैं। इस तंत्र Tantra साधना का एक रूप ‘अघोर पद्धति’ पर आधारित रहा है ।

सम्पूर्ण तंत्र साधना ज्ञान रहस्य Sampuran Tantra Rahasya PH. 85280 57364    सम्पूर्ण तंत्र साधना ज्ञान रहस्य Sampuran Tantra Rahasya PH. 85280 57364

तांत्रिकों का औघड़ सम्प्रदाय इसी तंत्र Tantra मार्ग का अनुसरण करता आ रहा है । भूतभावन भगवान भोले शंकर स्वयं इसी मत के साधक रहे हैं । औघड़ों की यह पद्धति अब भी निरन्तर जारी है। इस अघोर पद्धति पर अपनी किसी दूसरी पुस्तक में विस्तारपूर्वक लिखूंगा । तंत्र Tantra साधना का दूसरा रूप ‘हठ योग’ की पद्धति पर आधारित रहा है । इसमें तंत्र Tantra साधक हठयोग की पद्धति का अनुसरण करते हुये आत्मरूपान्तरण की प्रक्रिया से गुजरते हुये अन्ततः परमात्मा का दिव्य साक्षात्कार प्राप्त कर लेता है । हठयोग तंत्र Tantra, तंत्र Tantra साधना से ही संबंधित आत्मरूपान्तरण की एक विशिष्ट और वैज्ञानिक प्रक्रिया रही है, जिसे तंत्र Tantra साधकों में ‘क्रियायोग’ की पद्धति के नाम से जाना जाता है । इस क्रियायोग के थोड़े से अभ्यास से ही साधकों को अनेक प्रकार के दिव्य अनुभव होने लग जाते हैं। वास्तव में हठयोग पद्धति पर आधारित ‘क्रियायोग’ अपनी अन्तः अतिचेतना में गहराई तक प्रवेश की एक अद्भुत प्रक्रिया है।

 

यह आत्मसाक्षात्कार और समाधि जैसी सिद्धावस्था तक पहुंचने की सबसे सरल, सहज, वैज्ञानिक और अद्भुत प्रक्रिया है । इसके गहन अभ्यास से कुछ दिनों के भीतर ही साधकों को अनेक प्रकार की दिव्य अनुभूतियां प्राप्त होने लग जाती हैं । इसके नियमित अभ्यास से शीघ्र ही साधकों की चेतना स्थूल शरीर से लेकर सूक्ष्म जगत में परिभ्रमण करने लग जाती है। क्रियायोग तंत्र Tantra आधारित एक ऐसी विशिष्ट प्रक्रिया है, जिसका सर्वप्रथम प्रकटीकरण भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में गीता ज्ञान देते हुये अर्जुन के सामने किया था। यद्यपि बाद में आत्मसाक्षात्कार की इस जटिल प्रक्रिया को पतंजलि ने और अधिक परिष्कृत करके सरल रूप प्रदान किया । क्रियायोग संबंधी इस पद्धति पर हिमालय में तिब्बत की सीमा में स्थित ज्ञानगंज जैसे सिद्धक्षेत्र में भी निरन्तर गहन स्वाध्याय के कार्य होते रहे हैं।

इस ज्ञानगंज का संबंध आदिशंकराचार्य, गोरखनाथ, ईसा और महर्षि पुलत्स्य एवं कणाद जैसे ऋषियों से लेकर आचार्य द्रोण, माँ कृपाल भैरवी, किंकट स्वामी, स्वामी विशुद्धानन्द, योगी चैतन्यप्रज्ञं, अक्षरानन्द स्वामी, महातांत्रिक मणिसंभव आदि अनेक सिद्ध साधकों के साथ रहा है। ज्ञानगंज नामक इस स्थान को बहुत से लोग सिद्धाश्रम या सिद्ध साधकों की स्थली आदि नामों से भी जानते हैं । यह उच्च साधना का एक ऐसा स्थल है, जहां साधना के विभिन्न रूपों पर निरन्तर अध्ययन, मनन, स्वाध्याय आदि का कार्य चलता रहता है । यह प्रकार की प्रक्रियायें तंत्र Tantra की विविध रूपों से संबंधित रही है। तंत्र Tantra साधना का वैदिक पद्धति पर आधारित जो रूप रहा है, उसमें अभीष्ट इष्ट से सम्बन्धित मंत्रजाप, उनके स्तोत्र, रक्षा कवच, रहस्य पाठ का अभ्यास करना, विशिष्ट प्रकार की सामग्रियों से यज्ञ, हवन करके अपने इष्ट को प्रसन्न करना मुख्य कर्म रहा है । साधना की इस प्रक्रिया में तंत्र Tantra साधक पूर्णतः समर्पित भाव से अपने इष्ट को समर्पित हो जाता है और उसके ध्यान, विभिन्न तरह के न्यास (ऋष्यादि न्यास, करन्यास, हृदयान्यास आदि) कर्मों का अभ्यास करते हुये उसे स्वयं में स्थापित कर लेता है ।

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मैं रुद्र नाथ हूँ — एक साधक, एक नाथ योगी। मैंने अपने जीवन को तंत्र साधना और योग को समर्पित किया है। मेरा ज्ञान न तो किताबी है, न ही केवल शाब्दिक यह वह ज्ञान है जिसे मैंने संतों, तांत्रिकों और अनुभवी साधकों के सान्निध्य में रहकर स्वयं सीखा है और अनुभव किया है।मैंने तंत्र विद्या पर गहन शोध किया है, पर यह शोध किसी पुस्तकालय में बैठकर नहीं, बल्कि साधना की अग्नि में तपकर, जीवन के प्रत्येक क्षण में उसे जीकर प्राप्त किया है। जो भी सीखा, वह आत्मा की गहराइयों में उतरकर, आंतरिक अनुभूतियों से प्राप्त किया।मेरा उद्देश्य केवल आत्मकल्याण नहीं, अपितु उस दिव्य ज्ञान को जन-जन तक पहुँचाना है, जिससे मनुष्य अपने जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझ सके और आत्मशक्ति को जागृत कर सके।यह मंच उसी यात्रा का एक पड़ाव है — जहाँ आप और हम साथ चलें, अनुभव करें, और उस अनंत चेतना से जुड़ें, जो हमारे भीतर है ।Rodhar nathhttps://gurumantrasadhna.com/rudra-nath/