तंत्र Tantra साधना का वास्तविक और श्रेष्ठ रूप यही है । तंत्र Tantra साधना के इस मार्ग पर जब कोई तांत्रिक अग्रसर होता है तो उसकी भौतिक इच्छाएं तो अवश्य लोप होती चली जाती हैं, पर उसे अनंत, असीम क्षमताओं से युक्त अलौकिक शक्तियां स्वतः ही प्राप्त होने लगती हैं, जिनके माध्यम से वह प्रकृति के स्वाभाविक कार्यों में हस्तक्षेप करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है । यद्यपि ऐसे तंत्र Tantra साधक धीरे-धीरे इसनश्वर जगत के लिये विरक्त होने लगते हैं । उसकी समस्त भौतिक इच्छाएं, आकांक्षाएं, मान-सम्मान की भूख, सब धीरे-धीरे क्षीण और समाप्त होती चली जाती हैं । वह संसार के लिये एक अनुपयोगी प्राणी बनकर रह जाता है । इसलिये ऐसे सिद्ध तांत्रिक सांसारिक लोगों से दूर चले जाते हैं और घने जंगलों, पहाड़ों की गुप्त गुफाओं, शमशान आदि में रहने लगते हैं ।
तंत्र Tantra साधना की इस उच्च अवस्था में वह सदैव समाधि की गहनावस्था और शाश्वत दिव्य आनन्द में डूबे रहना चाहते हैं । वह नश्वर जगत के वास्तविक सत्य को जान चुके होते हैं। यद्यपि वह अभौतिक जगत के साथ पूर्ण रूप से तारतम्य स्थापित कर चुके होते हैं, इसलिये उनकी इच्छाएं परमात्मा की इच्छाएं बन जाती हैं, इसलिये प्रकृति तत्क्षण उनकी इच्छामात्र से सृष्टि के किसी भी पदार्थ, किसी भी वस्तु को उत्पन्न कर देने के लिये तत्पर रहती है। वह इच्छामात्र से शून्य से किसी भी पदार्थ का निर्माण करने में सक्षम हो जाते हैं । उनके लिये फिर समय की धारा कोई अवरोध खड़ा नहीं कर पाती । वह अतीत अथवा भविष्य में समान रूप से परिभ्रमण कर सकने की क्षमता प्राप्त कर लेते हैं ।
उनके सामने किसी भी प्राणी का अतीत, वर्तमान अथवा भविष्य काल से संबंधित कोई भी घटना अदृश्य नहीं रह पाती। वह जीवन की समस्त घटनाओं को पकड़ सकने की सामर्थ्य प्राप्त कर लेते हैं। उनके सामने फिर पूर्वजन्मों अथवा भविष्य में होने वाले जन्मों से संबंधित घटनाएं भी किसी चलचित्र की तरह साक्षात होने लग जाती हैं। साधना की इस श्रेष्ठ अवस्था में उनकी क्षमताएं असीम रूप धारण कर लेती हैं । वह दूसरे के मन में उठने वाले विचारों को पढ़ने, पकड़ने में भी सक्षम हो जाते हैं। मनुष्यों की बात तो अलग, वह पशु-पक्षियों के साथ बात करने की सामर्थ्य भी प्राप्त कर लेते हैं। उनके लिये अन्य ग्रहों का अवलोकन करना, अन्तरिक्षीय प्राणियों के साथ संबंध स्थापित करना और उनसे उपयोगी कार्यों में मदद लेना भी संभव हो जाता है । इस सिद्धावस्था में पहुंचते ही साधकों की इन्द्रियां विराट का अंग बनती चली जाती हैं ।
वह परमात्मा की लीलाओं का अंग बनने लगती हैं। ऐसे साधकों के लिये इच्छामात्र से ही किसी भी प्राणी के भाग्य में बदलाव कर देना, किसी को भी अभयदान दे देना, किसी भी प्राणी को राजा से रंक अथवा रंक से राजा बना देना, केवल इच्छामात्र का खेल बन जाता है । यद्यपि नश्वर संसार की वास्तविकता से गुजर चुके ऐसे संत अनावश्यक रूप में प्रकृति या परमात्मा के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करते और प्रकृति के कार्यों, प्राणियों के जीवन को उनके सहज रूप में आगे बढ़ने देते हैं । तंत्र Tantra का यह श्रेष्ठ मार्ग है । इस सिद्धावस्था तक पहुंच पाना हर किसी के लिये सहज रूप में संभव नहीं हो पाता । यहां तक पहुंचने के लिये तंत्र Tantra के मार्ग का अनुसरण जन्मों-एक ऐसा सिद्ध स्थल है, जिसकी खोज अनेक पश्चिमी साधकों ने भी की है और उनमें से बहुत से लोग यहां तक पहुंचने में भी सफल रहे हैं । फ्रांस की एक लेखिका, जो बाद में लामा बन गयी थी, एक तिब्बतीय तंत्र Tantra साधक की मदद से सिद्धाश्रम में प्रवेश पाने में सफल रही थी ।
इसी प्रकार थियोसोफिकल सोसाइटी की संस्थापिका और ‘सेवन रेज’ एवं ‘सीक्रेट डॉक्ट्राइन’ जैसी प्रसिद्ध कृतियों की लेखिका मेडम ब्लावट्स्वी भी एक तिब्बतीय लामा की मदद से ज्ञानगंज तक पहुंचने में सफल रही थी । तिब्बतीय लामा की यह एक अशरीरी आत्मा है, जो अनेक शताब्दियों से लोगों की मार्गदर्शक बनी हुई है। आधुनिक समय में क्रियायोग नामक इस पद्धति का सर्वप्रथम प्रकटीकरण काशी के महान सिद्धयोगी श्यामाचरण लाहड़ी महाशय के द्वारा किया गया था । बाद में उन्हीं की परम्परा को उनके शिष्यों ने आगे बढ़ाया। यद्यपि समय के साथ-साथ और जिज्ञासु साधकों के अभाव में सिद्ध साधकों की संख्या निरन्तर घटती चली गयी ।
असली क्रियावान योगी गुप्त स्थानों पर चले गये और उनकी जगह पर प्रचार-प्रसार के भूखे योगी रह गये । स्वयं लाहड़ी महाशय जी को इस क्रियायोग पद्धति की दीक्षा उनके पूर्वजन्मों के गुरु महावतार बाबा के द्वारा रानीखेत स्थित पाण्डुखोली नामक एक प्राचीन गुफा में प्रदान की थी । महावतार बाबा का संबंध भी पिछली अनेक शताब्दियों से हिमालय स्थित ज्ञानगंज आश्रम के साथ रहा है | ज्ञानगंज में महावतार बाबा को मृत्युञ्जय स्वामी की उपाधि प्रदान की गयी है, क्योंकि उन्होंने पिछली बीस-बाईस शताब्दियों से निरन्तर ज्ञानगंज और समाज के मध्य नारद की भांति संबंध स्थापित किया हुआ है। महावतार बाबा अपने कुछ सिद्ध साधकों के साथ ज्ञानगंज और हिमालय स्थित अनेक गुप्त स्थानों एवं तिब्बतीय लामाओं के गुप्त मठों में निरन्तर परिभ्रमण करते रहते हैं । बाबा जब भी किसी इच्छुक जिज्ञासु को क्रियायोग जैसी किसी पद्धति के लिये अत्यधिक लालायित अवस्था में पाते हैं, तुरन्त वायुमार्ग से उसके पास पहुंच जाते हैं और उसे क्रियायोग की दीक्षा प्रदान करते हैं । यद्यपि क्रियायोग की दीक्षा प्रदान करने का उत्तरदायित्व उन्होंने अपने सांसारिक एवं विरक्त सिद्ध साधकों को सौंप रखा है। महावतार बाबा का प्रत्यक्ष दर्शन लाभ लेने वाले अनेक साधक अब भी साधना में रत हैं ।