तंत्र Tantraशास्त्र एकमात्र ऐसा परम विज्ञान है जिसके पास सृष्टि के सभी मूल प्रश्नों का उत्तर उपलब्ध है, क्योंकि तंत्र Tantra व्याख्या और विश्लेषण की जगह अनुभूति एवं साक्षात्कार पर विश्लेषण की जगह अनुभूति और साक्षात्कार पर विशेष जोर देता है। तंत्र Tantra अस्तित्व की अनुभूति पर जोर देता है । उसके लिये व्याख्यायें व्यर्थ हैं। इसलिये तंत्र Tantra की सीमाएं विराट हैं । तंत्र Tantra के लिये अस्तित्व की सीमाएं भी असीम तक विस्तीर्ण हैं। इसलिये तंत्र Tantra केवल बौद्धिक स्तर की बात नहीं करता अपितु तंत्र Tantra सदैव उस स्तर की बात करता है, जो अभौतिक जगत के साथ संबंध रखता है । यही प्रमुख कारण है कि तांत्रिक साधनाओं का बोध तो साधारण शरीर के तल पर ही संभव होने लगता है, परन्तु उसे पूर्ण रूप से आत्मसात करना साधारण शरीर से कतई संभव नहीं हो पाता। तंत्र Tantra शक्ति को स्वयं में पूर्णता के साथ आत्मसात करने के लिये आत्म रूपान्तरण की प्रक्रिया से गुजर कर आत्मिक स्तर, अपनी सूक्ष्म चेतना के स्तर तक पहुंचना आवश्यक होता है।
सूक्ष्म जगत के स्तर पर पहुंच कर ही तंत्र Tantra और तांत्रिक शक्तियों को ठीक से समझ पाना संभव हो पाता है। यथार्थ में समस्त तंत्र Tantra साधनाओं और तांत्रिक शक्तियों का संबंध उन अभौतिक जगत की शक्तियों के साथ रहता है, जिनका विस्तार सूक्ष्म से विराट तक फैला रहता है, परन्तु उन शक्तियों का अवतरण स्थूल चेतना से परे साधक के आत्मिक चेतना के स्तर, उसकेसूक्ष्म जगत पर होता है । इन तांत्रिक शक्तियों की अनुभूति तब तक नहीं मिल पाती, जब तक कि साधना की तपस से साधक का रूपान्तरण नहीं हो जाता और उसकी अतिचेतना के सुषुप्त केन्द्र जाग्रत नहीं हो जाते । जब तक साधना माध्यम से साधक का आत्म रूपान्तरण नहीं होता, तब तक वह छोटी-मोटी अनुभूतियां तो प्राप्त कर पाता है, लेकिन दिव्य अनुभूतियों के अनुभवों से सदैव वंचित रहता है।