devi baglamukhi ki kahani बगलामुखी माता की कहानी – उत्पत्ति, महत्व और पौराणिक कथा

बगलामुखी माता की कहानी – उत्पत्ति, महत्व और पौराणिक कथा devi baglamukhi ki kahani दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या माँ बगलामुखी को स्तंभन की देवी कहा जाता है। वे अपने भक्तों के शत्रुओं, बुरी शक्तियों और संकटों को स्तब्ध (पंगु) कर देती हैं। उनका वर्ण स्वर्ण के समान पीला है, वे पीले वस्त्र धारण करती हैं और उन्हें पीली वस्तुएं अत्यंत प्रिय हैं, इसीलिए उन्हें ‘पीताम्बरा’ भी कहा जाता है। उनकी पूजा मुख्य रूप से शत्रुओं पर विजय, मुकदमों में सफलता और सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा के लिए की जाती है।
माँ बगलामुखी की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक कथा अत्यंत रोचक है, जो उनके प्रकट होने के उद्देश्य को स्पष्ट करती है।
1 बगलामुखी माता की कहानी – devi baglamukhi ki kahani पौराणिक उत्पत्ति कथा
यह कथा सत्ययुग काल की है। एक समय ब्रह्मांड में एक विनाशकारी तूफान उठा। यह तूफान इतना शक्तिशाली था कि ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो यह संपूर्ण सृष्टि को निगल जाएगा। इस विनाशकारी दृश्य को देखकर सभी देवता चिंतित हो गए और सृष्टि के रक्षक भगवान विष्णु के पास सहायता के लिए पहुँचे।
भगवान विष्णु ने देवताओं को आश्वासन दिया और इस संकट का समाधान खोजने के लिए सौराष्ट्र प्रदेश (वर्तमान गुजरात) के हरिद्रा सरोवर के किनारे पहुँचे। वहाँ उन्होंने सृष्टि के कल्याण के लिए कठोर तपस्या आरंभ की। वे माँ भगवती त्रिपुरसुंदरी को प्रसन्न करने के लिए तप कर रहे थे।
भगवान विष्णु की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर, उस हरिद्रा सरोवर से एक दिव्य तेजपुंज प्रकट हुआ। उस तेजपुंज में से मंगलवार के दिन, चतुर्दशी तिथि को, अर्द्धरात्रि के समय एक देवी का प्राकट्य हुआ। वे देवी स्वर्ण के समान कांति वाली थीं, पीले वस्त्रों से सुशोभित थीं और उनका स्वरूप अत्यंत दिव्य था। प्रकट होते ही उस देवी ने अपनी स्तंभन शक्ति से उस महाविनाशकारी तूफान को तुरंत शांत कर दिया।
सृष्टि को संकट से उबारने वाली यही देवी माँ बगलामुखी कहलाईं। ‘बगला’ शब्द संस्कृत के ‘वल्गा’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ है ‘लगाम’। ‘मुखी’ का अर्थ है ‘मुख वाली’। इस प्रकार, बगलामुखी का अर्थ है ‘वह देवी जिनके मुख में किसी भी गति को नियंत्रित करने या रोकने की शक्ति है’। उन्होंने अपनी शक्ति से तूफान की गति पर लगाम लगा दी थी। भगवान विष्णु और समस्त देवताओं ने उनकी स्तुति की और तभी से वे सृष्टि में ‘बगलामुखी’ के नाम से पूजी जाने लगीं।
2 बगलामुखी माता की कहानी | Devi baglamukhi ki kahani | एक अन्य कथा: मदन नामक असुर का वध
एक और प्रचलित कथा के अनुसार, सतयुग में मदन नामक एक शक्तिशाली असुर था। उसे वाक्-सिद्धि का वरदान प्राप्त था, अर्थात वह जो कुछ भी कह देता था, वह सत्य हो जाता था। अपनी इस शक्ति का दुरुपयोग कर वह निर्दोष प्राणियों और देवताओं को कष्ट पहुँचाने लगा। वह अपनी वाणी से ही लोगों का संहार कर देता था।
उसके अत्याचारों से त्रस्त होकर सभी देवता माँ भगवती की शरण में गए। देवताओं की प्रार्थना सुनकर माँ बगलामुखी प्रकट हुईं। उन्होंने उस असुर मदन को युद्ध के लिए ललकारा। जब असुर ने देवी को नष्ट करने के लिए अपनी वाक्-सिद्धि का प्रयोग करना चाहा, तो माँ बगलामुखी ने तुरंत उसकी जीभ पकड़कर खींच ली, जिससे उसकी बोलने की शक्ति स्तब्ध हो गई।
वाणी की शक्ति के बिना वह पंगु हो गया और देवी ने उसका वध कर दिया। यही कारण है कि माँ बगलामुखी की कई मूर्तियों और चित्रों में उन्हें असुर की जीभ खींचते हुए दर्शाया जाता है, जो वाणी को स्तंभित करने की उनकी शक्ति का प्रतीक है।
पूजा का महत्व
माँ बगलामुखी की उपासना करने वाले साधक को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:
- शत्रु नाश: माँ अपने भक्त के शत्रुओं की बुद्धि, गति और वाणी को स्तंभित कर देती हैं, जिससे वे कोई हानि नहीं पहुँचा पाते।
- मुकदमों में विजय: अदालती मामलों और कानूनी विवादों में विजय के लिए उनकी पूजा अचूक मानी जाती है।
- वाक्-सिद्धि: माँ की कृपा से साधक को वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है, जिससे उसकी बातें प्रभावशाली और सत्य साबित होती हैं।
- नकारात्मक शक्तियों से रक्षा: तंत्र-मंत्र, बुरी नजर और अन्य सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जाओं से माँ अपने भक्त की रक्षा करती हैं।
माँ बगलामुखी की पूजा में पीले रंग का विशेष महत्व है। भक्त पीले वस्त्र पहनकर, पीले आसन पर बैठकर, हल्दी की माला से उनके मंत्रों का जाप करते हैं और उन्हें पीली वस्तुएं जैसे पीले फूल, चने की दाल का प्रसाद और पीली मिठाई अर्पित करते हैं।
संक्षेप में, माँ बगलामुखी भक्तों को अभय प्रदान करने वाली और दुष्टों का दमन करने वाली एक अत्यंत शक्तिशाली देवी हैं। वे आज भी अपने भक्तों की हर संकट से रक्षा करती हैं।
जय माँ बगलामुखी!