bhagwati tripur sundari sadhana ka rahasya भगवती त्रिपुरा सुंदरी साधना रहस्य ph.8528057364

भगवती त्रिपुरा सुंदरी की कृपा कैसे प्राप्त करें?
bhagwati tripur sundari sadhana ka rahasya भगवती त्रिपुरा सुंदरी साधना रहस्य ph.8528057364 राजराजेश्वरी षोडशी इनकी कृपा कैसे प्राप्त करेंगे ? क्या वह कर्म हो सकते हैं, वह क्या क्रिया हो सकती है जिससे इनका जो महाफल है वह अति शीघ्र प्राप्त हो जाए ? यही प्रश्न भगवान परशुराम ने श्री दत्तात्रेय से पूछा था त्रिपुरा रहस्य के अंतिम भाग में, अर्थात इसके जो माहात्म्य खंड है उसके अंतिम भाग में और आज यह लेख इसी बारे में है। वह क्या कर्म होना चाहिए, वह क्या क्रियाएं होनी चाहिए जिससे कि हमें धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन सभी की प्राप्ति हो, सौभाग्य हमारा चमक उठे ?
त्रिपुरा सुंदरी – त्रिपुरा रहस्य: एक सुलभ मार्ग
अक्सर ऐसा देखा जाता है कि जो महाविद्या होती हैं, उनकी जो विधि होती है, उनका जो विधान होता है, बहुत ही क्लिष्ट सा होता है, बहुत ही गूढ़ भी होता है और सरल भी नहीं होता है। अक्सर आपको कई जानकार व्यक्ति, पंडित, योगी, तांत्रिक मिल जाएंगे जो महाविद्याओं के बारे में कहते हैं कि बिना गुरु की कृपा के इसको हमें स्वयं से नहीं करना चाहिए।
परंतु जब हम त्रिपुरा रहस्य को पढ़ते हैं और इसमें जिस प्रकार का संवाद आता है, उसमें जो विधि विधान बताए हैं, वह ऐसे हैं कि वह आप स्वयं घर बैठे बहुत ही सुलभ रूप से कर सकते हैं। इसी बारे में आज के इस लेख में चर्चा है। तो बिना किसी विलंब के इस लेख को आप साझा अभी से ही कर लीजिए, हमें फॉलो करना न भूलें।
और इसमें मैं आपको केवल भगवती त्रिपुरा सुंदरी के बारे में नहीं बताऊंगा परंतु मैं आपको यह भी बताऊंगा कि वह जो पांच देवता होते हैं उनकी भी कृपा किस प्रकार से प्राप्त की जाए, वह विधान भी इसी ग्रंथ में लिखा हुआ है। तो आइए अब बिना किसी विलंब के चर्चा को आरंभ करते हैं।
त्रिपुरा सुंदरी – पंच देवों को प्रसन्न करने की विधि
भगवान परशुराम ने जो श्री दत्तात्रेय से प्रश्न किया था कि किस प्रकार सामान्य जन को भी भगवती की कृपा, इनका महाफल अति शीघ्र प्राप्त हो, कृपया करके वैसा कोई विधान बताइए। तब श्री दत्तात्रेय कहते हैं, ध्यान सुन।
और फिर वह कहते हैं कि जिस प्रकार यहां पर आप भी ध्यान से सुनिए क्योंकि यहां पर हम आरंभ कर रहे हैं पंच देवों के साथ।
त्रिपुरा सुंदरी- पंचदेव कौन से होते हैं?
गणपति, शिव, सूर्य, विष्णु और शक्ति। इनकी भी कृपा हमें किस प्रकार से प्राप्त हो?
तो श्री दत्तात्रेय कहते हैं कि महादेव को जिस प्रकार अभिषेक देकर के उनकी कृपा प्राप्त हो सकती है, अभिषेक करके उनका। अब इसमें भी बहुत सारी बातें आ जाती हैं कि जल से अभिषेक का लाभ कुछ और होता है, दूध से अलग होता है, शहद से अलग होता है, वह अलग बात है। परंतु अभिषेक, नित्य अभिषेक आप करिए और फल देखिए।
फिर गणपति को यहां पर दत्तात्रेय कहते हैं कि गणपति को मोदक देने से ही वह जिस प्रकार से प्रसन्न हो जाते हैं। सूर्य देवता को केवल प्रणाम करने से ही वे जिस प्रकार से प्रसन्न हो जाते हैं। अब बात यहां पर आती है भगवान विष्णु की, क्योंकि भगवान विष्णु के बारे में कहा जाता है कि इन्हें प्रसन्न करना बहुत मुश्किल है और बात भी सही है।
अब जब आप सुनेंगे तब आपको समझ में आएगा कि ये मुश्किल भी है तो क्यों है। भगवान विष्णु को यदि हमें प्रसन्न करना है तब आप इनकी नित्य अलंकारों से इनकी सज्जा करिए अर्थात इनको सजाइए। अलंकार अर्थात ऑर्नामेंटेशन, इनको आप सजाइए।
इसलिए आपने देखा होगा कि वह तिरुपति जी का मंदिर हो या फिर इस्कॉन का मंदिर हो या फिर बांके बिहारी लाल का मंदिर हो, इनकी जब भी नित्य पूजा होती है इनको सजाया जाता है। सजाना इनको बहुत प्रिय है।
अब यह सरल भी है परंतु प्रतिदिन सजाने का अपना एक क्रम होता है, सजाने में आपका मन लगना चाहिए, अलग-अलग चीजें आती हैं, मुकुट आता है, वस्त्र आते हैं, बहुत सारी चीजें आती हैं। परंतु ये बाकी सभी विधान के मुकाबले यह सरल ही है। तो ये हो गए हमारे चार देवता।
त्रिपुरा सुंदरी – भगवती की नित्य पूजन का सरल विधान
अब बात आती है देवी की, शक्ति की, भगवती त्रिपुरा सुंदरी की। तो यहां पर किस चीज की पूजा करनी है, क्या पूजना है, वह मैं आपको थोड़े समय बाद बताऊंगा। परंतु पहले हम बात करेंगे कि क्या-क्या करना है, कब-कब करना है, कैसे करना है। बहुत ही सरल है ये। यहां पर श्री दत्तात्रेय कहते हैं, देखिए बात यहां पर बहुत सरल सी है।
हम इस वेबसाइट पर भी बहुत सारे रहस्यों को हम उजागर करते हैं, तत्वों की बात करते हैं, परंतु यह सब ज्ञान जो है, यह बिना भक्ति के विकार है। यह मैं नहीं कह रहा हूं, सभी संत, ज्ञानवान पुरुष कहते हैं।
इसी ग्रंथ में श्री दत्तात्रेय ने भी यह बात कही है कि ज्ञान जो है वह बिना भक्ति के किसी काम का नहीं है और जो भक्ति है वह माहात्म्य को समझने से आती है, पढ़ने से आती है, महिमा को जानने से आती है। इसी कारण माहात्म्य खंड त्रिपुरा सुंदरी का, त्रिपुरा रहस्य का पहले आता है।
त्रिपुरा सुंदरी – पूजन का समय और सामग्री
यहां पर श्री दत्तात्रेय कहते हैं कि पांच बेला में, बेला अर्थात शुभ मुहूर्त, बहुत सारे शुभ मुहूर्त आते हैं दिन में, उनमें से किसी भी पांच बेला में अर्थात जैसे अभिजीत मुहूर्त आता है, गोधूली बेला आती इत्यादि, तो किसी भी पांच बेला में आप इनकी पूजन करें।
नहीं हो सकता है तो किसी भी चार समय आप इनकी पूजन कर लीजिए। अच्छा, चार समय नहीं हो सकता है, दो संध्याओं में आप कर लीजिए।
दो संध्या नहीं हो सकता है, तीन काल आप इनकी पूजन कर लीजिए अर्थात प्रातः काल, दोपहर, संध्याकाल इत्यादि। ये जो तीन काल हैं, इसमें आप इनकी पूजन कर लीजिए।
यह भी नहीं हो पाता है तो आप जो समय होता है अर्थात जैसे उष, इसी ग्रंथ में आता है उष। उष का अर्थ हो गया जो सुबह से पहले का जो समय होता है, ब्रह्म मुहूर्त जिसे हम कहते हैं।
तब, प्रातः काल, मध्याह्न अर्थात दोपहर को, प्रदोष काल या फिर अर्ध रात्रि को ही किसी भी, या तो आप इन पांचों समय ही कर लीजिए फिर किसी भी एक समय में इनको पूजन कर लीजिए।
और किस चीज से करना है? गंध, पुष्प, जल, अक्षत, फल। इनमें से किसी से भी नहीं कर सकते हैं तो इनमें से किसी एक भी वस्तु से आप इनका पूजन करिए। यानी कितना सरल कर दिया है।
किसी भी एक समय, किसी भी एक वस्तु से, वह जल हो, पुष्प हो, गंध हो, गंध अर्थात धूप, केवल एक धूप। किसी भी एक समय यदि हो सके तो अर्ध रात्रि को दीपक आप जला लीजिए। अर्ध रात्रि को। यह तो नित्य पूजन हो गया अर्थात प्रतिदिन इसे करें। अब प्रतिदिन यह करना कोई मुश्किल बात नहीं है, हम कर सकते हैं।
त्रिपुरा सुंदरी – विशेष पर्वों पर पूजन
उसके बाद कब करें ? किसी भी शुभ पर्व पर या फिर शुक्रवार से, यह भी दिया हुआ है इसी में, शुक्रवार से या किसी भी शुभ पर्व पर। अच्छा, यदि कोई महापर्व है, कोई विशेष मुहूर्त आ जाता है, दिवाली इत्यादि आ जाता है, तब पांच समय आप इनकी पूजन कर लीजिए विधिवत।
अब यह तो हम कर ही सकते हैं वर्ष में एक या दो बार तो। अच्छा, उसके बाद में यदि हो सके तो वाहन में, मैं जिस चीज के बारे में अभी बताने वाला हूं, उसको आप नगर का, नगर की आप परिक्रमा करवा दीजिए। नगर की नहीं हो सकता है तो घर की परिक्रमा करवा दीजिए, जहां रहते हैं उसके आसपास की परिक्रमा करवा दीजिए।
त्रिपुरा सुंदरी – श्री यंत्र: पूजा का केंद्र
अब देखिए कि कहां हम बात करते हैं महाविद्याओं की जिसमें बहुत सारे विधि विधान आते हैं, मंत्र, तंत्र इत्यादि बहुत सारी बातें आ जाती हैं, क्लिष्ट हो जाता है।
और यहां पर त्रिपुरा रहस्य, जो भगवान परशुराम ने प्राप्त करा, जिसका रहस्य श्री दत्तात्रेय से, जिस ग्रंथ में बहुत सी गूढ़ बातें हैं, जिसके बारे में मैंने पिछले लेख में भी बताया था, बाकी भी जो लेख हैं उनमें बताया गया था कि इसी में सभी वेदों का सार है।
सभी आगम शास्त्रों का सार है, ज्ञान खंड आता है, जो बातें विज्ञान भैरव में हैं वह भी इसमें ही हैं, जो गीता में है, जो योग वशिष्ठ में है, वह सभी इसमें है और इसी में श्री दत्तात्रेय कितनी सरल रूप से बता रहे हैं भगवती त्रिपुरा सुंदरी का विधान।
अब यहां पर आता है कि किस चीज का पूजन करना है, अंततः यह तो पता ही होना चाहिए। तो यहां पर यह कहते हैं कि श्री चक्र राज का अर्थात श्री यंत्र का। अब श्रीयंत्र भी हमें बहुत ही सुलभ रूप से प्राप्त हो सकता है। या तो आप उसका जो ३डी वाला जो होता है, बड़ा सा आप वो ले लीजिए, वो नहीं आप अफोर्ड कर सकते हैं।
अभी तो तांबे पर ही आपको बहुत ही कम दाम में आपको कितने सारे वेबसाइट्स वहां पर से आपको प्राप्त हो सकता है। कुछ नहीं कर सकते हैं तो कागज पर आप उसे बना सकते हैं, परंतु उसकी एक विधि है जो मैं इसी वेबसाइट पर, इसी लेख श्रृंखला में जो हमारी त्रिपुरा की श्रृंखला चल रही है, उसी में मैं आपको बताने भी वाला हूं कि श्री यंत्र, श्री चक्र को बनाएं कैसे।
त्रिपुरा सुंदरी- अतिरिक्त उपाय और मंत्र जाप
फिर यहां पर यह कहते हैं कि उसी में, उसी श्री चक्र में सभी दिक्पालों का, सभी देवताओं का आप आवाहन करिए, इष्टदेव का आवाहन करिए, उसी में इसे देखिए और उसी से आपको महाफल प्राप्त हो जाएगा। महाफल, वह भी अति शीघ्र।
इतना सरल यह पूरा विधि विधान है, या फिर मैं यूं कहूं कि विधि विधान है ही नहीं। केवल एक धूप जलाना है, एक समय इनकी पूजन करनी है, आपको शुक्रवार से आप आरंभ कर सकते हैं या फिर किसी भी शुभ मुहूर्त पर आप इसका आरंभ कर सकते हैं।
फिर यह भी बोला है कि यदि हो सके तो आप इसी को ही आप जल देकर के इसका भी अभिषेक कर सकते हैं, इसी चक्र के सामने रुद्राभिषेक भी कर सकते हैं। साथ ही साथ यदि हो सके तो सहस्त्रनाम का पाठ कर सकते हैं और सहस्त्रनाम का भी पाठ नहीं हो सके तो श्री सूक्त का पाठ कर सकते हैं।
यदि वह भी नहीं हो पा रहा है तो ह्रीं का आप जाप कर सकते हैं। ह्रीं का एक बहुत अद्भुत सी बात यह है कि त्रिपुरा रहस्य का आरंभ होता है ॐ नमः से और अंत होता है त्रिपुर ह्रीं ॐ से। आरंभ होता है, ह्रीं पर समाप्त होता है। इसी में संपूर्ण ब्रह्मांड है, यही मैक्सिमा मिनिमम है।
त्रिपुरा सुंदरी – निष्कर्ष
तो अब बिना किसी विलंब के आप त्रिपुरा सुंदरी भगवती राजराजेश्वरी माता षोडशी की कृपा प्राप्त करने में जुट जाइए। बहुत ही सरल विधि है और यदि आपको यह जानकारी, यह सारी बातें सुंदर लगी हों तो कृपया करके इस लेख को साझा अवश्य करिएगा, कमेंट में हमें बताइएगा कि आपको कैसा लगा और कमेंट सेक्शन में जो पहला कमेंट पिंड है वहां से पेटीएम, जीपे इत्यादि के माध्यम से जितना अधिक हो सके आप हमें श्री सहयोग भी प्रदान करें। इसके साथ मैं आपसे जाने की अनुमति लेता हूं। धन्यवाद।