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स्वाधिष्ठान चक्र सम्पूर्ण जानकारी – Swadhisthana Chakra Complete information

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स्वाधिष्ठान चक्र  सम्पूर्ण जानकारी – Swadhisthana Chakra Complete information
स्वाधिष्ठान चक्र सम्पूर्ण जानकारी - Swadhisthana Chakra Completeinformation

स्वाधिष्ठान चक्र सम्पूर्ण जानकारी – Swadhisthana Chakra Completeinformation

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स्वाधिष्ठान चक्र सम्पूर्ण जानकारी – Swadhisthana Chakra Completeinformation

स्वाधिष्ठान चक्र सम्पूर्ण जानकारी – Swadhisthana Chakra Complete information स्वाधिष्ठान चक्र कुण्डलिनी की रहस्यमयी और विलक्षण यात्रा का दूसरा पड़ाव, मानव शरीर में स्थित दूसरा प्रमुख चक्र स्वाधिष्ठान है। जननेन्द्रिय के ऊपर तथा नाभि के नीचे ‘पेडू’ में यह चक्र अवस्थित है। यह पुरुषों के वीर्य व स्त्रियों में रज का स्थान कहा जाता है। पंच महाभूतों में यह ‘जल’ तत्त्व का प्रतिनिधित्व करता है। अर्थात् जल गति लं भ Alle यं म नीचे स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व का यह मुख्य स्थान है। जल तत्त्व का प्रतिनिधि होने के कारण इसका प्रधान ज्ञान या गुण ‘रस’ है (जो जल तत्त्व की तन्मात्रा है)। इसलिए इसकी ज्ञानेन्द्रिय रसना/जिह्वा और कर्मेंद्रिय लिंग व योनि (जननांग) हैं।

  • स्वाधिष्ठान चक्रजागरण
  • स्वाधिष्ठान चक्र के लिए रत्न
  • स्वाधिष्ठान चक्रके कार्य
  • स्वाधिष्ठान चक्रकी बीमारी
  • स्वाधिष्ठान चक्र कैसे जागृत करें

इसका रूप चन्द्राकार है। जो सफेद रंग का है। इसके यन्त्र का रूप अर्धचन्द्र युक्त वृत्ताकार है जो श्वेत है। रक्ताभ हिंगुल वर्ण (सिंदूरी रंग) से प्रकाशित छः पंखुड़ियों या दलों से यह युक्त है। इन दलों के अक्षर बं, भं, मं, यं, रं और लं हैं। यही इसकी कमल दल ध्वनि है। इस चक्र की बीज ध्वनि वं है। क्योंकि वं इसका तत्त्व बीज है। इस चक्र का बीज वाहन मकर है, जो इसके तत्त्व बीज की गति को दर्शाता है, यानि मगरमच्छ द्वारा लगाई जाने वाली डुबकी की भांति नीचे की ओर। इसका बीज वर्ण स्वर्णिम श्वेत है जल के समान प्रांजल। भुवः’ लोक इस चक्र का लोक कहा गया है। पूर्ण शरीर में फैलकर गति करने वाले व्यान वायु का यह मुख्य स्थान है। इस चक्र के अधिपति देवता विष्णु हैं जो अपनी चतुर्भुज ‘राकिनी’ के साथ हैं। इससे चक्र की शक्ति का ‘राकिनी’ होना भी सिद्ध होता है। स्वाधिष्ठान चक्र पर ध्यान लगाते समय प्रयुक्त की जाने वाली कर मुद्रा में अंगूठे व अनामिका के सिरों को परस्पर दबाया जाता है।

जिस प्रकार चैतन्यता का प्रभाव मूलाधार चक्र के ध्यान से उत्पन्न होता है उसी प्रकार ध्यान द्वारा स्वाधिष्ठान चक्र का अतिक्रमण कर लेने से प्रसन्नता से चैतन्यता ओत-प्रोत हो जाती है। साधक में प्रफुल्लता आती है। जल तत्त्व का प्रतिनिधि होने से कल्पनाशीलता इस चक्र का प्रधान भौतिक प्रभाव है। इस चक्र के बिगड़ने से ‘जलोदर’ आदि रोग सम्भावित होते हैं। वैसे प्रायः इस चक्र से प्रभावित व्यक्ति घुटनों में सिर देकर आठ से दस घंटे रात्रि में सोता है। माना जाता है कि 8 से 14 वर्ष तक की आयु में मनुष्य स्वाधिष्ठान चक्र के विशेष प्रभाव में रहता है। 

उद्विग्नता, उलझन, कल्पना की उड़ान तथा कुटुम्बियों व मित्रों से बनाए जाने वाले भौतिक सम्बन्ध इसी चक्र के प्रभाव से होते हैं। इच्छाओं व कल्पनाओं के साथ बाह्य व आन्तरिक जगत से तालमेल बिठाने के प्रयास में मानव के व्यक्तित्त्व का विकास होता है, जो इसी चक्र के प्रभाव क्षेत्र में आता है। इस चक्र की साधना बल, सामर्थ्य, विवेक, धैर्य तथा दृढ़ता व विश्वास को बढ़ाने वाली कही गई है। इसके तत्त्व बीज ‘वं’ की शुद्धतापूर्वक उच्चारित की गई आवृत्ति मानव शरीर के निम्न भागों के अवरोध हटाकर वहां शक्ति को प्रवाहित करती है।

कल्पना शक्ति को साधकर कला आदि में उसका बेहतर उपयोग किया जा सकता है। यह एक महत्त्वपूर्ण चक्र है। जैसा कि नाम से भी स्पष्ट है-‘स्व’ का अधिष्ठान करने वाला यानि-स्वाधिष्ठान। प्रजनन, कल्पना, मनोरंजन, प्रसन्नता, डाह, ईर्ष्या, दया शून्यता, द्वेष, उद्विग्नता, बेचैनी आदि गुणावगुण इसी चक्र से प्रभावित होते हैं। जल तत्त्व व चन्द्र से सम्बन्धित होने के कारण, भावुकता, चंचलता आदि मन के विशिष्ट गुण इसी चक्र के प्रभाव में आते हैं। 

इस चक्र के तत्त्व बीज की गति को दर्शाने के लिए वाहन रूप में मकर का प्रयोग भी उचित व तर्कपूर्ण है। मकर को डुबकी मार कर नीचे जाने के 31स्वभाव से न केवल बीजगति का संकेत मिलता है अपितु मकर की चालाकी (शिकार के समय), उसका तैरना (मनोरंजन) उसकी प्रबल काम शक्ति (प्रजनन सामर्थ्य तथा मन का वेग) और उसकी व्यावहारिकता जो जल और थल दोनों में रहने से सिद्ध होती है।

मगरमच्छ के आंसू बहाना’ मुहावरा ही मकर की चालाकी तथा व्यावहारिकता के गुण को सिद्ध करता है। जबकि मूलाधार का बीज वाहन हाथी (ऐरावत, जिसकी 7 सूडें कही गई हैं) न केवल बीज गति से निर्बाध सामने की ओर जाने को सूचित करता है बल्कि बल, बुद्धि, चैतन्यता, भोजन, सुरक्षा, अपने में ही मस्त रहना, इच्छा

तथा इच्छाओं में मन के भटकाव का भी द्योतक है। महत्त्वाकांक्षाओं को भी प्रकट करता है। अंकुश द्वारा हाथी को वश में करने के समान इच्छाओं के बलवान हाथी को बुद्धि के अंकुश द्वारा वश में करने की प्रेरणा देते गणेश अपने अंकुश सहित मूलाधार के अधिकारी व निवासी देवता बताए ही गए हैं। 

यद्यपि मकर व हाथी के स्वभाव व विशेषताओं की चर्चा यहां पर आवश्यक नहीं थी, तो भी पाठकों को चाहिए कि स्वबुद्धि के प्रयोग से सामने आने वाले तथ्यों को तोलते भी रहें, ताकि विषय पर उनकी मन से आस्था बने और विश्वास उत्पन्न हो सके। इसके अतिरिक्त विषय की महत्ता व गूढ़ता के रहस्य समझे जा सकें।

 अतः पूर्ण व विस्तृत चर्चा के लिए स्थान न होते हुए भी, कहीं-कहीं जहां अत्यंत आवश्यकता महसूस कर रहा हूं, अथवा जिस मुद्दे पर की गई चर्चा विषय को सुगम्य बनाने में सहायक हो सकती है, वहां-वहां विषय प्रवाह में हल्का-सा अवरोध दोष उत्पन्न होने के बावजूद ऐसा तुलनात्मक विवरण यथा सामर्थ्य इसी उद्देश्य से दे रहा हूं, कि पाठक सुनें और गुनें। स्वयं भी अपनी तुला पर तोलें। 32 कुण्डलिनी शक्ति कैसे जागृत करें

विशेष जानकारी

स्वाधिष्ठान चक्र Swadhisthana Chakra  के लिए रत्न – स्वाधिष्ठान चक्र को सिद्ध करने के लिए  या  बेलेन्स रखने के लिए   किसी भी रत्न  की जरूरत नहीं है !

स्वाधिष्ठान चक्र  Swadhisthana Chakra को कैसे ठीक करें–   इस चक्र के अभ्यास करने से इसे  ठीक कर सकते है ! ध्यान भी इस का अच्छा माध्यम हो सकता है

स्वाधिष्ठान चक्र Swadhisthana Chakra  की बीमारी –  इस चक्र के ब्लॉक होने से या इस चक्र  का संतुलन बिगड़ने से आप को मानसिक बीमारयां जायदा लगती है

स्वाधिष्ठान चक्र  Swadhisthana Chakra  जागरण – यह  चक्र को जागृत करने के लिए कठिन अभ्यास की जरूरत होती है !

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