Nav Durga Sadhna नवदुर्गा साधना का रहस्य नवरात्रि

स्पैशल 

 

Nav Durga Sadhna नवदुर्गा साधना का रहस्य नवरात्रि स्पैशल  नवदुर्गाओं के सम्बन्ध में ऋषि मार्कण्डेय प्रदत्त भगवती पुराण अर्थात् दुर्गा सप्तशती में स्पष्ट उल्लेख करते हुये लिखा है- प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी । तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥ पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनाति च । सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ॥ नवमं सिद्धिरात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिताः । ‘ऽक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणेन महात्मना ॥

चन्द्रघण्टा देवी का उपासना मंत्र:- चन्द्रघण्टा देवी का उपासना मंत्र इस प्रकार है:- पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता । प्रसादं तनुते मह्नं चन्द्रघण्टेति विश्रुता ॥

चतुर्थ रात्रि पूजा : माँ भगवती के चतुर्थ स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है । अपनी मंद, हल्की मुस्कान द्वारा अखण्ड ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा नाम दिया गया है । जब सृष्टि अस्तित्व में नहीं आयी थी, सर्वत्र घोर अन्धकार व्याप्त था, तब इन्हीं देवी ने हर्षित हास्ययुक्त खेल ही खेल में इस ब्रह्माण्ड की रचना की थी ।

अतः यही सृष्टि का आदि स्वरूप आद्यशक्ति है। भगवद् पुराण में माँ का निवास सूर्यमण्डल के अन्दर बताया गया है। इसलिये ये अत्यन्त, दिव्य तेज युक्त हैं । इनका तेज दसों दिशाओं में व्याप्त रहता है। माँ कूष्माण्डा का स्वरूप अष्टभुजा युक्त माना गया है । इनके आठों हाथों में क्रमशः धनुष बाण, कमण्डल, कमल, अमृत कलश, गदा और चक्र एवं जप माला सुशोभित रहती है। माँ का वाहन सिंह है ।

माँ का यह स्वरूप विद्या, बुद्धि, विवेक, त्याग, वैराग्य के साथ-साथ अजेयता का प्रतीक है । इसलिये जो साधक माँ की शरण में आकर उनकी कृपा दृष्टि प्राप्ति कर लेता है, उसके शारीरिक, मानसिक और भौतिक, सभी दुःखों का अन्त हो जाता है। साधक को रोग-शोक से छुटकारा मिलता है तथा उसके आरोग्य एवं यश में निरन्तर वृद्धि होती चली जाती है। । तांत्रिकों की दूसरी विद्या में कूष्माण्डा नामक इस आदिशक्ति का निवास अनाहत चक्र में माना गया है। अनाहत चक्र की स्थिति छाती के मध्य हृदय स्थल पर मानी गयी है। ।

अतः अनाहत चक्र की जाग्रति से ही साधक स्थूल शरीर की चेतना का परित्याग करके आत्मिक शरीर के स्तर में प्रविष्ट होता है । यह एक तरह से साधक का आध्यात्मिक धरातल पर पुनर्जन्म होता है। माँ कूष्माण्डा का उपासना मंत्र:- माँ कूष्माण्डा का उपासना मंत्र इस प्रकार है:- सुरासम्पूर्ण कलशं : रुधिराप्लुतमेव च । दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥

पंचम रात्रि पूजा : नवरात्रियों में पांचवीं रात्रि को भगवती के पांचवें स्वरूप स्कन्दमाता की पूजा- अर्चना करने का विधान है। माँ शैलपुत्री का विवाह शिवजी के साथ हो जाने के पश्चात् स्कन्द कुमार (इन्हें कार्तिकेय भी कहा जाता है) का जन्म हुआ । प्रसिद्ध देवासुर संग्राम के समय यही स्कन्द देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्तिधर कहकर इनकी बड़ी महिमा कही गयी है । इनका वाहन मयूर कहा जाता है ।

इन्हीं स्कन्द अर्थात् आसुरी शक्तियों का नाश करने हेतु एवं अपने साधकों का कल्याण करने व धर्म की पुनर्स्थापना के लिये भगवती दुर्गा अपनी अनन्त, आलौकिक शक्तियों के साथ समय-समय पर विभिन्न स्वरूपों में अवतरित होती हैं। माँ के उपरोक्त नौ स्वरूप भी उनमें से ही हैं। माँ के इन स्वरूपों की साधना-उपासना करके माँ का आशीर्वाद सहज ही प्राप्त किया जा सकता है। जीवन में विशेष रूप से माँ की आराधना अगर नवरात्रों में की जाये तो वांछित फल प्राप्त होने के साथ-साथ मनोकामनायें भी पूर्ण होती हैं ।

समस्याओं से सहज ही छुटकारा पाते हुये सभी सुखों का आनन्द लिया जा सकता है। 70 नवरात्रि के अवसर पर इन्हीं नौ स्वरूपों की साधना का विधान रहा है । इनकी साधना की दो परम्पराएं रही हैं। साधना का एक स्वरूप तंत्र साधकों के निमित्त है, जबकि दूसरा स्वरूप आम साधकों के लिये है ।

यहां नवदुर्गाओं के इसी सहज साधना के रूप पर प्रकाश डाला जा रहा है। आम साधकों के लिये तो नवरात्रि के अवसर पर प्रत्येक रात्रि क्रमशः एक – एक स्वरूप की आराधना का विधान है । माँ की यह आराधना प्रत्येक दिन व्रत रख कर अथवा शुद्ध- सात्विक भावना बनाये रखकर एवं कंजक पूजन साथ सम्पन्न होती है । के नवरात्रियों में नवदुर्गा के नौ रूपों की उपासाना का विधान अग्रांकित क्रम से रहता है-


 1. प्रथम रात्रि पूजा प्रथम रात्रि को भगवती दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की आराधना की जाती है। पर्वत राज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा है। इन्हीं का एक अन्य नाम सती भी है। यह वृष पर सवार रहती हैं । इनके दायें हाथ में त्रिशूल तथा बायें हाथ में कमल पुष्प सुशोभित रहता है ।

माँ का यह स्वरूप अनंत शक्तियों का प्रतीक है । तंत्र की एक अन्य पद्धति में इन्हें ही कुण्डलिनी शक्ति का स्वरूप माना गया है, जो जन्म- जन्मान्तर से व्यक्ति के मूलाधार चक्र पर सुषुप्तावस्था में निष्क्रिय रहती है, लेकिन जाग्रत होने पर उसे असीम क्षमताओं से सम्पन्न कर देती है ।

प्रथम नवरात्रि को माँ के इस स्वरूप की पूजा दुःख, दरिद्रता से मुक्ति पाने एवं विवाह आदि की बाधाओं को दूर करने के लिये की जाती है ।

 Nav Durga Sadhna नवदुर्गा साधना का रहस्य नवरात्रि स्पैशल

शैलपुत्री की उपासना का मंत्र – शैलपुत्री की उपासना का मंत्र इस प्रकार है- वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रधकृतशेखराम्। वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम् ॥


2. द्वितीय रात्रि पूजा : दूसरी नवरात्रि को भगवती दुर्गा द्वितीय स्वरूप के रूप में ब्रह्मचारिणी की आराधना की जाती है। ब्रह्मचारिणी शब्द का अर्थ है पूर्णत्व के साथ सद् आचरण करने वाली। यह सदैव तपस्या में लीन रहती हैं । इसलिये इनकी शरण में जाने व इनकी आराधना करने से साधक में तप, त्याग, वैराग्य के साथ-साथ संयम व सदाचरण का भाव बढ़ता है तथा साधक मुक्ति की अवस्था का लाभ प्राप्त करता है ।

 Nav Durga Sadhna नवदुर्गा साधना का रहस्य नवरात्रि स्पैशल
Nav Durga Sadhna नवदुर्गा साधना का रहस्य नवरात्रि स्पैशल

तंत्र साधना की हठयोग परम्परा से ब्रह्मचारिणी का स्थान स्वाधिष्ठान चक्र पर माना गया है । इसलिये इस चक्र के जागरण से साधक में विद्या, बुद्धि व ज्ञान की वृद्धि होती है। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप अत्यन्त तेजमय है । इनके दायें हाथ में जप की माला तथा बायें हाथ में कमण्डल है ।

इस स्वरूप का भी यही भाव है कि माँ ज्ञान के सर्वोच्च शिखर को प्राप्त कर चुकी है । भगवद् पुराण में आया है कि माँ ने नारद `के परामर्श से भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिये घोर तपस्या की थी । इसी से देवताओं को राक्षसों के अत्याचार एवं संताप से मुक्ति प्राप्त हो पायी थी ।

माँ के इस स्वरूप की जो साधक विधिवत पूजा-अर्चना करता है, निश्चित ही माँ उसकी समस्त बाधाएं दूर कर देती हैं । उस साधक को फिर सर्वत्र विजय प्राप्त होती है ।

 

ब्रह्मचारिणी देवी का उपासना मंत्र :- ब्रह्मचारिणी देवी का उपासना मंत्र इस प्रकार है :- दधाना करपद्माभ्यामक्ष माला कमंडलू | देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तम ॥


3.तृतीय रात्रि पूजा : माँ भगवती की तीसरी शक्ति का नाम चन्द्रघण्टा है । इनके मस्तिष्क में घण्टे की आकार की अर्द्धचन्द्राकृति झलकती रहती है, इसलिये इन्हें चन्द्रघण्टा कहा जाता है। नवरात्रि उपासना में तीसरी रात्रि चन्द्रघण्टा की रहती है । अतः तृतीय नवरात्रि को इन्हीं के विग्रह की पूजा-अर्चना की जाती है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण की भांति कांतिमय है । इनके तीन नेत्र व दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में क्रमश: खड्ग, शस्त्र, बाण आदि अनेक शस्त्र सुशोभित रहते हैं। माँ चन्द्रघण्टा सिंह पर सवारी करती हैं। माँ का यह स्वरूप परम् शांतिदायक और कल्याणप्रद तो है ही, इनके वीर भाव को भी प्रकट करता है ।

 Nav Durga Sadhna नवदुर्गा साधना का रहस्य नवरात्रि स्पैशल
Nav Durga Sadhna नवदुर्गा साधना का रहस्य नवरात्रि स्पैशल

इसलिये इनके सामने से सभी राक्षस भाग खड़े होते हैं। इसी तरह जो साधक माँ का कृपापात्र बन जाता है, उसके जीवन में फिर किसी तरह का अभाव नहीं रहता । वह समस्त सुखों को सहज ही प्राप्त कर लेता है । तांत्रिकों की एक अन्य परम्परा में माँ चन्द्रघण्टा का स्थान मणिपुर चक्र पर माना गया है। अतः जब तंत्र के अभ्यास से व्यक्ति की शक्ति मणिपुर चक्र पर आकर उसे जाग्रत करने लगती है, तो सहज ही उस साधक को अनेक अलौकिक शक्तियां प्राप्ति होने लगती हैं ।चन्द्रघण्टा देवी का उपासना मंत्र:- चन्द्रघण्टा देवी का उपासना मंत्र इस प्रकार है:- पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता । प्रसादं तनुते मह्नं चन्द्रघण्टेति विश्रुता ॥


4. चतुर्थ रात्रि पूजा : माँ भगवती के चतुर्थ स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है । अपनी मंद, हल्की मुस्कान द्वारा अखण्ड ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा नाम दिया गया है । जब सृष्टि अस्तित्व में नहीं आयी थी, सर्वत्र घोर अन्धकार व्याप्त था, तब इन्हीं देवी ने हर्षित हास्ययुक्त खेल ही खेल में इस ब्रह्माण्ड की रचना की थी ।

 Nav Durga Sadhna नवदुर्गा साधना का रहस्य नवरात्रि स्पैशल
Nav Durga Sadhna नवदुर्गा साधना का रहस्य नवरात्रि स्पैशल

अतः यही सृष्टि का आदि स्वरूप आद्यशक्ति है। भगवद् पुराण में माँ का निवास सूर्यमण्डल के अन्दर बताया गया है। इसलिये ये अत्यन्त, दिव्य तेज युक्त हैं । इनका तेज दसों दिशाओं में व्याप्त रहता है। माँ कूष्माण्डा का स्वरूप अष्टभुजा युक्त माना गया है । इनके आठों हाथों में क्रमशः धनुष बाण, कमण्डल, कमल, अमृत कलश, गदा और चक्र एवं जप माला सुशोभित रहती है। माँ का वाहन सिंह है

। माँ का यह स्वरूप विद्या, बुद्धि, विवेक, त्याग, वैराग्य के साथ-साथ अजेयता का प्रतीक है । इसलिये जो साधक माँ की शरण में आकर उनकी कृपा दृष्टि प्राप्ति कर लेता है, उसके शारीरिक, मानसिक और भौतिक, सभी दुःखों का अन्त हो जाता है।

 

साधक को रोग-शोक से छुटकारा मिलता है तथा उसके आरोग्य एवं यश में निरन्तर वृद्धि होती चली जाती है। । तांत्रिकों की दूसरी विद्या में कूष्माण्डा नामक इस आदिशक्ति का निवास अनाहत चक्र में माना गया है। अनाहत चक्र की स्थिति छाती के मध्य हृदय स्थल पर मानी गयी है। ।

अतः अनाहत चक्र की जाग्रति से ही साधक स्थूल शरीर की चेतना का परित्याग करके आत्मिक शरीर के स्तर में प्रविष्ट होता है । यह एक तरह से साधक का आध्यात्मिक धरातल पर पुनर्जन्म होता है। माँ कूष्माण्डा का उपासना मंत्र:- माँ

कूष्माण्डा का उपासना मंत्र इस प्रकार है:- सुरासम्पूर्ण कलशं : रुधिराप्लुतमेव च । दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥


5. पंचम रात्रि पूजा : नवरात्रियों में पांचवीं रात्रि को भगवती के पांचवें स्वरूप स्कन्दमाता की पूजा- अर्चना करने का विधान है। माँ शैलपुत्री का विवाह शिवजी के साथ हो जाने के पश्चात् स्कन्द कुमार (इन्हें कार्तिकेय भी कहा जाता है) का जन्म हुआ । प्रसिद्ध देवासुर संग्राम के समय यही स्कन्द देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्तिधर कहकर इनकी बड़ी महिमा कही गयी है ।

 Nav Durga Sadhna नवदुर्गा साधना का रहस्य नवरात्रि स्पैशल
Nav Durga Sadhna नवदुर्गा साधना का रहस्य नवरात्रि स्पैशल

इनका वाहन मयूर कहा जाता है । इन्हीं स्कन्द तंत्र के दिव्य प्रयोग की माता होने के कारण भगवती के इस पंचम स्वरूप को स्कन्दमाता कहा गया । स्कन्दमाता चार भुजाओं वाली हैं। इनके दायें हाथ में कमल पुष्प है । ऊपर वाले बायें हाथ में भी कमल पुष्प है । बायां एक हाथ वरमुद्रा में है ।

माँ की गोद में स्कन्द बैठे हैं। माँ के तीन नेत्र हैं तथा माँ कमलासान पर आसीन हैं। माँ का यह स्वरूप बहुत ही अनुपम है। यह चारों पुरुषार्थों को एक साथ प्रदान करने वाला है । इसलिये माँ के इस स्वरूप की आराधना से साधकों को समस्त सुख सहज ही प्राप्त हो जाते हैं, वह आध्यात्मिक मार्ग पर भी तेजी से अग्रसर होता है ।

माँ के तंत्र विधान से चारों पुरुषार्थों को प्राप्त किया जा सकता है। 73 तंत्र साधना की एक अन्य पद्धति में स्कन्दमाता के रूप में इस आदिशक्ति की उपस्थिति विशुद्ध चक्र में मानी गयी है । विशुद्ध चक्र का केन्द्र कण्ठ में है, जहां से शक्ति आज्ञाचक्र और सहस्त्रार चक्र की ओर उर्ध्वगमन करती है ।

स्कन्दमाता का उपासना मंत्र :- स्कन्दमाता का उपासना मंत्र इस प्रकार : है:- सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रित करद्वया । शभदास्तु सदां देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ॥


6. छठवीं रात्रि पूजा : नवरात्रियों में छठे दिन आदिशक्ति के छठे स्वरूप कात्यायनी की आराधना की जाती है। महर्षि कात्यायन की पुत्री रूप में जन्म लेने कारण माँ दुर्गा के इस स्वरूप का नाम कात्यायनी के रूप में विख्यात हुआ । ऐसी कथा है कि कत नामक एक महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुये ।

 Nav Durga Sadhna नवदुर्गा साधना का रहस्य नवरात्रि स्पैशल
Nav Durga Sadhna नवदुर्गा साधना का रहस्य नवरात्रि स्पैशल

इन्हीं कात्य के गोत्र में महर्षि कात्यायन का जन्म हुआ था। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुये बहुत वर्षों तक साधना की । इनकी इच्छा थी कि उनके घर स्वयं माँ भगवती पुत्री के रूप में जन्म लेकर उन्हें कृतार्थ करें । इसलिये जगत जननी को उनके घर कात्यायनी के रूप में अवतरित होना पड़ा ।

माँ कात्यायनी के स्वरूप की आभा स्वर्णमयी है । यह तीन नेत्रों और चार भुजाओं वाली हैं। इनका दायां हाथ वर देने की मुद्रा में है । बायें हाथों में तलवार व कमल पुष्प सुशोभित हैं। माँ सिंह पर सवारी करती है ।

अपने भक्तों की सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाली है। नवरात्रियों के छठवें दिन इनकी विशेष पूजा-अर्चना करने से साधक के समस्त दु:ख कष्ट दूर हो जाते हैं । ऐसा उल्लेख है कि द्वापर युग में ब्रज की गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति स्वरूप में प्राप्त करने के लिये माँ के इसी रूप की आराधना की थी ।

तंत्र साधना की हठयोग पद्धति में आद्यशक्ति के इस स्वरूप का निवास भृकुटी के मध्य आज्ञा चक्र पर माना गया है । इसलिये तंत्र साधना में इस स्थान की जाग्रति से साधक का रूपान्तर होने लगता है तथा उसकी चेतना पराभौतिक जगत में प्रविष्ट कर जाती है ।

माँ कात्यायनी का उपासना मंत्र :- माँ कात्यायनी का उपासना मंत्र इस प्रकार है:- चन्द्रहासौ ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दधादेवी दानव धातिनी ||


7. सप्तम रात्रि पूजा : आद्यशक्ति के सप्तम स्वरूप की आराधना सप्तम नवरात्रि को की जाती है । माँ का सप्तम स्वरूप कालरात्रि के नाम से जाना जाता है । माँ का यह अद्भुत स्वरूप है । इनका रंग श्याम है। बाल बिखरे हुये हैं । यह त्रिनेत्रधारी एवं चतुर्भुजी हैं। इनके ऊपर उठे हुये दायें हाथ में तलवार है व दूसरा हाथ वर देने की मुद्रा में उठा हुआ है। बायें ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा व नीचे वाले हाथ में कटार है ।

 Nav Durga Sadhna नवदुर्गा साधना का रहस्य नवरात्रि स्पैशल
Nav Durga Sadhna नवदुर्गा साधना का रहस्य नवरात्रि स्पैशल

माँ गदर्भ पर सवार रहती हैं । नासिका से ज्वाला निकलती रहती । गले में माला धारण किये रहती हैं। माँ सबको भयाक्रान्त रखने वाले काल को भी भय देने वाली है । इसलिये इन्हें कालरात्रि कहा जाता है 1 माँ का यह स्वरूप अत्यन्त विकराल है, पर वह अपने भक्तों के लिये बहुत सुकोमल स्वभाव रखती हैं ।

जो कोई भी व्यक्ति माँ की शरण में पहुंच जाता है, अपने उस भक्त को माँ हर संकट से उबारे रखती हैं। माँ की कृपा से साधक अपनी सभी आकांक्षाओं की पूर्ति कर लेता है ।

तंत्र साधना की एक अन्य पद्धति में माँ के इस स्वरूप का स्थान मस्तिष्क स्थित सहस्त्रार चक्र में माना गया है। जो तांत्रिक सहस्त्रार चक्र की जाग्रति कर लेता है, उसके सामने अनन्त संभावनाओं के द्वार खुलते चले जाते हैं । ऐसे साधक अष्ट सिद्धियां भी सहज से प्राप्त कर लेते हैं । माँ कालरात्रि की उपासना का मंत्र:- माँ कालरात्रि की उपासना का मंत्र इस प्रकार है :- चतुर्बाहु युक्तादेवी चन्द्रहासेन शोभिता । गदर्भे च समारूढ़ा कालरात्रि भयावहा ||


8 .अष्टम रात्रि पूजा : माँ भगवती की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है । यह गौर वर्णा हैं । माँ के इस गौरे रंग की उपमा शंख, चन्द्र और कुन्द के पुष्प से दी जाती है । माँ का रूप आठ वर्षीय कन्या जैसा है। इनके समस्त वस्त्र व आभूषण भी श्वेत रंगी हैं ।

 Nav Durga Sadhna नवदुर्गा साधना का रहस्य नवरात्रि स्पैशल
Nav Durga Sadhna नवदुर्गा साधना का रहस्य नवरात्रि स्पैशल

Image link 

त्रिनेत्री व चतुर्भुजी माँ की मुख मुद्रा शांत व सौम्य है, जिस पर बाल सुलभ मुस्कान झलकती रहती है । माँ का वाहन वृष है। इनका ऊपरी दायां हाथ वरमुद्रा में है । यह नीचे वाले हाथ में त्रिशूल धारण किये हुये हैं । इनके ऊपरी बायें हाथ में डमरू तथा नीचे वाले हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में हैं ।

शिव को प्राप्त करने के लिये दीर्घ अवधि तक की साधना की थी । इस साधना से उन्हें महागौरव की प्राप्ति हुई थी । महागौरी की साधना से साधक का यश और प्रताप निरन्तर बढ़ता जाता है। भगवान शिव की कृपा भी इन पर निरन्तर बनी रहती है । मृत्यु उपरान्त इन्हें शिव तत्त्व की प्राप्ति होती है ।

महागौरी का उपासना मंत्र :- महागौरी का उपासना मंत्र इस प्रकार है:- – – श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः । महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा ॥


 9 .नवम रात्रि पूजा : नवरात्रों की नवम रात्रि सिद्धिदात्री की रहती है । यह आद्यशक्ति माँ दुर्गा का नवम स्वरूप है। माँ सिद्धिदात्री अपने साधकों को समस्त रिद्धयां, सिद्धियां एवं लौकिक व परालौकिक सुखों को प्रदान करने वाली हैं। माँ के इस स्वरूप की साधना से अन्त में मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है ।

 Nav Durga Sadhna नवदुर्गा साधना का रहस्य नवरात्रि स्पैशल
Nav Durga Sadhna नवदुर्गा साधना का रहस्य नवरात्रि स्पैशल

Image link 

माँ सिद्धिदात्री का स्वरूप चतुर्भुजी है जिनके दाहिने नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख व ऊपरी हाथ में कमल पुष्प सुशोभित रहता है ।

माँ कमल पुष्प पर ही आसीन रहती हैं । माँ का यह स्वरूप समस्त लौकिक एवं परालौकिक सुखों को प्राप्ति कराने वाला है। तांत्रिकों की अन्य परम्परा में सिद्धिदात्री स्वरूप में माँ की साधना अष्टसिद्धियों अर्थात् अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व की प्राप्ति के उद्देश्य के लिये भी की जाती है।

माँ सिद्धिदात्री का उपासना मंत्र:- माँ सिद्धिदात्री का उपासना मंत्र इस प्रकार है:- सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैर सुरैरमरैरपि । सेव्यमाना सदां भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ॥


अतः निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि माँ भगवती के उपरोक्त नौ स्वरूपों की पूर्ण विधि-विधान से आराधना करने से सहज ही अपने समस्त कष्टों से छुटकारा पाया जा सकता है तथा अनेक प्रकार की मनोकामनाओं की प्राप्ति की जा सकती है। नवरात्रियों के दौरान इनकी विशेष पूजा-अर्चना का विधान प्राचीन समय से चला आ रहा है। भगवती दुर्गा और उनके नौ रूपों की वैदिक आराधना और तांत्रिक अनुष्ठान भी सर्वत्र प्रसिद्ध रहे हैं। ऋषि मार्कण्डेय द्वारा संकलित किया गया भगवती चरित्र (दुर्गा) सप्तशती) तो बहुत ही अद्भुत है। इसमें भगवती के स्वरूपों, चरित्रों के साथ-साथ अनेक गूढ़ रहस्यों को एक जगह समाहित किया गया है । इ

न रहस्यों के विषय में या तो स्वयं साधनारत होकर ही पूरी तरह से जाना जा सकता है या फिर गुरु कृपा से इनके रहस्य को समझना सम्भव है। साधारंण भक्तों के लिये तो यह तेरह अध्याय एवं 700 श्लोकों में संकलित किया गया एक काव्य भर ही है । यद्यपि प्राचीन समय से ही तंत्र साधना के विविध ग्रंथों में ऐसा भी उल्लेख किया जाता रहा है कि दुर्गा सप्तशती पाठ अथवा उसमें वर्णित किये देवी चरित्रों की विधिवत् साधना से भौतिक इच्छाओं के साथ परालौकिक अनुभवों को भी पाया जा सकता है । दुर्गा सप्तशती तंत्र साधना की कामधेनु है ।

चैत्र अमावस्या 2023 क्यों है इस बार खास?

माँ तारा कैंसर से मुक्ति साधना maa tara cancer mukti sadhna

कालाष्टमी क्या होती है?