Wednesday, August 6, 2025
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mahakal shatru nashak mantra महाकाल शत्रु नाशक मंत्र ph. 85280-57364

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mahakal shatru nashak mantra महाकाल शत्रु नाशक मंत्र इस साधना से आप शत्रु के नाश होगा और शत्रु पागल हो जाएगा ph.8528057364

महाकाल शत्रु नाशक मंत्र

ॐ काली कङ्काली महाकाली के पुत्र कङ्काल भैरव ! हुक्म है – हाजिर रहे, मेरा कहा तुरन्त करे। मेरा भेजा रक्षा करे। लान बाँघूँ बान चलते के-फिरते के औसान बाँघूँ। दश दिशा, दसों सूर नव-नाथ बहत्तर वीर बाँधू, पाँच हाथ की काया, कुबेर की माया बाँयूँ । फूल में भेजूँ — फूल में जाय । मेरे ‘अमुक’ शत्रु का कलेजा खाय। थर-थर काँपे, हल-हल हिले, गिर- गिर पड़े। मेरा भेजा सवा मास, सवा दिन, सवा पहर ‘अमुक’ को बावला न करे, तो माता काली की शय्या पर पग धरे । वाचा छोड़ कुवाचा करे, तो धोबी की नाँद, चमार के कुण्ड में पड़े, रुद्र की नेत्र की ज्वाला पड़े, पारबती के चीर पर चोट पड़े। दुहाई काली माई की। कामरू कामाक्षा की। गुरू गोरखनाथ की ।

गाय के गोबर का चौका ( लीपकर ) देकर दक्षिण की तरफ मुख करके बैठें। ‘कालरात्रि’ में यह साधना करना उत्तम है। पूजन में लाल कनेर का फूल, सिन्दूर, नींबू, लौंग और लड्डू आदि रखें। चार मुख का दिया, फूलों की माला भी रखें। १०८ बार मन्त्र का जप करें और इतनी ही बार चीनी और घी मिलाकर हवन करें।

हवन की समाप्ति पर यदि भैरव जी प्रकट हों, तो उन्हें फूलों की माला अर्पित करें, लड्डू का भोग दें और प्रणाम कर उनसे कार्य सिद्ध करने की प्रार्थना करें। १. मन्त्र सिद्ध हो जाने पर एक नींबू पर शत्रु का नाम सिन्दूर से लिखें। २१ बार मन्त्र का जप कर उस नींबू में २ सुइयाँ चुभो दें और एक मिट्टी की छोटी-सी हण्डी में उसे रखकर श्मशान में गाड़ दें।

जब तक यह गड़ा रहेगा, शत्रु को भयानक पीड़ा होगी। २. शत्रु के पहनने का कोई कपड़ा प्राप्त कर उस पर श्मशान के कोयले से शत्रु का चित्र बनायें। चित्र में प्राण-प्रतिष्ठा करें और शत्रु का नाम लिखें। फिर इस कपड़े पर उक्त मन्त्र का १०८ बार जप करें।

खैर या आक की लकड़ी जलाकर इस वस्त्र को आग में तपायें। कपड़ा जलने न पाये। शत्रु पागल हो जायेगा। अच्छा करने के लिए गधे के मूत्र से उस कपड़े को धोकर सुखा दें

Rodhar nath
Rodhar nathhttp://gurumantrasadhna.com
मैं रुद्र नाथ हूँ — एक साधक, एक नाथ योगी। मैंने अपने जीवन को तंत्र साधना और योग को समर्पित किया है। मेरा ज्ञान न तो किताबी है, न ही केवल शाब्दिक यह वह ज्ञान है जिसे मैंने संतों, तांत्रिकों और अनुभवी साधकों के सान्निध्य में रहकर स्वयं सीखा है और अनुभव किया है।मैंने तंत्र विद्या पर गहन शोध किया है, पर यह शोध किसी पुस्तकालय में बैठकर नहीं, बल्कि साधना की अग्नि में तपकर, जीवन के प्रत्येक क्षण में उसे जीकर प्राप्त किया है। जो भी सीखा, वह आत्मा की गहराइयों में उतरकर, आंतरिक अनुभूतियों से प्राप्त किया।मेरा उद्देश्य केवल आत्मकल्याण नहीं, अपितु उस दिव्य ज्ञान को जन-जन तक पहुँचाना है, जिससे मनुष्य अपने जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझ सके और आत्मशक्ति को जागृत कर सके।यह मंच उसी यात्रा का एक पड़ाव है — जहाँ आप और हम साथ चलें, अनुभव करें, और उस अनंत चेतना से जुड़ें, जो हमारे भीतर है ।Rodhar nathhttps://gurumantrasadhna.com/rudra-nath/
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