माँ मातंगी साधना विधि और लाभ maa matangi sadhna

 
माँ मातंगी साधना विधि और लाभ maa matangi sadhna
माँ मातंगी साधना विधि और लाभ maa matangi sadhna

नमस्कार प्रिय, आप का स्वागत है गुरु मंत्र साधना में अभी आगे कार्तिक नवरात्री शुरू होने वाले  है इस समय में यदि किसी प्रकार की कोई साधना की जाती है, किसी प्रकार के मंत्र का जप किया जाता है तो निश्चित ही उसका प्रभाव शीघ्रातिशीघ्र प्राप्त होता है क्योंकि यह समय साधना सिद्धि का ही समय होता है। माँ मातंगी साधना करने का उचित समय है 

माँ मातंगी साधना का महत्व

आज जिस सिद्धि की, जिस साधना की मैं बात करने जा रहा हूँ, वह है माँ मातंगी की साधना। माँ मातंगी की साधना एक ऐसी साधना है जो प्रत्येक व्यक्ति को और प्रत्येक गृहस्थ को अवश्य ही एक बार जीवन में करनी चाहिए क्योंकि यह साधना एक ऐसी साधना है जो जीवन की प्रत्येक सुख सुविधा के साथ-साथ प्रत्येक समस्याओं के समाधान के लिए भी जानी जाती है।

कौन हैं माँ मातंगी ?

माँ मातंगी सभी दश महाविद्याओं में नवें स्थान पर आती हैं। श्री कुल की साधना अति श्रेष्ठ मानी जाती है। मातंगी को पूर्ण गृहस्थ सुख, भोग विलास, शत्रुओं का नाश, अपार सम्मोहन और वाक् सिद्धि के साथ-साथ कालज्ञान दर्शन और इष्ट दर्शन की प्राप्ति के लिए भी माना जाता है। कहा जाता है जिन पर इनकी कृपा हो जाती है, उसे जीवन में कुछ भी शेष नहीं रहता। उसे हर प्रकार से सभी साधन सर्व सुलभ हो जाते हैं।

माँ मातंगी साधना से प्राप्त होने वाले लाभ

आज के इस भौतिकवादी युग में सभी की चाह होती है की उसके पास अच्छा घर हो, मकान हो, सभी प्रकार के सुख साधन उपलब्ध हों और माँ मातंगी सर्व प्रकार के सुख और भोग वैभव देने के लिए जानी जाती हैं। माँ मातंगी सरस्वती के भी एक रूप माना जाता है। 

मातंगी की कृपा जिस पर हो जाती है उसे स्वतः ही संपूर्ण शास्त्र-वेदों का या संपूर्ण ज्ञान प्राप्त हो जाता है। वह किसी से भी वाद-विवाद में हार नहीं सकता अर्थात उसे हमेशा जितना ही होता है। उसके मुख से एक धारा प्रवाह के रूप में सभी प्रकार की बातें और सभी प्रकार का ज्ञान उद्गत होने लगता है। 

बोलता है तो उसकी वाणी अमृतधारा बरसाती है, ऐसा शास्त्र कथन है। इसीलिए होगा कि प्रत्येक गृहस्थी को एक बार जीवन में यह साधना करनी चाहिए क्योंकि जीवन में अनेकों अनेक बार ऐसा समय आता है जब व्यक्ति अपनी बात समझा नहीं पाता, अपनी बात को ठीक से रख नहीं पता।

 यदि ये साधना की जाए तो निश्चित ही वह अपनी बात को समझाने में और अपनी बात को दूसरों के समक्ष रखने में सक्षम हो जाता है, जिससे कई बार विपरीत परिस्थितियों में भी आपके लिए सुलभता प्राप्त हो जाएगी। आपके कार्य शीघ्रता से, सुलभता से बनने लगेंगे। ये है माँ मातंगी की साधना का प्रभाव।

 माँ मातंगी को उच्छिष्ट चांडालिनी भी कहते हैं जो सब प्रकार के शत्रुओं का और विघ्नों का नाश करती है। साथ ही साथ कर्णमातंगी साधना भी इन्हीं के अधीन आती है।  

कर्ण मातंगी को सिद्ध करने के बाद में माँ मातंगी कान में प्रश्नों के उत्तर बताती हैं। इस साधना का ज्योतिष, तंत्र या इस प्रकार के क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए विशेष महत्व होता है।

माँ मातंगी साधना की विधि

माँ मातंगी साधना विधि और लाभ maa matangi sadhna
माँ मातंगी साधना विधि और लाभ maa matangi sadhna

आज जिस साधना की बात कर रहा हूँ वह सरल होते हुए सभी गृहस्थियों के लिए है जिससे की जीवन में सुख शांति और वैभव की प्राप्ति हो, शत्रुओं का नाश हो और सब प्रकार से जीवन सुलभ और सुखमय बन सके। 

माँ मातंगी के विषय में महर्षि विश्वामित्र ने कहा है की जिसने मातंगी को सिद्ध कर लिया बाकी नौ महाविद्या उसे स्वतः प्राप्त हो जाती हैं। परंतु प्रियदर्शकों, सिद्धि प्राप्त करना कोई सरल नहीं है। 

लेकिन मैं ये मानता हूँ मातंगी की अगर कृपा भी मिल जाए तो भी हम सिद्धि के बिल्कुल निकट पहुँच गए हैं। चलिए जान लेते हैं ये साधना, ये सिद्धि कब से आरंभ करनी है, किस समय आरंभ करनी है, क्या हैं इसके नियम, क्या है इसकी साधना और किस प्रकार से साधना में सामग्री की आवश्यकता पड़ने वाली है।

माँ मातंगी साधना  कब और कैसे आरंभ करें ?

इस साधना को वैसे तो किसी भी सोमवार से या शुक्रवार से आरंभ किया जाता है परंतु गुप्त नवरात्रि का समय है तो प्रथम नवरात्रि से ही आप इस साधना को आरंभ कर सकते हैं। समय रहेगा रात्रि 9:00 बजे के बाद में। 

हमेशा बोलता हूँ वैसे 10:00 बजे के बाद साधना आरंभ करनी चाहिए लेकिन शास्त्र प्रमाण है रात्रि 9:00 बजे के बाद, तो आप 9:00 बजे के बाद में इस साधना को आरंभ कर सकते हैं।

 किसी शुभ समय को देखकर के रात्रि 9:00 बजे बाद शुभ चौघड़िया में, अमृत काल का चौघड़िया हो, शुभ का चौघड़िया हो, यह चर का चौघड़िया हो तो आप उस काल में इस साधना को आरंभ कर सकते हैं। तो ये साधना आपको रात्रि 9:00 बजे के बाद आरंभ करनी है। मुख आपको उत्तर या पश्चिम दिशा में करना है। आसन लाल होगा और वस्त्र भी लाल होंगे।

माँ मातंगी साधना आवश्यक सामग्री

जो बाजोट या पट्टे पर वस्त्र बिछाया जाएगा वह भी लाल रंग का ही होगा। मातंगी का चित्र और यंत्र रख करके आपको पूजा करनी है, साधना करनी है। यंत्र प्राण-प्रतिष्ठित होना चाहिए। प्राण प्रतिष्ठा विषय के संबंध में एक पोस्ट मैं पूर्व में दे चुका हूँ। 

वहाँ द्वारा प्राण प्रतिष्ठा विधि देख सकते हैं। निश्चित ही उस सूक्ष्म विधि से यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा होती है और हर प्रकार से आपको लाभ मिलता है। लिंक आपको डिस्क्रिप्शन में दे दिया जाएगा।

यदि माँ मातंगी का चित्र उपलब्ध न हो तो उस परिस्थिति में जिस प्रकार से गणपति की स्थापना की जाती है सुपारी पर मौली लपेट करके, ठीक उसी प्रकार आप मातंगी का विग्रह की स्थापना कर सकते हैं। 

एक सुपारी पर थोड़ी सी मौली लगा करके, उस पर तिलक करके माँ मातंगी को यंत्र के समक्ष सुपारी को रख करके मातंगी का स्वरूप मानकर के साधना को संपन्न कर सकते हैं।

 माँ भगवती की तरह ही इनका पूजन करना है, षोडशोपचार रूप से। साथ ही साथ जब दश महाविद्याओं की पूजा की जाती है तो भैरव की पूजा अवश्य की जाती है, तो भैरव जी की पूजा इनके बायीं ओर करनी है।

 माँ भगवती का जहाँ आपने विग्रह रखा है, जहाँ यंत्र रखें उसके बायीं ओर भैरव जी की पूजा आपको करनी पड़ेगी। बात करें दीपक की, तो दीपक यहाँ पर शुद्ध देसी घी का आपको प्रज्वलित करना है। 

यदि आपके आसपास घी की व्यवस्था नहीं तो आप तिल तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। परंतु संभव हो तो घी का दीपक ही आप प्रज्वलित करें। माला या तो स्फटिक की हो, लाल हकीक या लाल मूंगे की हो या फिर हमेशा बोलता हूँ रुद्राक्ष की माला सर्व कार्य सिद्धि के लिए प्रयोग कर सकते हैं। 

तीनों में से कोई भी माला जो आपके पास उपलब्ध हो, प्राण प्रतिष्ठित माला हो, उससे आप इस साधना को कर सकते हैं। भोग प्रसाद में जो सामान्यतः माँ भगवती जगदंबा की, माँ काली की पूजा में जो सामग्री फल इत्यादि लगते हैं वही सामग्री रहेगी, अलग कुछ भी नहीं है।

 भोग के लिए आप लौंग, इलायची, बताशे के साथ-साथ कोई भी मीठी वस्तु या जैसे बेसन का लड्डू हो, बर्फी हो या कोई ऐसी वस्तु जो भोग के लिए आप समर्पित कर सकते हों। और कुछ न हो तो मिश्री को समर्पित अति प्रेम से कर सकते हैं लौंग, इलायची, बताशे के साथ।

माँ मातंगी साधना – पूजन और संकल्प की प्रक्रिया
 

हमेशा की तरह फिर कहूँगा साधना आरंभ करें उससे पूर्व माँ भगवती के मंदिर में जाकर साधना के लिए प्रार्थना कीजिएगा। भगवान शिव के मंदिर में भी जा सकते हैं, वहाँ प्रार्थना कीजिए साधना के लिए और फिर साधना में प्रवृत्त हो जाइए।

 बाकी साधना रात्रि 9:00 बजे आरंभ होगी तो आप दिन में उसकी पूरी तैयारी कर लीजिए। सर्वप्रथम उत्तर या पश्चिम मुख होकर के बाजोट पर माँ भगवती का चित्र, यंत्र, विग्रह स्थापित करके माँ भगवती के दायीं ओर आपकी बायीं ओर एक कलश स्थापित करना है। उस पर एक पानी का नारियल आपको स्थापित करना है। 

सर्वप्रथम अपने ऊपर आचमन कीजिए। थोड़ा सा जल अपने दाहिने हाथ में लेकर के शुद्धि के रूप में अपने ऊपर छिड़किए।

 आचमन शुद्धि के बाद में सर्वप्रथम आपको संकल्प लेना है। संकल्प के लिए अनेकों अनेक बार बता चुका हूँ, अपना नाम, गोत्र और अपना मनोरथ स्पष्ट करते हुए संकल्प लिया जाता है, उस दिन की तिथि, वार, नक्षत्र को बोलते हुए आप संकल्प लीजिए। 

संकल्प के लिए आपको अपने दाहिने हाथ में जल लेना है और उस जल को संकल्प बोलने के बाद में किसी प्लेट में, थाली में छोड़ देना है या फिर गणेश जी पर अर्पित कर देना। 

संकल्प के पश्चात् सर्वप्रथम गणेश जी का, उसके बाद गुरु का, कुलदेव, पितृदेव, स्थानदेव का पूजन करते हुए माँ भगवती का पूजन करना है। माँ भगवती मातंगी के पूजन के साथ-साथ भैरव जी का पूजन करना है और साथ ही आपको अपने इष्ट का ध्यान भी करना है, पूजन भी करना है। 

भगवान शंकर की ध्यान पूजन भी इसमें आपको करना चाहिए। सबका पूजन करने के बाद में आपको सर्वप्रथम गणेश जी की, उसके बाद गुरु मंत्र की एक-एक माला का जप करना है।

माँ मातंगी साधना  विनियोग एवं न्यास विधि

तत्पश्चात् आपको कम से कम 21 माला का जप मूल मंत्र का करना है, जो माँ भगवती मातंगी का मूल मंत्र है। लेकिन ये साधना तांत्रिक साधना है और पूर्व के अनेकों पोस्ट में बता चुका हूँ कि वैदिक और तांत्रिक साधनाओं में विनियोग, न्यास आदि होते हैं तो उनको करना अनिवार्य है।

 साधना में विनियोग, न्यास की विधि के लिए मैं आपको एक बार बता देता हूँ किस प्रकार से विनियोग होगा, किस प्रकार से न्यास होगा। वो आपको स्क्रीन पर मंत्र दिखाई भी दे रहे हैं। 

इन मंत्रों के माध्यम से आप विनियोग कर सकते हैं। यदि किसी को पढ़ने में, बोलने में असुविधा है तो उसके लिए मैं सूक्ष्म विधान और बता देता हूँ। 

विनियोग का तात्पर्य सिर्फ उस देवता को, जिसने इस मंत्र को बनाया उस ऋषि का नाम, उस देवता का नाम, जिसमें इस देवता की शक्ति है, उसको याद किया जाता है, उसके बारे में बताया जाता है।

 तो आप सिर्फ मातंगी का ध्यान कीजिए और अपने गुरु का ध्यान कीजिए। इतना भी करके आप विनियोग कर सकते हैं। हाथ में जल लेकर के न्यास के लिए क्या करना होता है ?

 सरल से सरल विधि देने का प्रयास कर रहा हूँ, क्योंकि जिनका अर्थ यही है, ऋषि ने न्यास, न्यास का अर्थ यही है कि मैं अपने इस अंग से भी आपको नमस्कार करता हूँ, अपने हृदय से भी नमस्कार करता हूँ, अपने मस्तक से भी नमस्कार करता हूँ, अपनी शिखा की तरफ से भी नमस्कार करता हूँ, अपनी पाँचों उंगलियों से नमस्कार करता हूँ एक-एक करके।

 तो यह न्यास है, इसे शुद्धि कहा जाता है कि हर प्रकार से मैंने शुद्धि कर ली है। यदि आपको बोलने में, मंत्रों को बोलने में असुविधा होती है तो आप बारी-बारी से सिर्फ ध्यान करके

 माँ भगवती को बारंबार प्रणाम करते हुए इस साधना को आरंभ कर सकते हैं और इतना करने के बाद भी आपको फल अवश्य ही प्राप्त होगा क्योंकि माँ मातंगी या कोई भी देवी की जब आराधना की जाती है तो हमेशा बताया है कि दुर्गा स्तुति, माँ भगवती जो हैं 

ये दुर्गा के ही स्वरूप हैं और दुर्गा जी भगवती स्तुति यानी प्रार्थना से प्रसन्न होती हैं, अन्य किसी साधन की आवश्यकता है ही नहीं। तो सिर्फ प्रार्थना कीजिए, मन से, हृदय से प्रार्थना कीजिए, अपने आप को समर्पित करते हुए, समर्पण भाव से प्रार्थना कीजिए अगर आपको कोई अन्य मंत्र उच्चारण करने में परेशानी आती है।

विनियोग मंत्र

चलिए सर्वप्रथम विनियोग की विधि देख लेते हैं। विनियोग का मंत्र आपकी स्क्रीन पर है। इस प्रकार है: दाहिने हाथ में जल लीजिएगा और फिर इस मंत्र को बोलिएगा:

ॐ अस्य मन्त्रस्य दक्षिणामूर्ति ऋषिः विराट् छन्दः मातंगी देवता ह्रीं बीजं हूं शक्ति विनियोगः।

जब आप इस मंत्र को बोल लें, दाहिने हाथ में जो जल लिया था उसे आप भूमि पर छोड़ दीजिए।

न्यास (ऋषि न्यास, करण्यास, हृदयादिन्यास)

चलिए अब न्यास करते हैं। सबसे पहले ऋषि न्यास है, फिर करण्यास है, फिर देहन्यासः। विधि मैंने पूर्व में बता दी कि सिर्फ इनसे नमस्कार करना है, इनसे प्रणाम करना है। सर्वप्रथम ऋषि न्यास। मैं बोलता जाऊँगा आप उसके अनुसार इसका ध्यान कर लीजिए। वैसे स्क्रीन पर पूर्ण रूप से लिखने का प्रयास किया है।

ऋषि न्यास:


सर्वप्रथम अपने सिर को स्पर्श करते हुए बोलिए: ॐ दक्षिणामूर्ति ऋषये नमः शिरसि।
दूसरे पर मुख को स्पर्श करना है आपने अपने दाहिने हाथ से और फिर बोलना है: विराट् छन्दसे नमो मुखे।फिर उसके बाद हृदय को स्पर्श करना है और बोलना है: मातंगी देवतायै नमो हृदि।

फिर उसके पश्चात् अपने गुप्त स्थान को, जांघ को स्पर्श करना है: ॐ ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये।अपने पैरों को स्पर्श करना है: ॐ हूं शक्तये नमः पादयोःअपने नाभि को स्पर्श करना है: ॐ क्लीं कीलकाय नमः नाभौउसके बाद सभी अंग का स्पर्श करना है और बोलना है: विनियोगाय नमः सर्वांगे।

इस प्रकार से यह ऋषि न्यास हुआ। अब करण्यास है, अपनी हाथों से पाँचों उंगलियों से अलग-अलग न्यास, प्रणाम करना है। उसके बाद होता है हृदयादिन्यास अर्थात दोनों हाथों को जोड़ करके। 

तो जिस प्रकार मैंने बताया अंगों को स्पर्श करते हुए ठीक उसी प्रकार न्यास के सामने हिंदी में मैंने बताया है कि किस प्रकार से स्पर्श करना है। 

 अधिक विस्तारित न हो इसलिए मैं बोलकर नहीं बता रहा हूँ, सिर्फ आपको स्क्रीन पर दिखाई दे रहा है। इसके स्क्रीनशॉट ले सकते हैं, नोट कर सकते हैं। 

यदि फिर भी कोई समस्या आती है तो आप व्हाट्सएप करके मुझसे जान सकते हैं कि किस प्रकार न्यास करना है। करण्यास के बाद हृदयादिन्यास है, आपको स्क्रीन पर दिखाई दे रहा है।

 

ध्यान मंत्र

उसके बाद आपको मातंगी का ध्यान करना है। वहाँ पर पूर्ण समर्पण करते हुए आप इस मंत्र को बोलिए:

या देवी सर्वभूतेषु दयारूपे संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

अर्थात, हे माँ आप मुझ पर दया करना, मुझे क्षमा भी करना यदि मुझसे कोई त्रुटि हो गई हो, कोई भूल हो गई हो और साथ ही साथ मुझे मेरी साधना में सिद्धि प्रदान कर देना। इस मंत्र का भाव है और माँ का विग्रह आप अपने सम्मुख रख कर के उनका ध्यान करते हुए इन तीन मंत्रों को आप सरलता से बोल सकते हैं।

 मातंगी साधना मूल मंत्र जाप

चलिए अब जान लेते हैं उस मंत्र को। वो मंत्र आपकी स्क्रीन पर है:

ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा॥

छोटा सा ये मंत्र है, 21 माला प्रतिदिन आपको करनी है। बहुत छोटा सा मंत्र है, 21 माला में ज्यादा समय नहीं लगने वाला। आपका प्रयास करेंगे तो निश्चित ही यह साधना आपकी सफल होगी। माँ भगवती मातंगी कृपा आपको प्राप्त होगी। 21 माला का आपको जप करना है। 

उससे पूर्व बता चुका हूँ, पहले गणेश जी की एक माला, फिर गुरु मंत्र की एक माला। यदि आपके गुरु नहीं हैं तो क्या करें ? पूर्व में अनेकों अनेक बार बता चुका हूँ, नमः शिवाय भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र का आप जप कर सकते हैं या फिर हमारे गुरुदेव द्वारा बताए गए मंत्र को भी मैं कई बार बता चुका हूँ: ॐ गुरुवे नमः। इस मंत्र का आप जप कर सकते हैं गुरु मंत्र के स्थान पर।

मातंगी साधना  का समापन (पूर्णाहुति)

जब आप मंत्र जाप पूर्ण कर लें, आपकी पूरी 21 माला पूर्ण हो जाए, उसके बाद अपने दाहिने हाथ में जल लीजिएगा और जल लेकर के माँ भगवती का ध्यान करके, माँ मातंगी का ध्यान करके उस जल को इस भाव से भूमि पर ही छोड़ दीजिए माँ के बाएं हाथ की तरफ कि माँ जो भी मैंने जप किया है, जो भी मैंने पुण्य किया है

 जो भी मैंने तप किया है वो सब मैं आपको समर्पित करता हूँ। यह हर साधना में मैं बोलता हूँ कि समर्पण के बाद आसन को प्रणाम करना है, तो यही समर्पण है। जो कुछ भी आपने जप किया है वो हाथ में जल लेकर के माँ के बाएं हाथ की तरफ छोड़ दीजिए। 

उसके बाद माँ भगवती की आपको आरती करनी है। आरती के पश्चात् लौंग, इलायची, बताशे के साथ-साथ किसी मीठे का आपको भोग लगाना है और भोग लगाकर उन्हें एक बार आचमन कराना है। उसके पश्चात् माँ को प्रणाम करके, आसन को प्रणाम करके आप खड़े हो जाइए।

माँ मातंगी साधना के नियम

संभव हो तो इन 9 दिनों में भूमि शयन करना। अपना भूमि पर ही आसन लगा करके, अपना बिस्तर लगा कर के वहीं शयन करना है जहाँ आपने दरबार लगा रखा है, जहाँ आपने माँ की चौकी लगा रखी है। वहीं पर आपको शयन करना है।


एक समय आपको भोजन करना है। भोजन सात्विक हो। संभव हो फलाहार करें, नहीं तो आप एक समय भोजन कर सकते हैं।

सात्विक रहते हुए साधना को आठ दिनों तक आपको करना है। नवें दिन इसकी पूर्णाहुति होगी।
नवें दिन जब आप साधना करेंगे तो उस दिन आपको सिर्फ प्रातःकाल माँ का पूजन करने के बाद में कम से कम एक माला का आपको इस जो मंत्र है, इस मंत्र से आपको माँ का हवन करना है।

 एक माला का हवन में गुरु मंत्र और गणेश जी की माला का भी आपको हवन करना है। ज्यादा नहीं करें गुरु मंत्र, गणेश मंत्र का, तो कम से कम 21-21 आहुति गुरु मंत्र, गणेश मंत्र की आपको अवश्य करनी है। भैरव जी की भी आहुति आपको इसमें करनी है। कम से कम 21 भैरव जी के भी करिएगा।

निश्चित ही माँ मातंगी की कृपा आपको प्राप्त हो जाएगी और आपके सभी कार्य सिद्ध होने लगेंगे। सर्व प्रकार से समाज में मान-सम्मान आपका बनने लगेगा। हर प्रकार की सफलता, सुख, वैभव मातंगी कृपा से आपको प्राप्त हो यही कामना है। माँ मातंगी कृपा आपको प्राप्त हो, उनकी सिद्धि प्राप्त हो यही दिल से कामना है।

मातंगी साधना  महत्वपूर्ण सूचना

 मेरा प्रयास रहता है की मैं प्रत्येक विषय वस्तु को बड़ी सरलता से, सहजता से आप तक पहुँचा सकूँ, परंतु फिर भी यदि किसी प्रश्न का, किसी विषय में समस्या आती है, किसी बात को समझने में आपको परेशानी आती है तो आप व्हाट्सएप कर सकते हैं। 

कृपया कॉल ना करें, फोन मेरे पास नहीं रहता है, वो जिस पर व्हाट्सएप चलता है तो आप व्हाट्सएप कर सकते हैं। संभवतः व्हाट्सएप का जवाब आपको कुछ विलंब से मिल जाए परंतु जवाब मैं अवश्य दूँगा और अभी तक जिन्होंने व्हाट्सएप किया है उन्हें ज्ञात होगा मैं रिप्लाई अवश्य करता हूँ। तो चलिए जानते हैं साधना की विधि को।

जय माता दी। जय श्री राम।

नोट बिना गुरु के साधना  न करे अगर मंत्र में या शलोक में कोई त्रुटि रह जाए तो बताओ 

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Rodhar nath
मैं रुद्र नाथ हूँ — एक साधक, एक नाथ योगी। मैंने अपने जीवन को तंत्र साधना और योग को समर्पित किया है। मेरा ज्ञान न तो किताबी है, न ही केवल शाब्दिक यह वह ज्ञान है जिसे मैंने संतों, तांत्रिकों और अनुभवी साधकों के सान्निध्य में रहकर स्वयं सीखा है और अनुभव किया है।मैंने तंत्र विद्या पर गहन शोध किया है, पर यह शोध किसी पुस्तकालय में बैठकर नहीं, बल्कि साधना की अग्नि में तपकर, जीवन के प्रत्येक क्षण में उसे जीकर प्राप्त किया है। जो भी सीखा, वह आत्मा की गहराइयों में उतरकर, आंतरिक अनुभूतियों से प्राप्त किया।मेरा उद्देश्य केवल आत्मकल्याण नहीं, अपितु उस दिव्य ज्ञान को जन-जन तक पहुँचाना है, जिससे मनुष्य अपने जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझ सके और आत्मशक्ति को जागृत कर सके।यह मंच उसी यात्रा का एक पड़ाव है — जहाँ आप और हम साथ चलें, अनुभव करें, और उस अनंत चेतना से जुड़ें, जो हमारे भीतर है ।Rodhar nathhttps://gurumantrasadhna.com/rudra-nath/