kamakhya maran mantra कामाख्या मारण मंत्र एक प्रचंड शत्रु मारण प्रयोग

परिचय: चामुंडा तंत्र मंत्र साधना
kamakhya maran mantra कामाख्या मारण मंत्र एक प्रचंड शत्रु मारण प्रयोग जय माँ श्मशान काली, जय काल भैरव, जय बाबा गंगाराम। आज मैं फिर से आप सभी के बीच में एक बहुत ही प्रचंड और शक्तिशाली शत्रु मारण का एक प्रयोग लेकर आया हूँ। और ये जो प्रयोग और मंत्र हम विधि भी जानते हैं, इसमें मंत्र भी चलेगा, तंत्र भी चलेगा, और यंत्र, तीनों चीज़ का प्रयोग किया गया है।और ये जो मंत्र है, ये कामाख्या माता का मंत्र है और इसमें साथ ही साथ वन दुर्गा भी चलती हैं। ठीक है?
वन दुर्गा का रहस्य
वन दुर्गा क्या हैं, पहले इसको समझ लेते हैं। पहले देखिए, नव दुर्गा का विवरण आप लोग जानते होंगे, ठीक है? नव दुर्गा का ही प्रारूप, मतलब चांडाल रूप ही वन दुर्गा बोली जाती हैं। ठीक है? जब नव दुर्गा अपना रूप परिवर्तन करती हैं, चांडाल रूप में बनती हैं, विपरीत रूप में चलने लगती हैं, तो उनको नव दुर्गा से वन दुर्गा बन जाती हैं। प्रचंड रूप, भयंकारी रूप चलेगा, उसी का मंत्र हम देने वाले हैं।ठीक है? तो इसमें आपको ज़्यादा कुछ नहीं करना, ये एक दिन की ही क्रिया है, एक रात्रि की क्रिया है, और बहुत ही प्रचंड है। ठीक है? तो इसमें विधि-विधान और क्या-क्या लगने वाला है, क्या विधि-विधान है, जो ए टू जेड चीज़ हम बताएँगे। तो चलिए आगे बढ़ते हैं।
आवश्यक सामग्री
इसमें सामग्री क्या-क्या चाहिए, उसको आप सभी लोग नोट कर लीजिए और क्या-क्या है, उसको आप सभी लोग ध्यान से सुनिएगा। ठीक है?
- 9 पान के पत्ते
- 9 लौंग-इलायची
- 9 सुपारी
- थोड़ा सा अक्षत (चावल)
- एक पानी वाला नारियल
- लाल वस्त्र
- श्रृंगार की सामग्री
- भोग स्वरूप बताशे
- 9 छोटी सुई
- आम की लकड़ी
- धूप (जिसमें लोबान, गूगल, कपूर, काला तिल, अरवा चावल मिक्स हो)
- काली मिर्च और लाल मिर्च (धूप में मिलाने के लिए)
- गोरोचन
- भोजपत्र
- केसर
- गंगाजल
- सरसों का तेल या नीम का तेल
- दीपक और बाती
- रुद्राक्ष की माला
प्रयोग का विधान और समय
इतना सब सामग्री इकट्ठा करने के बाद में आपको इंतज़ार करना है। इस क्रिया को करने का विशेष समय होता है।
शुभ मुहूर्त
इस क्रिया को आपको नवरात्रि के सप्तमी के दिन या फिर नवमी वाले दिन आपको करना होगा, या फिर मंगलवार या फिर शनिवार के दिन अमावस्या पड़ती है, तो उस दिन इस क्रिया को किया जाएगा।
महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय
ठीक है? इस क्रिया में, किया जाता है, पहले आप इस क्रिया को करने के लिए शरीर सुरक्षा, आसन कीलन और घेरा मंत्र आपका तगड़ा होना आवश्यक है और गुरु सान्निध्य और गुरु कृपा से, गुरु निर्देशन में इस क्रिया को करना चाहिए। ठीक है? जिसको श्मशान में शरीर सुरक्षा, आसन कीलन, घेरा मंत्र आता है, तो ही जाए।
क्रिया विधि
- शरीर सुरक्षा करके आप सब सामान लेकर घर से निकल जाएँ, स्नान-ध्यान करके, कोई भी शुद्ध वस्त्र धारण करके आप निकल जाएँ। इसमें आसन का कोई बंधन नहीं है। क्रिया करते समय आपकी दिशा दक्षिण रहेगी।
- श्मशान में पहुँचकर एक न्यूज़पेपर बिछा लीजिए। उसके ऊपर नौ जगह पान के पत्ते रखें।
- नौ पान के पत्तों के ऊपर थोड़ा-थोड़ा अरवा चावल रखें और उसके ऊपर प्रत्येक पान के ऊपर एक-एक लौंग, एक-एक इलायची, एक-एक सुपारी रख दें।
- प्रत्येक पान के पत्ते के ऊपर थोड़ा-थोड़ा लाल सिंदूर और एक-एक बताशा रख दीजिए। साथ ही प्रत्येक पान के पत्ते पर एक-एक छोटी सुई भी रख दें।
- अब घेरा मंत्र लगाकर सुरक्षा घेरा बना लें।
- घेरा लगाने के बाद दीये में नीम या सरसों के तेल का दीपक और नौ अगरबत्ती प्रज्वलित करें।
- सोलह श्रृंगार की सामग्री अर्पण करें।
- पानी वाले नारियल पर नौ जगह सिंदूर लगाकर उसे लाल वस्त्र में लपेटकर पान के पत्तों के आगे रख दें।
मंत्र जाप और यंत्र निर्माण
- सबसे पहले रुद्राक्ष की माला से ‘ॐ क्रीं कालिकायै नमः’ का एक माला जाप करें, फिर ‘ॐ नमः शिवाय’ का एक माला जाप करें। यदि आपके पास गुरु मंत्र है, तो उसका भी अपनी श्रद्धानुसार (7, 21, 54 या 108 बार) जाप कर लें।
- जाप करने के बाद श्मशान काली, श्मशान भैरव, घटवारिन माई, घटवार बाबा और कलुआ मसान को प्रणाम करके आशीर्वाद लें।
- अब भोजपत्र पर यंत्र का निर्माण करें। गोरोचन, केसर और गंगाजल को मिलाकर एक स्याही बना लें। इसी स्याही से भोजपत्र पर यंत्र बनाना है। यंत्र के भीतर जहाँ ‘अमुक’ की जगह आएगी, वहाँ पर आपको अपने शत्रु का नाम लिखना है।
- जब यंत्र निर्माण हो जाए तो उसे अपने सामने, नौ पान के पत्तों के आगे रख दें।
- अब मुख्य मंत्र का दस हज़ार बार जाप करना है।
मुख्य मंत्र
मंत्र को ध्यान से सुनिए:
ॐ चण्डालिनी कामाख्या वासिनी वन दुर्गे क्लीं क्लीं ठः ठः स्वाहा।
एक बार और सुनिए:
ॐ चण्डालिनी कामाख्या वासिनी वन दुर्गे क्लीं क्लीं ठः ठः स्वाहा।
आहुति और अंतिम चरण
- दस हज़ार बार जाप करने के बाद आम की लकड़ी को प्रज्वलित करके, तैयार की हुई धूप से तीन माला (324 बार) या कम से कम एक माला (108 बार) मंत्र बोलते हुए आहुति दें।
- आहुति के बाद, बनाए हुए यंत्र को हाथ में लेकर उस पर 108 बार मंत्र पढ़कर फूँक लगाएँ।
- अब उस यंत्र का ताबीज़ बनाकर अपने गले में धारण कर लेना है।
प्रयोग का प्रभाव
जब आप गले में ताबीज़ धारण कर लेंगे तो आप देखेंगे कि एक महीना या फिर 21 दिन के अंदर-अंदर ही शत्रु का मृत्यु निश्चित हो जाता है। 1001% आपका शत्रु ज़रूर मृत्यु को प्राप्त होगा ही होगा। अब जिस भी तरीके से हो, बीमारी के तरीके से हो या फिर अचानक उसका एक्सीडेंट हो, मतलब 21 दिन से लेकर एक महीने के अंदर में शत्रु का मृत्यु निश्चित होता ही होता है। ठीक है?
तो आज के लिए बस इतना ही। जय माँ श्मशान काली, जय काल भैरव, जय बाबा गंगाराम।