तलाक की समस्या का निराकरण करने वाला एक तांत्रोक्त प्रयोग A tantrok experiment to solve the problem of divorce ph.85280 57364
तलाक की समस्या का निराकरण करने वाला एक तांत्रोक्त प्रयोग : विज्ञान की उन्नति और औद्योगिक क्रांतियों ने समाज को अनेक उपहार प्रदान किये हैं । इन्होंने लोगों के जीवन को अधिक आरामदायक बनाया है । समाज की आर्थिक स्थिति में सुधार आया है। सुख-सुविधा के साधनों के साथ-साथ भोग-विलास के प्रति लोगों की रुचि बढ़ी है। लोगों के जीवन स्तर में भारी बदलाव आया है । कठिन, दुष्कर एवं बोझल जैसी प्रतीत होने वाली जिन्दगी अब अधिक आरामदायक एवं आनन्द देने वाली लगने लगी है, लेकिन इन सभी के साथ ही लोगों के सामाजिक रिश्तों, विशेषकर पारिवारिक रिश्तों के साथ-साथ सोच-विचार और भावनाओं के दृष्टिकोण में जबरदस्त बदलाव आया है ।
- तलाक निवारण मंत्र
- तलाक के निवारण साधना स्तम्भंक साधना
- तलाक निवारण
आधुनिकता ने हमें सुख-सुविधाएं अवश्य प्रदान की हैं, लेकिन इनके साथ ही कई तरह की समस्याओं को भी जन्म दिया है। जैसे-जैसे समाज का बौद्धिक स्तर बढ़ता जा रहा है, शताब्दियों से प्रचलित रहे संस्कारों की डोर कमजोर पड़ती जा रही है। लोगों के मन में स्वैच्छिक उन्मुक्तता, स्वतंत्रता के साथ-साथ स्वार्थी प्रवृत्ति घर करती जा रही है। इसलिये सामाजिक रिश्ते ही नहीं अपितु पारिवारिक सम्बन्धों पिता-पुत्र, भाई-भाई और पति-पत्नी के बीच कटुता उत्पन्न होने लगी है। प्राचीन समय में समाज को एकजुट रखने तथा परिवार के रूप में प्रेमपूर्वक रहने के लिये अनेक तरह के नियम निर्धारित किये थे । गृहस्थाश्रम को पूर्ण उत्तरदायित्वपूर्ण बनाने के लिये हिन्दू जीवन पद्धति में जन्म से लेकर मृत्यु तक अनेक संस्कारों का विधान रखा था, जिनमें सोलह संस्कार बहुत ही प्रमुख थे ।
इन संस्कारों में पितृदोष से ऋणमुक्त होने, पुत्र-पुत्री का गृहस्थ बसाने (कन्या दान) और पति-पत्नी के रूप में सदैव एकत्व का भाव रखने वाले संस्कार सबसे मुख्य हैं । वैवाहिक बंधन में बंध जाने के पश्चात् पति- पत्नी को सदैव के लिये एक-दूसरे के लिये समर्पित रहने के लिये वचनबद्ध रहना पड़ता है। पति-पत्नी के संबंधों को किसी समय दो शरीर और एक आत्मा, दो मन और एक सोच, सात जन्मों तक साथ निभाने वाले, जैसी उपमायें दी गई थी, लेकिन अब इस पवित्र रिश्ते में भी गिरावट आती जा रही है। आज अधिकांश लोगों में उन्मुक्तता, स्वच्छन्द सोच, अहं और स्वतंत्रता की भावना बलवती होती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ पारिवारिक रिश्तों में अविश्वास, सन्देह, संघर्ष एवं कलह की स्थिति देखने को मिल रही है । समर्पण की जगह संघर्ष ने ले ली है ।
प्रेम का स्थान अविश्वास और संदेह ने ले लिया है । इन सबका परिणाम है कि पारिवारिक कलह, हिंसा, तलाक, एक-दूसरे को धोखा देने की घटनायें बढ़ती जा रही हैं। तलाक की दर भी तीव्रगति से बढ़ रही है। तलाक का अर्थ है वैवाहिक जीवन में प्रेम, समर्पण, त्याग की जगह अविश्वास, घृणा एवं संघर्ष का इस सीमा तक बढ़ जाना कि पति – पत्नी दोनों को ही यह लगने लगे कि अब एक साथ रहना संभव नहीं है । ऐसी स्थितियों में उन दोनों का एक साथ शांतिपूर्वक रह पाना मुश्किल बन जाता है और वह शीघ्रताशीघ्र एक-दूसरे से अलग होकर स्वतंत्र हो जाना चाहते हैं। तलाक के ऐसे मामलों के लिये सामाजिक परिस्थितियां तो उत्तरदायी रहती ही हैं, कई अन्य कारण भी जिम्मेदार रहते हैं ।
इस प्रकार के कारणों का उल्लेख तंत्रशास्त्र एवं अन्य दूसरे ग्रंथों में विस्तारपूर्वक दिया गया है। आमतौर पर ऐसा देखने में आता है कि जिन परिवारों में माता-पिता या अन्य बुजुर्ग सदस्यों को पूर्ण मान-सम्मान नहीं मिलता, उनकी संतानें भी सुखी नहीं रह पाती । इनकी संतानों के विवाह जैसे मांगलिक कार्यों में बहुत अधिक विलम्ब होता है, उनके गृहस्थ जीवन में भी निरन्तर उथल-पुथल मची रहती है । उनकी संतानों को गृह क्लेश का सामना करना पड़ता है, जिसकी परिणिति अनेक बार तलाक के रूप में सामने आती है। इन लोगों को संतान सुख भी प्राप्त नहीं हो पाता। इसी तरह जिन परिवारों में कुल देवता, देवी का अपमान, निरादर किया जाता है या परिवार के किसी कमजोर सदस्य को सताया, दबाया जाता है या बार – बार अपमानित किया जाता है, उनकी संतानें उन्मुक्त स्वभाव को अपनाने वाली होती हैं। इनके पुत्र- पुत्रियां, दोनों का ही गृहस्थ जीवन सुचारू रूप से नहीं चल पाता। ऐसे अधिकतर मामलों में शीघ्र तलाक की स्थितियां निर्मित होने लगती ।
अनुभवों में ऐसा आया है कि अगर समय रहते समुचित प्रबन्ध कर लिये जायें तो तलाक जैसी स्थिति को उत्पन्न होने से रोका जा सकता है तथा टूटते हुये गृहस्थ जीवन को बचाया जा सकता है । ऐसी विषम परिस्थितियों से बचने के लिये तांत्रिक सम्प्रदाय और वैदोक्त पद्धति में अनेक उपाय एवं प्रयोग दिये गये हैं, जिनको सविधि सम्पन्न करने से माता-पिता के पापकर्मों का तो प्रायश्चित हो ही जाता है, कई अन्य तरह के दोष भी समाप्त हो जाते हैं । तलाक
तलाक के निवारण साधना स्तम्भंक साधना विधि शाबर प्रयोग
तलाक के निवारण साधना स्तम्भंक साधना विधि शाबर प्रयोग : यद्यपि पापकर्मों से मुक्ति पाने के लिये शास्त्रों एवं वैदोक्त प्रणाली में अनेक विधान और उपाय बताये गये हैं । इन सबका इस प्रसंग में वर्णन कर पाना सम्भव नहीं है। आगे एक ऐसा शाबर मंत्र प्रयोग दिया जा रहा है जिसके द्वारा तलाक की स्थिति को रोका जा सकता है यह प्रयोग वशीकरण पर आधारित है । यह प्रयोग एक बार सिद्ध हो जाता है तो उस साधक या साधिका के सामने विशेष क्षणों में जो भी सामने आ जाता है, वही वशीभूत हो जाता है। यह शाबर प्रयोग अनेक बार अनुभूत किया हुआ है । ऐसा देखने में आया है कि अगर समय रहते पति-पत्नी में से कोई भी एक इस शाबर पद्धति पर आधारित वशीकरण प्रयोग को सफलतापूर्वक सम्पन्न कर लेता है तो वह तलाक की स्थिति को बदल सकता है तथा वह पति – पत्नी के रूप एक परिवार के रूप में बने रह सकते हैं। यह शाबर प्रयोग 41 दिन का है । अगर इस शाबर मंत्र को पहले दीपावली, दशहरा, होली आदि की रात्रि को किसी एकान्त स्थान में बैठकर दीपक आदि जलाकर अभीष्ट संख्या में मंत्रजाप कर लिया जाये तो यह मंत्र चेतना सम्पन्न हो जाता है ।
तब इस मंत्र का प्रभाव अनुष्ठान शुरू करने के दूसरे सप्ताह में ही दिखाई देने लग जाता है । यद्यपि इस शाबर अनुष्ठान को किसी भी कृष्णपक्ष के शनिवार के दिन से भी शुरू किया जा सकता है । यह शाबर अनुष्ठान शनिवार की रात्रि को दस बजे के बाद सम्पन्न किया जाता है, लेकिन इससे संबंधित थोड़ा सा विधान प्रातः काल भी सम्पन्न करना पड़ता है। प्रात:काल शुद्ध आटे से पांच रोटियां बनवायें | उन्हें घी से चुपड़ें। एक थाली में रोटियों के साथ थोड़ा सा देशी घी, दही, शक्कर, दो लौंग और एक बताशा रखें। एक कण्डे में आग जलाकर उस पर घी की आहुतियां प्रदान करते हुये एवं बताशे के साथ दोनों लौंगों को घी में भिगोकर अग्नि को समर्पित कर दें। साथ ही अपने देवताओं को स्मरण करते हुये उनका आह्वान करते रहें । बताशे के बाद प्रत्येक रोटी से थोड़ा-थोड़ा अंश तोड़कर क्रमशे : घी, दही, शक्कर में लगाकर अग्नि को अर्पित करें। इस प्रकार पांचों रोटियों का थोड़ा-थोड़ा अंश अग्नि को चढ़ा दें। तत्पश्चात् घी की एक आहुति प्रदान करके अंगुलियों में थोड़ा सा पानी लेकर अग्नि की प्रदक्षिणा करें। अपने कुल देव या देवियों से अपने और अपने माता-पिता के अपराधों को क्षमा करने की प्रार्थना करें। बाद में उन पांचों रोटियों को क्रमशः गाय, कुत्ता, कौआ, पीपल के वृक्ष के नीचे और जल में प्रवाहित कर दें ।
रात्रि को घर के मुख्यद्वार पर एक दीपक जलाकर रखें। ऐसा कुल सात शनिवार तक रखना है। रात्रि को अनुष्ठान के रूप में किसी सुनसान एकान्त स्थान, किसी प्राचीन खण्डहर अथवा किसी प्राचीन शिव मंदिर या अपने ही घर के किसी कक्ष में बैठकर इस अनुष्ठान को सम्पन्न करें। सबसे पहले रात्रि को नेहा धोकर तैयार हो जायें । संभव हो तो लाल रंग के वस्त्र पहन कर अपने साधना स्थल पर जाकर लाल ऊनी आसन पर पश्चिम या दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके बैठ जायें । अपने सामने लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर शुद्ध मिट्टी का ढेला रखें और उस पर तेल – सिन्दूर का लेप करके पांच लौंग, पांच कालीमिर्च, पांच पान के पत्ते, सिन्दूर से रंगी पांच सुपारी तथा ग्यारह की संख्या में पंच- चक्रा सीप भी सिन्दूर में रंग कर अर्पित करें।
इसके पश्चात् तेल का दीपक जलाकर एवं खीर का प्रसाद रखकर हकीक माला से अग्रांकित मंत्र की पांच माला जाप करें । जाप के पश्चात् खीर को स्वयं ही खा लें । अन्य किसी को न दें।
तलाक निवारण मंत्र
तलाक निवारण मंत्र अनुष्ठान में प्रयुक्त मंत्र इस प्रकार है– हथेली पर हनुमन्त बसै भैरू बसे कपाल । नारसिंह की मोहनी मोहे सब संसार। मोहन रे मोहन ता बीर सब वीरन मैं तेरा सीर सबकी दृष्टि बांध दे मोहि सिन्दूर चढाऊँ तोहि। तेल सिंदूर कहां से आया ? कैलाश परवत् से आया। कौन लाया ? अंजनी का हनुमन्त गौरी का गणेश काला गोरा तोतला तीनों बसे कपाल बिंदा तेल सिंदूर का दुश्मन गया पाताल | दुहाई का मियासि दूर की हमें देख सीतल हो जाए हमारी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा सत्य नाम आदेश गुरु का ।
मंत्रजाप के लिये हकीक माला या पंचमुखी लघु रुद्राक्ष माला का प्रयोग करें । जाप करने से पहले स्वयं अपने मस्तष्क पर भी सिन्दूर का टीका लगा लें । अनुष्ठान अवधि में ब्रह्मचर्य पालन करने के साथ-साथ भूमि पर शयन करें। संभव हो तो साधना स्थल पर ही सोयें। इस शाबर अनुष्ठान में प्रतिदिन पूजा का क्रम यही रहता है। अनुष्ठान के अन्तिम दिन मंत्रजाप के उपरान्त पूजा की समस्त सामग्री को किसी नये वस्त्र में बांधकर अथवा किसी कोरे मिट्टी के बर्तन में भरकर जल में प्रवाहित कर दें। पूजा में प्रयोग की गई हकीक माला या रुद्राक्ष माला को स्वयं अपने गले में पहन लें अथवा घर के पूजास्थल पर स्थापित कर दें । अनुष्ठान समाप्त होने के पश्चात् जब आप सिन्दूर पर सात बार उपरोक्त मंत्र को पढ़ कर अपने माथे पर टीका लगाकर अपनी पत्नी या पति के सामने जाते हैं, तो उसका गुस्सा तत्काल शांत हो जाता है तथा संदेह अथवा अविश्वास की जगह आकर्षण उमड़ने लग जाता है। इसी प्रकार नाराज अधिकारी के सामने सिन्दूर लगाकर जाने से उसका भी वशीकरण होता है। वह भी आपसे शत्रुता भुलाकर सम्मान देने वाला व्यवहार करने लग जाते हैं।