कर्ण मातंगी साधना अनुभव: एक साधक का भयानक अनुभव PH.85280 57364

कर्ण मातंगी साधना अनुभव: एक साधक का भयानक अनुभव PH.85280 57364
कर्ण मातंगी साधना अनुभव: एक साधक का भयानक अनुभव PH.85280 57364

karna matangi sadhna anubhav कर्ण मातंगी साधना अनुभव: एक साधक का भयानक अनुभव आप सभी लोगों को मेरा नमस्कार, जय माँ चंडी जय शंकर। मैं आप सब लोगों का और एक नए लेख में स्वागत करता हूँ। आज के इस लेख में मैं आप सब लोगों को मेरे गुरु जी का एक कर्ण मातंगी साधना का अनुभव बताने जा रहा हूँ। 

 जिसको सुनने के बाद आप सब लोगों को पता चल जाएगा तंत्र साधना कितना भयानक रहता है तथा यह साधना को अगर सही तरीके से संपन्न कर लिया जाए तो यह एक मनुष्य का जीवन भी बदल सकता है और बहुत फायदा उसको दे सकता है। तो चलिए शुरू करते हैं आज के इस लेख को और जानते हैं उस साधना के अनुभव के ऊपर।

गुरु से मार्गदर्शन और तीन गुप्त साधनाएँ

एक दिन मेरे गुरु जी अपने गुरु के पास बैठे थे और वह अपने गुरु से बातचीत कर रहे थे। गुरु जी के मन में एक प्रश्न आया कि ऐसा कोई साधना हो जिस साधना के माध्यम से हम अपने सारे प्रश्नों का उत्तर ले सकें और वो साधना हमको एक तरह से गुरु की तरह गाइड भी करे।

 तो इस प्रश्न को मेरे गुरु जी ने अपने गुरु से पूछा तो उनके गुरु ने आंसर दिया कि ऐसे तो तीन ही साधनाएँ हैं, एक उन्होंने बताया वार्ता साधना, दूसरा है कर्ण पिशाचिनी साधना और तीसरा है कर्ण मातंगी साधना। इन तीन साधना के बारे में बताया। 

उनके जो गुरु थे वो कौलाचार मार्ग से थे। जिन लोगों को नहीं पता कि मेरे गुरु जी कौन थे, उनका साधना क्या था, किस तरह से थे, तो हमारी वेबसाइट गुरु मंत्र साधना डॉटकॉम पर आपको मेरे गुरु जी से जुड़े सारे अनुभव और साधनाओं की श्रेणी मिल जाएगी, जहाँ जाकर आप जरूर ही उन्हें पढ़ सकते हैं। 

उनके सारे अनुभव को भी आप सुन सकते हैं। पहले के लेख जिन लोगों ने पढ़े हैं उन लोगों को पता है कि मेरे गुरु जी को कर्ण मातंगी माता सिद्ध थीं। तो उस हिसाब से मैं आज उस सिद्धि का अनुभव लोगों को बता रहा हूँ।

तो उनके गुरु ने बताया तीन साधना। तो तीन साधना में उनके गुरु ने बताया कि कर्ण पिशाचिनी वर्तमान और भूतकाल का ज्ञान देती है। वार्ताली साधना तीन समयों का ज्ञान देती है, भूत, वर्तमान और भविष्यत्काल का ज्ञान देती है।

 लेकिन वार्ताली साधना एक उग्र तरीके का साधना है और यह नक्षत्र वाइज़ किया जाता है। अगर नक्षत्र अगर आपके पास सही नहीं है या फिर आपका जन्म नक्षत्र सही नहीं है तो वार्ता साधना में आपको बहुत सारी दिक्कतों को झेलनी पड़ सकता है।

 तो उनके गुरु ने बताया सर्वोत्तम रहता है कर्ण मातंगी साधना। कर्ण मातंगी बहुत जल्दी सिद्ध होती है। साधना जो विधि रहता है वो तीन से चार दिनों का रहता है। तीन से चार दिन की साधना में यह माता आपको दे देती है बोलके उनके गुरु ने बताया।

 

कर्ण मातंगी साधना अनुभव – साधना की पात्रता: उच्छिष्ट चांडालिनी की महा साधना

तो गुरु जी ने आग्रह पूर्वक उनसे बोला कि कृपया यह मेरे इस विद्या को मेरे को प्रकाशित कीजिए बोलके उन्होंने अपने गुरु से प्रार्थना किया। 

तो उनके गुरु ने बोला कि कर्ण मातंगी साधना करने से पहले तुमको महामातंगी माता का यानी कि उच्छिष्ट चांडालिनी का एक महा साधना संपन्न करना पड़ेगा तभी तुम्हारे पास एक एलिजिबिलिटी आएगी या फिर एक पात्रता आएगी तभी जाकर तुम कर्ण मातंगी माता को सिद्ध कर पाओगे या फिर उनसे कृपा प्राप्ति करके उनकी सिद्धि प्राप्त कर पाओगे। 

 बोलके बहुत सारी चीजें उन्होंने कर्ण मातंगी माता के ऊपर बताईं कि माता सात्विक हैं तथा जो साधक को भोग, ऐश्वर्य और सारे संसार की शक्तियों को प्रदान करने वाली रहती हैं और बहुत सारे ऐसे-ऐसे रहस्य कर्ण मातंगी माता के जो साधकों को बहुत कम पता रहते हैं। उसके बाद उन्होंने बताया कि किस तरह से साधना करना है।

तो उनके गुरु ने बोला कि आने वाले अमावस्या को मेरे पास आ जाना रात को, मैं तुमको महामातंगी मंत्र का दीक्षा प्रदान करूँगा। दीक्षा के बाद तुम महामातंगी का एक महा साधना संपन्न करना। संपन्न करने के बाद तुम फिर कर्ण मातंगी माता की साधना में लग जाना और तुम सिद्धि प्राप्त कर सकते हो इस हिसाब से। 

तो लगभग 20-30 दिन के बाद जो उनका अमावस्या आ गया था, अमावस्या आने के बाद गुरु जी मेरे, मेरे जो गुरु जी थे वो रात को अपने गुरु के पास गए, उन्होंने उधर दीक्षा प्राप्त की महामातंगी माता की और आके उन्होंने लगातार 51 दिनों तक महामातंगी साधना विधिपूर्वक ब्रह्मचर्य आदि के नियम से, बहुत कठोर नियम थे उनके, उस साधना को संपन्न किए। 

किसी और लेख में उस महामातंगी साधना का जिक्र करूँगा, उसका अनुभव बताऊँगा लेकिन अभी के लिए इतना जान लीजिए कि वो बहुत कठोर था और कठोर महामातंगी साधना था। माता से आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद, महामातंगी का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद, वह उन्होंने शुरू किया कर्ण मातंगी साधना

कर्ण मातंगी साधना के प्रयास और विफलता

मेरे गुरु जी ने शुक्ल पक्ष से यह कर्ण मातंगी साधना शुरू किया। यह साधना जो था चार दिन का साधना था या फिर लगातार बोल सकते तीन दिन का प्रॉपर साधना था लेकिन इसके कुछ विधियों के अनुसार यह चार दिन का भी रहता है। 

तो इस विधि से उन्होंने साधना शुरू किया। पहले टाइम जब उन्होंने साधना शुरू किया, मेरे गुरु जी ने, पहला टाइम का जो उनका साधना का अनुभव था, वो फेल हो गया। पहला टाइम का साधना उन्होंने फेल हो गया, ना कोई अनुभव हुए, ना किसी भी प्रकार की सिद्धि प्राप्त हुई।

 लेकिन पहला टाइम का साधना फेल हो गया। दूसरा टाइम जब उन्होंने ट्राई किया कर्ण मातंगी साधना को सिद्ध करने के लिए, आखिरी दिन जब वो जाप कर रहे थे, बस उनको ऐसा लगा कि उनकी जोर-जोर से हवा चलने लगी थी। 

 जिसके वजह से उनके कान में वो हवा लगी और इतना जोर से हवा लग रही थी कि उनका सिर दर्द शुरू हो गया था जाप के बस टाइम। तो यही था दूसरे बार का साधना का अनुभव। दूसरे बार का साधना इतना में ही खत्म हो गया था।

 

कर्ण मातंगी साधना अनुभव  -सिद्धि का अनुभव: तीसरा और अंतिम प्रयास

लेकिन जब गुरु जी ने तीसरे बार का साधना किया तो तीसरे बार में उनको सिद्धि मिली और तीसरे बार का साधना का अनुभव कुछ इस प्रकार था कि जब उन्होंने तीसरे बार साधना शुरू किया, वो भी शुक्ल पक्ष के अंदर ही शुरू किया था उन्होंने।

 

कर्ण मातंगी साधना अनुभव – पहला दिन – सूक्ष्म ध्वनियों का तीव्र होना

तो साधना के पहले ही दिन जब उन्होंने संकल्प लेके पूजा करते हुए महामातंगी यंत्र के सामने जाप करना शुरू कर दिया, तो उनको ऐसा लगा कि बहुत सूक्ष्म तरीके की आवाज उनके कान में आ रही है। अभी सूक्ष्म बोलूँगा तो आप सब लोगों को समझ नहीं आएगा।

 तो अगर सीधा बोला जाए तो उनको पेड़ों से पत्ते हिलने की आवाज, जो खुद की जो सांस लेते हैं ना, वह सांसों का आवाज भी उनको सुनाई दे रहा था और बहुत दूर-दूर के अगर कोई लोग बात कर रहे हैं तो उनका बातों भी गुरु जी को सुनाई दे रही थी साधना के समय। 

साधना का समय था रात का, तो रात के समय यह गुरु जी साधना कर रहे थे। फल स्वरूप क्या हुआ कि गुरु जी को इतने मतलब सूक्ष्म आवाज भी जब सुनाई देने लगी और तीव्र स्वर में सुनाई देने लगी तो उनको ऐसा लगने लग गया था। 

 यह छोटी-छोटी आवाज भी बहुत बड़ी-बड़ी आवाज कर रहे हैं और उसके वजह से इनका बहुत सिर दर्द शुरू हो गया था और जिसके वजह से वह उस सिर दर्द के वजह से साधना के बाद ना ही ध्यान कर पाए थे और वह रात को सो भी नहीं पाए।

 

कर्ण मातंगी साधना अनुभव  दूसरा दिन: बहरेपन की भयानक परीक्षा

इस दूसरे दिन के जब सुबह हुआ तो दूसरे दिन वो बहुत चिड़चिड़ा, फ्रेश नहीं था। जैसे-तैसे करके उन्होंने दूसरे दिन की सुबह काट दी। अभी आ गया था रात यानी कि शाम ढल गया था और रात होने को आई थी। 

रात होने के जब आ गई तो उन्होंने वह साधना में बैठ गए। जब साधना में वह बैठ गए तो जब वह जाप करना शुरू कर दिए थे तो उनको ऐसा लगा कि उनके कानों में एक पतली सी छोटी सी आवाज आ रही है।

 तो वो जब उसको इग्नोर करते हुए फिर से जाप कंटिन्यू करने लगे धीरे-धीरे तो उनको ऐसा लगने लगा कि धीरे-धीरे वो आवाज बढ़ रही है और एक्चुअली में वो आवाज बढ़ भी रही थी। 

तो जब इतना हो गया कि वो आवाज इतना जोर से आने लगा कि वो एकदम कोई भी चीज सुन नहीं पाए और उनके चारों तरफ अपने उनके ही कानों में बस वही आवाज गूंजने लग गई थी जिसके वजह से कुछ समय के बाद वो जाप भी नहीं कर पाए और उनके कानों से खून आने लगा और अचानक से उनका कान सुन्न पड़ गया और उनको कुछ सुनाई देना बंद हो गया।

जब यह बंद हो गया यानी कि वह खुद के आवाज को भी उस समय सुन नहीं पा रहे थे यानी कि जो खुद वह मंत्र जाप कर रहे थे, वो मंत्र जाप की आवाज को भी वह सुन नहीं पा रहे थे। इतना हो गया।

 जब इतना हो गया तो उन्होंने जैसे-तैसे करके साधना संपन्न किया और साधना के उठ जाने के बाद जब उन्होंने आदमी आगे वाला बात कर भी रहा था तो वह बात इनको बिल्कुल भी सुनाई नहीं दे रही थी यानी कि एक तरीके से वो दूसरे दिन के साधना के प्रभाव के वजह से एकदम बहरे हो गए थे। 

जब उन्होंने ऐसा हो गया तो वह एकदम बहुत वरीड हो गए और वरीड होकर एक जगह पर बैठ गए और अपने इष्ट को स्मरण करने लगे। तो थोड़े देर के बाद उनको आईडिया आया कि थोड़ा ध्यान में देखा जाए कि ये क्या हो रहा है।

 तो उन्होंने अपने गुरु मंत्र आदि का प्रयोग करते हुए जब उन्होंने ध्यान में देखा तो उनको पता चला कि यह साधना का एक प्रभाव है जिसके वजह से वह बहरे हो गए हैं। 

अगर साधना अगर इधर ही आप वो छोड़ देंगे या फिर डर के छोड़ देते हैं कि मैं बहरा हो गया हूँ बोलके तो इनको सिद्धि भी नहीं मिलेगी और उल्टा ये जीवन भर बहरे ही रह जाएँगे यानी कि इनको कुछ सुनाई नहीं देगा, ये बहरे होकर रह जाएँगे बोलके इनको पता चला।

 तो देखिए मैं जब जैसे पहले ही बोला था कि तांत्रिक साधना इतनी भयानक रहती है, अगर सही तरीके से कर लिया जाए तो बहुत अच्छा प्रभाव देती है और अगर गलत तरीके से किया जाए तो यह नकारात्मक प्रभाव भी देती है। 

साधना को बीच में छोड़ना यह सबसे बड़ी गलती रहती है साधक की, तो ऐसा कभी ना कीजिएगा। तो अभी हम आगे बढ़ते हैं अनुभव के ऊपर।

 

कर्ण मातंगी साधना अनुभव तीसरा दिन: माता का प्राकट्य और सिद्धि

अब जैसे-तैसे करके उन्होंने ध्यान में देख लिया उसके बाद सो गए और उन्होंने रात काटा। सुबह हो गई, तीसरे दिन आ गया। तीसरे दिन जब आ गया तो तीसरे दिन के बाद क्या हुआ, सुबह-सुबह जब वो नहा-धोकर आ रहे थे तो उनके कानों से फिर से खून आने लगा और उनके कान और सिर में बहुत जोर से पेन होने लग गई थी।

 तो ये पूरा वो जो पेन था वो उनका पूरा दिन भर रहा जिसके वजह से उनके उनको ऐसा लगने लगा कि आज का साधना बहुत कठिन जाएगा। फिर भी उन्होंने माता के स्मरण करते हुए अपने इष्ट और गुरु को स्मरण करते हुए तीसरे दिन का साधना शाम को शुरू किया।

 साधना शुरू करते ही जहाँ पर वह बैठते थे, वह उनसे इधर से सीधा देख पा रहे थे कि जोर-जोर से हवा चलने लग गए थे और पेड़ बहुत जोरों से न से पेड़ हिलने लग गए थे जिसके वजह से एक भयावह वातावरण उनके साधना स्थल में शुरू हो गया था या फिर देखने को मिल रहा था।

जब साधना थोड़ा और आगे बढ़ा, जब-जब वो जाप को और आगे बढ़ाते गए, जब-जब खत्म होने लग गया था, तो उनका पूरा शरीर में एकदम गर्मी सी आ गई थी, एकदम पूरा गर्मी आ गई थी और वो एकदम पसीने से लथपथ हो गए थे। 

वजह कि उनके साइड में बहुत सारे हवा चल रहे थे फिर भी वो पसीने से लथपथ थे। जब उन्होंने पहले चरण का जाप कंप्लीट किया और उसमें क्या होता है साधना का, यह पड़ाव अगर नहीं बताऊँगा तो आप लोगों को पता नहीं चलेगा। 

तो जान लीजिए उस साधना में क्या होता है कि उसमें दीपक को बुझा देते हैं, कुछ जाप करने के बाद दीपक को बुझा दिया जाता है और दीपक के जो तेल है अपने शरीर पर लगा लिया जाता है। 

उसी तरह से गुरु जी ने दीपक को बुझा दिया और उस सारे तेल को अपने शरीर पर लगाकर स्नान करने के लिए चले गए। स्नान करने जाने के बाद वो स्नान करके आ गए, आसन पर बैठ गए, फिर से मंत्र जाप शुरू कर दिया। 

जब उन्होंने इस बार मंत्र जाप शुरू किया तो थोड़ी देर के बाद उन्होंने देखा कि एक छोटी सी लाइट है वो उनके पास धीरे-धीरे आ रही है। वो जब-जब उनका थोड़ा और आगे बढ़ता गया तो वो लाइट अब उनके पास धीरे-धीरे आती रही, आती रही और एकदम बड़ा आकार हो गया।  

 एक तरह से ऐसा हुआ कि वो आँखें बंद करते हुए भी उनको वो लाइट इतना प्रभावशाली था कि उनको उन्होंने जबरदस्ती आँखें खोली थीं। जब उन्होंने आँखें खोल दीं तो तभी भी, तभी भी उनको वो लाइट आँखों के सामने दिखाई दी और एकदम उनके आँखों के सामने घना अंधेरा छा गया थोड़े समय के लिए और जब उनका अंधेरा टूटा तो उनके सामने माता कर्ण मातंगी खड़ी थीं यानी कि कर्ण मातंगी माता उनके सामने प्रकट हो गई थीं।

 तो गुरु जी उसको वर्णन करते हुए बोलते हैं कि माता एक रक्त कमल के ऊपर आरूढ़ थीं, उनके एक हाथ में कपाल था और एक हाथ में जो तोता था, एक हाथ में खड्ग था और एक हाथ में वो वरदमुद्रा धारण किए रहती थीं। 

इस तरह से उनका चार हाथ था और वो इस तरह से रहती थीं। उनका जो वर्ण था शरीर का वो श्याम वर्ण था यानी कि पूरा काला नहीं, श्याम वर्ण था और उन्होंने आशीर्वाद प्रदान किया बोलके गुरु जी वर्णन करते हैं। 

जब उनका दर्शन हुए तो अचानक से उनके कानों में फिर से सारी चीजें उनको सुनाई देने लग गई थीं। माता ने आशीर्वाद दिया और माता उधर से गायब हो गईं बाद में। तो इस हिसाब से उनका अनुभव था।

 

कर्ण मातंगी साधना अनुभव सिद्धि का प्रमाण: खोई हुई गाय का मिलना

चौथे दिन, तीसरे दिन का साधना संपन्न करने के बाद गुरु जी ने चौथे दिन विधिपूर्वक गुप्त हवन सामग्रियों के माध्यम से गुप्त मंत्रों के माध्यम से महामातंगी का हवन संपन्न किया। महामातंगी हवन जब उन्होंने संपन्न करने के बाद, अभी बारी थी उनके गुरु से बताने का। 

तो वो अपने गुरु के पास गए और यह सारा वृत्तांत उनको बताया। तो उनके गुरु ने उनको बताया कि कर्ण मातंगी का किस तरह से प्रयोग किया जाता है। जो प्रयोग विधि है, उन्होंने प्राप्त की और आके उन्होंने प्रयोग भी किया। 

तो वह प्रयोग कुछ इस प्रकार था, वह उसका एक प्रयोग मैं आपको बता दूँ। एक दिन क्या हुआ कि गुरु जी अपने दोस्तों के साथ, वह खेती-बाड़ी का टाइम था तो खेती-बाड़ी करते थे सब लोग, तो एक बैठ के बातचीत कर रहे थे। 

तभी उनका एक दोस्त आया और उनका दोस्त का नाम था घनश्याम। तो घनश्याम जो थे उन्होंने आए और दुखी मन से गुरु जी के पास बैठ गए। तो तभी गुरु जी ने पूछा कि घनश्याम क्या हुआ। 

तो वो जो घनश्याम थे उन्होंने बताया कि मेरा एक गाय था, वह लगातार दो दिनों से लापता है जंगल में। उनका बहुत खोजा, बहुत लोगों के साथ उसको खोजने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मिले, कहाँ गई हमको नहीं पता।

 तभी गुरु जी ने समझा कि यही उचित समय है माता कर्ण मातंगी के सिद्धि को प्रयोग करने का। उन्होंने मन ही मन मंत्र जाप किया, प्रार्थना किया और माता से बोला कि माता रास्ता दिखाइए। तभी उनके कानों में एक आवाज आई।

 उनके कानों में एक आवाज आई कि वो जो गाय है, वो पुराने जो पीपल का पेड़ है, पुराने पीपल के पेड़ के एक साइड में कुआँ है, उस कुएँ के अंदर गिर गया है। अभी भी वो जिंदा है, जाके उसको निकाल लो। 

तो उन्होंने वो पीपल के पेड़ के पास गए तो सच में उधर उस पीपल के पेड़ के पास एक कुआँ था और उस कुएँ में वो गाय गिर गई थी और चिल्ला रही थी और एक तरह से वो उधर नहीं निकल पा रही थी। तो सभी लोगों ने मिलके उस तरह से निकाला था। तो इस तरह का उन्होंने प्रयोग किया था।

कर्ण मातंगी साधना अनुभव – तंत्र साधना से मिली सीख

तो सभी को पता ही चल गया होगा कि ये जो मेरे गुरु जी ने कर्ण मातंगी साधना किया था, कितना भयानक था। तो अगर वह डर के वह साधना छोड़ देते कि अभी मैं बहरा हो गया हूँ, अभी कुछ मेरे घर का मर जाएगा, यह हो जाएगा, वो हो जाएगा बोलके छोड़ देते तो गुरु जी हमेशा बहरे ही रह जाते या फिर उनको कभी उनका इलाज ही नहीं हो पाता। 

 तो उन्होंने धैर्य पूर्वक साधना संपन्न किया, माता का आशीर्वाद लिया और उन्होंने अपने जीवन में आगे बढ़े। तो साधना में, तंत्र साधना में, इससे हमको यह सीखने को मिलता है कि तंत्र साधना में धैर्य की बहुत आवश्यकता है। 

बिना धैर्य के हम अगर तंत्र साधना करते हैं या फिर किसी भी प्रकार की उग्र शक्तियों की साधना करते हैं तो उसमें हमको बहुत क्षति प्राप्त हो सकता है। तो साधक को चाहिए धैर्य पूर्वक गुरु कृपा, अपने इष्ट की कृपा से वो तांत्रिक साधनाएँ संपन्न करे।

और एक बात, इस लेख में मैंने ये विधियाँ क्यों नहीं दीं और क्यों इन विधियों का ज्ञान नहीं दिया, आप सब लोगों को मैं बता दूँ इसीलिए क्योंकि अगर ये विधियों का ज्ञान अगर मैं आप सब लोगों को दे दूँगा, अगर अयोग्य साधक हुआ और ये विधियों का उसने प्रयोग कर दिया तो तो वो खुद को भी डुबा देगा और उसके साथ उसके घर वालों को भी ही डुबा देगा। 

क्योंकि यह एक तरह से पूर्ण तरीके से तांत्रिक साधना है। सात्विक साधना होने के बावजूद यह तांत्रिक साधना है और इसका नकारात्मक प्रभाव भी सभी को देखने को मिल सकता है। 

ध्यान रखिए, माता जितना सौम्य हैं, उतना उग्र प्रभाव की भी हैं। तो इसीलिए साधक को चाहिए धैर्य पूर्वक वो साधना और भक्ति भाव से साधना करे ताकि वो सिद्धि पा सके।

तो यही था कुछ आज का यह लेख। अगर सभी को यह लेख अच्छा लगता है तो इसे लाइक कर दें और शेयर कर दें। हमारी वेबसाइट गुरु मंत्र साधना डॉटकॉम को फॉलो करें ताकि मैं जो भी नया पोस्ट प्रकाशित करूँ, उसकी सूचना आप सब लोगों तक पहले पहुँच जाए।

 तो आज के लिए यह लेख इतना ही था। सभी को मेरा नमस्कार, जय माँ चंडी जय शंकर। मिलता हूँ आप सब लोगों से और एक किसी नए लेख में।